शिव पुराण संस्कृत श्लोक PDF 68

 शिव पुराण संस्कृत श्लोक PDF

   शिव पुराण कथा भाग-68  

शिव पुराण संस्कृत श्लोक PDF

अठारहवें द्वापर में ऋतंजय नामक व्यास होंगे उस समय हिमालय शिखर पर मैं शिखंडी नाम से प्रकट होऊंगा। उन्नीसवें द्वापर में भारद्वाज मुनि व्यास होंगे तब मैं हिमालय में माली नाम से अवतार ग्रहण करूंगा। बीसवें द्वापर में जब गौतम नामक व्यास होंगे तब मैं हिमालय पर्वत पर अट्टहास नाम से अवतीर्ण होऊंगा।
इक्कीसवें द्वापर में वाचःश्रवा नामक व्यास होंगे तब मैं दारूक नाम से अवतरित होऊंगा। बाईसवें द्वापर में शुष्मायण नामक व्यास होंगे तब मैं लांगली भीम नामक महा मुनि के रूप में वाराणसी में अवतरित होंऊंगा। तेईसवें द्वापर में मुनि तृणबिंदु व्यास होंगे तब मैं कालिंजर पर्वत पर श्वेत नाम से अवतार लूंगा।

चौबीसवें द्वापर में जब यक्ष नामक व्यास होंगे तब मैं नैमिष क्षेत्र में सूली योगी के रूप में अवतरित होऊंगा। पच्चीसवें द्वापर में शक्ति नामक व्यास होंगे तब मैं दंडधारी मुंडीश्वर प्रभु के रूप में अवतार लूंगा। छब्बीसवें द्वापर में जब पाराशर नामक व्यास होंगे उस समय मैं सहिष्णु नाम से अवतरित होऊंगा।
सत्ताइसवें द्वापर में जातूकर्ण व्यास होंगे उस समय मैं प्रभाष तीर्थ में आकर सोम शर्मा नाम से प्रकट होऊंगा। अठ्ठाईसवें द्वापर में जब महाविष्णु पाराशर के पुत्र रूप में जन्म लेकर द्वैपायन नामक व्यास होंगे तब छठे अंश से पुरुषोत्तम श्री कृष्ण भी वासुदेव के नाम से प्रसिद्ध और वसुदेव के पुत्र रूप में अवतरित होंगे। उस समय मैं योगात्मा नामक ब्रह्मचारी का रूप धारण करूंगा। ब्रह्मा जी से ऐसा कहकर उनके देखते ही देखते शिवजी अंतर्ध्यान हो गए।
बोलिए सदा शिव भगवान की जय

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( नंदीकेश्वर अवतार )
सनत कुमार जी बोले- नंदीश्वर जी शिवजी के अंश से आप कैसे उत्पन्न हुए ? तथा शिव तत्व को आपने कैसे जाना ? नंदीश्वर बोले-

सनत्कुमार सर्वज्ञ सावधानतया शृणु।
सनत कुमार जी अब आप सावधान होकर वह सुनिए कि जिस प्रकार मैं शिव जी का वंशज हुआ। एक समय पुत्र की कामना से शिलाद ऋषि शिव जी का तप और ध्यान करते हुए शिव लोक को गए तब देवताओं के प्रभु इंद्र उनके तप से प्रसन्न हो वर देने के लिए उनके पास गए ।

तब मुनि शिलाद स्तुति कर बोले- यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे आयोनिज -अमर पुत्र दीजिए । इंद्र ने कहा ऐसा पुत्र तो केवल शिवजी ही दे सकते हैं। तब शिलाद ने हजारों वर्षों तक और साधना कि उसके शरीर में दीमक लग गई तब शिव जी प्रसन्न हो प्रगट हो गए वर मांगने को बोले। तब शिलाद शिव जी को प्रणाम कर उनसे शिवजी के ही समान अजर अमर पुत्र मांगा।
शिवजी ने कहा एवमस्तु और अंतर्ध्यान हो गए। शिलाद यह वृतांत ऋषियों से कहा तब यज्ञ के लिए ऋषिओं के कहने पर जब आंगन खोदा गया, तब शिलाद के पुत्र रूप में प्रकट हुआ। उस समय देवताओं ने फूल बरसाए सभी ब्रह्मादिक देवता अपनी स्त्रियों सहित विष्णु, शिव और अंबिका आदि उस स्थान पर आए।

