भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak nam
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भागवत कथा वाचक नाम लिस्ट bhagwat katha vachak nam
हमारे ऋषि-मुनियों की कृपा से विश्व को अठारह पुराण प्राप्त हुए हैं |
जिनमें से श्रीमद् भागवत महापुराण एक अनुपम पुराण है,, भगवत प्राप्ति कराने वाला है यह पुराणों में तिलक के रूप में जाना जाता है |
इस श्रीमद् भागवत महापुराण का निर्माण महर्षि वेदव्यास जी द्वारा तीसरे युग द्वापर के अंत में किया गया है |
वेदव्यास जी त्रिकालज्ञ थे वह भूत भविष्य वर्तमान को जानने वाले थे, उन्होंने देखा कि कलयुग में जो आने वाला समय है वह प्राणियों का कल्याण के लिए बड़ा दुर्लभ समय आने वाला है | श्री वेदव्यास जी ने कृपा करके कलयुगी प्राणियों को भगवत प्राप्ति कराने का मार्ग अपनी लेखनी द्वारा निकाला |
उन्होंने सर्वप्रथम महाभारत नामक इतिहास को लिखा जिसमें एक लाख श्लोक हैं, जोकि विश्व का पहला इतिहास है और सबसे बड़ा |
उसके बाद उन्होंने वेद के चार भाग किए अन्य पुराणों की रचना की लेकिन उनके आत्मा को शांति नहीं मिली इन सबकी रचना करने के बाद भी |
उनके हृदय मे अशांति थी तब देवर्षि नारद आए और उन्होंने अशांति के कारण को बतलाया कि आपने ग्रंथों में धर्म अर्थ काम मोक्ष इन चारो पुरुषार्थों का वर्णन किया है, परंतु आपने किसी भी ग्रंथ में भगवान की सुंदर मधुर लीलाओं की रचना नहीं की |
व्यास जी कोई काम निष्काम भले ही हो लेकिन वह भगवान की लीलाओं से परे हो तो उसकी सार्थकता नहीं होती |
हो ना हो वेदव्यास जी आपके दुख का यही कारण है इसलिए आप अपने दिव्य दृष्टि से भगवान की लीलाओं को देखिए और अपनी लेखनी के द्वारा ग्रंथ का निर्माण करके जगत का कल्याण करिए |
तब श्री वेदव्यास जी ने परमहंसो की पावन संहिता यह श्रीमद् भागवत महापुराण की रचना की और फिर अपने पुत्र श्री सुकदेव जी को उत्तम अधिकारी जानकर उन्हें पढ़ाया |
वही श्री सुकदेव जी महाराज राजा परीक्षित को इस दिव्य ज्ञान को प्रदान करते हैं ,,
भागवत महापुराण में भगवान के सुंदर सुंदर चरित्रों का और उनके भक्तों के चरित्रों का वर्णन किया गया है जिसके श्रवण मात्र से जीवो के अंतर्गत पाप जलकर नष्ट हो जाते हैं और वह भगवत धाम के अधिकारी हो जाते हैं |
अन्नत श्री सर्व अन्तर्यामी अखिल ब्रह्माण्डनायक अकारण करूणावरुणालय परब्रह्म परमात्मा श्रीलक्ष्मी वैकुण्ठनाथ भगवान् की आत्मा ही संसार है और संसार का प्राण वेद है। वह वेद प्रभु की श्वास है वह नाद भी उन्हीं प्रभु से प्रकट हुआ है। इस नाद को ही प्रणव या ओम् से भी जाना जाता है।
उसी ओम् की ही व्याख्या वेद-उपनिषद्, इतिहास - पुराण इत्यादि सद्ग्रन्थ हैं। उन्हीं सद्ग्रन्थों का रसास्वादन कर जीव परमात्मा को प्रप्त करता है।
उन परमात्मा का बोध कराने के लिए महर्षि श्रीवेदव्यास जी ने साठ लाख श्लोकों की एक संहिता बनायी, जिस संहिता के तीस लाख श्लोकों का देवलोक में, पन्द्रह लाख श्लोकों का यक्षलोक में, चौदह लाख श्लोकों का पितृलोक में और एक लाख श्लोकों का पृथ्वीलोक में प्रचार हुआ।
वहीं ये एक लाख श्लोक वस्तुतः वेद ही है या वेदकी उपव्याख्या ही हैं । वेद चार भागों में विभक्त है। उन्हीं वेदों का भावार्थ उपनिषद्, महाभारत, इतिहास और पुराण इत्यादि हैं। पुराणों में प्रधान पुराण भागवत पुराण है, सद्गतिदायक एवं प्रभुप्रीति के नायक होने के कारण इसे श्रीमद्भागवतपुराण के नाम से जाना जाता है । श्रीमद्भागवत महापुराण पंचम वेद भी है।
इसी श्रीमद्भागवत पुराण की कृपा से जीव तरण तारण को प्राप्त करते आ रहे हैं । इसी श्रीमद्भागवत महापुराण का उपदेश एक समय प्रभु श्रीमन्नारायण ने श्रीलक्ष्मी देवी एवं ब्रह्मादिक देवों को भी दिया था तथा उसी श्रीमद्भागवत जी की कथा समय - समय से सनकादि - नारद आदि ऋषियों ने प्राप्त कर भक्तजनों को कृतार्थ करते हुए स्वयं को भी कृतार्थ हुआ।
वही श्रीमद्भागवत है, जिसको प्रभु ने अपना प्रत्यक्ष स्वरूप बताकर श्रीउद्धव जी को भगवत् - मय रहने का उपदेश दिया । यह शाश्वत सत्य पौराणिक कथन है कि एक समय व्यासनन्दन श्रीशुकदेव जी पिता से प्राप्त कथा - रस का पान करके ऋषि शाप से दग्ध राजा परीक्षित् को अमरत्व प्रदान कराया था।
उसी कथा को एक बार नैमिषारण्य में उपस्थित अट्ठासी हजार ऋषियों के साथ श्रीशौनक जी ने श्री सूतजी से प्राप्त किया था ।
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