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शिव पुराण कथा इन हिंदी -46

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शिव पुराण कथा इन हिंदी -46

शिव पुराण कथा इन हिंदी -46

 शिव पुराण कथा इन हिंदी

   शिव पुराण कथा भाग-46  

shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में

उस समय मैना को बहुत गर्व अभिमान हो गया, उसको नष्ट करने के लिए भगवान शिव-
तावत्समागतो रुद्रो५द्भुतोतिकारकः प्रभुः।
सर्व समर्थ प्रभु रुद्र अद्भुत वेश धारण कर आ गए-
तन छार व्याल कपाल भूषण नगन जटिल भयंकरा ।
संग भूत प्रेत पिशाच जोगिनि विकट मुख रजनी चरा ।।
जो जिअत रहिहिं बरात देखत पुन्य बड़ तेहि कर सही।
देखिहि सो उमा विबाहु घर-घर बात असि लरिकन्ह कही।।

मैना जी देखती हैं कि- शिवजी के शरीर पर राख लगी है, सांप और कपाल के गहने हैं। वह नंगा, जटाधारी और भयंकर हैं। उनके साथ भयानक मुख वाले भूत प्रेत पिशाच योगिनी और राक्षस हैं।

यहां तक जो बालक लोग उनका दर्शन किए, वह यही बाते घर में बताते हैं कि जो उनको देखकर बचेगा । वही यह शिव पार्वती बिवाह देखेगा।
त्रिनेत्र धारी, दस भुजा वाले ,भस्मी रमाए, मुंड माला पहने, बाघाम्बर ओढ़े, पिनाक धनुष उठाए, त्रिशूल लिए, बूढ़े बैल पर चढ़े हुए भगवान शंकर के तरफ इशारा करते हुए नारद जी ने कहा देवी मैना यही हैं गिरिजा के पति।

 शिव पुराण कथा इन हिंदी

नारदजी का इशारा पाकर मैना अत्यंत डर गई और दुख से कांपकर पृथ्वी पर धड़ाम से गिर पड़ी और मूर्छित हो गई। यह देख कर दासिया भागकर वहां आई और अनेक प्रकार के उपचार करके मैना की मूर्छा दूर की। मूर्छा से जागकर मैंना रोने लगी और नारद जी से कहने लगी-
नारद कर मैं काह बिगारा। भवनु मोर जिन्ह बसत उजारा।।
नारद मैं तुम्हारा क्या बिगाड़ी थी कि तुमने मेरा बसता हुआ घर उजाड़ दिया । मेरी पार्वती को शिव जैसा पति बनाने के लिए उकसाया , जिसके कारण इस समय हमें अत्यंत दुख भय फल प्राप्त हुआ।

वह बिलाप कर बोलने लगी- हे विधाता मैं क्या करूं ? कौन मुझे इस अपार दुख से छुड़ाएगा ? मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रही । लोग मुझे क्या कहेगें? कि किसको कन्या दे डाली? भला वह ऋषि कहां हैं?
क्व गता ऋषयो दिव्याः श्मश्रूणि त्रोटयाम्यहम्।
मैं उनकी दाढ़ी मूछें देखते ही नोच डालूं। इस प्रकार हाय हाय करती मैंना सीधी पार्वती के पास पहुंचकर उसको खोटी खरी सुनाने लगी। कि तू नारद के बातों में आकर विष्णु, सूर्य ,चन्द्रमा आदि सुंदर देवताओं को छोड़कर एक महाकुरूप शिव के पीछे कठोर तप करके तू मरती रही।
आवां च धिक्तथा पुत्रि यौ ते जन्म प्रवर्तकौ।
धिक्ते नारदं बुद्धिं च सप्तर्षींश्च कुबुद्धिदान्।। 44-17
हे पुत्री जो तुम को जन्म देने वाले हैं ऐसे हम दोनों को धिक्कार है और बुद्धि देने वाले सप्तर्षियों को धिक्कार है। इस प्रकार मैना क्रोध में बडबडाती हुई हिमाचल पास पहुंची ,उस समय चारों ओर हाहाकार होने लगा।

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सब सब देवता वहां आ पहुंचे । देवर्षि नारद कहने लगे मैना देवी अभी आपने शिव स्वरूप देखा ही कहां है ? वह तो उनकी लीला मात्र थी। तब मैंना और क्रोधित होकर बोली नाराद आप मेरे सामने मत आइएगा मैं आपको देखना नहीं चाहती ।

