shiv puran katha in hindi lyrics
( जालंधर की उत्पत्ति )
शिवजी ने जो अपना तेज समुद्र में डाल दिया था वह एक बालक का रूप धारण कर
गंगासागर पर बैठकर अत्यंत उच्च स्वर में भय देने वाला रुदन करने लगा। उसके रुदन से
संसार व्याकुल हो गया समस्त देवता और मुनि व्याकुल होकर लोकपितामह ब्रह्मा जी की
शरण में गए। सब ने मिलकर ब्रह्मा जी को प्रणाम किया और स्तुति की फिर कहा पितामह
यह तो बड़ा भयंकर समय उपस्थित हुआ है? इसका शीघ्र नाश
कीजिए ।
तब ब्रह्माजी सत्यलोक से उतरकर समुद्र तट पर उस बालक को देखने आए ,समुद्र ने ब्रह्मा जी को आते देख उन्हें प्रणाम किया और बालक को ब्रह्माजी
के गोद में दे दिया। तब ब्रह्मा ने पूछा सागर यह बालक किसका है ? समुद्र में ने विनम्र शब्दों में कहा भगवन यह तो मैं नहीं जानता किंतु
मुझे इतना पता है कि यह गंगासागर के संगम में प्रगट हुआ है।
आप अब इस बालक के जात कर्मादिक संस्कार कीजिए। सागर ऐसा बोल ही रहा
था कि वह बालक इतना जोर से ब्रह्मा जी का गला पकड़ के दबाया कि उससे पीड़ित हो
उनके नेत्रों से आंसू टपकने लगे।
shiv puran katha in hindi lyrics
किसी प्रकार ब्रह्मा जी खुद को छुड़ाया और सागर से कहने लगे मैं
तुम्हारे पुत्र का जातक फल कहता हूं सुनो-
नेत्राभ्यां विधृतं यस्मादनेनैव जलं मम।
तस्माज्जलं धरेतीह ख्यातो नाम्ना भवत्वसौ।। रु-यु-14-24
इसने मेरे नेत्रों से निकले हुए जल को धारण किया है इसलिए जालंधर इस नाम से
प्रसिद्ध होगा। यह सर्व शास्त्रार्थवेता, महा पराक्रमी,
महा धीरजवान, महा योद्धा और कार्तिकेय के समान
सर्वत्र विजई होगा।
यह बालक सब दैत्यों का अधिपति होगा और विष्णु को जीतने वाला होगा
तथा यह कहीं भी ना हारेगा एक शंकर जी को छोड़कर यह सब से अवध्य होगा । जहां से
उत्पन्न हुआ है फिर वहीं जाएगा। इसकी स्त्री बड़ी पतिव्रता सौभाग्यशालिनी और परम
मनोहर मिस्ट भासणी होगी।
सागर से ऐसा कह कर दैत्य गुरु शुक्राचार्य को बुलाकर ब्रह्मा जी ने
उस बालक का राज्याभिषेक करा कर दैत्यों का राजा बना दिया और स्वयं अंतर्ध्यान हो
गए। फिर उस बालक को देख समुद्र बड़ा प्रसन्न हुआ और अपने साथ लेकर घर को गया। फिर
कालनेमि असुर की वृंदा नमक कन्या से विवाह करा दिया इसके विवाह में बड़ा उत्सव
हुआ। स्त्री सहित जालंधर असुरों का राज्य करने लगा।
( देव जालंधर युद्ध )
एक समय जब समुद्र का पुत्र जालंधर अपनी स्त्री सहित असुरों से
सम्मानित हो सभा में बैठा था, तो परम कांति मान शुक्राचार्य
जी वहां आ पहुंचे जिनके तेज से सब दिशायें प्रकाशित हो रही थी। तब गुरुजी को आया
देख असुरों सहित सागर पुत्र ने उठकर बड़े आदर से उन्हें प्रणाम किया।
तेजस्वी शुक्राचार्य ने सबको आशीर्वाद दिया, जब
वह सुख पूर्वक आसन में बैठ गए तो सागर पुत्र नम्रता से यह प्रश्न किया कि गुरुजी
राहु का सिर किसने काटा ? आप हमें बताइए?
