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शिव पुराण इन हिंदी गीता प्रेस 83

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शिव पुराण इन हिंदी गीता प्रेस 83

शिव पुराण इन हिंदी गीता प्रेस 83

 शिव पुराण इन हिंदी गीता प्रेस

   शिव पुराण कथा भाग-84  

शिव पुराण इन हिंदी गीता प्रेस

( विष्णु भगवान को सुदर्शन चक्र की प्राप्ति )
सूत जी महाराज बोले-
श्रूयतां च ऋषिश्रेष्ठा हरीश्वर कथा शुभा।
यतः सुदर्शनं लब्धं विष्णुना शंकरात्पुरा।। को-34-4
हे श्रेष्ठ ऋषियों अब आप लोग हरीश्वर की शुभ कथा सुनिए । विष्णु जी ने पूर्व काल में शंकर जी से सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था। पहले अत्यंत बलवान दैत्य हुए हैं जो सभी प्राणियों को दुख देते , धर्म का विनाश करने पर तुले हुए थे। उन्हीं राक्षसों से दुखित होकर देवगण श्री विष्णु जी के पास पहुंचे और अपना दुख जाकर सुनाया । यह सुनकर विष्णु जी ने कहा देवताओं तुम भय मत करो


तब सब देवता निर्भय होकर अपने-अपने लोकों में चले गए, उसके बाद विष्णु जी शिव पूजन करने के लिए कैलाश पहुंचे । वहां कुंड के मध्य में अग्नि स्थापित की फिर शिव पार्थिव लिंग की विधि अनुसार पूजा करके तपस्या आरंभ कर दी । भगवान विष्णु अपना दृढ़ संकल्प कर बैठे थे कि भगवान शिव को संतुष्ट करके ही अपनी तपस्या छोडूंगा। तपस्या करते-करते बहुत सा समय व्यतीत हो गया लेकिन सदाशिव प्रशन्न नहीं हुये।

 शिव पुराण इन हिंदी गीता प्रेस

तब हरि ने शिव सहस्त्र नाम का पाठ आरंभ कर दिया। एक-एक मंत्र बोलकर एक-एक कमल पुष्प चढ़ाने लगे। तब एक बार विष्णु जी की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए, आए हुए कमलों में से शिवजी एक कमल को इधर-उधर कर दिया। तब पूजा करते-करते एक पुष्प कम पड़ गया, तो विष्णु जी ने- ( नेत्रमेकमुदाहरत् ) कमल के समान अपना नेत्र निकालकर उसे ही शिवजी को अर्पण कर दिया। तब तो भगवान शंकर- आविर्बभूव तत्रैव!! प्रत्यक्ष वहां प्रकट हो गए और बोले विष्णु जी तुम्हारी भक्ति से मैं अत्यंत प्रसन्न हूं मनचाहा वर मांग लो।


विष्णु जी बोले- स्वामिन इस समय दैत्यों ने उपद्रव मचा रखा है, उनका वध करने के लिए , मेरे पास का अस्त्र समर्थ नहीं रखता इसी कारण में आपकी शरण में आया हूं ।
इति श्रुत्वा वचो विष्णोर्देवदेवो महेश्वरः।
ददौ तस्मै स्वकं चक्रं तेजो राशिं सुदर्शनम्।। को-34-30
विष्णु जी के वचन सुन देवाधिदेव महेश्वर ने उन्हें अपना महातेजस्वी सुदर्शन चक्र प्रदान किया। उसी दिव्य अस्त्र से विष्णु जी ने राक्षसों का नाश किया।

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( शिवरात्रि व्रत का विधान )
ऋषि बोले- सूत जी जिस व्रत के द्वारा भगवान शिव प्रसन्न होते हैं वही व्रत हमें सुनाइए। सूत जी बोले- हे मुनियों यह प्रश्न श्री पार्वती ने सदाशिव से किया था। पार्वती बोली की प्राणनाथ आप किस व्रत से प्रसन्न होते हैं ? तब शिवजी ने कहा देवी मुझे प्रसन्न करने के लिए तो अनेकों व्रत एवं उपवास हैं । उन सब व्रतों में शिवरात्रि व्रत सर्वोत्तम है। यह व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में होता है ।
व्रत का नियम यह है कि प्रातः काल निद्रा त्याग दें ,अपना नित्य कर्म करके शिव मंदिर में पहुंचे वहां विधि पूर्वक शिव पूजन करके नमस्कार करते हुए प्रार्थना करें- कि नीलकंठ मैं चाहता हूं कि आज से शिवरात्रि का उपवास व्रत धारण करूँ आप मेरी अभिलाषा को पूर्ण करो । काम क्रोध आदि शत्रु मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सके मेरी भली-भांति आप रक्षा करें और इस प्रकार संकल्प कर शिव भक्तों को चाहिए कि रात्रि के चार प्रहरों में चार शिव पार्थिव लिंगों की रचना कर, फल फूल बिल्वपत्र धूप दीप आदि से विधिवत पूजन करें और शिव पंचाक्षर मंत्र का जप करें।

यह प्रक्रिया चारों पहर में कर जितने ब्राह्मणों का संकल्प किया हो उतने ब्राह्मणों तथा यति जनों को बुलाकर भोजन कराएं। फिर ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद लेकर भगवान शंकर का पार्थिव लिंग का विसर्जन करें। इस व्रत की बड़ी भारी महिमा है। भगवान शिव विष्णु जी से बोले-
व्रतस्य करुणान्नूनं शिवोऽहं सर्वदुःखहा।
दद्मि भुक्तिं च मुक्ति च सर्वं वै वाञ्छितं फलम्।। 38-86
इस व्रत को करने पर मैं शिव निश्चित रूप से सारे दुखों को दूर करता हूं और भोग मोक्ष तथा संपूर्ण वांछित फल प्रदान करता हूं।

