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संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में 76

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संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में 76

संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में 76

 संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में

   शिव पुराण कथा भाग-76  

संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में

बालक ने कहा मैं शंकर जी की भक्ति मांगता हूं, इंद्र ने कहा क्या तुम देवताओं के स्वामी इन्द्र को नहीं जानते ? मैं वही इन्द्र हूं । तुम गुण रहित शिव को छोड़ो और मेरी पूजा करो। तब उपमन्यु बोले- आप शिव निंदा करने वाले उन शिव तत्व को नहीं जानते। लेकिन आप मेरी बात सुनिए-
सदसद् व्यक्तमव्यक्तं यमाहुर्ब्रह्मवादिनः।
नित्यमेक मनेकं च वरं तस्माद् वृणोम्यहम्।। श-32-31
ब्रह्मवादी लोग जिन्हें सत् ,असत् , व्यक्त, अव्यक्त, नित्य, एक तथा अनेक बताते हैं, मैं उन्ही शिव जी से ही वर मांगूगा। चाहे दूध के बिना भले ही मर जाऊं पर शंकर जी की निंदा नहीं सुनूंगा और यदि तुम फिर मेरे सामने शंकर जी की निंदा करोगे तो मैं तुमको शिव अस्त्र से मारकर अपना शरीर त्याग दूंगा। ऐसा कह उपमन्यु ने दूध की इच्छा त्याग स्वयं करने की इच्छा कर ली और इन्द्र को मारने के लिए तैयार हुआ

उसने भस्म उठा उसे अघोर मंत्र से अभिमंत्रित कर अपने इष्ट देव के युगल चरणों में ध्यान कर उसमें अग्नि स्थापित की और इंद्र पर छोड़ दिया, परंतु वह इंद्र तो थे नहीं वह तो साक्षात शंकर जी ही थे तत्काल प्रत्यक्ष हो उस ब्राह्मण को दर्शन दिया और हजारों दूध के समुद्र तथा अन्य भक्ष्य और भोज्य पदार्थों के समूह उसे दिखाए।

 संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में

पार्वती सहित बैल पर बैठ गणों सहित त्रिशूल आदि सुंदर अस्त्रों से शोभित अपना रूप दिखाया, आकाश में धुंधभी बजने लगी और फूलों की वर्षा हुई। यह देख उपमन्यु शिव जी को दंडवत करता हुआ पृथ्वी पर लेट गया फिर तो भगवान शंकर जी ने कहा आओ और उपमन्यु के सर को शिवजी सहलाते हैं और हृदय से लगाए। पार्वती जी ने प्यार कर कुमार के समान ही अपना अक्षय कुमार नामक पुत्र बनाया।

उनकी कृपा से दूध का स्वाद उत्पन्न करने वाले समुद्र ने स्वयं उठकर एकत्र पिंडीभूत और अनस्वर क्षीर समुद्र उसे प्रदान किया। पार्वती शिव ने उसे और बहुत से वर दिए । उपमन्यु ने शिवजी की परम भक्ति मांगा तब शिवजी प्रसन्न होकर बोले-
अजरश्चामरश्च त्वं सर्वदा दुःखवर्जितः।
सर्वपूज्यो निर्विकारी भक्तानां प्रवरो भव।। श-37-70
तुम सर्वदा अजर अमर दुख रहित सर्वपूज्य निर्विकार एवं भक्तों में श्रेष्ठ हो जाओ। हे द्विजोत्तम तुम्हारे बांधव तुम्हारा गोत्र एवं कुल अक्षय बना रहेगा और मुझमें तुम्हारी शाश्वत भक्ति बनी रहेगी और मैं तुम्हारे आश्रम में नित्य निवास करूंगा। हे वत्स तुम इच्छा अनुसार जब तक चाहे तब तक इस लोक में निवास करो, तुम सर्वदा पूर्ण कम रहोगे ऐसा वर देकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद प्रसन्नचित्र उपमन्यु माता के पास जाकर सारा वृत्तांत निवेदन किया माता बड़ी हर्षित हुई। इस प्रकार परमात्मा शिव सर्वदा सज्जनों को सुखदायी हैं।
बोलिए शंकर भगवान की जय

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( ब्रह्मचारी अवतार )
माता पार्वती जब शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तप कर रही थी तब भगवान शंकर ही ब्रह्मचारी अवतार ले उनके पास जाकर उनकी परीक्षा लेने के लिए शिव निंदा किए। तब पार्वती जी ब्राह्मण जान वहां से स्वयं जाने लगी की शिव निंदा सुनना भी पाप है, तब ऐसी भक्ति देख महादेव अपने स्वरूप में आकर भगवती को दर्शन दिए।

( सुनट नर्तक अवतार )
पार्वती देवी जब वन में जाकर तप करने लगी तब महादेव प्रसन्न हुए तो देवी ने कहा आप मेरे घर आकर मुझे मांगे, तब महादेव सुंदर नट नर्तक का वेश बनाकर गए हिमाचल घर और आंगन में जाकर अनेक प्रकार के नृत्य और सुमोहन गान करने लगे। जिसे देखकर मैंना प्रसन्न हो रत्न राशि भेंट करने लगी तो नर्तक वेषधारी शिव बोले मुझे भिक्षा में आप की पुत्री पार्वती चाहिए। तब वह क्रोधित हो उनको बाहर जाने को कहने लगी, लेकिन उन्हें कोई बाहर ना निकाल सका।

वह अपना दिव्य प्रभाव के द्वारा हिमालय को विष्णु सूर्य आदि रूपों को दिखाया फिर पार्वती की आज्ञा से अपने धाम चले गए। तब यह देख दोनों राजा रानी को ज्ञान हुआ कि शिवजी ही साक्षात आए थे और पछताने लगे इस प्रकार उनकी शिव में परम भक्ति हो गई।

