F shiv puran katha in hindi lyrics 60 - bhagwat kathanak
shiv puran katha in hindi lyrics 60

bhagwat katha sikhe

shiv puran katha in hindi lyrics 60

shiv puran katha in hindi lyrics 60

 shiv puran katha in hindi lyrics

   शिव पुराण कथा भाग-60  

shiv puran katha in hindi lyrics

इससे भगवान को बड़ा आश्चर्य हुआ वह दैत्यराज से मेघवाणी में बोले- रण दुर्मद दैत्य श्रेष्ठ तू धन्य है, जो इस महायुद्ध में बड़े-बड़े आयुधों से भी भयभीत ना हुआ। तेरे इस युद्ध से मैं बड़ा प्रसन्न हूं, तो जो तू चाहे मुझसे वर मांग ले। विष्णु जी की ऐसी वाणी सुनकर जालंधर ने कहा-
यदि भावुक तुष्टोसि वरमेतं ददस्व मे।
मद्भगिन्यां मया सार्द्धं मद्गेहे सगणो वस।। रु-यु-17-41
हे भावुक यदि आप प्रशन्न हैं तो मुझे यह वरदान दीजिए कि आप मेरी बहन महालक्ष्मी तथा अपने गणों के साथ मेरे घर में निवास करेंगे। सनत कुमार जी कहते हैं- ऐसे वचन सुनकर विष्णु जी को खेद तो हुआ किंतु उसी क्षण देवेश ने तथास्तु कह दिया ।

अब विष्णु जी अपने गणों के साथ जालंधरपुर में जाकर निवास करने लगे, जालंधर अपनी बहन लक्ष्मी और देवताओं सहित विष्णु को वहां पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ। देवों के स्थानों पर दैत्यों को स्थापित कर जलंधर पृथ्वी पर आया। निशुम्भ को पाताल में स्थापित कर दिया और देव, दानव, यक्ष, गन्धर्व,सर्प, मनुष्य आदि को अपने वश में कर त्रिभुवन में शासन करने लगा।

 shiv puran katha in hindi lyrics

उसके धर्म राज्य में सभी सुखी थे, तब उसको इस प्रकार धर्म पूर्वक राज्य करते हुए तथा भ्रातृभाव को देख देवता क्षुब्ध हो गए । उन्होंने देवाधिदेव शंकर को मन में स्मरण करना आरंभ किया। कितने प्रकार की स्तुति की तब भक्तों की कामना पूर्ण करने वाले शंकर जी ने नारदजी को बुलाकर देवकार्य करने की इच्छा से उनको वहां भेजा।
शंभू भक्त नारद जी शिव की आज्ञा से देवपुरी में गए- इंद्रादिक देवता व्याकुल हो शीघ्रता से उठ नारद जी की स्तुति करने लगे और बोले हे देवर्षि हमारे दुख का नाश करिए ।

नारद जी ने कहा मैं सब जानता हूं ,आप सब के दुख दूर करने के लिए ही शिव जी ने मुझे भेजा है। अब मैं जालंधर के पास जा रहा हूं। ऐसा कह नारद जी जालंधर की सभा में पहुंचे तो जालंधर ने उनको प्रणाम पूजन कर हंसते हुए पूंछा- आप कहां से आ रहे हैं? और कहां-कहां पर आपने क्या देखा है ?

नारदजी बोले- दानवराज तुम धन्य हो क्योंकि इस समय सब लोकों के रत्नों के भोक्ता एक तुम ही हो । दैत्य श्रेष्ठ अब मेरे आगमन का कारण सुनिए! मैं स्वेच्छा से कैलाश पर्वत पर गया था जहां दस हजार योजनों में कल्पवृक्ष का वन है। वहां मैंने सैकड़ों कामधेनु गायों को बिचरते देखा है तथा यह देखा कि वन चिंतामणि से प्रकाशित परम दिव्य अद्भुत और सब कुछ सुवर्णमय है।

