F शिव पुराण श्लोक अर्थ सहित PDF 69 - bhagwat kathanak
शिव पुराण श्लोक अर्थ सहित PDF 69

bhagwat katha sikhe

शिव पुराण श्लोक अर्थ सहित PDF 69

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 शिव पुराण श्लोक अर्थ सहित PDF

   शिव पुराण कथा भाग-69  

शिव पुराण श्लोक अर्थ सहित PDF

महादेव बोले- हे भैरव यह ब्रह्मा विष्णु तुम्हारे मान्य हैं, तुम ब्रह्मा के कटे हुए इस कपाल को धारण करो और ब्रहम हत्या को दूर करने के लिए संसार के समक्ष व्रत प्रदर्शित करो, कपाल व्रत धारण कर तुम निरंतर भिक्षा चरण करो। इस प्रकार काल भैरव से कह उनके देखते ही देखते ब्रह्म हत्या नामक कन्या को उत्पन्न कर तेजो रूप शिव जी ने उससे कहा- तुम उग्र रूप धारण करने वाले इन भयंकर काल भैरव के पीछे पीछे जब तक चलो जब तक ये वाराणसी पूरी तक नहीं जाते।

उनके वाराणसी पूरी जाते ही तुम मुक्त हो जाओगी, वाराणसी पूरी को छोड़कर सर्वत्र तुम्हारा प्रवेश होगा। इधर जैसे ही भैरव जी काशी को आये वैसे ही ब्रहम हत्या हाहाकार कर पाताल में समा गई और उनके हांथ से जो कपाल चिपका था वह भी अपने आप गिर गया।

इस कारण काशी सदा सेवनीय है । जो मनुष्य कपाल मोचन का स्मरण करता है, उसके उस जन्म तथा दूसरे जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं । इस तीर्थ में जाकर सविधि पिंड दान और देव - पितृ तर्पण करने से मनुष्य ब्रह्महत्या के पास से छूट जाता है और जो नित्य भैरव जी के दर्शन करता है, वह अपनी हजारों जन्मों के पाप को नष्ट करता है।
वाराणस्यां मुषित्वा यो भैरवं व भजेन्नरः।
तस्य पापानि वर्ध्दन्ते शुक्लपक्षे यथा शशी।। श-9-69
जो मनुष्य वाराणसी में रहकर भी काल भैरव का भजन नहीं करते उसके पास शुक्ल पक्ष के चंद्रमा के समान बढ़ते हैं। जो इस भैरव उत्पत्ति के आख्यान को सुनता है या पढ़ता है वह प्राणी संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है।
बोलिए काल भैरव भगवान की जय

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( नृसिंह लीला वर्णन )
नंदीकेश्वर बोले- मुने शार्दुल नामक शिव का अवतार सुनो। जब हिरण्यकशिपु ब्रह्माजी द्वारा वरदान पाकर मतवाला हो देवता ऋषि-मुनियों को सताने लगा और उसने विष्णु भक्त अपने पुत्र प्रहलाद से द्वेष किया। तब भगवान नृसिंह खम्भ से प्रकट हो उस दैत्य को मार डाला लेकिन फिर भी जब उन नृसिंह प्रभु का कोप शांत ना हुआ।
संसार व्याकुल हो गया कि अब क्या होने वाला है ? उनकी शांति के लिए देवताओं ने प्रहलाद जी को उनके पास भेजा, प्रहलाद जाकर उनकी स्तुति करने लगे- तब प्रसन्न हो कृपानिधि नृसिंह जी ने प्रहलाद को अपने हृदय से लगाया । उनका क्रोध कुछ शांत हुआ परंतु अब भी उनमें पूर्णतया शांति नहीं आयी।

तब सब देवता शंकर भगवान की स्तुति करी कि अब आप ही नृसिंह भगवान का क्रोध शांत करिए। भक्तवत्सल शंकर जी ने देवताओं को अभय कर कहा तुम लोग निजी स्थान को जाओ मैं उन्हें शांत करूंगा। वह सब देवता आनंद पूर्वक शिवजी का स्मरण करते हुए चले गए।
तब शिव की प्रेरणा से वीरभद्र जाकर नृसिंह को समझाते हैं और जब नृसिंह भगवान को शिव की महिमा का ज्ञात हुआ तब शांत हुए शिवजी ने कहा- नृसिंह जी आप मेरे भक्तों के वरदाता और भक्तों से नमस्कृत हुआ करेंगे।
बोलिए नृसिंह भगवान की जय

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( विश्वानर को वरदान )

एक बार शशिशेखर ने विश्वानर का अवतार लिया था।
नर्मदायास्तटे रम्ये पुरे नर्मपुरे पुरा।
पुरारिभक्तः पुण्यात्मा भवद्विश्वानरो मुनिः।। श-13-3
पूर्व काल में नर्मदा तट पर एक नर्मपुर नामक एक नगर था जिसमें शिवभक्त विश्वानर नामक एक मुनि रहते थे। वह संपूर्ण शास्त्रों के ज्ञाता थे। शुचिष्मति नामक ब्राह्मण कन्या से उनका विवाह हुआ। उनकी पतिव्रता स्त्री ने उनकी बड़ी सेवा की तो वर मांगने को कहा- पत्नी ने कहा यदि आप प्रशन्न हैं तो मुझे महादेव जी की समान दो पुत्र दो।

