shiv puran hindi lyrics
मही
मङ्गलभूयिष्ठा सवनग्राम सागरा।
वन, ग्राम व सागर के सहित पृथ्वी पर नाना
प्रकार के मंगल होने लगे। तालाब, नदियों में कमल खिल उठे ,अनेक प्रकार के सुख स्पर्शी वायु बहने लगी।
मुमुदुः साधवः सर्वे२सतां दुःखमभूद् द्रुतम्।
सभी साधु जन आनंदित हो गए तथा दुर्जन शीघ्र दुखी
हो गए। देवता आकाश में आकर दुन्दुभियां बजाने लगे । वहां फूलों की वर्षा होने लगी ,श्रेष्ठ गंधर्व गान करने लगे ,अप्सराएं
और विद्याधरों की स्त्रियां आकाश में नाचने लगी, इस प्रकार
आकाश मंडल में देवताओं आदि का महान उत्सव होने लगा। उसी समय-
आविर्बभूव पुरतो मेनाया निजरूपतः।
आद्याशक्ति सती शिवा देवी मैना के सामने अपने रूप
में प्रकट हो गईं।
बोलिए आदिशक्ति जगदंबा की जय
shiv puran hindi lyrics
वसन्तर्तौ मधौ मासे नवम्यां मृग धिष्ण्यके।
अर्धरात्रे समुत्पन्ना गङ्गेव शशिमण्डलात्।। रु•पा•6-32
भगवती वसंत ऋतु के चैत्रमास में नवमी तिथि को
मृगशिरा नक्षत्र में आधी रात के समय चंद्र मंडल से गंगा की भांति प्रकट हुईं।
उस समय भगवती के प्रगट होने पर शंकर जी प्रसन्न हो गए और अनुकूल
गंभीर ,सुगंधि तथा शुभ वायु बहने लगी। उनके प्रगट होते ही
हिमालय के नगर में समस्त संपत्ति स्वतः आ गई तथा लोगों का सारा दुख दूर हो गया।
उस समय पावन अवसर पर विष्णु आदि समस्त देवता सुखी होकर वहां पर आ गए
और प्रेम से जगदंबा का दर्शन करने लगे और उनकी स्तुति प्रणाम कर अपने अपने धाम को
चले गए ।
ब्रह्माजी बोले- नारद जी तब तो वह देवी कन्या रूप होकर सांसारिक
कन्याओं की भांति रुदन करने लगी। उस कन्या के रुदन को सुनकर नगर की स्त्रियां
तुरंत ही वहां दौड़ी आई ।
हिमाचल भी यहां पुत्री का जन्म सुनते ही अत्यंत आनंदित हो गए,
नगर की नर नारियां उत्सव करने लगे । नाच गान एवं बाजे बजने लगे ।
हिमाचल ने विधिपूर्वक जात कर्म किया ,ब्राह्मणों को दान दिए।
याचकों को मुह मागी वस्तुएं देकर प्रशन्न किया फिर शुभ मुहूर्त में कन्या का नाम
संस्कार हुआ।
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मुनि जनों ने जगदंबा, तारा, महाविद्या, काली आदि अनेकों नाम बताए। चंद्रमा की कला
की तरह हिमाचल पुत्री अब धीरे-धीरे बड़ी होने लगी ,उनके अंग
प्रत्यंग चंद्रमा की कला एवं बिंब के समान अत्यंत शोभायमान होने लगे ।
गिरिजा अपनी सहेलियों के साथ खेलने भी लग गई, उन्होंने
अपना प्रभाव छुपा रखा था। गंगा जी की रेती से घर बना बना कर तथा गेंद से खेलने लगी
और भी अनेकों वेश बदल बदल कर क्रीडाएँ करने लगी।
फिर पढ़ने के समय में गुरुजी के पास जाकर परम प्रसन्नता से ध्यान
लगाकर पढ़ने लगी। जिस प्रकार शरद ऋतु में हंस पंक्ति गंगा को तथा रात्रि में
अमृतमयी चंद्र किरणों औषधियों को प्राप्त होता है। उसी प्रकार उन पार्वती को
पूर्वजन्म की विद्यायें स्वयं प्राप्त हो गई।
ब्रह्माजी बोले- हे नारद!
