shiv puran katha in hindi pdf शिव पुराण हिंदी में
यूनां च विष्णुबुद्ध्या हि पुत्रकामार्थिनिर्नरैः।।
विष्णु बुद्धि से युवकों को दान करना चाहिए और ज्ञान प्राप्ति की इच्छा वाले
को रूद्र बुद्धि से वृद्ध जनों को दान देना चाहिए । सुख भोग की कामना वाले श्रेष्ठ
जनों को लक्ष्मी बुद्धि से युवतियों को दान देना चाहिए। आत्मज्ञान की इच्छा वाले
लोगों को पार्वती बुद्धि से वृद्धा स्त्रियों को अन्न दान करना चाहिए । ईश्वरार्पण
बुद्धि से यज्ञ दान आदि कर्म करके मनुष्य मोक्ष फल का भागी होता है ।
( पार्थिव पूजन )
ऋषि बोले- हे सूत जी अब आप कृपा कर हमें पूजा के योग्य विधि
बताएं ? शिव जी कहते हैं- हे महर्षियों मिट्टी से बनाई हुई
प्रतिमा का पूजन करने से पुरुष हो या स्त्री सभी के मनोरथ सफल हो जाते हैं। इसके
लिए नदी, तालाब, कुएं या जल के भीतर के
मिट्टी लाकर सुगंधित द्रव्य के चूर्ण से उसका शोधन करें फिर दूध डालकर अपने हाथ से
सुंदर मूर्ति बनावें।
पद्मासन द्वारा उस पार्थिव प्रतिमा का आदर सहित पूजन करें। गणेश,
सूर्य, विष्णु, शिव,
पार्वती की मूर्ति और शिवजी के लिंग का तो ब्राह्मण सदैव पूजन करें
। षोडषोपचार युक्त पूजन करने से मनोरथ अवश्य ही सिद्ध होते हैं ।
किसी भी व्यक्ति के स्थापित किए लिंग पर तीन सेर नैवेद्य और स्वयं
उत्पन्न हुए लिंग पर पांच शेर नैवेद्य चढ़ाने का नियम है । शिवलिंग के अभिषेक से
आत्म शुद्धि, गन्ध चढ़ाने से पुण्य । नैवेद्य चढ़ाने से आयु
तथा धूप देने से धन की प्राप्ति होती है। दीप से ज्ञान और तांबूल से भोग मिलता है।
जो जिस देवता की पूजा करता है वह उस देवता के लोकों को प्राप्त होता
है। साथ ही उनके बीच के लोकों में भी यथेष्ट भोग मिलते हैं।
shiv puran katha in hindi pdf शिव पुराण हिंदी में
अखिल जगत बिंदुनादात्मक है, जिसमें बिन्दु
शक्ति है और नाद शिव जी हैं। बिंदु का आधार नाद है और जगत का आधार बिंदु है।
इसीलिए यह दोनों ही जगत के आधार हुए । बिंदु देवी और नाद शिव हैं इसलिए यह दोनों
ही शिवलिंग नाम से प्रसिद्ध हुए ।
शिव भक्ति के मिलापि का नाम लिंग है। जो मनुष्य श्रद्धा पूर्वक विधि
विधान से पूजन करते हैं शिवलिंग का उनका पुनर्जन्म नहीं होता ।
( प्रणव पंचाक्षरी का महात्म्य )
ऋषियों ने पूछा- महामुनि ?
प्रणवस्य च माहात्म्यं षड्लिङ्गस्य महामुने।
शिवभक्तस्य पूजां च क्रमशो ब्रूहि नः प्रभो।। वि-17-1
प्रणव एवं षडलिंग का क्या माहात्म्य है तथा शिव जी की- भक्ति पूजा का क्या
विधान है हमें सुनाइए ।
सूत जी बोले- ऋषियों प्रकृति से उत्पन्न हुआ प्र संसार की नौका
स्वरूप है इसलिए पंडित उसे प्रणव कहते हैं।
प्र- प्रपंच, न- नहीं, व-
तुममे। अर्थात तुममे कुछ प्रपंच नहीं है । यह प्रणव माया से रहित होने के कारण
सर्वदा नवीन है । इसको एकांत में जपने से भोग की प्राप्ति होती है और जो इसे
छत्तीस करोड़ बार जप लेता है वह योगी हो जाता है।
प्रणव का भाव-
प्र- प्रकर्षेण , न- नयेत,
व:- युष्मान मोक्षम इति वा प्रणवः।
यह तुम सब उपासकों को बलपूर्वक मोक्ष तक पहुंचा देगा इस अभिप्राय से भी इसे
ऋषि मुनि प्रणव कहते हैं ।
ब्राह्मण और गुरु से प्राप्त कर शिव पंचाक्षरी का पांच लाख जप करता
है, तो आयु बढ़ती है । यह मंत्र शिव स्वरूप है और जो इसको
धारण कर लेता है वह शिव रूप हो जाता है।
shiv puran katha in hindi pdf शिव पुराण हिंदी में
( बन्ध और मोक्ष )
ऋषि बोले- सूतजी बन्ध और मोक्ष क्या है ?
