F संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में 82 - bhagwat kathanak
संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में 82

bhagwat katha sikhe

संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में 82

संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में 82

 संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में

   शिव पुराण कथा भाग-82  

संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में

( नागेश्वर उत्पत्ति )
जब भगवान शिव ने दारूक नामक दानव का संघार कर दिया तब उसकी पत्नी दारूका माता पार्वती की शरण में जाकर उनकी बहुत स्तुति करी। तब भगवान शंकर तथा भगवती पार्वती दोनों ज्योति स्वरूप होकर नागेश्वर के नाम से वहां स्थिर हो गए।

( रामेश्वर महिमा वर्णन )
भगवान विष्णु ने जब रघुवंशी दशरथ के घर श्री रामचंद्र जी के नाम से अवतार लिया तब अवतार लेने का प्रयोजन रावण आदि दानवों का संघार करना था। उनकी पत्नी का नाम सीता था अपने पिता की आज्ञा से वे चौदह वर्षों के लिए वन में चले गए। उस समय उनकी पत्नी सीता को माया करने वाले राक्षसराज रावण ने आकर चुरा लिया और लंका में ले गया। तब पत्नी के शोक में व्याकुल हो इधर उधर ढूंढते हुए अपने अनुज लक्ष्मण के साथ राम किष्किंधा पहुंचे।
वहां वानरेंद्र सुग्रीव से मित्रता करके उसके भाई बाली का वध किया, कुछ समय तक वहीं रहे फिर सीता की खोज करने के लिए हनुमान आदि वानरों को भेजा। वानरों में श्रेष्ठ हनुमान जी ने लंका में जाकर श्री सीता जी का पता लगा लिया, श्री सीता जी को श्री राम का संदेश देकर और सीता जी से चूड़ामणि लेकर श्री राम जी के पास हनुमान जी लौटे और श्री राम जी को सीता जी का संदेश देकर प्रसन्न किया। तब-
पद्मैरष्टादशाख्यैश्च ययौ तीरं पयोनिधेः।
अठारह पद्म वानरों के साथ रामजी दक्षिणी समुद्र के किनारे पहुंच गए। वहां आगाध सागर को देखकर श्रीराम व्याकुल हो गए। बोले अब इससे किस प्रकार पार होंगे ? चिंता करते हुए कहने लगे अपनी प्राणप्रिया का पता पाकर भी मैं मिल नहीं सकता, कितने शोक की बात है। मैं इस अथाह सागर को कैसे पार पा सकूंगा ? यह वानरों की सेना कैसे पार होगी ? यह कहकर श्रीराम दुखी हो गए।

 संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में

तब अंगद आदि वानरों ने आकर उनको धैर्य बंधाया इसके बाद प्यास लग जाने के कारण श्री राम जी ने लक्ष्मण जी से जल लाने को कहा तब शीघ्र ही जल निवेदन किया। तब राम जी को उसी क्षण स्मरण आया कि आनंद दाता अपने स्वामी सदाशिव का दर्शन नहीं किया अभी तक तो कैसे यह जलपान करूं ? तब रामजी पार्थिव लिंग के पूजन का विचार किया और पूजन करने लगे । आवाहन आदि सोलह उपचारों से विधिवत पूजन कर स्तुति करते हुए बोले- नाथ मैं वानर सेना के साथ इस अथाह समुद्र से किस प्रकार पार पहुंचूंगा ? वहां महाबली रावण के साथ युद्ध करके विजय किस प्रकार पाऊंगा ?

हे देवाधिदेव महादेव मैं तो आपकी शरण में हूं मेरी सहायता करो। उसी समय शिव जी अपने परिवार के साथ उस ज्योति स्वरूप लिंग से प्रगट हो गए। शंकर जी बोले राम जी आपका मंगल हो वर मांगो। तब स्तुति कर रामजी ने विजय का वर मांगा। शिवजी बोले श्री राम जी युद्ध में आप की विजय अवश्य होगी। तब रामचंद्र जी ने कहा प्रभु आप सबका कल्याण करने के लिए यहां विराजमान रहिए तब सदाशिव उसी स्थान पर लिंग रूप में विराजमान हुए वही स्थान जगत में रामेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुआ।

बोलिये रामेश्वर महादेव की जय

 संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में

( घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति )
दक्षिण दिशा में श्रेष्ठ देवगिरी नामक एक महान शोभा युक्त पर्वत विराजमान है जो देखने में विचित्र मालूम पड़ता है।
तस्यैव निकटे कश्चिद्भारद्वाज कुलोद्भवः।
सुधर्मा नाम विप्रश्च न्यवसद् ब्रह्मवित्तमः।। को-32-3
उसी के समीप भरद्वाज के कुल में उत्पन्न ,महान वेदवेत्ता सुधर्मा नाम का कोई ब्राह्मण रहता था । उसकी पत्नी का नाम सु देहा था। वह सुधर्मा नित्य शिवजी का पूजन करने वाला तथा शिव जी का परम भक्त था। किंतु घर में संतान नहीं हुई सुधर्मा को तो इस विषय में कुछ दुख नहीं था लेकिन उसकी पत्नी व्याकुल रहती थी। एक बार कुछ स्त्रियों ने उसे ताना मारा तू बांझ है । तब वह बहुत दुखी होकर बोली प्राणनाथ या तो किसी प्रकार संतान उत्पन्न करिए या मुझे मार डालिए नहीं तो मैं स्वयं मरती हूं।

