त्वदाश्रितानां जगदुद्भव /tvada shritanam jagadudbhava shloka
त्वदाश्रितानां जगदुद्भवस्थितिप्रणाशसंसारविमोचनादयः।
भवन्ति लीलाविधयश्च वैदिकास्त्वदीयगम्भीरमनोऽनुसारिणः॥१८॥*
[हे शरण्य !] आपके आश्रितजनोंको जगत्की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय तथा संसारसे मुक्ति-ये सब लीलामात्र होते हैं और वैदिक विधियाँ भी आपके भक्तोंके गम्भीर मनको अनुसरण करनेवाली होती हैं ॥ १८ ॥