संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में
( किरात
अवतार )
अर्जुन ने व्यास जी की बताई विधि के अनुसार शिवार्चन किया। फिर एक
पांव के तलवे से पृथ्वी पर मुनि के समान खड़े हो एक मात्र दृष्टि से सूर्य की ओर
देखते हुए मंत्र जपने लगे। अवाध गति से सर्वोत्तम पंचाक्षरी मंत्र जपा। फिर तो
अर्जुन का तप तेज इतना प्रकाशित हो गया कि उससे देवता भी विस्मित हो गए। इसी समय
दुर्योधन का भेजा हुआ मूक नामक दैत्य शंकर का वेश धारण कर वहां आया । वह अपने वेग
से पर्वतों को तोड़ता अनेक वृक्षों को उखड़ता हुआ तथा अनेक प्रकार के शब्द करता
हुआ बड़े वेग से आया।
अर्जुन ने विचार किया यह क्रूर कर्म करने वाला कौन है ? कहीं यह दुर्योधन का हितकारी सखा तो नहीं है ? क्योंकि-
आचारः कुलमाख्याति वपुराख्याति भोजनम्।
वचनं श्रुतमाख्याति स्नेहमाख्याति लोचनम्।। श-39-18
सदाचार से कुल का, शरीर से भोजन का, वचन के द्वारा शास्त्र ज्ञान का
तथा नेत्र के द्वारा स्नेह का पता लग जाता है। इस प्रकार के और भी मन ही मन कई
विचार निश्चय कर अर्जुन धनुष बाण लेकर खड़े हो गए । उसी समय अर्जुन की रक्षा और
उसकी भक्ति की परीक्षा करने के लिए भक्त वत्सल शिवजी भील स्वरूप धारण कर पहुंचे,
स्वयं धनुष बांण धारण किए थे, गणों सहित वह
भीलों के राजा बने थे।
संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में
इसी समय दोनों के बीच में पर्वताकार सूकर आ गया तब अर्जुन और शिवजी
ने साथ ही बांण छोड़ा। शिवजी का बांण सूकर की पूंछ में और अर्जुन का बांण उसके मुख
में लगा। बांण उसके मुख से पार कर पृथ्वी में समा गया और सूकर मर गया। देवता लोग
पुष्प बरसाने लगे, ढोल नगाड़ा बजाने लगे । शिवजी संतुष्ट हुए
अर्जुन को भी सुख प्राप्त हुआ। मरते समय उस दैत्य ने और भी अद्भुत रूप दिखाया जिसे
देख अर्जुन ने कहा- अहो यह तो शंकर का रूप धारण कर मुझे मारने ही आया था, यह तो शिवजी ने कृपा कर मेरी रक्षा करी। तब अर्जुन शिवजी की बड़ी स्तुति की
और बारंबार प्रणाम किया।
इसी समय शिवजी ने सेवक को भेज मृत सूकर के पास से अपना बांण मंगवाया
, उधर अर्जुन भी अपना बांण लेने आए , तब
दोनों में विवाद हो गया। अर्जुन ने गण को ताड़न दे वह बांण ले लिया । गण ने कहा
बांण हमको दे दो यह दोनों बांण हमारे हैं । तू झूठा तपस्वी है। क्या प्रमाण है कि
यह बांण तेरा है ? अर्जुन ने कहा इसमें मेरा नाम चिन्ह अंकित
है लेकिन तुझे नहीं दिखाऊंगा जब तेरा स्वामी आवेगा उसे ही दिखाऊंगा। तेरे साथ मेरा
युद्ध शोभा नहीं देता ।
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अर्जुन के ऐसा कहने पर वह गण किरात रूप शिव जी के पास जाकर सब कुछ
कहा, तब किरातेश्वर लीला करते हुए स्वयं अर्जुन से युद्ध
किए। गणों सहित उस भीलराज ने अपने तीव्र बाणों से अर्जुन को बड़ी पीड़ा दी। अर्जुन
भी अपने स्वामी का ध्यान कर उनके बाणों को काटते हुए शिवजी पर कई बांण चलाए परंतु
अर्जुन के बाणों का उन पर कोई असर नहीं पड़ा। भक्तवत्सल लीलाधारी शंकर जी हंसने
लगे फिर तो भक्ति के बस में उन्होंने अर्जुन को अपना अद्भुत सुंदर रूप दिखाया।
अर्जुन को बड़ा आश्चर्य हुआ, उन्हें अपने पर
बड़ी लज्जा आयी। उन्होंने कहा यह तो मेरे प्रभु साक्षात शंकर जी हैं ,अर्जुन दुखी हो गए बोले प्रभु मुझे क्षमा कर दीजिए । तब शंकरजी ने कहा हे
पार्थ तू खेद मत कर तू मेरा भक्त है। यह तो मैंने परीक्षा ली थी। आज मैं तुझ पर
इतना प्रसन्न हूं कि तेरे इन बाणों के प्रहारों को भी मैं अपनी पूजा ही मानता हूं।
क्योंकि यह सब मेरी ही इच्छा से हुआ है। तुम्हारी जो इच्छा हो वह वर मुझ से मांग
लो । तब अर्जुन शिवजी की स्तुति करने लगे-
नमस्ते देवदेवाय नमः कैलासवासिने।
सदाशिव नमस्तुभ्यं पञ्चवक्त्राय ते नमः।। श-41-34
हे देवाधिदेव आपको नमस्कार है , कैलाश वासी आपको नमस्कार है, सदाशिव
आपको नमस्कार है, पांच मुख वाले आपको नमस्कार है। हे भगवन
मुझ पर कृपा करके शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने का वरदान दीजिए । शंकर जी अपने
