F उपर्युपर्यब्जभुवोऽपि पूरुषान् /uparyu paryabja bhuopi shloka - bhagwat kathanak
उपर्युपर्यब्जभुवोऽपि पूरुषान् /uparyu paryabja bhuopi shloka

bhagwat katha sikhe

उपर्युपर्यब्जभुवोऽपि पूरुषान् /uparyu paryabja bhuopi shloka

उपर्युपर्यब्जभुवोऽपि पूरुषान् /uparyu paryabja bhuopi shloka

 उपर्युपर्यब्जभुवोऽपि पूरुषान् /uparyu paryabja bhuopi shloka

उपर्युपर्यब्जभुवोऽपि पूरुषान् /uparyu paryabja bhuopi shloka

उपर्युपर्यब्जभुवोऽपि पूरुषान् प्रकल्प्य ते ये शतमित्यनुक्रमात्।

गिरस्त्वदेकैकगुणावधीप्सया सदा स्थिता नोद्यमतोऽतिशेरते॥१७॥*

हे प्रभो ! वेदवाणी आपके गुणोंमेंसे एक- एकका भी अन्त लगानेकी इच्छासे प्रजापति ब्रह्माके भी ऊपर-ऊपर पुरुषोंकी कल्पना करके 'ते ये शतं प्रजापतेरानन्दाः स एको ब्रह्मणः' इत्यादिरूपसे सदा परिगणना करती रहती है, वह कभी उद्योगसे मुँह नहीं मोड़ती है [फिर भी पता नहीं पाती] ॥ १७ ॥

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