shiv puran katha lyrics
शिवजी के गण
प्रबल बलवान थे और उन्होंने जालंधर के शुंभ निशुंभ और महाशुर कालनेमि आदि को
पराजित कर दिया। यह देखकर सागर पुत्र जालंधर एक विशाल रथ पर जिस पर लंबी पताका लगी
हुई थी उसमें चढ़कर युद्ध भूमि में आकर गर्जना करने लगा ।
इधर जयशील शिव शंकर के गण भी युद्ध में तत्पर हो गर्जने लगे। इस
प्रकार दोनों सेनाओं के हाथी, घोड़े, रथ,
शंख, भेरी तथा वीरों से पृथ्वी व्याप्त हो गई।
जालंधर ने कोहरे के समान बांणो को फेंककर पृथ्वी से लेकर आकाश तक व्याप्त कर दिया।
नंदी, गणेश, वीरभद्र को
अपने बाणो के प्रहार से घायल कर दिया। यह देख रूद्र पुत्र कार्तिकेय ने जालंधर को
अपनी शक्ति उठाकर मारा, जिससे वह दैत्य पृथ्वी पर गिर पड़ा ,
परंतु वह इतना बली था कि शीघ्र ही उठ पड़ा और क्रोधित हो कार्तिकेय
पर अपनी गदा का प्रहार किया। ब्रह्मा वरदान की सफलता के लिए कार्तिकेय पृथ्वी पर
सो गए। गणेश नंदी भी उस दैत्य के प्रहार से पृथ्वी में गिर पड़े, वीरभद्र भी धराशाई हो गया। तब शंकर जी के गण चिल्लाते हुए रणभूमि से भागे
।
shiv puran katha lyrics
( जालंधर का युद्ध )
फिर स्वयं-
अथ वीरगणै रुद्रो रौद्ररूपो महाप्रभुः।
अभ्यगाद् वृषभारूढः संग्रामं प्रहसन्निव।। रु-यु-22-1
रौद्र रूप वाले महा प्रभु शंकर बैल पर सवार हो वीर
गणों के साथ हंसते हुए संग्राम भूमि में गए। तब उनको आया देख उनके पराजित गण फिर
लौटे और सिंहनाद करते हुए अपने आयुधों से दैत्यों पर प्रहार करने लगे। भीषण रूप
धारी रूद्र को देख दैत्य भागने लगे, तब
जालंधर बाणों की वर्षा करता हुआ शिवजी की तरफ दौड़ा।
दोनों में बड़ा भीषण युद्ध हुआ लेकिन जब जालंधर को लगने लगा कि शंकर
मुझसे अधिक बलवान हैं, तब उसने गंधर्व माया उत्पन्न कर दी
जिससे गणों सहित रुद्र भी मोहित हो एकाग्र हो गए युद्ध बंद कर दिया।
फिर तो काम मोहित जालंधर बड़ी शीघ्रता से शंकर जी का रूप धारण कर
वृषभ पर बैठ पार्वती जी के पास पहुंचा। देवी भी शिव जी को आते देख सखियों को त्याग
आ गई, उनको देखते ही जालंधर का तेज स्खलित हो गया उसके पतन
से गौरी समझ गई यह दानव है । तब वह अंतर्ध्यान हो गई और वह उत्तर मानस की ओर चली
गई वहां उन्होंने मन से महाविष्णु का स्मरण किया।
shiv puran katha lyrics
उन्होंने तत्क्षण अपने समीप विष्णु जी को देखा तो हाथ जोड़ प्रणाम
कर उनसे कहने लगी- हे विष्णु जालंधर दैत्य ने परम आश्चर्यजनक कार्य किया है।
विष्णु जी ने कहा-
भवत्याः कृपया देवी तद्वृत्तं विदितं मया।
हे देवी आप की कृपा से मुझे वह सब वृतांत ज्ञात है
। हे माता आप मुझे आज्ञा करिए ? जगन माता पार्वती
धर्म नीति की शिक्षा देती हुई ऋषिकेश से कहने लगी-उस दैत्य ने ही ऐसा मार्ग
