F shiv puran katha शिव पुराण कथा मराठी 79 - bhagwat kathanak
shiv puran katha शिव पुराण कथा मराठी 79

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shiv puran katha शिव पुराण कथा मराठी 79

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shiv puran katha शिव पुराण कथा मराठी

   शिव पुराण कथा भाग-79  

shiv puran katha शिव पुराण कथा मराठी

श्री शिव महापुराण कोटी रूद्र संहिता


( द्वादश ज्योतिर्लिंग के उपलिगों का वर्णन )
ऋषि गण बोले- हे सूत जी आपने लोक का कल्याण करने के निमित्त अनेक प्रकार के अख्यानों से युक्त शिवजी के अवतारों का महात्म्य भली-भांति कहा अब आप-
पृथिव्यां यानि लिङ्गानि तीर्थे तीर्थे शुभानि हि।
व्यासशिष्य समाचक्ष्व लोकानां हितकाम्यया।। को-1-6-7
इस पृथ्वी के सभी तीर्थों में जितने शुभलिंग हैं, हे व्यास शिष्य लोकहित की कामना से परमेश्वर के दिव्य लिगों का वर्णन कीजिए। सूत जी महाराज बोले-
पृथिव्यां यानि लिंगानि तेषां संख्या न विद्यते।
तथापि च प्रधानानि कथ्यन्ते च मया द्विजाः।। को-1-18
पृथ्वी पर जितने लिंग हैं उनकी कोई गणना नहीं है फिर भी मैं प्रधान लिंगों को कहता हूं। अभी आपने जो द्वादश ज्योतिर्लिंग के नाम सुने वह प्रधान लिंग हैं अब उनके उप लिंगो का वर्णन सुनो- महानदी तथा सागर के संगम पर जो अंतकेस नामक लिंग स्थित है वह सोमेश्वर का उपलिंग है। भृगुकक्ष में स्थित परम सुख दायक रुद्रेश्वर नामक लिंग ही मल्लिकार्जुन से प्रकट हुआ उपलिंग कहा गया है।

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नर्मदा के तट पर महाकाल से प्रकट हुआ दूग्धेश्वर नाम से प्रसिद्ध उपलिंग है जो संपूर्ण पापों का नाश करने वाला है। ओंकारेश्वर संबधी उपलिंग कर्दमेश्वर नाम से प्रसिद्ध तथा बिंदु सरोवर के तट पर स्थित है और यह संपूर्ण कामनाओं का फल देने वाला है। यमुना के तट पर केदारेश्वर से उत्पन्न भूतेश्वर नामक उपलिंग स्थित है जो दर्शन एवं पूजन करने वालों के लिए महा पाप नाशक कहा गया है। सह्य पर्वत पर स्थित भीमेश्वर नामक लिंग भीमशंकर का उपलिंग कहा गया है। वह प्रसिद्ध लिंग बल को बढ़ाने वाला है ।

विश्वेश्वर से उत्पन्न लिंग शरणेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुआ, त्रयंबकेश्वर से सिद्धेश्वर लिंग प्रकट हुआ तथा बैद्यनाथ से बैजनाथ नामक लिंग का प्राकट्य हुआ। मल्लिका सरस्वती के तट पर स्थित एक अन्य भूतेश्वर नाम का ही शिवलिंग नागेश्वर से उत्पन्न उपलिंग कहा गया है जो दर्शन मात्र से पापहरण करने वाला है । रामेश्वर से जो प्रकट हुआ वह गुप्तेश्वर और घुश्मेश्वर से जो प्रकट हुआ वह व्याघ्रेश्वर कहा गया है के दर्शन मात्र से जीव के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं ।
अन्यानि चापि मुख्यानि श्रूयन्ता मृषि सत्तमाः।
अब अन्य प्रसिद्ध लिंगो का वर्णन भी सुनिए-
( काशी तथा पूर्व दिशा में प्रकटित लिंग )