shiv puran katha in hindi lyrics
तब शुक्राचार्य ने हिरण्यकश्यप और उसके धर्मात्मा पुत्र का परिचय
देकर देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन की संक्षेप में जब कथा कहकर यह बतलाया
कि जब समुद्र से अमृत निकला तो उसे देव रूप से राहु पीने चला इस पर इंद्र के
पक्षपाती भगवान विष्णु ने ही राहु का सिर काटा है ।
यह सुनते जालंधर के नेत्र लाल हो गए उसने घस्मर दूत को बुलाकर गुरु
का कहा वृतांत कहकर यह आज्ञा दी कि तुम इंद्रपुरी में जाकर उसे मेरी शरण में लाओ।
घस्मर जालंधर का निपुण दूत था वह शीघ्र ही सुधर्मा सभा में जा पहुंचा और कहने लगा-
मैं वीर जालंधर का घस्मर नामक दूत हूँ। उन्होंने जो कहा है उसे सुनिए- देवधाम
तुमने सागर को क्यूं मथा ? और मेरे पिता के सब रत्नों को
क्यों चुरा लिया ?
अगर अपना भला चाहो तो सब रत्नों सहित देवताओं के साथ मेरी शरण में आ
जाओ अन्यथा अच्छा नहीं होगा। इंद्र बहुत विस्मित हुआ और कहने लगा पहले मेरे भय से
सागर ने सब पर्वतों को अपने कुक्षि में क्यों स्थान दिया ? और
उसने मेरे सत्रु दैत्यों की क्यों रक्षा की? इसी कारण मैंने
उसके सब रत्न हरण किए हैं ।
इंद्र की ऐसी बात सुनकर वह दूध शीघ्र ही जालंधर के पास गया और सब
बातें सुनाई, उसे सुनते ही वह दैत्य क्रोधित हो गया और उसके
होंठ फड़फड़ाने लगे और वह देवताओं को जीतने के लिए उद्योग आरंभ किया।
फिर तो सब दिशाओं पाताल से करोड़ों करोड़ों दैत्य उसके पास आने लगे।
शुंभ निशुंभ आदि करोडों सेनापतियों के साथ जालंधर इंद्र से युद्ध करने लगा। शीघ्र
ही इंद्र के नंदनवन में अपनी सेना उतार दी। वीरों की शंख ध्वनि से इन्द्रपुरी गूंज
उठी ,अमरावती छोड़ देवता उससे युद्ध करने चले।
shiv puran katha in hindi lyrics
भयानक मार काट हुई, असुरों के गुरु
शुक्राचार्य अपनी मृत संजीवनी विद्या से और देवगुरु बृहस्पति द्रोणागिरी से औषधि
ला ला कर जिलाते रहे । इस पर जालंधर ने क्रुद्ध होकर कहा कि मेरे हाथ से मरे देवता
जी कैसे जाते हैं ? जिलाने वाली विद्या तो गुरुदेव आपके पास
ही है ? फिर यह बात कैसी है ?
