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शिव पुराण हिंदी में shiv puran hindi men -50

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शिव पुराण हिंदी में shiv puran hindi men -50

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 शिव पुराण हिंदी में shiv puran hindi men

   शिव पुराण कथा भाग-50  

shiv puran pdf शिव पुराण हिंदी में

हे शिवे जो स्त्री अपने स्वामी की परमेश्वर के समान सेवा करती है, वह यहां अनेक भोगों को भोहकर अंत में पति के साथ उत्तम गति को प्राप्त होती है।
एकइ धर्म एक व्रत नेमा। कायं बचन मन पति पद प्रेमा।।
पार्वती जी पतिव्रता स्त्री पति के भोजन कर चुकने के बाद भोजन करें, पति के सो जान के बाद सोए ,क्रोध से एवं प्रसन्नता से पति का नाम मुख से ना बोले, कभी पति क्रोध में आकर कुछ मार भी दे तो सहन करे , उत्तर में मरो या मारो ऐसा शब्द ना कहें।

पति के बुलाने पर सभी काम छोड़कर पति के पास चली जाए, उसकी आज्ञा का बड़े प्रेम से पालन करें, पतिव्रता कभी द्वार पर ना खड़ी हो ,किसी दूसरे के घर जाकर बिना कारण ना बैठे, पति की आज्ञा के बिना तीर्थ यात्रा, खेल तमाशे किसी स्थान पर ना जाए।

किसी चीज के लिए पति से झगड़े नहीं, पति की आज्ञा के बिना कोई उपवास व्रत आदि ना करें । सास ससुर जेठ जेठानी आदि बड़ों के सामने कभी ऊंचा ना बोले , ना हंसे । ब्राह्मणी ने कहा-
त्वदग्रे कथने नानेन किं देवि प्रयोजनम्।
तथापि कथितं मेद्य जगदाचारतः शिवे।। 54-82
हे देवी तुम्हारे आगे इस कथन से क्या प्रयोजन फिर भी हे शिवे संसार के आचरण के अनुसार मैंने तुम्हें यह सब कहा है। इस प्रकार कहकर वह द्विज पत्नी भगवती को प्रणाम कर मौन हो गई और उस उपदेश के श्रवण से शंकर प्रिया शिवा अत्यंत प्रसन्न चित्त हो गई।

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इसके बाद उस ब्राम्हण की पत्नी ने मैना से श्री पार्वती जी को भेज देने के लिए कहा । यह सुनकर प्रेम बिह्वल होकर मैना पार्वती जी को हृदय से लगा धैर्य के साथ विदा करने लगी किंतु धैर्य का बांध टूट गया और ऊंचे स्वर में रुदन करने लगी । उसी प्रकार अन्य सभी स्त्रियाँ भी अचेतन हो गई ।
स्वयं रुरोद योगीशो गच्छन्कोन्यः परः प्रभुः।
विदा होते हुए स्वयं योगीश्वर शिव भी रो पड़े ,तब दूसरों की क्या बात कहें । वहां के पशु-पक्षी भी भगवती को विदा होते ना देख सके वह सब भी रुदन करने लग गए ।

उस समय हिमालय भी पुत्री को हृदय से लगा कर रोने लगे- हे पुत्री इस घर को शून्य करके तुम कहां जा रही हो । इस प्रकार कह कहकर बारंबार रोने लगे । तब ब्राह्मणों के साथ उनके ज्ञानी तथा श्रेष्ठ पुरोहित ने उन पर कृपा कर उन्हें समझाया ।
महामाया पार्वती ने विदाई के समय माता-पिता तथा गुरुजनों को भक्ति पूर्वक प्रणाम किया और वे लोकाचार बस जोर-जोर रोने लगी। पार्वती के रोने से वहां उपस्थित सभी स्त्रियां, माता मैना ,सगे संबंधी तथा अन्य भी रोने लगे।

तब ब्राह्मणों ने उनको धैर्य दिया और यात्रा का शुभ लग्न बताते हुए कहा इस समय रोना अच्छा नहीं। तब हिमाचल ने मैना को धैर्य बंधाया ,श्री पार्वती जी के लिए पालकी मंगा कर उस पर उन्हें बैठा दिया । सब ने पार्वती जी को शुभ आशीर्वाद दिए ,श्री पार्वती जी के चलते समय हिमाचल ने श्री महादेव जी को प्रणाम किया और विष्णु आदि देवताओं से गले लगकर मिले।

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परम बुद्धिमान हिमालय अपने पुत्रों के साथ प्रेम विभोर होकर पालकी के साथ साथ चले और वहां पहुंचे जहां सभी देवता ठहरे थे, और सभी लोगों ने भक्ति से सदाशिव को प्रणाम किया और अपने नगर को चले आए ।