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गंगा के तट पर प्रसिद्ध काशी नगरी है जो सबको मुक्ति प्रदान करने वाली है, वह लिंगमयी नगरी शिव जी का प्रिय स्थान है। वहीं पर अविमुक्त नामक मुख्य लिंग कहा गया है उसी के समान कृतिवाशेश्वर लिंग एवं वृद्धकाल लिंग काशी में है । गंडकी नदी के तट पर बटुकेश्वर नामक लिंग है। फल्गु नदी के किनारे पर पूरेस्वर नामक लिंग है। अयोध्यापुरी में नागेश नाम का प्रसिद्ध लिंग है। जगन्नाथ पुरी में सिद्धि प्रदान करने वाला भुवनेश्वर लिंग है। कौशिकी नदी के तट पर नागेश्वर नित्य लिंग विराजमान है । इस प्रकार पूर्व दिशा में बहुत से लिंग हैं।
पश्चिमाम्बुधितीरस्थं गोकर्णं क्षेत्रमुत्तमम्।
ब्रह्महत्यादि पापघ्नं सर्वकामफलप्रदम्।। को-8-4
पश्चिम समुद्र के तट पर गोकर्ण नामक उत्तम क्षेत्र है जो ब्रह्म हत्या आदि पापों को नष्ट करने वाला और संपूर्ण कामनाओं का फल प्रदान करने वाला है । इस विषय में अधिक क्या कहें-
शिव प्रत्यक्ष लिगांनि तीर्थान्यम्भांसि सर्वशः।
गोकर्ण क्षेत्र में स्थित सभी लिंग शिव स्वरूप है एवं वहां का समस्त जल तीर्थ स्वरूप है। गोकर्ण क्षेत्र में स्थित शिवलिंग सतयुग में श्वेत वर्ण, त्रेता में लोहित वर्ण, द्वापर में पित्त वर्ण तथा कलयुग में श्याम वर्ण का हो जाता है । भगवान शिव के उस महाबलेश्वर नामक लिंग का पूजन करके एक चाण्डाली भी तक्षण शिवलोक को प्राप्त हो गई थी । शौनकादि ऋषि बोले-

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सूत सूत महाभाग धन्यस्त्वं शैवसत्तमः।
चाण्डाली का समाख्याता तत्कथांकथय प्रभो।। को-9-1
हे सूत जी आप परम शैव हैं, वह चाण्डाली कौन थी ? उसकी कथा कहिए ! सूत जी बोले- ऋषियों चाण्डाली पूर्व जन्म में एक ब्राह्मणी की कन्या थी-
सौमनी नाम चन्द्रास्या सर्वलक्षण संयुता।
उसका नाम सौमनी था, वह सर्व लक्षणों से युक्त थी जब वह विवाह के योग्य हुई तो उसके पिता ने एक श्रेष्ठ ब्राह्मण के साथ उसका विवाह कर दिया। विवाह होने की देर थी, वह विलास में पड़ गई कुछ ही दिनों बाद उसका पति रोग ग्रस्त हो मृत्यु को प्राप्त हो गया। पति के मर जाने पर सुशील तथा उत्तम आचार वाली उस स्त्री ने दुखित तथा व्यथित चित्त होकर कुछ काल अपने घर में निवास किया, उसके अनन्तर विधवा होते हुए भी युवति होने के कारण काम से आविष्ट मन वाली वह व्यभिचारिणी हो गई।

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तब घर वालों ने उसका परित्याग कर दिया वह वन में आ गई, कोई सूद्र उसे वन में स्वच्छंद विचरण करती हुई देख अपने घर ले आया और उसे अपनी पत्नी बना लिया। अब वह प्रतिदिन मांस का भोजन करती मदिरा पीती और व्यभिचार निरत रहती। उस सूद्र के संबंध से उसने एक कन्या को जन्म दिया। एक समय पति के कहीं चले जाने पर उस व्यभिचारिणी सौमनी ने मद्य पान किया और वह मांस के आहार की इच्छा करने लगी।