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( साधु भेष धारी शिव जी का द्विज अवतार )
जब हिमालय और मैना यह निर्णय कर लिए कि पार्वती का विवाह शंकर जी से करेंगे तो सब देवता दुखी हो गए, क्यों ? उन्होंने विचार किया शिव भक्ति से यह निश्चित ही निर्वाण पद प्राप्त कर शिवलोक चला गया तो रत्नों से भरा हिमालय के न रहने पर पृथ्वी रतनगर्भा कैसे कहलाएगी ? तब महादेव से उन्होंने निवेदन किया तो शिवजी देवताओं की प्रसन्नता के लिए द्विज वेश धारण कर हिमालय के घर जाकर बहुत शिव निंदा करें और अपने धाम को आ गए।
मैंना सहित हिमालय की बुद्धि विपरीत हो गई वह बिचारने लगे कि हम अब क्या करें ? भगवान शंकर ने भक्तों को हर्ष दायक महान लीला करके देवताओं का कार्य सिद्ध किया।

( अश्वत्थामा के रूप में शिव का अवतार )
नंदीश्वर बोले- हे सनत कुमार अब आप सर्वव्यापी परमात्मा शिव के अश्वत्थामा नामक श्रेष्ठ अवतार को सुनें।
बृहस्पतेर्महाबुद्धेर्देवर्षेरंशतो मुने।
भरद्वाजात्समुत्पन्नो द्रोणोयोनिज आत्मवान।। श-36-2
हे मुने! महा बुद्धिमान देवर्षि बृहस्पति के अंश से महर्षि भरद्वाज से आयोनिज पुत्र के रूप में आत्मवेत्ता द्रोण उत्पन्न हुए, जो धनुष धारियों में श्रेष्ठ, पराक्रमी, विप्रो में श्रेष्ठ ,संपूर्ण शास्त्रों के जानने वाले थे। यह बलवान द्रोण अपने बल से कौरवों के आचार्य हुए , फिर उनके मध्य में छः महारथियों में भी विख्यात हुए।

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इन द्रोणाचार्य ने कौरवों की सहायता के लिए शिव जी का उद्देश्य कर पुत्रार्थ बड़ा तप किया। भगवान शंकर प्रसन्न हो द्रोणाचार्य के आगे आए तब द्रोणाचार्य शिव जी की बड़ी स्तुति किए और बोले- नाथ अपने अंश से उत्पन्न होने वाला सबसे अजेय और महाबली मुझको पुत्र दीजिए। शिवजी तथास्तु कह अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद समय आने पर प्रभु रूद्र अपने अंश से द्रोण के महा बलवान पुत्र रूप में उत्पन्न हुए।
अश्वत्थामेति विख्यातः स बभूव क्षितौ मुने।
प्रवीरः कञ्जपत्राक्षः शत्रुपक्ष क्षयङ्करः।। श-36-14
वे पृथ्वी पर अश्वत्थामा नाम से विख्यात हुए, वह महान वीर थे उनकी आंखें कमल पत्र के समान थी और वे शत्रु पक्ष का विनाश करने वाले थे। यही महाबली अश्वत्थामा महाभारत के रण में पिता की आज्ञा से कौरवों के सहायक हुए। तब अश्वत्थामा का बल पाकर तो कौरव अजेय हो गए।
पांडव उन कौरवों को जीतने में समर्थ ना हुए, तब कृष्ण का उपदेश पाकर अर्जुन ने दारुन तप कर सब अस्त्रों को प्राप्त किया और उन्हें समर में जीता। शिवजी के अंश से उत्पन्न होने के कारण ही अश्वत्थामा इतना वीर हुआ कि उसने यत्न पूर्वक पांडवों के पुत्रों को मार डाला और कृष्णादि भी इसके बल को रोक ना सके। परंतु जब पुत्र शोक से व्याकुल अर्जुन कृष्ण जी के साथ अश्वत्थामा का पीछा किया तो उसने ब्रह्मास्त्र छोड़ा, तब श्रीकृष्ण बोले अश्वत्थामा का यह अस्त्र महा दारूण है इसलिए शिवजी का स्मरण कर उनका दिया दिव्य अस्त्र का प्रयोग करो।

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तब अर्जुन शिवजी का स्मरण कर शैवास्त्र छोड़ा यद्यपि वह ब्रह्मास्त्र क्रियावान निष्फल न था फिर भी शैवास्त्र के तेज से शांत हो गया। तब अश्वत्थामा ने संसार से पांडवों को रहित करने के लिए उत्तरा के गर्भगत बालक पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। तब श्री कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ की रक्षा की यह चरित्र जानकर अश्वत्थामा उदास हो गए। तब श्रीकृष्ण अश्वत्थामा को प्रसन्न करने के लिए सभी पांडवों को उनके चरणों में गिरवाया । तब प्रसन्न हो द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा उनको प्रेम पूर्वक बहुत से वर प्रदान प्रदान किए ।
शिवावतारो श्वत्थाामाऽमहाबलपराक्रमः।
त्रैलोक्य सुखदोऽद्यापि वर्तते जाह्नवी तटे।। श-36-42
त्रैलोक्य को सुख देने वाले महा पराक्रमशाली शिव अवतार अश्वत्थामा आज भी गंगा तट पर विद्यमान है। जो मनुष्य भक्ति पूर्वक इस चरित्र को सुनता है अथवा सुनाता है वह अभीष्ट सिद्धि प्राप्त करता है और अंत में शिवलोक को जाता है।
बोलिए महादेव भगवान की जय

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