शिव पुराण पीडीएफ डाउनलोड
भील ने उसे भी जाने की आज्ञा दे दी, वह पानी पी कर चली गई। इसी प्रकार जागते जागते भील का दूसरे प्रहर का
जागरण भी हो गया। तीसरा प्रहर लगा उस समय एक हिरण पहुंचा उसे देख कर फिर उसने धनुष
पर बाण चढ़ाया, जिससे फिर शिवजी पर जल एवं बेल के पत्ते झड़
कर गिरे। इससे उसके तीसरे पहर की पूजा हो गई हिरण ने भी निवेदन किया- हे भीलराज
मैं अपने बच्चों को उनकी मा को सौंपकर अभी लौट कर आता हूं ।
यह मैं शपथ पूर्वक कहता हूं आप विश्वास रखिए। भील ने यह सुनकर उसे
भी जाने की आज्ञा दे दी। हिरण जल पीकर घर की ओर चला गया उसे भील ने जल्दी लौट आने
को कह दिया। तब वे तीनों घर में जाकर एकत्रित हुए आपस में अपना वृत्तांत सुनाकर
बोले हमने भील के आगे वापस लौटने की शपथ ले रखी है इसी कारण हमें वहां अवश्य जाना
चाहिए। तब उन्होंने अपने बच्चों को धैर्य दिया और चलने को तैयार हो गए तो उस बड़ी
हिरनी ने कहा जो की प्रथम प्रतिज्ञा करके आई थी वह बोली हे स्वामी आप मेरी छोटी
बहन के साथ अपने बच्चों को यहां संभाले रखिए मैं भील के पास जा रही हूं।
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इतना सुनकर छोटी बहन बोली- हे बहन मैं तो आपकी दासी हूं इसीलिए मैं
भी तो भील से प्रतिज्ञा कर चुकी हूं। तब हिरण ने कहा कि प्रिये माता के बिना
बच्चों का पालन कठिन है । आप यहां रहो मुझे जाने दो। इतना सुनकर दोनों हिरनी
व्याकुल हो गई, अपने पति से बोली नाथ विधवा स्त्रियों का तो
जीवन ही व्यर्थ होता है। आपकी मृत्यु हो जाने पर हम किस प्रकार जीवित रहेंगी ?
अतएव हम भी वहां अवश्य चलेंगी । इस प्रकार कहकर वे तीनों अपने
बच्चों को समझा-बुझाकर चल पड़े। बच्चों ने देखा हमारे माता-पिता तो जा रहे हैं
हमें यहां नहीं रहना चाहिए । अतः वे भी उनके पीछे पीछे चल पड़े। उन्होंने विचार
किया जहां हमारे माता पिता जीवन देंगे हम भी उन्हीं के साथ अपने प्राण गवा देंगे।
इस प्रकार वे सब के सब वहां जा पहुंचे भील ने उन्हें आया देखकर झट धनुष
पर बाण चढ़ाया तब उसी समय जल तथा बेलपत्र गिरकर शिवजी पर जा चढ़े। इसमें उसके चौथे
प्रहर की पूजा हो गई। इससे उसके सभी दुष्ट कर्म नष्ट हो गए, उसे
ज्ञान प्राप्त हो गया। उससे मृग एवं मृगनियों ने कहा भील राज अब आप कृपा करके
हमारा वध करें जिससे कि हमारी देह सफल हो जाए। तब भील शंकर जी की परम कृपा से
ज्ञान प्राप्त करके आश्चर्य से सोचने लगा-
एते धन्या मृगाश्चैव ज्ञानहीनाः सुसम्मताः।
स्वीयेनैव शरीरेण परोपकरणे रताः।। को-40-81
ज्ञान रहित यह मृग धन्य हैं। यह परम सम्माननीय हैं जो अपने शरीर से परोपकार
करने में तत्पर हैं। एक मैं हूं जो मनुष्य जन्म पाकर भी इतना हत्यारा बन चुका हूं।
सूत जी बोले इस प्रकार विचार कर भील बोला- मृगियों तुम धन्य हो ,तुम्हारा जीवन सफल है। जाओ मैं तुम्हें नहीं मारता तुम निर्भय रहो। इस
प्रकार भील बोला ही की तब वहां पर स्वयं शंकर जी अद्भुत रूप से प्रकट हो गए और
बोले भीलराज मैं तुम पर संतुष्ट हूं अपना मन चाहा वर मांग लो ? भगवान शंकर के वचन सुनकर वह भील झट ही शंकर जी के चरणों में गिर पड़ा,
आंखों से जल धारा बहने लगी।
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तब भगवान शंकर ने कहा व्याधर्षे मैं अत्यंत प्रसन्न हूं , इस समय तुम श्रृंगवेरपुर की श्रेष्ठ राजधानी में जाकर आनंद के साथ इक्षित
भोग प्राप्त करो। तुम्हारे घर ही भगवान श्री रामचंद्र पधारेंगे उनके साथ तुम्हारी
भक्ति पूर्वक मित्रता हो जाएगी। ऐसा कहने पर वह ब्याध कृतार्थ हो गया और गुह यह
शिवजी ने नाम भी प्राप्त हुआ। वह सभी मृग भी शिवजी का दर्शन करने से मुक्त हो गए।
सभी सुख भोगकर श्री रामचंद्र जी के अनुग्रह से ब्याध ने परम पद प्राप्त किया।
अज्ञानात्स व्रतं चैतत् कृत्वा सायुज्य माप्तवान।
