shiv puran hindi lyrics
परब्रह्म की कृपा से यज्ञ पूर्ण हुआ सब देवता और ऋषि आदि
भगवान शंकर का यश गान करते हुए अपने अपने धाम को चले गए। इस चरित्र को पढ़ने व
सुनने वाला ज्ञानी हो उत्तम सुख और दिव्य गति को प्राप्त होता है।
इस प्रकार दक्ष पुत्री सती अपना शरीर त्याग कर हिमालय की पत्नी के
गर्भ से उत्पन्न हुई और महातप कर फिर शिव जी को प्राप्त कर लिया।
( सती खण्ड का विश्राम )
( रुद्र संहिता - पार्वती खंड )
पितरों की कन्या मेना के साथ हिमालय का विवाह-
नारद जी बोले-
दाक्षायणी सती देवी त्यक्तदेहा पितुर्मखे।
कथं गिरिसुता ब्रह्मन् बभूव जगदम्बिका।। रु•पा•1-1
ब्रह्मन सती ने पर्वत की कन्या होकर कैसे तप कर शिवजी को प्राप्त किया ? ब्रह्माजी बोले- मुनि जब सती ने दक्ष के यज्ञ में अपना शरीर त्याग दिया तब
उन्होंने हिमालय के घर जन्म लेने का विचार किया। क्योंकि शिवलोक में स्थित मेना ने
सती देवी के लिए आराधन किया था ।
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समय आने पर वही देवी अपना शरीर त्याग मैना की पुत्री बन गई। तब उनका
नाम पार्वती हुआ और नारद जी से उपदेश ग्रहण कर कठिन तप के द्वारा शिव जी को
प्राप्त किया।
नारद जी बोले- ब्रह्मन अब मेना की उत्पत्ति विवाह आदि का चरित्र
सुनाइए ? ब्रह्माजी बोले- नारद
अस्त्युत्तरस्यां दिशि वै गिरीशो हिमवान्महान्।
पर्वतो हि मुनिश्रेष्ठ महातेजाः समृद्धिभाक्।। रु•पा•1-14
उत्तर दिशा में हिमालय नाम का एक महान राजा था जो कि एक श्रेष्ठ पर्वत था। सब
समृद्धियों से युक्त और बड़ा ही तेजस्वी था। उस पर्वत का बड़ा ही दिव्य रूप है और
जो सर्वांग सुंदर विष्णु का रूप संतों का प्रिय और शैलराज के नाम से प्रसिद्ध है ।
वह हिमालय भी कहा जाता है और उस पर्वत के जंगल और स्थिर दो भेद हैं,
उसी शैलराज ने धर्म वर्धन के लिए अपना विवाह करने की इच्छा की। उसी
समय देवता गण पितरों के पास गए और बोले कि यदि आप अपना कर्तव्य पालन करना चाहते
हैं तो आप अपनी कन्या मैना का विवाह हिमालय से कर दीजिए। इससे देवताओं के कार्य की
भी सिद्धि होगी।
देवताओं का कथन पितृ गणों को अच्छा लगा और धूमधाम से अपनी पुत्री
मैना का विवाह हिमालय के साथ कर दिया। फिर विवाह का उत्सव समाप्त होने पर देवता और
मुनीश्वर शिव पार्वती का ध्यान कर अपने लोक को चले गए ।
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( मेना की पूर्व कथा )
नारद जी बोले- ब्रह्मन अब आप मैना की उत्पत्ति और पितरों के
श्राप की भी कथा कहिए । ब्रह्मा जी कहने लगे- नारद मेरे पुत्र दक्ष की साठ
पुत्रियां हुईं, जिनका विवाह उसने कश्यपादि महर्षियों के साथ
कर दिया।
उनमें स्वधा नाम वाली कन्या को उसने पितरों को दिया ,जिससे तीन कन्यायें उत्पन्न हुई। उनमें-
मेना नाम्नी सुता ज्येष्ठा मध्या धन्या कलावती।
सबसे बड़ी कन्या का नाम मेना, मझली कन्या का
नाम धन्या तथा अंतिम कन्या का नाम कलावती था। मुनीश्वर - एक समय यह तीनों बहनें
श्वेतद्वीप में विष्णु जी के दर्शन करने गई तो वहां बड़ा भारी समाज एकत्रित हो
गया।
जिसमें ब्रह्म पुत्र सनकादि भी आए और सब ने विष्णु जी की स्तुति की
और सनकादिकों को देखकर सभी लोग उनके स्वागतार्थ उठ खड़े हुए। परंतु तीनों बहनें
उनके स्वागत के लिए ना उठीं क्योंकि शंकर की माया ने उन्हें मोहित कर दिया था।
