F त्वदज्रिमुद्दिश्य कदापि केन /tvadjri mudyisya shloka - bhagwat kathanak
त्वदज्रिमुद्दिश्य कदापि केन /tvadjri mudyisya shloka

bhagwat katha sikhe

त्वदज्रिमुद्दिश्य कदापि केन /tvadjri mudyisya shloka

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त्वदज्रिमुद्दिश्य कदापि केन /tvadjri mudyisya shloka

त्वदज्रिमुद्दिश्य कदापि केनचिद्यथा तथा वापि सकृत्कृतोऽञ्जलिः।

तदैव मुष्णात्यशुभान्यशेषतः शुभानि पुष्णाति न जातु हीयते॥२६॥*

आपके चरणोंके उद्देश्यसे, किसी भी समयमें, किसीने भी, जैसे-तैसे एक बार भी हाथ जोड़ दिया तो वह (नमस्कार) उसके समस्त पापोंको हर लेता है, पुण्यराशिकी पुष्टि करता है और उसका फिर कभी नाश नहीं होता ॥ २६ ॥

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 त्वदज्रिमुद्दिश्य कदापि केन /tvadjri mudyisya shloka


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