प्रदर्शित किया है अब उसी का अनुसरण आप भी करिए।
तत्स्त्रीपातिव्रतं धर्मं भ्रष्टं कुरु मदाज्ञया।
मेरी आज्ञा से आप उसकी स्त्री का पति व्रत भंग
कीजिए, उसके बिना वह दैत्य नहीं मारा जा सकता। पार्वती जी
की आज्ञा पाते ही विष्णु जी उसको शिरोधार्य कर छल करने के लिए जालंधर के नगर की ओर
गए। उसके नगर में एक उद्यान में जाकर ठहर गए और रात में वृंदा को स्वप्न दिए।
वह अपने सपने में देखती है कि जालंधर काले रंग की माला पहने हैं,
उसके चारों ओर हिंसक जीव हैं, वह सिर मुडाए
हुए अंधकार में दक्षिण दिशा की ओर जा रहा है। तभी उसकी नींद खुली और स्वप्न विचार
करने लगी। इतने में उसने सूर्य को उदय होते देखा तो उसमें एक छिद्र दिखाई पड़ा तथा
सूर्यकांति से हीन था ।
इससे उसको अनिष्ट की घड़ी जाना वह रोने लगी, कहीं
भी उसको शांति ना मिली फिर अपनी दो सखियों के साथ उपवन में आ गई। उसी समय उसके
सामने सिंह के समान दो भयंकर राक्षस आ गए वह डरकर भागी और वहां पर उपस्थित एक शांत
मौनी तपस्वी को देखकर, भयभीत वृंदा उसके गले में अपना हाथ
डालकर रक्षा की याचना करने लगी।
shiv puran katha lyrics
मुनि ने हुंकार से उन राक्षसों को भगा दिया, वृंदा
को आश्चर्य हुआ और बोली आपकी बड़ी कृपा जो मेरी रक्षा करी आपने, फिर वृंदा ने युद्ध रत पति के बारे में उन बाबा से पूंछा ? मुनि ने तब कुछ कहना चाहा, उसी समय दो बानर मुनि के
समक्ष हाथ जोड़कर खड़े हो गए। मुनि ने ज्यों ही संकेत किया वैसे ही वे उड़कर आकाश
में चले गए फिर जालंधर का सिर और कंबध लिए मुनि के समक्ष आ गए ।
तब पति को मृत जान वृंदा मूर्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़ी और बिरह
विलाप करने लगी, फिर मुनि से बोली हे कृपानिधि आप मेरे पति
को जीवित कर दीजिए। वह मुनि साक्षात विष्णु ही थे जिन्होंने यह सब माया फैला रखी
थी । वह वृंदा के पति को जीवित कर अंतर्ध्यान हो गए।
अपने पति को जीवित देख वह उसका आलिंगन करी, बहुत
समय बाद जब वृंदा ने जाना यह विष्णु हैं तब उसने हरि को श्राप दे दिया- तुमने अपनी
माया से जिन दो पुरुषों को दिखाया था वही दोनों राक्षस बनकर तुम्हारी पत्नी का हरण
करेंगे। तुम भी पत्नी के दुख से दुखी होकर वानरों की सहायता से ही पत्नी को
प्राप्त करोगे और सर्पों का स्वामी शेषनाग तुम्हारा शिष्य बना था, यह भी तुम्हारे साथ भ्रमण करे ।
ऐसा कहकर वह वृंदा उस समय विष्णु के द्वारा रोके जाने पर भी अपने
पति जालंधर का ध्यान कर अग्नि में प्रवेश कर गई। उस समय उसकी उत्तम गति को देखने
की इच्छा से ब्रह्मा आदि सभी देवता अपनी भार्याओं के साथ आकाश मंडल में स्थित हो
गए।
उस समय दैत्येन्द्र पत्नी की वह परम ज्योति देवताओं के देखते देखते