उनके इस दुर्व्यवहार से क्रुद्ध होकर सनकादियों ने उन्हें श्राप दे
दिया कि- तुम अभिमान के कारण खड़ी नहीं हुई इसलिए जाओ तुम तीनों स्वर्ग से दूर
पृथ्वी में मनुष्य की स्त्रियां बनो।
अब तीनों बहनें सनकादिकों के चरणों में गिरकर क्षमा मांगती हैं। तब
सनकादिक प्रसन्न होकर बोले- पितरों की कन्याओं अब तुम प्रसन्न होकर मेरे वचनों को
सुनो ! तुम सब बहनों में जो बड़ी है इसका विवाह हिमालय से होगा और इसको पार्वती
नामक एक कन्या प्राप्त होगी।
यह दूसरी धन्या नामक कन्या जनक की पत्नी होगी और जिससे महालक्ष्मी
सीता उत्पन्न होंगी।
तस्याः कन्या महालक्ष्मीर्नाम्ना सीता भविष्यति।।
सबसे छोटी कन्या कलावती वृषभानु की पत्नी होंगी, जिसकी पुत्री
के रूप में द्वापर के अंत में राधा जी प्रकट होंगी।
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और तुम तीनों बहनें अंत में भगवत धाम को प्राप्त होगी। मेना से
पार्वती देवी उत्पन्न हो अपने कठिन तप के द्वारा शिवजी की प्रिया और धन्या की
पुत्री सीता श्री रामचंद्र जी की पत्नी होगी तथा कलावती की पुत्री राधा जी अपने
गुप्त स्नेह से बंधी हुई श्री कृष्ण की पत्नी होंगी ।
ऐसा कह सनकादि कुमार अंतर्ध्यान हो गए और वे तीनों बहनें भी सुखी हो
अपने धाम को चली गई।
नारद जी बोले- ब्रह्मा जी पार्वती जी मेना से कैसे उत्पन्न हुई और
उन्होंने दुःसह तप कर शिवजी को वर रूप में कैसे प्राप्त किया ? ब्रह्माजी बोले- मुनि! मैना का विवाह कर हिमालय पर्वत अपने घर आ गए और
प्रसन्न हो मेना के साथ विभिन्न सुखदायक स्थानों में जाकर बिहार करने लगे।
सब देवताओं को साथ ले भगवान विष्णु जी हिमालय के पास गए, हिमालय ने अपने को सब प्रकार बड़ा भाग्यशाली जाना और उनका बड़ा आदर सत्कार
किया। हिमालय ने कहा प्रभु आज मेरा जन्म सफल हो गया। कहिए मेरे योग्य क्या सेवा है
?
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यह सुन हरि आदि देवताओं को विश्वास हो गया कि अब हमारा कार्य सिद्ध
होगा तब उन्होंने हिमालय से कहा- महाप्राज्ञ जो पहले जगदंबा दक्ष की पुत्री होकर
शिव जी की पत्नी हुई थी और जिन्होंने अपने पिता के अनादर से अपने शरीर का त्याग कर
दिया था। वह सारी कथा आपको भी ज्ञात है।
अब वही आपके घर में प्रगट हों आप इसके लिए उपाय करें। इसलिए हम लोग
यहां आए हैं। यह बात सुनकर हिमालय भी प्रसन्न हो गए और बोले ऐसा ही हो । फिर वे
सभी देवता गण जगदंबा की स्तुति करने लगे-
देव्युमे जगतामम्ब शिवलोक निवासिनि।
सदाशिवप्रिये दुर्गे त्वां नमामो महेश्वरि।। रु•पा•3-26
हे देवी, हे उमे, हे जगन्माता ! शिव लोक में
निवास करने वाली, हे सदाशिव प्रिये, हे
दुर्गे, हे महेश्वरी हम आपको प्रणाम करते हैं । इस प्रकार
देवताओं ने भगवती की बड़ी स्तुति की।
देवताओं ने जब इस प्रकार प्रार्थना और स्तुति की तो कष्ट निवारणी
दुर्गा देवताओं के समक्ष प्रकट हो गई। सभी देवताओं ने देवी को प्रणाम किया और
प्रार्थना की कि- हे माता अब सनत कुमारों के वचन को पूर्ण कीजिए।
देवी अब आप पृथ्वी पर अवतार लीजिए, शिव जी की
पत्नी बनिए और अपनी अद्भुत लीला से देवताओं को सुखी करिए । देवताओं के इस प्रकार
प्रार्थना से शिवा देवी प्रसन्न हो गई और उन्होंने सब कारण विचार कर अपने प्रभु
शिवजी का स्मरण करते हुए, देवी उमा ने हंसकर देवताओं से कहा-