सूत जी बोले- ऋषियों मैं बंधन और मोक्ष का स्वरूप तथा मोक्ष के उपाय
का वर्णन करूंगा ।
प्रकृत्याद्यष्टबन्धेन बद्धो जीवः स उच्यते।
प्रकृत्याद्यष्टबन्धेन निर्मुक्तो मुक्त उच्यते।। वि-18-2
जो प्रकृति आदि आठ बंधनों से बंधा हुआ है वह जीव बद्ध कहलाता है और जो उन आठ
बंधनों से छूटा हुआ है उसे मुक्त कहते हैं। प्रकृति आदि को वश में कर लेना मोक्ष
कहलाता है ।
बद्ध जीव जब बंधन से मुक्त हो जाता है तब उसे मुक्त जीव कहते हैं।
प्रकृति, बुद्धि ( महतत्व ) त्रिगुणात्मक अहंकार और पांच
तन्मात्राएं इन्हें ज्ञानी पुरुष प्रकृत्याद्यष्ट मानते हैं ।
प्रकृति आदि आठ तत्वों से देह की उत्पत्ति हुई है। देह से कर्म
उत्पन्न होता है और फिर कर्म से नूतन देह की उत्पत्ति हुई है। इस प्रकार-
पुनश्च कर्मजो देहो जन्म कर्म पुनः पुनः।
बार-बार जन्म और कर्म होते रहते हैं । शरीर स्थूल, सूक्ष्म और कारण के भेद से तीन प्रकार का जानना चाहिए। जीव को उसके
प्रारब्ध कर्मानुसार सुख दुख प्राप्त होते हैं ।
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इस चक्रवत भ्रमण की निवृत्ति के लिए चक्रकर्ता का स्तवन एवं आराधन
करना चाहिए। पृथ्वी पर भगवान शिव के अनेकों लिंग है जिनका पूजन दर्शन समस्त पापों
को हरने वाला है ।
पृथ्वी पर सदा शिव के पांच लिंग विशेष हैं- 1-स्वयंभू लिंग, 2-बिंदु लिंग, 3-प्रतिष्ठित लिंग, 4-चर लिंग, 5-गुरु लिंग । गृहस्थ को चाहिए कि स्नान नैवेद्य
द्वारा प्रतिदिन शिवलिंग की आराधना करें।
भस्म धारण- स्त्री हो या पुरुष शिव
भक्तों को सदैव भस्म धारण करनी चाहिए। जो भष्म त्रिपुंड्र धारण कर शिव पूजा करता
है उसे पूर्ण फल की प्राप्ति होती है ।
पार्थिव लिंग- हे ऋषियों सब लिगों में
पार्थिव लिंग सर्वश्रेष्ठ है , जिसके पूजन से बहुत से लोग
सिद्ध हो गए हैं। ब्रह्मा विष्णु और कितने ही ऋषि-मुनियों को पार्थिव लिंग के पूजन
से उनके मनोरथ सिद्ध हो चुके हैं ।
कृते रत्नमयं लिगं त्रेतायां हेमसम्भवम्।
द्वापरे पारदं श्रेष्ठं पार्थिवं तु कलौ युगे।। वि-19-7
सतयुग में मणि लिंग, त्रेता में शिवलिंग, द्वापर
में पारद लिंग और कलयुग में पार्थिव लिंग को श्रेष्ठ कहा गया है।
यथा नदीषु सर्वासु ज्येष्ठा श्रेष्ठा सुरापगा।
तथा सर्वेषु लिङ्गेषु पार्थिवं श्रेष्ठ मुच्यते।। वि-19-10
जैसे- सभी नदियों में गंगा ज्येष्ठ और श्रेष्ठ कही जाती है वैसे ही सभी लिंग
मूर्तियों में पार्थिव लिंग श्रेष्ठ कहा जाता है । जो पार्थिव लिंग बनाकर जीवन
पर्यंत शिव जी का नित्य प्रति पूजन करता है वह परलोक का भागी होता है । अनंत काल
तक शिवलोक में रहकर वह भरतखंड का राजा होता है ।
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ऋषिगण बोले-
अग्राह्यं शिवनैवेद्यमिति पूर्वं श्रुतं वचः।
हे महामुनि हमने पहले सुना है कि भगवान शिव को अर्पित किया गया नैवेद्य
अग्राह्य होता है , अतएव नैवेद्य के विषय में निर्णय कर और
बेलपत्र का महत्व भी कहिए ।
सूत जी बोले- हे मुनियों जो शिव भक्त हैं उसे शिव नैवेद्य अवश्य
ग्रहण करना चाहिए अग्राह्य भावना का त्याग कर देना चाहिए । जो शिव दीक्षित भक्त
हैं वह समस्त शिवलिंग के लिए समर्पित नैवेद्य खा सकते हैं ।
अन्यदीक्षायुजां नृणां शिवभक्तिरतात्मनाम्।
जिन मनुष्यों ने अन्य देवों की दीक्षा ली है और जो शिव जी के भक्ति में
अनुरक्त हैं, उनके लिए नैवेद्य के भक्षण में निर्णय किया गया है। जहां चण्ड
का अधिकार हो वहां शिवलिंग के लिए समर्पित नैवेद्य का भक्षण नहीं करना चाहिए।