विलासविक्रान्तपरावरालयं /vilas vikranta para varalayam shloka
विलासविक्रान्तपरावरालयं नमस्यदार्तिक्षपणे कृतक्षणम्।
धनं महीयं तव पादपङ्कजं कदा नु साक्षात्करवाणि चक्षुषा ।। २८॥*
लीलामात्रसे ही पर-अपर सब लोकोंको (वामनरूपमें) नापनेवाले और प्रणतकी पीड़ाको हरनेमें ही अपना प्रत्येक क्षण लगानेवाले मेरे परमधन आपके पादपङ्कजको, नेत्रोंसे मैं कब प्रत्यक्ष देखूगा? ॥ २८॥