एकदा त्वं शिवज्ञानी शिवलीला विदां वरः।
हिमाचल गृहं प्रीत्यागमस्त्वं शिव प्रेरितः।। रु•पा•8-1
एक समय की बात है आप शिव जी से प्रेरित होकर प्रसन्नता पूर्वक हिमालय के घर गए
। आप शिव तत्व के ज्ञाता और शिव लीला के जानकारों में श्रेष्ठ हैं। हे मुने
गिरिराज हिमालय ने आपको देखकर प्रणाम करके आपकी पूजा की और अपनी पुत्री को बुलाकर
उनसे आपके चरणों में प्रणाम करवाया।
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हे मुनीश्वर -तत्पश्चात स्वयं नमस्कार करके हिमाचल अपने सौभाग्य की
सराहना कर के मस्तक झुकाकर हाथ जोड़कर आपसे कहने लगे- हे ब्रह्मा के पुत्रों में
श्रेष्ठ आप सर्वज्ञ हैं, दयामय और दूसरों के उपकार में लगे
रहने वाले हैं।
मत्सुताजातकं ब्रूहि गुणदोष समुद्भवम्।
कस्य प्रिया भाग्यवती भविष्यति सुता मम।। रु•पा•8-5
गुण दोष को प्रकट करने वाले आप मेरी पुत्री के जन्म फल का वर्णन कीजिए। मेरी
सौभाग्यवती पुत्री किसकी पत्नी होगी ? नारदजी बोले-
हे शैलराज,हे मेने आप की यह पुत्री चंद्रमा की आदि कला के
समान बढ़ रही ,यह समस्त गुणों से संपन्न है । यह अपने पति के
लिए अत्यंत सुखदायिनी, माता-पिता की कृति को बढ़ाने वाली-
महासाध्वि च सर्वासु महानन्द करी सदा।
समस्त नारियों में परम साध्वी और स्वजनों को सदा महान आनंद देने वाली होगी ।
हे गिरे आप की पुत्री के हाथ में उत्तम लक्षण विद्यमान हैं।
एका विलक्षणा रेखा तत्फलं शृणु तत्त्वतः।
केवल एक रेखा विलक्षण है, उसका फल यथार्थ रूप से सुनिए। इसे ऐसा पति
प्राप्त होगा जो-
योगी नग्नो२गुणोकामी मातृतातविवर्जितः।
अमानो शिववेषश्च परिरस्याः किलेदृशः।। रु•पा•8-11
योगी, नग्न, निर्गुण,
निष्काम ,माता-पिता से रहित, मान विहीन और अमंगल वेषवाला होगा। नारद जी की बात सुनकर मैना तथा हिमालय
दोनों पति-पत्नी बहुत दुखी हुए । लेकिन जगदंबा शिवा पार्वती यह सारे लक्षण तो मेरे
शिवजी में है ऐसा सोच कर बहुत प्रसन्न हुई ।
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इधर दुखी मन से हिमालय ने श्री नारद जी से कहा मुनिवर मैं क्या उपाय
करूं कि यह दोष हट जाएं मेरी पुत्री के जीवन से । तब नारदजी बोले- हे गिरिराज
सुनिए मेरी बात सच्ची है ,झूठ नहीं होगी हाथ की रेखा ब्रह्मा
जी की लिपि है । निश्चय ही वह मिथ्या नहीं होती है।
परंतु आप इसके उपाय को प्रेम पूर्वक सुनिए जिसे करके आप सुख प्राप्त
करेंगे ।
तादृशोस्ति वरः शम्भुः लीलारूप धरः प्रभुः।
कुलक्षणानि सर्वाणि तत्र तुल्यानि सद्गुणैः।। रु•पा•8-19
उस प्रकार के वर तो लीला रूप धारी प्रभु शिव ही हैं ,उनमें समस्त कुलक्षण सद्गुणों के समान ही हैं ।
प्रभौ दोषो न दुःखाय दुःखदो त्यप्रभौ हि सः।
रवि पावक गङ्गानां तत्र ज्ञेया निदर्शना।। रु•पा•8-20
समर्थ पुरुष में दोष दुख का कारण नहीं होता ,असमर्थ में वही
दुख दायक होता है। इस विषय में सूर्य, अग्नि और गंगा का
दृष्टांत जानना चाहिए।
इसलिए आप विवेक पूर्वक अपनी कन्या को शिव को अर्पण कीजिए । भगवान
शिव सर्वेश्वर सब के सेव्य, निर्विकार, सामर्थ्यशाली और अविनाशी हैं। विशेषतः वे तपस्या से वश में हो जाते हैं ।
अतः यदि शिवा तप करें , तो शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले शिव
उसे अवश्य ग्रहण कर लेंगे।
सर्वेश्वर शिव सब प्रकार से समर्थ तथा वज्र लेख का भी विनाश करने
वाले हैं। ब्रह्मा जी उनके अधीन है तथा वे सब को सुख देने वाले हैं। इस प्रकार
नारद जी कहकर वहां से चले गए।
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