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मेरे पिता शिलाद ने मुझे तीन नेत्र वाला, जटा मुकुट धारी बालक देख बड़ी प्रसन्नता प्रकट की। शिलाद ने सभी को प्रणाम किया और शंकर जी से बोले कि सुरेश्वर आपने मुझे आनंद दिया है इसलिए इस बालक का नाम नंदी होगा।
नंदीश्वर बोले- मुनि जब मैं सात वर्ष का हुआ तो मित्रा वरुण मुझे देखकर मेरे पिता से बोले कि यह तुम्हारा बालक इतनी छोटी अवस्था में समस्त शास्त्रों को कैसे पढ़ लिया ? परंतु दुख की बात यह है कि इस बालक की आयु मात्र एक वर्ष और शेष बची है।

ऐसा सुनते ही शिलाद मारे दुख के रोने लगे, तब नंदी शिव चरणों का ध्यान करते हुए पिता शिलाद से बोले- आप इतने दुखी क्यों हैं ? उसे वर्णन कीजिए ? पिता ने कहा पुत्र मैं तुम्हारी अल्पायु से दुखी हूं। नन्दी बोले- मुझे देव, दानव, यक्ष, काल तथा मनुष्य कोई भी नहीं मार सकता । पिता जी मैं आपकी शपथ खाता हूं कि यह मेरा कहना सत्य है ।
पिताजी बोले तुम्हारे कौन प्रभु हैं ऐसे जिसकी तपस्या से तुम मेरे इस कठिन दुख को दूर करोगे ? पुत्र ने कहा पिताजी मैं तप से केवल शंकर जी के भजन से ही मैं मृत्यु को जीतूंगा इसमें संदेह नहीं है । ऐसा कह अपने पिता को प्रणाम और प्रदक्षिणा कर मैं नंदी एक निर्जन वन की ओर चला गया। वहाँ जाकर में कठिन तप करने लगा तो पार्वती सहित शिव जी ने वहां प्रकट हो मुझसे कहा- हे शिलाद पुत्र तुम्हारे मन में जो हो वह वर मांगो ?

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तब मैं शिवजी की स्तुति करने लगा तो शंकरजी ने दोनों हाथों से मुझे पकड़कर स्पर्श किया और बोले वत्स नंदी तुम्हारे लिए मृत्यु का भय कैसा ? उन दोनों ब्राह्मणों को तो मैंने ही भेजा था। तुम तो मेरे समान हो अजर अमर और मेरे प्रिय हो। ऐसा बोल शिवजी ने मेरे कंठ में अपने सिर की एक माला खोलकर बांध दी, उस माला को पहनते ही मानो मैं तीन नेत्र और दस भुजाओं वाला दूसरा शिव हो गया।

फिर वृषभध्वज शिव ने अपनी जटाओं से निर्मल जल ग्रहण कर नंदी हो ऐसा कहकर मेरे ऊपर छिड़का जिससे- जटोरक, त्रिस्तोता, वृषभध्वनि, स्पणीदका और जम्बू नदी यह पांच नदियां बह चली। इस स्थान का पंचनंद नाम पड़ा जो अब जप्तेश्वर के समीप वर्तमान में है। जो वहां पंचनद पर जाकर जप्तेश्वर शिव जी की पूजा करता है वह निसंदेह शिवजी की मुक्ति पाता है।

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फिर शिव जी ने पार्वती से कहा- कि अब मैं नंदी को गणेश्वर पद पर अभिषिक्त करता हूं, तुम्हारी क्या संम्मत्ति है ? इस पर पार्वती जी ने कहा-
दातुमर्हसि देवेश नन्दिने परमेश्वर।
महाप्रियतमो नाथ शैलादिस्तनयो मम।। श-7-22
परमेश्वर इस नंदी को आप मुझे दीजिए नाथ यह शिलाद पुत्र आज से मेरा परम पुत्र हुआ। इसके बाद शिवजी अपने समस्त गणों को बुलाकर कहा- यह नंदीश्वर मेरा पुत्र है, इसे मैंने सब गणों का अधिपति बनाया है।
आज से तुम सबका स्वामी हुआ। इसके बाद सब बांधवों और कुटुंबियों सहित मुझे साथ ले शिवजी देवी सहित बैल पर चढ़कर अपने धाम को चले।
बोलिए नंदीकेश्वर भगवान की जय

