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कुछ समय के
बीत जाने पर पति द्वारा उसे अधिक गुण संपन्न दस पुत्र हुए । पर्वतराज इस प्रकार वे
दोनों स्त्री-पुरुष अत्यंत सुखी हो गए।
इसको सुनकर हिमाचल अपनी पत्नी से बोले- हे देवी अब तुम देर ना करो
पुत्री पार्वती को शिव जी को अर्पण कर दो।
( सप्तर्षियों का शिव के पास आगमन )
ब्रह्माजी बोले- नारद जी इस प्रकार हिमाचल को कथा सुनाकर वशिष्ठ
जी चुप हो गए। तब हिमाचल बोले ऋषि गणों अब मेरा संसय मिट गया है। मेरी धन-संपत्ति,
स्त्री ,कुल ,कलत्र,
कन्या एवं मेरा शरीर भी भगवान शंकर के अर्पण हैं ।
मैं अपनी पुत्री पार्वती को वस्त्र आभूषण से अलंकृत करके शंकर जी को
देने के लिए तैयार हूं । मेरा संकल्प दृढ हो गया है। यह सुनकर सप्तर्षि कहने लगे
पर्वतराज धन्य हो। हम तो यही कहेंगे कि भगवान शंकर भिखारी हैं और आप दाता हो ।
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उन्हें अपनी पार्वती रूपी भिक्षा अवश्य दें। यह कहकर श्री पार्वती
जी के मस्तक पर हाथ फेरते हुए बोले- पुत्री तुम्हारा मंगल हो यह कहकर पुष्प फल
देकर आशीर्वाद देने लगे। इधर अरुंधति जी ने भगवान शंकर के गुणों से मैना को मोहित
कर के लोक रीति के अनुसार हल्दी रोली आदि से द्वार पूजन मार्जन आदि कराकर चार दिन
के बाद लग्न भी धरा दी ।
उसके बाद अत्यंत आनंद के साथ सातों ऋषियों ने कैलाश पहुंचकर भगवान
शंकर को शुभ प्रसंग सुनाया और कहा कि हमने हिमालय को धर्म शास्त्रों के वचन सुना
कर समझा दिया है ,वह अपनी पुत्री को आप को समर्पण करने के
लिए तैयार हैं । आप विवाह की तैयारी करें ।
( हिमालय का लग्न पत्रिका भेजना )
ब्रह्माजी बोले- नारद जी उसके बाद हिमालय ने अपने सगे संबंधियों
को बुलाकर प्रसन्नता पूर्वक अपने पुरोहित श्री गर्ग जी से लग्न पत्र लिखवाया ।
पूजन करके अनेकों सामग्रियों के साथ भगवान शंकर के पास भिजवा दिया ।
ते जनास्तत्र गत्वा च कैलाशे शिवसन्निधिम्।
ददुः शिवाय तत्पत्रं तिलकं संविधाय च।। रु•पा•37-6
उन लोगों ने कैलाश पर शिवजी के समीप जाकर उनको तिलक लगाकर उन्हें वह
पत्रिका प्रदान की। भगवान शिव ने उन लोगों का विशेष रूप से यथोचित सम्मान किया और
प्रसन्नतापूर्वक वे सभी लोग हिमालय के पास लौट आए।
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हिमालय भी शिव जी के द्वारा विशेष रूप से सम्मानित हुए लोगों को
देखकर मन ही मन अत्यंत प्रसन्न हुए। उसके बाद उन्होंने अनेकों देशों में रहने वाले
अपने संबंधियों को बड़े प्रेम के साथ निमंत्रण भेजा।
फिर वस्त्र आभूषण विभिन्न प्रकार के रत्न आदि वस्तुओं का संग्रह
करने लगे। अनेक प्रकार की मिठाइयां पकवान आदि बनाने के लिए अनेक हलवाई लगा दिए गए
।
सौभाग्यवती पर्वत नारिया मंगल गीत गाने लगी, श्री
पार्वती जी का श्रृंगार करने लगी। अनेकों प्रकार के साज शृंगार वेश से सुशोभित
होकर स्त्री समाज इकट्ठा हो गया । लोकाचार रीतियाँ होने लगी। हिमाचल से निमन्त्रित
होकर परिवार के साथ सभी पर्वत वहां पहुंचने लगे।
देवालयगिरिर्यो हि दिव्यरूप धरो महान्।
सबसे पहले सर्वश्रेष्ठ तथा श्रीमान देवालय नामक पर्वत सुंदर वेश से अलंकृत
होकर दिव्य रूप धारण कर अनेक प्रकार के रत्नों से देदीप्यमान अपने समाज तथा कुटुंब