इस प्रकार सुदेहा के वचन कहने पर उन ब्राह्मण देवता ने शिव ध्यान कर के दो पुष्प अग्नि की ओर फेंके उन दोनों पुष्पों में दाहिना पुष्प पुत्र देने वाला है यही सोचकर ब्राह्मण ने अपनी स्त्री से कहा तुम पुत्र इच्छा से एक पुष्प उठा लो तब उसकी स्त्री ने शिव माया से बाई ओर का पुष्प उठा लिया जो कि पुत्र वाला नहीं था। यह देखकर सुधर्मा पत्नी से बोले हे कल्याणी अब तुम पुत्र की इच्छा मत करो भगवत भजन में लग जाओ तुम्हारे भाग्य में पुत्र प्राप्ति नहीं है।
इस प्रकार उसे समझा-बुझाकर सुधर्मा शिवपजन में लग गए, कुछ समय बीतने पर सुदेहा ने कहा प्राणनाथ यदि मेरे गर्भ से पुत्र नहीं होता तो आप दूसरा विवाह कर लें, मैं प्रसन्नता से यह बात कहती हूं और सुदेहा ने अपनी छोटी बहन से विवाह करने का निवेदन किया और छोटी बहन घुष्मा के साथ विधि पूर्वक विवाह करा ही दिया। घुष्मा भी नित्य प्रति पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर विधिपूर्वक पूजन करती फिर तालाब में विसर्जित करती। भगवान शंकर की कृपा से घुष्मा को सुंदर गुणवान पुत्र हुआ, लेकिन पुत्र होने के बाद उसकी बड़ी बहन सुदेहा उससे ईर्ष्या करने लगी।
कुछ समय बाद वह ब्राह्मण कुमार बड़ा हो गया तो सुधर्मा ने उसका विवाह करा दिया। अब तो सुदेहा ने विचार किया कि घुष्मा के पुत्र को मैं मार डालूं जब यह रोएगी शोक में तो मुझे खुशी मिलेगी और वह रात्रि में सोते हुए अपनी बहन के पुत्र को कई टुकड़ों में काट डाली और उसी तालाब में जाकर फेंक दी, जहां घुष्मा नित्य ही पार्थिव शिवलिंग विसर्जित करती थी। वह सुदेहा सब कर करा कर घर में आकर सो गई।

 संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में

प्रातः काल हुआ तो घुष्मा सो कर उठी अपने नित्य के कामों में लग गई । फिर पुत्र वधू उठी उसने काठ पर रुधिर एवं शरीर के कुछ कटे टुकड़े देखे तो उसके होश ना रहे और वह दहाड़ मार मार कर रोने लगी। पुत्र का मरण सुन घुष्मा भी पुत्र शोक से संतप्त रोने लगी। सुदेहा भी बनावटी रो रही थी। लेकिन घुष्मा को रोता देख वह अंदर ही अंदर प्रसन्न हो रही थी।

सुधर्मा शिवपूजन से निवृत हो वहां आये, उन्होंने यह कांड देख कर कहा शोक एवं सन्ताप करना व्यर्थ है । जिसने यह पुत्र दिया है वही उसका रक्षक है। घुष्मा तुम अपना नित्य कृत्य ना छोड़ो। तब घुष्मा नित्य की तरह शिव पार्थिव लिंग लेकर उसी तालाब पर बहाने चली गई। वहां बहाकर जब लौटने लगी तो उसे तट पर खड़ा हुआ पुत्र दिखाई दिया। वह झट ही माता के समीप पहुंचकर बोला-
मातरेहि मिलिष्यामि मृतोऽहं जीवितोऽधुना।
तव पुण्यं प्रभावाद्धि कृपया शंकरस्य वै।। को-33-32
हे माता आओ मैं तुमसे मिलूंगा। मैं तो मर गया था किंतु तुम्हारे पुण्य के प्रभाव से और शंकर जी की कृपा से अब मैं जीवित हो गया हूं। वह घुष्मा अपने पुत्र को जीवित देखकर भी वैसे ही अधिक प्रसन्न ना हुई जैसा कि उसके मरने पर दुखी ना थी । किंतु यथावत शिव जी का ध्यान में तत्पर रही। उसी समय उसकी परम भक्ति से प्रसन्न होकर ज्योति स्वरूप शिव प्रत्यक्ष हो गए और बोले मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं वर मांगो और तुम्हारे पुत्र को सुदेहा ने मार दिया था मैं उसे अभी भष्म किये देता हूं।
तब घुष्मा ने हाथ जोड़कर कहा प्रभु अगर मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरी बहन के अपराधों को क्षमा कर दीजिए । यह भाव सुन भोलेनाथ अति प्रसन्न होकर बोले- हे घुष्मे अब मैं यहां तुम्हारे नाम से प्रसिद्ध होकर यहां बिराजित रहूंगा और सभी का मनोरथ पूर्ण करूंगा। तब से वह घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजित हो गए।
बोलिए घुश्मेश्वर महादेव की जय

संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


______________________________


______________________________

 संपूर्ण शिव पुराण हिंदी में

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3