F वशी वदान्यो गुणवानृजुः /vashi vadanyo shloka - bhagwat kathanak
वशी वदान्यो गुणवानृजुः /vashi vadanyo shloka

bhagwat katha sikhe

वशी वदान्यो गुणवानृजुः /vashi vadanyo shloka

वशी वदान्यो गुणवानृजुः /vashi vadanyo shloka

 वशी वदान्यो गुणवानृजुः /vashi vadanyo shloka

वशी वदान्यो गुणवानृजुः /vashi vadanyo shloka

वशी वदान्यो गुणवानृजुः शुचिम॒दुर्दयालुर्मधुरः स्थिरः समः ।

कृती कृतज्ञस्त्वमसि स्वभावतः समस्तकल्याणगुणामृतोदधिः॥१६॥*

हे प्रभो! आप सबको वशमें रखनेवाले, उदार, गुणवान्, सरल, पवित्र, मृदुल स्वभाववाले, दयालु, मधुर, अविचल, समदर्शी, कृतकृत्य और कृतज्ञ हैं; इस प्रकार आप स्वभावहीसे समस्त कल्याणमय गुणरूप अमृतके सागर हैं ॥ १६ ॥ 

सूक्तिसुधाकर के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके।
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 वशी वदान्यो गुणवानृजुः /vashi vadanyo shloka


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