तब इन्द्र आदि लोकपाल मैना को समझाने लगे हे देवी मालूम है यह शिव कौन है ? यह जगत के स्वामी है। देवताओं के बात सुनकर मैना देवताओं को भी फटकारती हुई शिवजी को कन्या ना देने के लिए कहने लगी।
बोली मैं मर जाऊंगी और पुत्री को भी मार डालूंगी । फिर स्वयं ब्रह्मा जी समझाने आए की देवी भगवान शिव तो अनेकों रूप धारण करने वाले हैं । उनके अनेकों नाम है सृष्टि का पालन तथा संघार उन्हीं के हाथों है ।

सर्वथा स्वतंत्र ईश्वर हैं। आप अपना हठ छोड़कर पार्वती का उनके साथ विवाह कर दो। यह सुनकर रोते-रोते मैना कहने लगी- बस करिए पितामह झूठी प्रशंसा न करो, मैं अपनी आंखों से शिव का रूप देख चुकी हूं ।
इसके बाद वहां विष्णु जी पहुंचकर मैना को समझाए तब वह कुछ स्वस्थ हो गई और बोली हे विष्णु जी मैं शिव जी के साथ अपनी कन्या का तभी विवाह करूंगी, जब वह अपना असली रूप धारण करके आएंगे मेरे सामने।

ब्रह्मा जी के कहने पर नारद जी भगवान् सदाशिव के पास जाकर के स्तुति करने लगे। अंतर्यामी भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर के अपना सुंदर एवं अद्भुत स्वरूप बनाकर दर्शन दिया। तब नारद प्रसन्न होकर मैना के पास आए और उनको भगवान शिव का दर्शन करने के लिए कहा।

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यह बात सुनकर शैलकामिनी मैना विस्मित हो परमानंद प्रदान करने वाले शिवरूप को देखने लगी।
कोटि सूर्यप्रतीकाशं सर्वावय सुन्दरम्।
विचित्र वसनं चात्र नाना भूषण भूषितम्।। 45-9


वह रूप करोडों सूर्यो के समान कान्तिमान, सभी अंगों से सुंदर, विचित्र वस्त्र से युक्त, अनेक आभूषणों से अलंकृत था। उनके विशाल मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित है, विष्णु आदि देवता सेवा करते आ रहे हैं और सूर्य उनके सिर पर छत्र धारण कर रखा है।

गंगा यमुना चवंर झुला रही हैं , अणिमादि आठो सिद्धियां सामने होकर नात रही हैं। ऐसा स्वरूप देखकर मैना बोली पार्वती धन्य हो तुम्हारे तप से परम कल्याणकारी सदाशिव मेरे घर पधारे हैं ।
ब्रह्माजी बोले- नारद उस समय पुरवासिनी स्त्रियां सभी की सभी घर के कामों को छोड़कर बाहर निकल आई, चक्की पीसने वाली ने चक्की छोड़ दी, पति की सेवा में लगी हुई पति की सेवा छोड़कर भाग आई, कोई अपने पुत्र को दुग्ध पान कराते से भाग आई , कोई गो दोहन करते से वहां आ गई।

इसी प्रकार के आवश्यक कार्यों को छोड़कर भगवान शिव के दर्शन के लिए दौड़ आयी। भगवान शंकर का दर्शन करते ही सबकी सब मोहित हो गई। तब शिव की सुंदर मूर्ति हृदय में धारण करके आपस में बोली- कि हे सखियों
नेत्राणि सफलान्यासन् हिमवत्पुरवासिनाम्।
यो यो५पश्यददो रूपं तस्य वै सार्थकं जनुः।। 45-35

हिमालय पूरी में रहने वालों के नेत्र सफल हो गए। जिस जिस ने इस स्वरूप को देखा आज उसका जन्म सफल हो गया। पार्वती जी धन्य हो तुम जो साक्षात भगवान शंकर की पत्नी बन रही हो ।

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सभी पुरवासियों ने चंदन एवं चावलों से भगवान का पूजन किया और फूलों की वर्षा करने लगे। जिसके बाद भगवान शंकर सब को आनंदित करते हुए गण,देवता, सिद्ध,मुनियों के साथ हिमाचल के घर निकट पहुंच गए।

यहां मैना आरती की थाल सजाकर स्त्रियों के साथ द्वार पर आई। भगवान शंकर द्वार पर पहुंच गए, उस समय उनकी शोभा करोड़ों काम देवों के समान थी। उस समय हिमाचल के घर आनंद ही आनंद था ।
नीराजनं चकारासौ प्रफुल्लवदना सती।
तब वे सती मैना प्रसन्न मुख होकर आरती करने लगी, वे मैना गिरजा की बात का स्मरण कर विस्मित हो गई कि पार्वती ने मुझसे जो पूर्व में कहा था-


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