रात्रि के समय घोर अंधकार में तलवार लेकर वह घर के बाहर गोष्ठ में गायों के साथ बंधे हुए मेषों ( भेड़ ) के बीच गई और मांस से प्रेम रखने वाली उस दुर्भागा ने मद्य के नशे के कारण बिना विचार किए चिल्लाते हुए एक बछड़े को मेष यानी भेड समझकर मार डाली। मरे हुए उस पशु को घर लाकर बाद में उसे बछड़ा जानकर वह स्त्री भयभीत हो गई और किसी पुण्य कर्म से पश्चाताप पूर्वक शिव शिव ऐसा उच्चारण करने लगी। क्षणभर शिव जी का ध्यान कर मांस के आहार की इच्छा वाली उसने उस बछड़े को काट कर खा लिया।

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इस प्रकार बहुत समय बीतने के बाद वह सौमनी काल के वशीभूत हो गई और यमलोक चली गई । यमराज ने उसके पूर्व जन्म के कर्म तथा धर्म का निरीक्षण कर उसे नरक से निकालकर चांडाल जाति वाला बना दिया। यमराज पुरी से लौटकर वह सौमनी चाण्डाली के गर्भ से उत्पन्न हुई वह जन्म से अंधी एवं कोयले के समान काली थी। जन्म से अंधी, बाल्यावस्था में ही माता-पिता से रहित और महा कुष्ठ रोग से ग्रस्त दुष्टा से किसी ने विवाह नहीं किया।
उसके बाद वह अंधी चाण्डाली भूख से पीड़ित एवं दीन हो लाठी हाथ में लेकर जहां-तहां डोलती और चांडालों के झूठे अन्न से अपने पेट की ज्वाला शांत करती थी। इस प्रकार महान कष्ट से अपनी अवस्था का बहुत भाग बिता लेने के पश्चात वृद्धावस्था से ग्रस्त शरीर वाली वह घोर दुख पाने लगी। उस समय उस चाण्डाली को पता चला कि आने वाली शिव तिथि में बड़े-बड़े लोग उस गोकर्ण क्षेत्र की ओर जा रहे हैं।

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वह चाण्डाली भी वस्त्र एवं भोजन के लोभ से गोकर्ण क्षेत्र की ओर चल पड़ी , वहां जाकर सबके सामने हाथ फैलाकर याचना करती तब एक बार किसी पुण्यात्मा ने उसकी अंजुली में बेल की मंजरी डाल दी। बार-बार विचार करके कि यह खाने योग्य नहीं उस मंजरी को दूर फेंक देती-
तस्याः कराद्विनिर्मुक्ता रात्रौ सा बिल्वमंजरी।
पपात कस्य चिद्दिष्टया शिवलिगंस्य मस्तके।। को-9-28
उसके हाथ से छूटी हुई वह बिल्व मंजिरी शिवरात्रि में भाग्यवश किसी शिवलिंग के मस्तक पर जा गिरी। इस प्रकार चतुर्दशी के दिन यात्रियों से बार-बार मांगने पर भी कुछ खाने को ना मिला अनजाने में उसका शिव चतुर्दशी का व्रत और जागरण भी हो गया । उसके बाद सुबह होने पर वह स्त्री महान शोक से युक्त हो धीरे-धीरे अपने घर के लिए चल पड़ी। बहुत समय के उपवास से थक चुकी वह पग पग पर गिरती हुई उसी गोकर्ण क्षेत्र की भूमि पर चलते-चलते प्राण हीन होकर गिर पड़ी। उसने शिव जी की कृपा से परम पद प्राप्त किया। शिवगण उसे विमान पर बैठाकर शीघ्र ही शिवलोक को ले गए।
आदौ यदेषा शिवनाम नारी, प्रमादतो वाप्यसती जगाद।
तेनेह भूयः सुकृतेन विप्रा, महाबलस्थानमवाप दिव्यम्।। को-9-34

हे ब्राह्मणों पूर्व जन्म में इस बिचारी स्त्री ने जो अज्ञान में शिव जी के नाम का उच्चारण किया था, उसी पुण्य से उसने दूसरे जन्म में महाबलेश्वर के दिव्य स्थान को प्राप्त किया।
बोलिए महाबलेश्वर महादेव की जय

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