इस पर शुक्राचार्य देवगुरु द्रोण गिरी से औषधि लाकर देवताओं को
जिलाने की बात कह दी । यह सुन जालंधर और भी क्रुद्ध हो गया और द्रोणगिरी पर्वत को
उखाड़ कर फेंक दिया । फिर देवताओं का संघार करने लगा। गुरु बृहस्पति इधर जब औषधि
लेने गए तो द्रोणाचल को उखड़ा पाया, वह भयभीत हो देवताओं के
पास आए और कहा युद्ध बंद कर दो।
जालंधर को अब नहीं जीत सकोगे। पहले इंद्र ने शिवजी का अपमान किया था
यह सुन देवता युद्ध में जय की आशा त्याग कर इधर-उधर भाग गए। सिंधुसुत निर्भय होकर
अमरावती में घुस गया। तब जालंधर को अपनी खोज में आते देख इन्द्रादि देवता भी वहां
से भयभीत होकर भाग चले।
भागते भागते वे वैकुण्ठ में विष्णु जी के पास पहुंचे ,देवताओं ने अपनी रक्षा के लिए उनकी बड़ी स्तुति की । करुणा सागर ने उनसे
कहा कि तुम भय त्याग दो। मैं युद्ध में शीघ्र जालंधर को देखता हूं।
ऐसा कहते ही भगवान गरुड़ पर जा बैठे, तब
देवताओं सहित उन्हें युद्ध क्षेत्र की ओर प्रणय करते देख समुद्र तनया लक्ष्मी के
नेत्रों में आंसू आ गए और उन्होंने कहा- हे नाथ यदि मैं सर्वदा आपकी प्रिय और
भक्ता हूं तो मेरा भाई आपके द्वारा युद्ध में कैसे मारा जाना चाहिए ?
shiv puran katha in hindi lyrics
हंसकर विष्णु जी ने कहा- देवी युद्ध में तो मैं जाऊंगा लेकिन-
रुद्रांश संभवत्वाच्च ब्रह्मणो वचनादपि।
प्रीत्या च तव नैवायं मम वध्यो जलंधरः।। रु-यु-16-28
रुद्रांश से उसके उत्पन्न होने ,ब्रह्मा जी को
वचन देने तथा तुम्हारी प्रीति के कारण इस जलंधर का वध नहीं करूंगा। ऐसा कह शंख,
चक्र, गदा, पद्मधारी
भगवान विष्णु गरुड़ पर चढ़े हुए, शीघ्र ही युद्ध के उस स्थान
पर जा पहुंचे जहां जालंधर विद्यमान था।
विष्णु तेज से दर्पित देवता सिहंनाद करने लगे। फिर तो अरुण के अनुज
गरुड़ के पंखो की प्रबल वायु से पीड़ित हो दैत्य इस प्रकार घूमने लगे जैसे आंधी से
बादल आकाश में घूमते हैं ।
अब अपने वीर दैत्यों को पीड़ित होते देख जालंधर ने क्रोधित हो
विष्णु को कठोर वचन कहकर उन पर आक्रमण कर दिया ।
( विष्णु जालंधर युद्ध )
दैत्यों के तीक्ष्ण प्रहारों से व्याकुल देवता इधर-उधर भागने
लगे ,तब इन्द्रादिकों को इस प्रकार भयभीत हुआ देख गरुण पर
चढ़े भगवान युद्ध में आगे बढ़े। उन्होंने अपना सांर्ग नामक धनुष उठा कर बड़े जोरों
का टंकार किया। पल मात्र में भगवान ने हजारों दैत्यों का सिर काट गिराया। यह देखकर
जालंधर के क्रोध की सीमा ना रही फिर तो दोनों में महासंग्राम हुआ।
विष्णु जी ने अपने वेग से उस देैत्य की ध्वजा, छत्र और बांण काट डाले तथा उसने अपनी प्रचंड गदा उठा गरुण मस्तक पर दे
मारी, जिससे गरुण पृथ्वी पर गिर पड़ा। साथ ही क्रोध से उसने
अपने होंठ फडफढ़ाते हुए विष्णु जी के छाती में भी एक तीक्ष्ण बांण मारा।
उसके उत्तर में विष्णु जी ने उसकी गदा काट दी और अपने सारंग धनुष पर
बांण चढ़ा चढ़ाकर उसको बेधना आरंभ कर दिया । फिर दोनों में गदा व बाहु युद्ध
प्रारंभ हो गया, बहुत समय तक भगवान विष्णु उससे युद्ध करते
रहे।