किं पुनर्भक्तिसंपन्ना यान्ति तन्मयतां शुभाम्।। को-40-97
अज्ञानवश इस व्रत को करके व्याध ने सायुज्य मुक्ति प्राप्त किया तो फिर यदि
भक्ति भाव से युक्त मनुष्य शुभ सायुज्य मुक्ति को प्राप्त करते हैं तो इसमें
आश्चर्य ही क्या।
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( सगुण
निर्गुण )
जो सृष्टि के आरंभ में निर्गुण परमात्मा है- उन्हीं से प्रकृति पुरुष हुए वह
पुरुष रूपी नारायण की नाभि से ब्रह्मा जी हुए। फिर जब दोनों में विवाद हुआ तो
विवाद निवारण के लिए प्रत्यक्ष महादेव प्रकट हुए। फिर वही जगत के कल्याण के लिए
ब्रह्मा जी के कपाल से प्रकट हुए रूद्र रूप में । सोने के आभूषण में जिस प्रकार
सभी सोना है। इस तरह शिवजी के सगुण निर्गुण में कोई भेद नहीं है।
( ज्ञान - निरूपण )
इति ज्ञानं सदाज्ञेयं सर्वं शिवमयं जगत्।
शिवः सर्वमयो ज्ञेयः सर्वज्ञेन विपश्चिता।। को-43-3
यह सारा जगत शिवमय है। ऐसा ज्ञान निरंतर अनुशीलन करने योग्य है। इस प्रकार
सर्वज्ञ विद्वान को निश्चित रूप से शिव को सर्वमय जानना चाहिए। ब्रह्मा से लेकर
तृण पर्यंत जो कुछ संसार में दिख रहा है वह सब शिव ही है। वह इस जगत का निर्माण कर
उसमें प्रविष्ट होकर भी जगत से दूर रहते हैं । क्योंकि वह निर्लिप्त तथा
चित्स्वरूप वाले हैं । - शिव संबंधी यह विशिष्ट ज्ञान शिव को अत्यंत प्रसन्न करने
वाला, भोग मोक्ष देने वाला तथा दिव्य शिव भक्ति को बढ़ाने वाला है।
इस प्रकार शिव पुराण की आनंद प्रदान करने वाली तथा उत्कृष्ट कोटि
रूद्र नामक चौथी संहिता का वर्णन अभी तक हमने सुना। जो मनुष्य सावधान चित्त होकर
भक्ति पूर्वक इसे सुनता है अथवा सुनाता है वह इस लोक में संपूर्ण सुखों को भोगकर
अंत में परम गति को प्राप्त करता है।
कोटी रूद्र संहिता संपूर्ण
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उमा संहिता
( नरक वर्णन )
श्री शनत कुमार जी बोले- हे व्यास जी शरीर मन वाणी से बारह प्रकार
के पाप हुआ करते हैं।
न केचित्प्राणिनः सन्ति ये न यान्ति यमक्षयम्।
अवश्यं हि कृतं कर्म भोक्तव्यं तद्विचार्यताम्।। उ-7-4
ऐसा कोई प्राणी नहीं है जो यमलोक नहीं जाता। इसे अच्छी तरह विचार कर लीजिए कि
अपने किए कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है।
तत्र ये शुभकर्माणः सौम्यचित्ता दयान्विताः।
ते नरा यान्ति सौम्येन पूर्वं यमनिकेतनम्।।
ये पुनः पापकर्माणः पापा दानविवर्जिताः।
ते घोरेण पथा यान्ति दक्षिणेन यमालयम्।। उ- 7-5,6
उनमें जो शुभ कर्म करने वाले, सौम्यचित्त एवं दयालु होते हैं। वे मनुष्य
यमलोक में सौम्यमार्ग तथा पूर्व द्वार से जाते हैं। किंतु जो पापी पापकर्म में
निरत एवं दान से रहित हैं वे घोर मार्ग द्वारा दक्षिण द्वार से यमलोक में जाते
हैं।
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षडशीति सहस्त्राणि योजनानाम तीत्य तत्।
वैवस्वत पुरं ज्ञेयं नानारूपमवस्थितम्।। उ- 7-7
मृत्यु
लोक से छियासी हजार योजन की दूरी पार करके अनेक रूपों में स्थित सूर्यपुत्र यम के
पुर को जानना चाहिए । पापियों के जाने के मार्ग में बड़े नुकीले कांटे बिछे रहते
हैं, सिंह भेड़िए व्याघ्र बड़े-बड़े भयानक जीव जंतु मार्ग में चलते पापियों को
सताते हैं। भूख प्यास से व्याकुल होकर पापात्मा याचना करते हैं पर सुनता कौन है।
यमदूत तो अत्यंत निर्दयता के साथ घसीट कर यमपुरी ले जाते हैं। जिन पुरुषों ने कुछ
दान किया है उनके पास तो कुछ मार्ग का भोजन तथा जल रहता है उसे खाते पीते जाते
हैं। यमपुरी में बड़ी कठिनता से पहुंचते हैं । यमराज की आज्ञा से जीव को समुख किया
जाता है, जो श्रेष्ठ कर्म करने वाले होते हैं उनका तो यम आदर
भी करते हैं फिर उनके पुण्य के अनुसार विमान में बिठाकर स्वर्ग लोक भिजवा देते
हैं।