shiv puran katha in hindi pdf शिव पुराण हिंदी में -14

 shiv puran katha in hindi pdf शिव पुराण हिंदी में

   शिव पुराण कथा भाग-14  

shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में

जहां चण्ड का अधिकार ना हो वहां भक्ति पूर्वक नैवेद्य भक्षण करना चाहिए । बांण लिंग, लौह लिंग, सिद्ध लिंग, स्वयंभू लिंग और अन्य समस्त प्रतिमाओं पर चण्ड का अधिकार नहीं होता । चण्ड के द्वारा अधिकृत होने के कारण अग्राह्य शिव नैवेद्य, पत्र, पुष्प, फल और जल यह सब शालिग्राम शिला के स्पर्श से पवित्र हो जाता है ।


बिल्व पत्र महिमा-
महादेवस्वरुपोयं बिल्वो देवैरपि स्तुत:।
बिल्व वृक्ष तो महादेव स्वरूप है , देवों के द्वारा भी इसकी स्तुति की गई है। संसार में जितने भी प्रसिद्ध क्षेत्र तीर्थ हैं वे सब बिल्व के मूल में निवास करते हैं । जो भक्ति सहित बिल्व की जड़ में दीपक जलाता है वह सब पापों से छूट जाता है। बिल्व वृक्ष के नीचे जो शिव भक्तों को भोजन कराता है उसे एक ब्राह्मण को खिलाने से एक करोड़ ब्राह्मण भोजन का फल मिलता है ।

( शिव नाम महिमा )
जिसके शरीर पर भस्म , रुद्राक्ष और मुख में शिव नाम यह तीनों नित्य विद्यमान रहते हैं उसका पाप विनाशक दर्शन संसार में दुर्लभ है । भगवान शिव का नाम गंगा है, विभूति जमुना है तथा रुद्राक्ष को सरस्वती कहा गया है । इन तीनों की संयुक्त त्रिवेणी समस्त पापों का नाश करने वाली है ।

बहुत पहले की बात है हितकर ब्रह्मा जी ने जिसके शरीर में उक्त तीनों त्रिपुंड रुद्राक्ष और शिव नाम संयुक्त रूप से विद्यमान थे उनके फल को तराजू के एक पडले में रखकर त्रिवेणी में स्नान करने से उत्पन्न फल को दूसरी ओर के पडले में रखा और तुलना की तो दोनों बराबर ही उतरे। अतएव विद्वानों को चाहिए कि इन तीनों को सदा अपने शरीर पर धारण करें।
शिवेति नामदावाग्नेर्महापातकपर्वताः।
भष्मी भवन्त्य नायासात्सत्यं सत्यं न संशयः।। वि-23-23
शिव इस नाम रूपी दावानल से महान पातक रूपी पर्वत अनायास ही भस्म हो जाता है- यह सत्य है, सत्य है इसमें संशय नहीं है। भगवान शंकर के एक नाम में भी पाप हरण की जितनी सकती है उतना पातक मनुष्य कभी कर ही नहीं सकता ।

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हे मुने पूर्व काल में महा पापी राजा इंद्रद्युम्न ने शिव नाम के प्रभाव से उत्तम सद्गति प्राप्त की थी। भगवान नाम की महिमा बहुत बड़ी है बाबा जी भी लिखते हैं-
कलयुग जोग न जग्य ना ज्ञाना। एक आधार राम गुण गाना।।

सब भरोस तजि जो भज रामहिं । प्रेम समेत गाव गुन ग्रामहिं।।
सोई भव तर कछु संशय नाहीं। नाम प्रताप प्रगट कलि माहीं।।

( रामचरितमानस, उत्तरकांड )

कलयुग में सबसे अधिक नाम महिमा है भागवत पुराण में भी श्री सुखदेव भगवान कहते हैं-
कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महानगुणः।
कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्त सङ्गः परं व्रजेत।। भा-13-3-51
परीक्षित यह कलयुग तो दोषों का खजाना है, परंतु इसमें एक बहुत बड़ा गुण है वह गुण यही है कि कलयुग में केवल भगवान हरि का संकीर्तन करने मात्र से ही सारी आसक्तियां छूट जाती है और परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है ।

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भष्म महात्म्य- सूत जी बोले हे महर्षियों संपूर्ण मगंलों को देने वाला तथा उत्तम है, उसके दो भेद बताए गए हैं। मैं उन दोनों भेदों का वर्णन करता हूं आप लोग सावधान होकर सुनिए।
एकं ज्ञेयं महाभष्म द्वितीयं स्वल्प संज्ञकम्।
एक को महाभष्म जानना चाहिए और दूसरे को स्वल्प भष्म। महाभष्म के भी अनेक भेद हैं। वह तीन प्रकार का कहा गया- श्रौत, स्मार्त और लौकिक। स्वल्प भष्म के भी बहुत से भेदों का वर्णन किया गया है ।
श्रौत, स्मार्त भष्म को केवल द्विजों के ही उपयोग आने के योग्य कहा गया है। तीसरा जो लौकिक भष्म है वह अन्य लोगों के भी उपयोग में आ सकता है।


