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shiv puran katha in hindi pdf -39

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 shiv puran katha in hindi pdf 

   शिव पुराण कथा भाग-39  

shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में

इतना सुनकर सातों ऋषि हंस पड़े- शिव में गिरिजा का असाधारण प्रेम समझ कर छल के साथ बोले-
नारदः कूटवादी च परचित्त प्रमंथकः।
हे गिरिजे- वह नारद तो मिथ्यावादी और दूसरे के चित्त को भुलावे में डालने वाला है । आपको कपटी नारद मिल गया, भला उसके चरित्र को तुम जैसी निष्कपट कुमारियां क्या जान सकती हैं ?

नारद ने तो अनेकों को मरवा दिया, बहुतों के घर बर्बाद कर दिए। दक्ष के दस हजार पुत्रों ने परिश्रम किया और नारायण सरोवर पहुंच गए, उन्हें ऐसा उपदेश दिया जिससे वे सब के सब घर ही ना लौटे। दक्ष ने फिर हजार पुत्र उत्पन्न किए और यह उनको भी बहका दिया।

विद्याधर चित्रकेतु को इस प्रकार से बहुतों को वैराग्य ज्ञान समझा समझा कर चौपट कर डाला। उसी नारद के बातों में अब आप भी आ गई- गिरजे थोड़ा विचार कर देखो उनके बहकाने से तुम पति किस प्रकार का चाहती हो।
अमङ्गलवपुर्धारी निर्लज्जो५सदनोकुली।
कुवेषी प्रेतभूतादि सङ्गी नग्नो हि शूलभृत।। रु•पा•25-46
जो अमंगल वेष धारण करने वाला, निर्लज्ज है, उसके घर का कुल का आज तक किसी को कुछ पता नहीं है। वह कुवेशी, भूत एवं प्रेतादि का साथ रहने वाला है। त्रिशूल धारण करने वाला और नग्न रहने वाला है भला इस प्रकार का पति पाकर तुम्हें कौन सा सुख मिलेगा ?

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इसी शिव ने परम गुणवती सुंदर दक्ष पुत्री सती के साथ विवाह किया उस बिचारी को इसने कौन सा सुख दिया। आखिर में पिता के घर जाकर इसी दुख के कारण उसने अपना शरीर जला दिया।
गिरजे इन्हीं बातों का विचार करके तुम इस हट को छोड़ो, तप छोड़ कर घर चली जाओ हम तुम्हारा विवाह सर्व सुंदर भगवान विष्णु से करा देंगे जिससे तुम सुखी हो जाओगी।

तब हंसकर पार्वती जी उनसे कहने लगी- मुनीश्वर आप जो कुछ कह रहे हैं वह सत्य है और मैं अपने दृढ़ विश्वास को नहीं त्याग सकती। पर्वत पुत्री होने के कारण मैं तप से घबराती भी नहीं हूं।
देवर्षि नारद ने तो मेरा परम हित किया है, वह मेरे परम गुरुदेव हैं मैं इनको किस प्रकार त्याग सकती हूं । मुनीश्वरों आपने गुण के स्थान पर विष्णु जी को श्रेष्ठ तथा शिवजी को गुण रहित कहा है । किंतु सदाशिव तो भक्तों के लिए अवतार धारण करते हैं दुनिया को प्रभुता दिखाते ही नहीं है ।

इसी कारण तो हर एक आदमी अपने धर्म, जाति एवं कुलीन आदि से उनके तत्व को नहीं समझ पाता । पार्वती जी कहने लगी-
महादेव अवगुण भवन, विष्णु सकल गुणधाम ।
जेहि कर मनुरम जाहि सन, तेही तेही सन काम ।।
मुझे तो मेरे गुरुदेव ने अतिकृपा करके उत्तम मार्ग दिखला दिया जिससे मैं शिव तत्व को जान गई हूं । ऋषि वृन्द- यदि भगवान शिव के साथ इस जन्म में मेरा विवाह ना भी हुआ तो मैं दूसरा जन्म लेकर फिर सदाशिव को प्राप्त करने के लिए घोर तप करूंगी।

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सूर्य इधर का उधर से भी उदय हो जाए किंतु मेरी प्रतिज्ञा अटल रहेगी । इतना कहकर पार्वती जी चुप हो गई । सप्त ऋषि उनका दृढ़ संकल्प देखकर आशीर्वाद देने लगे, फिर प्रणाम करके भगवान शिव के पास लौट आए ।

