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shiv puran hindi me शिव पुराण हिंदी में -45

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shiv puran hindi me शिव पुराण हिंदी में -45

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  shiv puran hindi me शिव पुराण हिंदी में

   शिव पुराण कथा भाग-45  

shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में

ब्रह्माजी बोले- हे नारद इस प्रकार मैंने शिवजी के वर यात्रा प्रस्थान का वर्णन किया अब हिमालय के नगर में जो शिवचरित्र हुआ उसे सुनिए।

( मंडप वर्णन )
ब्रह्माजी बोले- हे मुने उसके बाद आपस में विचार-विमर्श कर शंकर जी की आज्ञा लेकर भगवान विष्णु ने पहले आपको हिमालय के घर भेजा, वहां पहुंचकर तुमने विश्वकर्मा के बनाए हुए मंडप को देखा तो आश्चर्य करने लगे । वहां रत्न जड़ित सोने के लाखों कलश थे। उसमें बनी बेदी को देखकर नारदजी आश्चर्य में पड़ गए ।

भगवान शंकर के चित्र को देखकर उन्हें साक्षात समझकर नारद जी हिमाचल से बोले-
महादेवो वृषारूढो गणैश्च परिवारितः।
आगतः किं विवाहार्थं वद तथ्यं नगेश्वर।। 41-9
हे पर्वतराज क्या विवाह हेतु श्वेत बैल पर सवार होकर गणेश्वरों से युक्त सदाशिव पधार चुके हैं ? यह बात आप सत्य सत्य कहिए ? हिमवान बोले-
हे नारद महाप्राज्ञागतो नैवाधुना शिवः।
विवाहार्थं च पार्वत्याः सगणः सवरातकः।। 41-11
नारद जी अभी पार्वती के विवाह के लिए अपने गणों तथा बारातियों को लेकर शिव जी नहीं आए हैं । यह आपने जो देखा है विश्वकर्मा द्वारा उत्तम चित्र बनाए गए हैं । आप आश्चर्य का त्याग कीजिए, स्वस्थ हो जाइए और शिव जी का स्मरण कीजिए ।

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आप मुझ पर कृपा कर भोजन तथा विश्राम करके मैनाक आदि पर्वतों के साथ शंकर जी के समीप जाइए और सदा शिव की स्तुति कर संपूर्ण बारातियों को शीघ्र बुला लाइए ।
नारद जी हिमाचल के मैनाक आदि पुत्रों के साथ सदाशिव के पास आए। तब ब्रह्मा विष्णु आदि सभी देवता उन्हें घेरकर पूछने लगे- वहां का क्या समाचार है ? यह सुनकर नारदजी एकांत में ले जाकर बोले देवताओं हिमाचल ने एक ऐसा मंडप बनवाया है ,जिसमें तुम सब देवताओं के जीते जागते चित्र लगे हुए हैं ।

मैं तो उन्हें देखकर अपनी सुध बुध ही खो बैठा था ,इससे मालूम होता है कि वह आप लोगों को मोहित करने के विचार में है । इतना सुनते ही इंद्र बहुत डर गया बोला- हे लक्ष्मी के स्वामिन त्वष्टा के पुत्र को मार दिया था मैंने , उसी का बदला लेने के लिए मेरे सिर पर विपत्ति ना आ जाए ।

मैं मारा ना जाऊं ? मैं तो संदेह में पड़ गया हूं । तब विष्णु जी ने इंद्र से कहा- हे इन्द्र मालूम होता है कि अवश्य ही वह हिमाचल मूढ हम से बदला लेना चाहता है ।
क्योंकि तुमने पहले मेरी आज्ञा से पर्वतों के पंख का डाले थे । यही बात उसको स्मरण है इसलिए वह हमें जीतना चाहता है, परंतु हमें डरना नहीं चाहिए, हमारे साथ तो भगवान शंकर हैं किस बात का डर।

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देवताओं के गुप्त बातों को सुनकर महादेव जी बोले देवताओं क्या बात है स्पष्ट कह दो- हिमाचल अपनी पुत्री का विवाह मेरे साथ करना चाहता है या नहीं ? नारदजी बोले भगवान विवाह तो आपका निश्चित है उसमें कोई विघ्न नहीं ।

इसलिए तो हिमाचल ने अपने पुत्रों को मेरे साथ भेजा है ,परंतु देवताओं को मोहित करने के लिए मंडप में विचित्र चित्र बनवाए हैं। भगवान शंकर बोले देवताओं भय मत करो। जब वह हिमाचल अपनी पुत्री हमें समर्पित कर रहा है तो उसकी माया हमारा क्या बिगाड़ेगी ?