श्रेष्ठ महर्षियों ने बताया है कि द्विजों को वैदिक मंत्र के उच्चारण पूर्वक भस्म धारण करना चाहिए । दूसरे लोगों को बिना मंत्र के धारण करने का विधान है। सारे उपनिषदों का यही सार है कि भस्म तथा त्रिपुंड धारण करना श्रेयस्कर है। इनकी निंदा करने वाले लोग ब्रह्मा की आयु पर्यंत घोर नरक में पड़े रहकर अनेक यातनाएं भोगते हैं ।

जो भस्म तथा त्रिपुंड ( तिलक ) धारण कर श्रद्धा, यज्ञ, तप, जप, होम पूजन आदि करते हैं उनकी आत्मा शुद्ध हो जाती है।

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रुद्राक्ष माहात्म्य- सूत जी बोले हे सौनक जी रुद्राक्ष शंकर जी को अति प्रिय है, इसके द्वारा जप करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इसकी महिमा तो सदाशिव ने स्वयं लोक के कल्याणार्थ श्री पार्वती जी को सुनाई है ।

सदा शिव ने पार्वती जी से कहा हे देवी मैंने पूर्व काल में दिव्य सहस्त्र वर्ष पर्यंत तपस्या की थी, एक दिन मेरा मन छुब्द हुआ और उस समय मैंने लीलावश अपने दोनों नेत्र खोले-
पुटाभ्यां चारुचक्षुर्भ्यां पतिता जलबिन्दवः।
तत्राश्रुबिन्दुतो जाता वृक्षा रुद्राक्ष संज्ञकाः।। वि-25-7
नेत्र खोलते ही मेरे मनोहर नेत्रों से कुछ जल की बूंदे गिरी। आंसू की उन बूंदों से वहां रुद्राक्ष नामक वृक्ष पैदा हो गए। गौड़ देश से लेकर मथुरा, अयोध्या, काशी, लंका, मलयाचल, सह्यगिरि आदि देशों में रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हो गए ।

तभी से इसका महत्व इसकी माला समस्त पापों का नाश करके भुक्ति मुक्ति देने वाली है। जिन रुद्राक्षों में छेंद बना हुआ हो वह उत्तम है और जिनके छेंद मनुष्य द्वारा बनाए हुए हों वह मध्यम है ।


साढ़े पांच सौ रुद्राक्षों का मुकुट, तीन लड़ीदार तीन सौ साठ रुद्राक्ष का यज्ञोपवीत, एक सौ एक रुद्राक्ष की माला, तीन रुद्राक्ष सिखा में, छः छः रुद्राक्ष कानों में, ग्यारह-ग्यारह रुद्राक्ष दोनों कोहनियों में तथा इतने ही दोनों मणिबंध में , तीन जनेऊ में , पांच कमर में इस प्रकार कुल ग्यारह सौ रुद्राक्ष धारी मनुष्य साक्षात् शिव रूप है।

तीन मुख वाला रुद्राक्ष साधन सिद्ध करता है ,यह प्रमुख विधाओं में निपुण कर देता है। चार मुख वाला रुद्राक्ष ब्रम्हरूप है इसके दर्शन एवं पूजन से हत्या का भी पाप छूट जाता है। चारों पुरुषार्थ का फल प्रदान करता है।

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कालाग्नि नामक पंचमुखी रुद्राक्ष रुद्र रूप है, यह सब कामनाएं पूर्ण कर मोक्ष प्रदान करता है। छः मुखी रुद्राक्ष स्वामी कार्तिकेय का स्वरूप है। इसे दक्षिण हाथ में बांधने से ब्रह्महत्यादि के दोष निवृत हो जाते हैं ।

सप्तमुखी रुद्राक्ष के अनेक नाम है, इसके धारण करने से धन प्राप्त होता है। अष्टमुखी रुद्राक्ष अष्टमूर्ति भैरव का रूप है इसके धारण से दीर्घायु प्राप्त होती है और मरने पर शिव स्वरूप हो जाता है।

नव मुखी रुद्राक्ष भैरव तथा कपिला रूपा है, इसकी अधिष्ठात्री नौ स्वरूपा अंबादेवी हैं, इसे वामांग में धारण करने से समस्त वैभव प्राप्त होते हैं ।

दस मुखी रुद्राक्ष विष्णु रूप है इसके धारण करने से सर्व मनोरथ सफल हो जाते हैं। ग्यारह मुखी रुद्राक्ष आदित्य रूप है इसे मस्तक पर धारण करने से सब मनोरथ सफल हो जाते हैं और उसका तेज द्वादश सूर्यों के समान हो जाता है ।

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