वशी वदान्यो गुणवानृजुः /vashi vadanyo shloka
वशी वदान्यो गुणवानृजुः शुचिम॒दुर्दयालुर्मधुरः स्थिरः समः ।
कृती कृतज्ञस्त्वमसि स्वभावतः समस्तकल्याणगुणामृतोदधिः॥१६॥*
हे प्रभो! आप सबको वशमें रखनेवाले, उदार, गुणवान्, सरल, पवित्र, मृदुल स्वभाववाले, दयालु, मधुर, अविचल, समदर्शी, कृतकृत्य और कृतज्ञ हैं; इस प्रकार आप स्वभावहीसे समस्त कल्याणमय गुणरूप अमृतके सागर हैं ॥ १६ ॥