यत्र निर्लिप्तभावेन /yatra nirlipta bhavena shloka

यत्र निर्लिप्तभावेन संसारे वर्तते गृही।
धर्म चरति निष्कामं तत्रैव रमते हरिः॥१३४॥
जहाँ गृहस्थ पुरुष संसारमें निर्लिप्तभावसे रहता हुआ धर्माचरण करता है, वहीं श्रीहरि विहार करते हैं ॥ १३४॥
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यत्र निर्लिप्तभावेन /yatra nirlipta bhavena shloka