(शिव जी द्वारा पार्वती जी की परीक्षा )
सप्तऋषियों ने आकर श्री पार्वती जी का संपूर्ण वृतांत सुना दिया फिर वह अपने लोक में चले गए । इसके बाद स्वयं महादेव जी दंडी ब्राह्मण का रूप धारण कर पार्वती जी के पास आए । तब श्री पार्वती जी को ब्रह्मचारिणी रूप में देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए और इधर श्री पार्वती जी भी ब्राह्मण वेषधारी शिवजी को देखकर प्रसन्न हुई ।

तब ब्राह्मण भक्ति में आकर उनका फल फूलों की भेंट से पूजन सत्कार करने लगी और बोली विप्रवर आप कहां से पधारे हैं? आप कौन हैं ? यह सुनकर ब्राह्मण बोले-
अहमिच्छाभिगामी च वृद्धो विप्रतनुः सुधी।
तपस्वी सुखदो ५न्येषामुपकारी न संशयः।। रु•पा•26-9
मैं वृद्ध ब्राह्मण शरीर धारण किए अपनी इच्छा अनुसार चलने वाला एक बुद्धिमान तपस्वी हूं । मैं दूसरों को सुख देने वाला तथा उनका उपकार करने वाला हूं, इसमें संशय नहीं है । देवी आप कौन हैं? किसकी कन्या एवं तप किस लिए कर रही हैं?

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इतना सुनकर पार्वती जी बोली- ब्राह्मण देवता मैं हिमालय की कन्या हूं, अपने द्वारा कामदेव को भस्म कर के शिव जी मुझे त्याग कर कहीं चले गए हैं। तब उनके चले जाने पर मैं कष्ट से उद्विग्न हो गई और तप के लिए दृढ़ होकर पिता के घर से गंगा के तट पर चली आई ।
बहुत समय तक कठोर तपस्या करने के बाद भी मेरे प्राण बल्लभ सदाशिव मुझे प्राप्त नहीं हुए, इस कारण मैं अग्नि में प्रवेश करना चाहती थी। किंतु आपको देखकर क्षण मात्र के लिए मैं रुक गई अब आप जाइए, शिवजी मुझे अंगीकार नहीं किए इसलिए मैं अब अग्नि में प्रवेश करूंगी।

मैं जहां-जहां जन्म लूंगी वहां भी शिव को ही वररूप में प्राप्त करूंगी। इस प्रकार कहकर उनके देखते ही देखते श्री पार्वती जी अग्नि में प्रवेश कर गई किंतु श्री पार्वती जी के अग्नि में प्रवेश करते ही अग्नि चंदन के समान ठंडी हो गई।
यह देखकर ब्राह्मण बोले- देवी जी तुम्हें तो अग्नि भी जला नहीं सकती, अब आप अपना मनोरथ मुझसे कहें-

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( शिव पार्वती संवाद )
श्री पार्वती जी बोली ब्राह्मण देवता मैं मन कर्म और वाणी के द्वारा भगवान शंकर को ही पति बनाने का निश्चय कर चुकी हूँ। मैं जानती हूं यह कठिन है फिर भी मेरा उत्साह भंग नहीं हुआ ,अभी तक तप करने में मेरा मन जुड़ा रहा ।

इतना सुनकर ब्राह्मण बोले देवी जी तुम महादेव जी को चाहती हो। उन्हें गुरु कृपा द्वारा मैं भली प्रकार जानता हूं। वह बैल पर चढ़ने वाले, वृषभध्वज हैं, भष्म जटाधारी हैं, भूत पिशाचों के मध्य रहते हैं। ऐसे महादेव को तुम ना जाने क्यों उनको अपना पति बनाना चाहती हो?

कुछ विचार भी किया है, कि नहीं? ना मालूम तुम्हारी समझ कहां चली गई। इससे प्रथम दक्ष कन्या ने भी प्रारब्ध बस शिव को ही पति बनाया था। उसके पिता दक्ष इससे चिड़ गए थे ।
अपने यज्ञ में इसी कारण ना अपनी कन्या को और ना कन्या के पति को बुलाया । तब तो सती क्रोध में आ गई, उधर पति ने भी त्याग दिया था ,तब तो सती ने योगाग्नि के द्वारा शरीर को जला दिया।

भला उसे कौन सा सुख मिला ? पार्वती तुम भूल रही हो, तुम तो सुंदर हो। तुम्हें तो चाहिए इंद्र, विष्णु आदि किसी भी रूप तथा गुणवान को चुन लो ।
यदि आप सोना चांदी आदि रत्न चाहें तो उनके पास कहां ? वस्त्र तक उनके पास नहीं है। इसलिए वे स्वयं दिगंबर रहते हैं । चढ़ने के लिए उनके पास केवल एक बूढ़ा बैल है और क्या ? वर के योग्य कोई भी उनमें गुण नहीं है।

shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में -1

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