 shiv puran katha in hindi lyrics

मैंने वहां पार्वती के साथ शंकर जी को भी देखा जो सर्वांग सुंदर गौरवर्ण, त्रिनेत्र और मस्तक पर चन्द्र धारण किए हुए हैं । यह देख कर मुझे आश्चर्य हुआ कि इनके समान समृद्धिशाली त्रिलोकी में कोई है या नहीं ?
दैत्येन्द्र उसी समय मुझे तुम्हारी भी समृद्धि का स्मरण हो आया और उसे देखने की इच्छा से तुम्हारे पास चला आया हूं । यह सुनकर जालंधर को बड़ा आश्चर्य हुआ । उसने नारदजी को अपनी सब समृद्धि दिखला दी। उसे देख देवताओ का कार्य साधन करने के इच्छुक शिवप्रेरित नारद ने जालंधर की बड़ी प्रशंसा की और कहा- निश्चय ही तुम त्रिलोक पति होने के योग्य थे।

तुम्हारे पास सब रत्न हैं परंतु तुम्हारे पास कोई स्त्री रत्न नहीं है। तुम कोई स्त्री रत्न ग्रहण करो, उसने नारद जी को प्रणाम कर बोला- ऐसी स्त्री कहां मिलेगी ? जो सब रत्नों में श्रेष्ठ हो मैं उसे अवश्य लाऊंगा । नारद जी ने कहा- ऐसा रत्न तो कैलाश पर्वत में योगी शंकर के पास ही है ।
सर्वांगसुन्दरी नाम्ना पार्वतीति मनोहरा।
उनकी सर्वांग सुन्दरी पत्नी पार्वती बहुत ही मनोहर हैं। उनके समान मैं किसी को नहीं देखता। देवर्षि उस दैत्य से कहकर देवकार्य करने की इच्छा से आकाश मार्ग को चले गए । उनके जाने के बाद जंलधर अपने राहू नामक दूत को बुलाकर कैलाश पर जाने की आज्ञा दी और कहा कि वहां एक जटाधारी शंभू योगी रहता है , उसकी भार्या को लेकर आओ ।

 shiv puran katha in hindi lyrics

तब वह दूत कैलाश को गया परंतु नंदी ने उसे भीतर सभा में जाने से रोक दिया किन्तु वह दूत अपनी उग्रता से उस सभा में चला गया। और फिर शिवजी से सब सन्देश कह सुनाया। उसके इस प्रकार कहते ही भगवान शूलपाणि के आंगे पृथ्वी फोड़कर एक भंयकर शब्द वाला पुरुष प्रगट हो गया, जिसका सिंह के समान मुख था।

राहू उसे देखकर डरकर जोर से भागा परंतु उसने उसे पकड़ लिया, उसने शिवजी की शरण ले अपने रक्षा की भीख मांगी। शिव जी ने उसे छोड़ देने को कहा - उसने कहा मुझे बहुत जोर की भूख लगी है मैं क्या खाऊं ? शिवजी ने कहा अगर ज्यादा भूख लगी है तो अपने हाथ और पैर के मांस का भक्षण करलो।

वह आआज्ञा पाते ही भक्षण कर गया अब केवल उसका सिर शेष मात्र रह गया। शिवजी उस पर दया करके अपना आज्ञा पालक जाना और गण बना लिया उन्होंने कहा- मेरी पूजा के समय अब तेरी भी सदैव पूजा होगी और जो तेरी पूजा नहीं करेंगे वह मेरे प्रिय ना होंगे। उस दिन से वह शिव जी के द्वार पर कीर्तिमुख नामक गण होकर रहने लगा।