यहां पार्वती जी के साथ महादेव जब कैलाश पर पहुंचे तो सभी लोगों ने बड़ा उत्सव किया और सभी देवताओं ने भोजन ग्रहण किया। उसके बाद सभी देवताओं ने अपनी स्त्रियों तथा गणों के साथ चंद्रशेखर को प्रणाम किया और विवाह की प्रशंसा करते हुए अपने अपने स्थान को चले गए।
ब्रह्मा जी बोले- नारद जी यह भगवान शंकर के शुभ विवाह का वर्णन है। हर्ष बढ़ाता है और शोक का नाश करता है।
पार्वती खंड विश्राम

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( रुद्र संहिता- कुमारखंड )
शिव पार्वती बिहार

वन्दे वन्दनतुष्ट मानसमति प्रेमप्रियं प्रेमदं
पूर्णं पूर्णकरं प्रपूर्णनिखिलैश्वर्यैकवासं शिवम्।
सत्यं सत्यमयं त्रिसत्य विभवं सत्यप्रियं सत्यदं
विष्णु ब्रह्मनुतं स्वकीय कृपयो पात्ताकृतिं शंकरम्।। शि-रु-कु-1-1

वंदना करने से जिनका मन प्रसन्न हो जाता है, जिन्हें प्रेम अत्यंत प्रिय है, जो सबको प्रेम प्रदान करने वाले हैं ,स्वयंपूर्ण है दूसरों के अभिलाषा को भी पूर्ण करते हैं ,संपूर्ण संसिद्धि ऐश्वर्य के एक मात्र स्थान हैं। स्वयं सत्य स्वरूप हैं, सत्यमय हैं, जिनका सत्यात्मक ऐश्वर्य त्रिकाला बाधित है, जो सत्य प्रिय एवं सबको सत्य प्रदान करने वाले हैं । ब्रह्मा विष्णु जिनकी वंदना करते हैं और जो अपनी कृपा से ही विग्रह धारण करते हैं ऐसे नित्य शिव की हम वंदना करते हैं।

नारद जी बोले- हे ब्रह्मन लोक कल्याणकारी शंकर जी ने पार्वती से विवाह करने के पश्चात-

गत्वा स्वपर्वतं ब्रह्मन् किमकार्षीद्धि तद्वद।
कैलाश जाकर क्या किया ? उसको सुनाइए। जिस पुत्रके निमित्त आत्माराम होते हुए भी उन्होंने पार्वती से विवाह किया, उन परमात्मा शिव को किस प्रकार पुत्र हुआ । देवताओं का कल्याण करने वाले हे ब्रह्मन- तारकासुर का वध किस प्रकार हुआ ? मेरे ऊपर कृपा करके यह सारी बात विस्तार से कहिए।

सूतजी कहते हैं- शौनकादि ऋषियों से कि नारदजी के ऐसे प्रश्न करने पर ब्रह्माजी बोले- हे नारद मैं आपके द्वारा पूछे गए चरित्रों को कहता हूं।
श्रूयतां कथयाम्यद्य कथां पापप्रणाशिनीम्।
यां श्रुत्वा सर्वपापेभ्यो मुच्यते मानवो ध्रुवम्।। 1-7
मैं जिस कथा को कह रहा हूं ,उसे सुनिए वह कथा समस्त पापों को विनष्ट करने वाली है। जिसे सुनकर निश्चय ही मनुष्य सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है।
जब पार्वती के साथ शिव जी विवाह कर कैलाश पर आए तो भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर अनेकों उत्सव मनाए और देवता प्रसन्न हो अपने लोक को चले गए।

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इसके बाद शंकर भगवान श्री पार्वती जी को लेकर अत्यंत मनोहर निर्जन स्थान में चले गए । वहां देवताओं के सहस्त्रों वर्षों तक बिहार लीला करते रहे । उस बहुत समय को भगवान ने एक क्षण के समान व्यतीत कर दिया। यह देख समस्त इंद्र आदि देवताओं ने सुमेरु पर्वत पर एक गोष्ठी की और विचार किया कि योगीश्वर शंकर ने अभी तक कोई पुत्र उत्पन्न नहीं किया , अब वे किस लिए विलंब कर रहे हैं।

तब ब्रह्माजी को अग्रणी बना कर सब देवता विष्णु जी के पास गए और उनसे अपने मन की बात कही और निवेदन किया कि भगवान अभी तक कोई पुत्र महादेव से नहीं हुआ है । भगवान शिव हजारों वर्षों से रति लीला से विरत नहीं होते हैं ।

तब विष्णु जी ने कहा वे स्वयं अपनी इच्छा से ही विरत हो जाएंगे, जो मनुष्य किसी स्त्री पुरुष का वियोग कराता है उसे जन्म जन्म में स्त्री पुरुष का वियोग सहना पड़ता है। हे देवताओं एक हजार दिव्य वर्ष पूर्ण हो जाने पर ,आप लोग वहां जाकर इस प्रकार उपाय करें, जिससे भगवान शंकर का तेज पृथ्वी पर गिरे ।

उसी तेज से प्रभु शंकर का स्कन्द नामक पुत्र होगा। इस प्रकार कहकर लक्ष्मीपति भगवान विष्णु शीघ्र ही अपने अंतःपुर में चले गए और सभी देवता भी अपने-अपने स्थान में चले गए।

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