shiv puran katha in hindi pdf
दुःखं च विविधं तत्र गणितं न तयागतम्।
पार्वती जी के ऊपर अनेक प्रकार के दुख आए, परंतु उन्होंने
उनकी कुछ भी परवाह ही नहीं कि। इस प्रकार तप करती हुई देवी ने पहले फलाहार से फिर
पत्ते के आहार से क्रमशः अनेक वर्ष बिताए। फिर पार्वती जी ने पत्ते भी खाना छोड़कर
सर्वथा निराहार रहकर तपस्या में लीन रहने लगीं।
आहारे त्यक्तपर्णाभूद्यस्माद्धिमवतः सुता।
तेन देवैरपर्णेति कथिता नामतः शिवा।। रु•पा•22-49
जब उन हिमालय पुत्री शिवा ने पत्ते खाना भी छोड़ दिया तब वे शिवा देवताओं के
द्वारा अपर्णा कही जाने लगी।
बोलिए अपर्णा माता की जय
shiv puran katha in hindi pdf
शिव जी के चिंतन में लगी हुई पार्वती जी ने तपस्या के द्वारा
मुनियों को भी जीत लिया। इस प्रकार घोर तप करते हुए देवी को-
त्रीणि वर्षसहस्राणि जग्मुः काल्यास्तपोवने।
तीन हजार वर्ष इस तपोवन में तप करते बिता दी और इसी स्थान में-
षष्टि वर्ष सहस्त्राणि यत्र तेपे तपो हरः।
शंकर भगवान ने साठ हजार वर्ष तक तपस्या की थी, उस स्थान में
कुछ क्षण रुककर वे अपने मन में विचार करने लगीं। हे महादेव क्या आप तपस्या में
संलग्न हुई मुझे नहीं जानते? जो कि तपस्या में लीन हुए इतने
वर्ष बीत गए फिर भी आपने मेरी सुध नहीं ली !
देवी कहने लगी- यदि मैं अपनी सारी कामनाओं का त्याग कर मात्र
वृषभध्वज शंकर में अनुरक्त हूं तो वह शंकर मुझ पर प्रसन्न हों। इस तरह अपने मन में
सोचते हुए नीचे की ओर मुख किए निर्विकार होकर दीर्घकाल तक तप किया। उनकी तपस्या
देखकर सब देवता ऋषि मुनि विस्मय में पड़ गए और कहने लगे-
अस्मात्तपोधिकं लोके न भूतं न भविष्यति।
संसार में इस तप से बढ़कर तप ना हुआ है और ना कभी होगा। ब्रह्माजी बोले- हे
महर्षे अब आप जगदंबा पार्वती जी की तपस्या के अन्य बड़े प्रभाव को सुनिए, जो महान आश्चर्यजनक चरित्र है । पार्वती जी के आश्रम में रहने वाले समस्त
जंतु जो स्वभाव से ही परस्पर विरोधी थे वह भी उनकी तपस्या के प्रभाव से वैर रहित
हो गए।
shiv puran katha in hindi pdf
निरंतर राग द्वेष से युक्त रहने वाले वे सिंह और गाौ आदि भी वहां
उनकी तपस्या की महिमा से परस्पर बाधा नहीं करते थे। मर्जार ( बिल्ली ) मूषक ( चूहा
) भी अपने बैर को छोड़ आपस में साथ रहते।
वह संपूर्ण वन ही उनकी तपस्या का रूप हो गया, पार्वती
जी की तप से त्रिलोकी तप उठी। देवता, दानव, ऋषि ,मुनि ,गंधर्व, सिध्द, विद्याधर आदी सभी व्याकुल इंद्र आदि लोकपालों
को साथ लेकर ब्रह्मा जी के शरण में गए और बोले- हे ब्रह्मन आपके द्वारा बनाया यह
ब्रह्मांड कितना संतप्त हो रहा है । उससे दुखित होकर हम सब आप की शरण में आए हैं।
देवताओं के इस प्रकार कहने से ब्रह्मा जी ध्यान द्वारा पार्वती जी
के तप को जान लिया और ब्रह्मा जी सब देवता के साथ छीर सागर में जा पहुंचे वहां
सुंदर आसन में विराजमान विष्णु जी से कहा- इस समय श्री पार्वती जी भगवान शंकर की
प्राप्ति के लिए कठोर तप कर रही हैं। उसी तप द्वारा त्रिलोकी तप्त हो रही है,
हम दुखी होकर आप की शरण में आए हैं हमारी रक्षा करिए।
विष्णु जी बोले- देवताओं आप लोगों का कष्ट मैंने जान लिया, अब हम सबको मिलकर भगवान शंकर की शरण में जाना चाहिए, वहां चलकर उनसे प्रार्थना करें कि वह जगत माता पार्वती जी के तप द्वारा
प्रसन्न होकर उन्हें इच्छित वर दें और उनके साथ विवाह करके हम लोगों का कष्ट
निवारण करें ।
shiv puran katha in hindi pdf
भगवान विष्णु के कथन को सुनकर डरते हुए देवता बोले- भगवन हम तो