तब पत्नी के ऐसे वचन सुन समाधि में स्थित हो विचार करने लगे कितना दुर्लभ वर मांगा है । लेकिन सब शिवजी की इच्छा से ही होता है , ऐसा विचार कर वह पत्नी से बोल तप करने के लिए चल दिए। काशी में पहुंच मणिकर्णिका घाट पर शिव जी के दर्शन किए और मुनियों द्वारा विधान प्राप्त कर वह शिवपूजन में तत्पर हुए।
उन्होंने कई कठिन व्रतों को करते हुए शिव पूजन किया, तब वह तपोधन लिंग से आठ वर्ष का एक सुंदर बालक प्रगट हुआ। सुंदर पीली जटा और मुकुट लगाए था, तब उस बालक को देख मुनि के हर्ष का अन्त न रहा। उन्होंने उस बालक को बार-बार नमस्कार किया।

तब वह बालक प्रसन्न हो विश्वानर ब्राह्मण से बोला- मैं प्रसन्न हूं जो चाहिए वह वर मुझसे मांग लो। तो वह ब्राह्मण बोले प्रभु आपको सब ज्ञात है सो जो आपकी इच्छा हो वही करिए । तब बालक ने कहा- विश्वानर तुमने जो सुचिष्मति से पुत्र होने का विचार किया है वह शीघ्र पूरा होगा । मैं स्वयं ही तुम्हारी स्त्री से पुत्र रूप में प्रकट होऊंगा और वहां मेरा नाम गृहपति होगा।
अभिलाषाष्टकं पुण्यं स्तोत्रं मे तत्त्वयेरितम्।
अब्दत्रिकाल पठनात्कामदं शिव सन्निधौ।। श-13-58
आपके द्वारा कहा गया यह पवित्र अभिलाष्टक स्तोत्र एक वर्ष तक तीनों काल में शिव के सानिध्य में पढ़के रहने पर मनुष्यों को संपूर्ण कामनाओं को देने वाला होगा। यह वन्ध्या के भी पुत्र प्रदान करने वाला स्त्रोत्र है। ऐसा कह- शिव अंतर्ध्यान हो गए और विश्वानर अपने घर को चला गया।
बोलिए आशुतोष भगवान की जय

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( गृहपति अवतार )
समय आने पर वह विश्वानर की पत्नी से चंद्रमा के समान मुख वाला सुंदर पुत्र हुआ। बड़ा भारी उत्सव हुआ, सभी देवतागण आए स्वयं ब्रह्मा जात कर्म संस्कार कराए और नाम गृहपति रखा। पांचवें वर्ष में उनका यगोपवित हो गया, जब वह बालक नव वर्ष का हुआ तो नारद जी आकर बताएं और सब भाग्य बहुत अच्छा है किंतु बारहवें वर्ष बिजली और अग्नि से भय है इसे।

तब विश्वानर बहुत दुखी हो गए और उनकी पत्नी भी, तब उनका पुत्र ग्रहपति उनको सांत्वना दिया कि आप चिंता ना करें , मैं मृत्यु विजयी शिव मंत्र को जपकर मृत्यु से अपनी रक्षा कर लूंगा। फिर वह ग्रहपति माता-पिता को प्रणाम कर काशी में आ गया और सविधि शिव पूजन में तत्पर हो गया।
नारद जी के वचनों को सत्य करने के लिए वज्रधारी इंद्र उसके सामने आए और बोले तुमको जो इच्छा हो वर मांगो ? इंद्र के वचन सुनकर मुनि पुत्र ने कहा मैं आपसे वर नहीं चाहता । मुझे तो शिवजी वर देंगे! इंद्र ने कहा मुझसे बढ़कर शंकर नहीं है और क्रोधित हो अपने वज्र से बालक को डराया। तब बालक बिजली से व्याप्त वज्र को देख भय से व्याकुल हो मूर्छित होते देख पार्वती पति शिवजी तत्काल वहां प्रकट हो गए और अपने हाथों से स्पर्श कर बालक को सजीव किया और कहा- उठो पुत्र उठो उठो ।

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ग्रहपति मानो सो के उठ शिव जी को देखने लगा- उनके अद्भुत रूप ने उसे मुग्ध कर दिया वह हर्षाश्रु अवरुद्ध कण्ठ द्वारा गदगद वाणी तथा रोमांचित शरीर से महादेव जी की स्तुति करने लगा। शिवजी हंसने लगे फिर बोले- यह तुम्हारी परीक्षा थी मैंने ही इंद्र को भेजा था आप डरो मत! मेरे भक्तों को इंद्र तथा काल वज्र कोई भी नहीं मार सकता।
तुमने जो मेरा लिंग स्थापित किया है इसके तेज के आगे कोई नहीं ठहर सकता इससे इसका नाम अग्नीस्वर हुआ ।यह अग्नीस्वर महादेव भक्तों को बिजली तथा अग्नि से बजाते रहेंगे। ऐसा कहकर शिवजी ने उसके भाई बंधुओं तथा पिता को बुलाकर उस बालक को अग्नि कोण के दिक्पाल पद पर अभिषिक्त कर स्वयं उस लिंग में प्रवेश किया।
बोलिए अग्निस्वर महादेव की जय

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( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

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