उदीर्णसंसारदवाशुशुक्षणिं /udirna sansar davashu shloka
उदीर्णसंसारदवाशुशुक्षणिं क्षणेन निर्वाप्य परां च निर्वृतिम् ।
प्रयच्छति त्वच्चरणारुणाम्बुजद्वयानुरागामृतसिन्धुशीकरः ।। २७।।*
आपके युगलचरणरूपी अरुण कमलके अनुरागसे उत्पन्न हुए अमृत-सिन्धु (गङ्गाजी) का जलकण बढ़े हुए संसार-दावाग्निको क्षणमात्रमें शान्त करके परमानन्द देता है ।। २७ ।।