ही शीघ्र अदृष्ट हो गई और शिवा- पार्वती के शरीर में उस वृंदा का तेज विलीन हो गया
। उस समय आकाश में से देवताओं ने जय-जय की ध्वनि की । हे मुने! इस प्रकार कालनेमि
की श्रेष्ठ पुत्री वृंदा ने परामुक्ति को प्राप्त कर लिया।
बोलिए सांब सदाशिव भगवान की जय
shiv puran katha lyrics
( जालंधर वध )
व्यास जी बोले- तात इसके पश्चात युद्ध में क्या हुआ ? सनत कुमार जी बोले- जब गिरजा वहां से अदृश्य हो गईं और गंधर्वी माया भी
विलीन हो गई तब भगवान वृषभध्वज चैतन्य हो गए। उन्हें लौकिकता व्यक्त करते हुए बड़ा
क्रोध आया, फिर विस्मितमना शंकर जालंधर से युद्ध करने लगे ।
जालंधर शंकर के बांणो को काटने लगा, परंतु जब
काट ना सका तब उसने उन्हें मोहित करने के लिए माया की पार्वती बना अपने रथ पर बांध
लिया जो शुंभ निशुंभ द्वारा वध्यमान थी और विलाप कर रही थी तब अपनी प्रिया पार्वती
को इस प्रकार कष्ट में पड़ा देख- लौकिक लीला दिखाते हुए शंकर जी प्राकृत जनों की
तरह व्याकुल हो गए और उन्होंने भयंकर रूप धारण कर लिया।
तब तो सारे दैत्य भागने लगे, जालंधर की सारी
माया क्षणभर में नष्ट हो गई। संग्राम में हाहाकार होने लगा, शिवजी
ने उन भागते हुए शुंभ निशुंभ को श्राप दे कहा- तुम दोनों बड़े दुष्ट हो पार्वती को
मारते थे और अब युद्ध से डरते हो ? भागते को मारना पाप है
परंतु गौरी तुमको अवश्य मारेगी।
shiv puran katha lyrics
शिवजी के ऐसा कहने पर जालंधर बड़ा क्रोधित हो गया उसने शिवजी पर घोर
बाण वर्षा कर पृथ्वी पर अंधकार कर दिया। उस समय-
कोपं कृत्वा परं शूली पादांगुष्ठेन लीलया।
महांभसि चकाराशु रथांगं रौद्रमद्भुतम्।। रु-यु-24-26
क्रोध करके अपनी लीला से त्रिशूलधारी शंकर ने महा
समुद्र में अपने पैर के अंगूठे से शीघ्र ही भयानक तथा अद्भुत रथ चक्र का निर्माण
किया। भगवान शिव जी ने प्रलय काल की अग्नि के समान एवं करोड़ों सूर्य के समान देदीप्यमान
उस सुदर्शन चक्र को जालंधर पर फेंका। वह चक्र शीघ्र ही उसका सिर धड़ से अलग कर
दिया, उसका शरीर पृथ्वी में धड़ाम से गिरा और उसका
प्राणांत हो गया।
तत्तेजो निर्गतं देहाद् रुद्रे च लयमागमत्।
उसके शरीर से निकला हुआ तेज उसी प्रकार शंकर जी
में समाहित हो गया जिस प्रकार वृंदा के शरीर से उत्पन्न तेज गौरी जी में प्रविष्ट
हो गया था। वृंदापति जालंधर के मर जाने पर सभी ओर पवित्र तथा सुखद स्पर्श वाली
दिशाएं प्रसन्न हो गई, शीतल मंद सुगंध तीनों
प्रकार की वायु चलने लगीं, चंद्रमा शीतलता से युक्त हो गया ,
सूरज परम तेज से तपने लगा, शान्त अग्नि जल उठी,
आकाश निर्मल हो गया, देवता लोग जय-जयकार करने
लगे, पुष्पों की वर्षा होने लगी।
बोलिए शंकर भगवान की जय