भूलकर के भी भगवान शंकर के पास नहीं जाएंगे , क्योंकि उनका
क्रोध हमसे सहा नहीं जा सकता । कामदेव को उन्होंने भष्म कर डाला, कहीं हम लोगों को भी भष्म न कर डालें ।
इस प्रकार देवताओं के वचनों को सुनकर समझाते हुए भगवान विष्णु बोले-
देवताओं भय मत करो भगवान शंकर परम दयालु हैं, हमारी अवश्य ही
रक्षा करेंगे । भगवान विष्णु के वचन सुनकर सभी देवता भगवान शंकर के दर्शन के लिए
चल पड़े।
पहले नारद जी गए फिर सभी देवताओं को साथ लेकर भगवान विष्णु महादेव
जी के पास पहुंचे और उनकी स्तुति करने लगे- हे भूतभावन प्रभु हमारी रक्षा कीजिए ,हम आपकी शरण में हैं। भगवान शंकर ने कहा-
कस्माद्यूयं समायाता मत्समीपं सुरेश्वराः।
हरि ब्रह्मादयः सर्वे ब्रूत कारणमाशु तत्।। रु•पा•24-10
आप सभी ब्रह्मा विष्णु आदि सुरेश्वर मेरे पास किस लिए आए हैं! उस कारण को
शीघ्र कहिए! जब सारे देवता विष्णु जी की तरफ देखने लग गए तब विष्णु जी कहने लगे-
हे भगवान शिवजी तारकासुर दानव ने हम सबको अतीव दुखित कर दिया है । उसने तो हमें
अपने-अपने स्थानों से भी निकाल दिया है ।
स्वामी उसकी मृत्यु आपके पुत्र के द्वारा ही होगी अतः आप गिरजा के
साथ शीघ्र ही विवाह करें। भगवान शंकर कहने लगे- हे देवताओं यदि मैं सर्वसुन्दरी
गिरिजा देवी को स्वीकार कर लूंगा तब सभी देवता, मुनि तथा ऋषि
सकाम हो जायेंगे । फिर तो यह परमार्थ मार्ग पर चल ना सकेंगे।
shiv puran katha in hindi pdf
मेरे पाणिग्रहण से ये दुर्गामृत कामदेव को पुनः जीवित कर देंगी।
मैंने पहले कामदेव को सब कार्यों की सिद्धि के लिए भस्म कर दिया है। अब मुझे विवाह
करने के लिए बाध्य मत करो। इतना कहकर भगवान शंकर ध्यान में स्थिर हो अपने ब्रह्म
स्वरूप का आत्म चिंतन करने लग गए।
तब शिवजी को ध्यानावस्था में देखकर नंदीश्वर से विष्णु आदि सब देवता
कहने लगे- अब हम क्या करें ? भगवान शिव को प्रसन्न करने का
कोई उपाय बताइए ? नंदीश्वर ने कहा हे देवताओं आप भगवान शंकर
की प्रार्थना करते रहो, भगवान महादेव तो अपने भक्तों के बस
में हैं।
इतना सुनते ही सभी देवता भगवान की स्तुति करने लगे। तब भगवान शंकर
की समाधि खुली और बोले- देवता लोग तारकासुर द्वारा जो दुख प्राप्त है आप सब को
उसके निवारण के लिए इच्छा ना होने पर भी मैं पार्वती जी के साथ विवाह कर लूंगा। अब
तुम निर्भयता पूर्वक अपने अपने स्थान पर चले जाओ।
shiv puran katha in hindi pdf
ऐसा कह कर भगवान शिव मौन हो गए। विष्णु आदि देवता गण जब चले गए,
तब भगवान शंकर श्री पार्वती जी की परीक्षा के लिए उन्होंने वशिष्ठ
आदि सात ऋषियों का स्मरण किया ।
भगवान के स्मरण करते ही सातों ऋषि सदाशिव के पास आ गए, प्रणाम एवं स्तुति करके विनय पूर्वक बोले-
देव देव महादेव करुणासागर प्रभो।
जाता वयं सुधन्या हि त्वया यदधुना स्मृताः।। रु•पा•25-10
हे देवदेव- महादेव, करुणासागर हम लोग धन्य हो गए जो आपने आज हम
लोगों का स्मरण किया। हम आपके दास हैं आज्ञा करें। तब ऋषियों के वचन सुनकर सदाशिव
हंसकर बोले- सप्तर्षियों तुम गौरी शिखर नाम के पर्वत पर चले जाओ, वहां मेरी प्राप्ति के लिए पार्वती जी एकाग्रमन होकर तप कर रही हैं। वहां
अनेकों छल कपट करके उनके प्रेम की परीक्षा लो।
सातों ऋषि भगवान शंकर की आज्ञा से वहां पहुंचे और गिरजा को प्रणाम
किया, फिर कहने लगे- पार्वती जी आप तो बड़ा कठोर तप कर रही
हैं इसका क्या कारण है ? इतना सुनकर पार्वती जी बोली- ऋषि
श्रेष्ठों मैं तो श्री नारद जी की आज्ञा से भगवान शंकर को ही वर पाने के निमित्त
से तप कर रही हूँ, वही मेरे देवता हैं।