भक्त पर प्रसन्न हो पाशुपत अस्त्र प्रदान किए और कहा कि इस अस्त्र से तुम्हारी
विजय होगी। इसके अतिरिक्त मेरी आज्ञा से श्रीकृष्ण भी तुम्हारी सहायता करेंगे ।
ऐसा कह शंकर जी अंतर्ध्यान हो गए। अर्जुन भी आश्रम को गए और अपने भाइयों सहित
द्रोपती से मिलकर सुख को प्राप्त किया।
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( द्वादश ज्योतिर्लिंग रूप अवतारों का वर्णन )
नंदीश्वर बोले- हे सनत कुमार जी अब अनेक प्रकार की लीला करने
वाले परमात्मा शिव जी के ज्योतिर्लिंग रूप द्वादश संख्यक अवतारों को सुनिए-
सौराष्ट्रे सोमनाथश्च श्रीशैले मल्लिकार्जुनः।
उज्जयिन्यां महाकाल ओङ्कारे चामरेश्वरः।।
केदारो हिमवत्पृष्ठे डाकिन्याम्भीम शङ्करः।
वाराणस्यां च विश्वेशस्त्र्यम्बको गौतमी तटे।।
वैद्यनाथस्चिता भूमौ नागेशो दारुकावने।
सेतुबन्धे च रामेशो घुश्मेशश्च शिवालये।।
अवतार द्वादशकमेतच्छम्भोः परात्मनः।
सर्वानन्द करं पुसां दर्शनात्स्पर्शनान्मुने।।
श-42-2,3,4,5
सौराष्ट्र में सोमनाथ , श्रीशैल पर मल्लिकार्जुन ,उज्जैन
में महाकाल, ओंकार में अमरेश्वर, हिमालय
पर केदारेश्वर, डाकिनी में भीमाशंकर, काशी
में विश्वनाथ, गौतमी तट पर त्र्यंबकेश्वर, चिता भूमि में बैद्यनाथ, दारूका वन में नागेश्वर,
सेतुबंध में रामेश्वर एवं शिवालय में घुश्मेंश्वर ये बारह शिवजी के
ज्योतिर्लिंग स्वरूप अवतार हैं ।
हे मुने ये परमात्मा शिव के बारह ज्योतिर्लिंगावतार दर्शन तथा
स्पर्श से पुरुषों का कल्याण करने वाले हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में 1- प्रथम सोमनाथ नामक ज्योतिर्लिंग है, चंद्रमा के
दुखों का नाश करने वाला है । इनका पूजन करने से छय तथा कुष्ठ आदि रोगों का नाश
होता है। शिवजी के आत्मस्वरूप सोमनाथ महा लिंग का जो दर्शन करता है उसके सब पाप
छूट जाते हैं तथा उसे मुक्ति और भुक्ति प्राप्त होती है।
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2- शिवजी का मल्लिकार्जुन नामक वाला दूसरा अवतार श्रीशैल पर हुआ जो
भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करता है। वे भगवान शिव कैलाश पर्वत से पुत्र
कार्तिकेय को देखने आए और वहां शिवलिंग से भक्तों द्वारा पूजित हुए। 3- तीसरा उज्जैन में महाकाल नामक लिंग का दर्शन करने से सब कामनाएं पूर्ण
होती हैं तथा अंत में उत्तम गति प्राप्त होती है। 4- चौथा
ओंकार लिंग भक्तों को इच्छित फल देने वाला है। 5- पांचवा
केदारेश्वर नामक ज्योतिर्लिंग स्वरूप जो केदार में स्थित है यह नर नारायण नामक
भगवान का अवतार है। जो इस का दर्शन और पूजन करता है उसको अभीष्ट फल प्रदान करते
हैं।
6- शिवजी का छठवां अवतार भीम नामक असुर को मारने से भीमाशंकर
ज्योतिर्लिंग हुआ । जिसमें उस दैत्य को मार शिवजी कामरूप देश के राजा की रक्षा की।
यही भक्तों के सब मनोरथ को पूर्ण करने वाला और इस खंड का स्वामी है। 7- इसी प्रकार विश्वेश्वर नाम वाला सातवां अवतार काशी में हुआ जो समस्त
ब्रह्मांड का स्वरूप तथा भुक्ति मुक्ति दायक है। इनकी पूजा विष्णु आदि सब देवो ने
की तथा ये कैलाशपति और भैरव रूप में वहां पर स्थित हैं जो इनका नाम जपते हैं वह
कर्म बंधन से छूट जाते हैं ।
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8- शिवजी का त्र्यंबक नामक ज्योतिर्लिंग आठवां अवतार गोमती के
किनारे गौतम ऋषि के प्रार्थना और कामना से हुआ। 9- नवां
वैद्यनाथ अवतार हुआ जिसमें लीलाधारी शंकर जी रावण के निमित्त प्रकट हुए । 10-
दसवां नागेश्वर अवतार अयोध्यापुरी में हुआ । 11- ग्यारहवां अवतार रामेश्वर हुआ जो रामचंद्र द्वारा स्थापित हुआ। 12-
शंकर जी का घुश्मेश्वर नामक बारहवाँ अवतार हुआ जिसने घुष्मा को आनंद
दिया।
शिवजी के यह दिव्य बारह ज्योतिर्लिंगों को जो पड़ता है या सुनता है
वह सब पापों से छूट भोग तथा मोक्ष को प्राप्त करता है।
बोलिए शंकर भगवान की जय
! !! सत रूद्र संहिता खंड संपूर्ण !!
12 ज्योतिर्लिंगों का यह पाठ प्रातः कालीन अवश्य करना चाहिए।