( शिव गणों का असुरों से युद्ध )
वह राहू उस पुरुष के द्वारा वर्वर स्थान पर मुक्त कर दिया गया, इसलिए वह बर्वर नाम से पृथ्वी में विख्यात हुआ। अपना नया जन्म पाकर अपने को धन्य माना तथा वह धीरे-धीरे जालंधर के पास गया वहां जाकर उसने सब बात बताई।
उसे सुन दैत्यराज को बड़ा क्रोध आया और उसने सब दैत्यों को अपनी सेना सजाने की आज्ञा दी। कालनेमि और शुम्भ-निशुम्भ आदि सभी महाबली दैत्य तैयार होने लगे। एक से एक महाबली दैत्य करोड़ों करोड़ों की संख्या में युद्ध के लिए निकल पड़े ।

 shiv puran katha in hindi lyrics

महा प्रतापी सिंधुपुत्र शिव जी से युद्ध करने के लिए निकला , उसके आंगे महर्षि शुक्र और राहु हुआ फिर तो उसी समय जालंधर का मुकुट खिसककर पृथ्वी पर गिर पड़ा, आकाश में मेघ छा गए और बड़े अपशगुन हुए।
यहां इन्द्रादिक सभी देवता कैलाश पहुंच शिवजी से सारा वृतांत कहा और यह भी कहा कि आपने जालंधर से युद्ध करने के लिए जो विष्णु जी को भेजा था वह तो उसके वशवर्ती हो लक्ष्मी सहित जालंधर के अधीन हो उसके घर में निवास करते हैं। इस कारण देवताओं को भी वहां रहना पड़ता है।

अतः हे महादेव आप जालंधर को मारकर हम सब की रक्षा कीजिए। देवताओं से यह सुन शंकर जी ने विष्णु जी को बुलाकर कहा- ऋषिकेश आपने युद्ध में जालंधर का संघार क्यों नहीं किया ? और बैकुंठ छोड़ आप उसके घर कैसे गए ?

तब विष्णु जी ने हाथ जोड़कर नम्रतापूर्वक भगवान शंकर से कहा कि उसे आपका अंशी तथा लक्ष्मी का भ्राता होने के कारण ही मैंने नहीं मारा और उसको वरदान देकर ही मुझे उसके घर में निवास करना पड़ रहा है। तब भगवान शंकर हंसकर बोले ठीक है विष्णु जी मैं उस जालंधर को अवश्य मारूंगा । अब आप सब देवता जालंधर को मेरे द्वारा मरा हुआ जानकर अपने अपने स्थान को जाइए।

 shiv puran katha in hindi lyrics

जब भगवान शंकर ने ऐसा कहा सब देवता संदेह रहित अपने स्थान को गए। इसी समय जालंधर अपनी विशाल सेना के साथ पर्वत के समीप कैलाश को घेरकर सिंहनाद करने लगा। दैत्यों के नाद व कोलाहल से शिवजी क्रुद्ध हो गए , उन्होंने अपने नंदी आदि गणों को उससे युद्ध करने की आज्ञा दी।

कैलाश के समीप भीषण युद्ध होने लगा, दैत्यों के आचार्य संजीवनी विद्या से सब दैत्यों को जिलाने लगे । यह देखकर शिवजी के गण व्याकुल हो गए और जाकर शुक्राचार्य की यह बात कह सुनाई उसे सुनकर भगवान रुद्र के क्रोध की सीमा ना रही।
वह अपने भयंकर रूप से दिशाओं को जलाने लगे, उसी समय उनके मुख से एक बड़ी भयंकर कृत्या उत्पन्न हुई वह युद्ध भूमि में जाकर सब असुरों का चर्वण करने लगी। इस प्रकार वह घूमती हुई शुक्राचार्य के समीप पहुंची उन्हें अपने अंदर छिपाकर अंतर्ध्यान हो गई ।

शुक्राचार्य के गुप्त हो जाने से दैत्यों का मुख मलिन पड़ गया और वे युद्धभूमि छोड़ भागे । तब दैत्यों के सेनापति शुंभ निशुंभ को बड़ा क्रोध आया, उन्होंने शिव गणों पर असंख्य अस्त्रों का प्रहार किया और इधर शिव जी के गण भी जिसमें गणेश, स्वामी कार्तिकेय जी थे अपने गणों को रोक रोक कर दैत्यों से भीषण युद्ध करना आरंभ किया।

shiv puran katha in hindi lyrics

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


______________________________


______________________________

 shiv puran katha in hindi lyrics

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3