देवताओं डरो मत शीघ्र चलो । भगवान शंकर की इस प्रकार आज्ञा पाकर हिमाचल के पुत्रों को आगे करके सभी देवता भगवान शंकर के साथ हिमाचलपुर पहुंचे ।

उनका आगमन सुनकर आनंदित होकर हिमालय पर्वतों को साथ लेकर उनकी अगवानी करने पहुंचे। भगवान शंकर की बारात देखकर हिमालय चकित हो गये । इसके बाद पूर्व और पश्चिम के समुद्रों के मिलने की भांति देवता और पर्वत परस्पर मिलने लगे।
अथेश्वरं पुरो दृष्ट्वा प्रणनाम हिमालयः।
सर्वे प्रणेमुर्गिरयो ब्राह्मणाश्च सदाशिवम्।। 42-8
उसके बाद हिमालय ने ईश्वर सदाशिव को सामने देखकर उन्हें प्रणाम किया और सभी पर्वतों तथा ब्राह्मणों ने भी सदाशिव को प्रणाम किया। उस समय भगवान शंकर की शोभा निराली थी, हिमाचल ने बारंबार प्रणाम किया फिर उनकी आज्ञा लेकर संपूर्ण देवताओं को ठहरने के लिए प्रबंध किया।

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फिर वेदी के निकट आकर स्नान किया इसके बाद पुण्य करके अपने पुत्रों को बुलाकर कहा कि तुम लोग भगवान शंकर की जाकर प्रार्थना करो कि हमारे पिता हिमाचल अपने बंधुओं के साथ आपका यथोचित आचार करना चाहते हैं ।
पर्वत पुत्र जाकर जब सदाशिव से प्रार्थना करते हैं तो वह प्रसन्न हो जाते हैं और बोले कि आप बोलिए हम आ रहे हैं ।

उसके बाद सभी देवता मुनि गण तथा अन्य लोग उत्तम वेशभूषा धारण करके प्रभु भगवान शंकर के साथ पर्वतराज के घर आ गए । उस अवसर पर मैना ने शिवजी को देखना चाहा तब उन्होंने मुनि श्रेष्ठ नारद जी को बुलवाया।
मैना देवर्षि से कहने लगी-
निरीक्षिष्यामि प्रथमं मुने तं गिरिजा पतिम्।
कीदृशं शिवरूपं हि यदर्थे तप उत्तमम्।। 43-1

हे मुने मैं पहले गिरिजा के होने वाले पति को देखूंगी ,जिनके लिए उसके द्वारा उत्तम तप किया गया है । उस समय प्रभु शिवजी भी अपने प्रति उनके अहंकार को जानकर, अद्भुत लीला करके ब्रह्मा और विष्णु जी से बोले - आप दोनों मेरी आज्ञा से देवताओं के साथ अलग-अलग पर्वत हिमालय के दरवाजे पर चलें ।

हम बाद में चलेंगे! सभी देवता गण भगवान शिव का ध्यान कर आगे चलने लगे। उसी समय शिव जी के दर्शनों की इच्छा से मैना भी देवर्षि नारद को साथ लेकर महल की अटारी पर चढ़ गई ।

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सबसे पहले सुंदर वस्त्र धारण किए हुए नाना प्रकार के दिव्य आभूषणों को धारण कर किए हुए गंधर्वपति वसु आए । उनको देखकर मैना बहुत प्रसन्न हुई। पूंछी देवर्षि क्या यही हैं शिवजी ?
नारद जी बोले नहीं यह शिवजी के गण हैं। यह सुनकर मैना ने विचार किया कि जो इनसे भी अधिक श्रेष्ठ है, वह कैसा होगा । उसी समय मणिग्रीव आये। जिनकी शोभा गंधर्वों से दुगनी थी । यक्षाधिपति मणिग्रीव को देखकर मैना बोली - क्या यही हैं शिवा के स्वामी ?

नारद जी ने कहा नहीं ! यह तो उनके सेवक हैं। तदनन्तर उनसे भी ज्यादा शोभा से संपन्न सभी देवताओं में श्रेष्ठ स्वर्ग के स्वामी इन्द्र आये। मैना बोली क्या यह हैं शकंर ?
नारदजी बोले नहीं यह तो इंद्र हैं। उसके बाद तेजो के महाराशि तथा साक्षात धर्म के पुंज के समान ब्रह्मा जी आए। उन्हें देखकर मैंना बहुत प्रसन्न हुई । बोली क्या ये ही शिव हैं?

तब नारद जी ने कहा नहीं-
एतस्मिन्नन्तरे तत्र विष्णुर्देवः समागतः।
सर्वशोभान्वितः श्रीमान्मेघश्यामश्चतुर्भुजः।। 43-33
इसी बीच संपूर्ण शोभा से युक्त श्रीमान मेघ के समान श्याम वर्ण वाले, चार भुजाओं से युक्त,करोडों कामदेवों के समान कमनीय। पीतांबर धारण किए हुए ,अपने तेज से प्रकाशित ,लक्ष्मीपति भगवान विष्णु वहाँ आये।

उनको देखकर मैना के नेत्र चकित हो गए और उन्होंने हर्ष से भर कर कहा- ये ही साक्षात गिरजापति शिव हैं इसमें संदेह नहीं । तब मैना के वचन सुनकर नारदजी बोले नहीं यह शिवजी नहीं है । यह केशव हैं। भगवान शिव के बहुत प्रिय हैं।
नारदजी बोले पार्वती पति शिवजी को इनसे भी अधिक श्रेष्ठ समझना चाहिए। हे देवी उनकी शोभा का वर्णन मैं नहीं कर सकता। यह सुनकर मैना बहुत प्रसन्न हो गई ।

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