( भैरव अवतार )
नंदीकेश्वर बोले- सनत कुमार जी भैरव जी परमात्मा शिव के पूर्ण रूप हैं लेकिन-
भैरवः पूर्णरूपो हि शङ्करस्य परात्मनः।
मूढास्तं वै न जानन्ति मोहिताः शिवमायया।। श-8-2
शिवजी की माया से मोहित मूर्ख लोग उन्हें नहीं जान पाते हैं । एक समय सुमेरु पर्वत पर बैठे हुए ब्रह्मा जी के पास सब देवताओं ने जाकर उन्हें नमस्कार कर हाथ जोड़कर यह पूंछा कि देवों के देव-
तत्त्वतो वद चास्मभ्यं किमेकं तत्त्वमव्ययम्।
अविनाशी तत्व क्या है ? इसे आप यथार्थ बतलाइए ? तब शंकर जी की माया से मोहित ब्रह्मा उस तत्व को ना जानते हुए भी उसका भाव कहने लगे- मुझसे बढ़कर कोई देवता नहीं है।
प्रवर्तको हि जगतामह मेव निवर्तकः।
मैं ही सारे जगत का प्रवर्तक संवर्तक तथा निवर्तक हूँ। देवताओं मुझसे बड़ा कोई नहीं है । उस समय मुनि मंडली के साथ विष्णु जी भी वहां से आ गए और ब्रह्मा जी से बोले- यह तुम क्या बोल रहे हो? मेरी आज्ञा से ही तुम सृष्टि के रचयिता हो और इस प्रकार अपने प्रभुत्व के लिए दोनों में विवाद हो गया।
तब इसका प्रमाण वेदों से पूछा गया तो चारों वेदों ने कहा अविनाशी तत्व तो केवल सदाशिव ही हैं तब वेदों के कथन को सुन ब्रह्मा विष्णु कहने लगे- वेदों तुम्हारा यह अज्ञान ही है! नंग धड़ंग व चिता की भस्म लगाने वाला परब्रह्म कैसे हो सकता है ? ओंकार के समझाने पर भी जब उनके समझ में बात नहीं आई तब दोनों के मध्य में विशाल ज्योतिर्लिंग प्रकट हो गया। उससे ब्रह्मा का पंचम सिर जलने लगा।

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इतने में त्रिशूल धारी नील लोहित तत्क्षण वहां प्रकट हो गए तो ब्रह्मा उनसे बोले- नीललोहित भय मत करो मैं तुमको जानता हूं कि तुम पहले मेरे सिर से प्रकट हुए थे । रुदन करने के कारण मैंने तुम्हारा नाम रुद्र रखा था। हे पुत्र आओ मेरी शरण में, मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा। तब शिवजी को बड़ा क्रोध आया उन्होंने प्रलय कर देना चाहा और अपने क्रोध से उत्पन्न भैरव नामक पुरुष से कहा- तुम ब्रह्मा पर शासन करो फिर संसार का पालन करो।
तुम साक्षात काल के समान हो इस कारण तुम काल भैरव हो। मेरी मुक्ति पूरी काशी सब पुरियों में बड़ी है, मैं तुमको सर्वदा के लिए उसका आधिपत्य प्रदान करता हूं। शिवजी से ऐसा वर ग्रहण कर काल भैरव ने तत्काल ही अपनी बांयी अंगुलियों के नखाग्र से ब्रह्मा का पांचवा सिर काट दिया।

भयभीत ब्रह्मा शतरुद्रिय का पाठ करने लगे। ब्रह्मा विष्णु को ज्ञान हो गया अब दोनों ने शिवजी को परब्रह्म परमात्मा समझा और उनका अहंकार दूर हो गया। फिर सदाशिव ने दोनों को अभयदान दिया।

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