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( उद्यापन शिवरात्रि व्रत )
सूत जी बोले-
चतुर्दशाब्दं कर्तव्यं शिवरात्रि व्रतं शुभम्।
इस शुभ शिवरात्रि व्रत का अनुष्ठान चौदह वर्ष तक करना चाहिए। चौदह वर्ष पर्यंत व्रत का उद्यापन करें । आचार्य का वरण करके उनकी आज्ञा अनुसार परम पवित्र व्रत का उद्यापन करें।
( निषाद चरित्र )
सूतजी बोले- हे ऋषियों! प्राचीन समय में एक वन प्रदेश में गुरुद्रुह नामक भील अपने परिवार के साथ रहा करता था। वन के पशुओं का वध तथा चोरी करना ही उसका नित्य का काम था । इस प्रकार करते करते एक समय शिवरात्रि के व्रत का पवित्र दिन आया । उस दिन उसके घर कुछ भी नहीं था, उसके परिवार के माता-पिता सभी भूखे थे, उन्होंने कहा कि कहीं से खाने को लाओ हम तो भूखे मर रहे हैं ।
यह सुनकर भील ने अपना धनुष बांण उठाया शिकार के लिए वन की ओर चल पड़ा। भाग्यवश सारा दिन फिरता रहा किंतु शिकार हाथ ना आया। रात हुई शिकारी व्याकुल हो गया उसने विचार किया कि मैं खाली हाथ घर कैसे लौटूं ? उन्हें खाने को क्या दूंगा ? वह लोग तो मेरी प्रतीक्षा में होंगे । इसलिए अब मैं इसी तालाब के किनारे यही बैठ जाता हूं, कोई ना कोई पशु जल पीने आएगा मैं उसी का शिकार कर लूंगा। इस प्रकार वह शिकारी भील जल लेकर बेल वृक्ष पर बैठ गया।

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रात्रि के प्रथम प्रहर में एक हिरणी वहां जल पीने को आई भील ने वध करने को धनुष पर बांण चढ़ाया। उस समय-
इत्येवं कुर्वतस्तस्य जलं बिल्वदलानि च।
उससे पानी तथा कुछ बेल के पत्ते झड़ कर वहां जा गिरे जहां नीचे भगवान शंकर का ज्योतिर्लिंग विद्यमान था। उससे भील द्वारा पहले प्रहर की शिव पूजा हो गई। भील के पापों का नाश हो गया। उसके बाद भील के धनुष की टंकार सुनकर हिरनी ने कहा यह आप क्या करने लगे हैं ? तब भील ने कहा मेरा परिवार भूखों मर रहा है उन्हें भोजन देने को मैं तुम्हारा वध करूंगा। यह सुनकर हिरनी ने कहा-
मन्मांसेन सुखं ते स्याद्देहस्यानर्थ कारिणः।
अधिकं किं महत्पुण्यं धन्याहं नात्र संशयः।। को-40-25
हे ब्याध यदि मेरे अनर्थ कारी देह के मांस से तुम्हें सुख प्राप्त हो जाए तो इससे अधिक पुण्य और क्या हो सकता है ? मैं निसंदेह धन्य हो जाऊंगी। इसमें संदेह नहीं।
उपकार करस्यैव यत्पुण्यं जायतेत्विह।
तत्पुण्यं शक्यते नैव वक्तुं वर्ष शतैरपि।। को-40-26
लोक में उपकारी जीव को जो पुण्य होता है उस पुण्य का वर्णन सैकड़ों वर्षो में भी नहीं किया जा सकता।

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परहित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।
निर्नय सकल पुराण वेद कर। कहेउँ तात जानहिं कोबिद नर।।
दूसरे का हित करना ही सबसे बड़ा धर्म है। हिरणी ने कहा थोड़ी देर रुक जाओ मैं अपने घर जाकर अपने बच्चों को बहन के हवाले करके आती हूं। विश्वास करो मैं लौट कर आती हूं । यदि मैं लौट कर ना आऊं तो मुझे पाप लगे। वही पाप जो विश्वासघाती, कृतघ्न और शिव द्रोही को लगता है। तब भील ने उस हिरणी को जाने दिया। हिरणी प्रसन्नता पूर्वक छलांग भरती हुई चली गई।
सूत जी बोले- इस प्रकार उसका प्रथम प्रहर का जागरण भी हो गया। उसके बाद उसी हिरनी की बहन भी ढूंढते वहां आ पहुंची उसे देखकर भील ने झट अपने धनुष पर बांण चढ़ाया। तब पहले के ही तरह जल एवं बिल्व पत्र फिर शिवजी पर चढ़ गए । इसी से उसके दूसरे प्रहर का पूजन भी हो गया। धनुष की टंकार सुनकर हिरणी बोली- हे भीलराज आप यह क्या कर रहे हैं ? तो उसको भी उसने बताया तब हिरणी बोली मुझे थोड़ी देर के लिए घर जाने की आज्ञा दे दो मैं अपने बच्चों को देखकर लौट कर आ जाऊंगी।

शिव पुराण इन हिंदी गीता प्रेस

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