के साथ अनेक मणियों तथा बहुमूल्य रत्नों को लेकर ( जगाम स हिमालयम् ) हिमाचल यहां
पहुंचे।
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संपूर्ण शोभा से संयुक्त मंदराचल अनेक प्रकार के उत्तम उपहारों को
लेकर अपनी स्त्री तथा पुत्रों सहित हिमालय के पास आए । इसी प्रकार अस्ताचल,
उदयाचल ,मलयाचल ,गिरिराज,
दुर्न्दर, गंधमादन, करवीर,
महेंद्र, पुरुषोत्तम, नील,
सुनील ,त्रिकूट ,चित्रकूट,
वेंकटगिरी, गोकामुख, विंध्याचल,
कालिंजर, कैलाश आदि अनेकों पर्वत सज धज कर
परिवार सहित वहां आए।
नद्यः सर्वाः समायाता नानालंकार संयुताः।
दिव्यरूप धराः प्रीत्या विवाह श्शिवयोरिति।। रु•पा•37-43
शिवा शिव का विवाह हो रहा है यह जानकर सभी नदियां दिव्य रूप धारण करके नाना
भांति के अलंकारों से युक्त हो प्रेम पूर्वक वहाँ आयीं। शौणभद्रा, नर्मदा, गोदावरी, गंगा आदि
नदियां भी दिव्य रूप धारण कर वस्त्र अलंकारों से विभूषित होकर सदाशिव के विवाह
देखने के लिए हिमाचल के यहाँ आई।
हिमाचल ने उनका स्वागत सत्कार किया तथा सुंदर स्थानों पर उनके ठहरने
की व्यवस्था किया । पर्वतराज हिमाचल प्रशन्नता पूर्वक नगर को सजाने लगे।
इसके बाद विश्वकर्मा को बुलाकर मंडप दस हजार योजन लंबा चौड़ा रच
दिया । उस मंडप में विश्वकर्मा ने अपनी निपुणता दिखा दी। अनेकों प्रकार के स्थावर,
जंगम, पुष्प, स्त्री,
पुरुष की मूर्तियां बनाई थी ।
इस प्रकार हांथ में धनुष बांण धारण किए द्वारपाल स्थावर होकर के भी
जंगम के सदृश प्रतीत होते थे ।
द्वारि स्थिता महालक्ष्मीः कृत्रिमा रचिताद्भुता।
क्षीर सागर से उत्पन्न हुई सर्व लक्षण युक्त साक्षात लक्ष्मी के समान अद्भुत
कृत्रिम महालक्ष्मी दरवाजे पर बनाई गई।
महाद्वारि स्थितो नन्दी कृत्रिमश्च कृतो मुने।
शुद्ध स्फटिक संकाशो यथा नन्दी तथैव सः।। रु•पा•38-18
मेन द्वार पर शुद्ध स्फटिक के समान अत्यंत उज्ज्वल नंदी की मूर्ति बनी थी । वह
देखने में साक्षात नंदी ही प्रतीत होते थे । इस प्रकार विश्वकर्मा ने विद्याधर, गंधर्व, लोकपाल, देवता,
भृगु आदि ऋषि महर्षि मनोहर प्रकार से रच दिए।
तथा स सत्यलोकं वै विरेचेक्षणतो५द्भुतम्।
उन्होंने ब्रह्मा जी के निवास के लिए क्षण भर में परम दीप्ति से
युक्त अद्भुत सत्यलोक की रचना कर डाली।
तथैव विष्णोस्त्वपरं वैकुण्ठाख्यं महोज्वलम्।
उसी प्रकार उन्होंने विष्णु जी के लिए वैकुंठ नामक स्थान क्षण मात्र में बनाया, जो अति उज्जवल तथा नाना प्रकार के आश्चर्य से युक्त था। उन्होंने अदभुत
इंद्र भवन का भी निर्माण किया । अपने पार्षदों के साथ गरुड़ पर चढ़े हुए भगवान
विष्णु की अद्भुत मूर्ति भी बना दी। जो देखने में साक्षात प्रतीत होती थी।
विश्वकर्मा ने देवताओं के लिए उचित अनुकूल स्थान भी रच दिए।
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( शिवजी का देवताओं को निमंत्रण )
ब्रह्माजी बोले- नारद जी इधर भगवान शंकर ने जब लग्न पत्रिका ली
थी। उसमें लिखी हुई सभी लोकाचार रीतियों को अपनाया। सभी उपस्थित मुनिगणों को भगवान
शंकर ने अपने विवाह में सम्मिलित होने को कहा।
उसके बाद भगवान शंकर ने देवर्षि नारद को याद किया, फिर नारद जी भी वहां पहुंच गए और अपने भाग्यों की प्रशंसा करते हुए प्रणाम
किया।