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शिव पुराण बुक डाउनलोड 85

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   शिव पुराण कथा भाग-85  

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जिन्हें नरकों में पटका जाता है , वह नरक इस पृथ्वी के नीचे सात पर्दों के भी नीचे अत्यंत अन्धकार में हैं। वह नरक अट्ठाइस प्रकार के हैं। जैसे खोटे सोने को अग्नि में डालकर शुद्ध करते हैं उसी प्रकार जीवात्माओं के पाप मैल को दूर करने के लिए उन्हें नाना नरकाग्नियों में डालकर शुद्ध किया जाता है। जिन पपियों ने माता-पिता गुरु को फटकारा हो उनके मुख विष्ठा से भर दिए जाते हैं फिर उन पर प्रहार किया जाता है।

जिन पपियों ने शिवालय मंदिर परिसर में अधर्म करते हैं उनको कोल्हू में पेरा जाता है फिर सृष्टि के संघार होने तक नरकाग्नि में पकाया जाता है। जो महात्माओं ब्राह्मणों की निंदा करते हैं उनकी जीभ काटकर कोणों से पीटा जात जाता है। धन होने पर भी जो दान नहीं करते, उनकी इंद्रियों को पीड़ित किया जाता है। इस प्रकार की अनेक यातनाएं पाप करने वालों को दी जाती हैं।

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( दान के प्रभाव से यमपुर के दुख का अभाव )
सनत कुमार जी बोले-
अत्र ये शुभ कर्माणः सौम्यचित्ता दयान्विताः।
सुखेन ते नरा यान्ति यममार्गं भयावहम्।। उ- 11-3
इस लोक में जो शुभ कर्म करने वाले शांत चित्त एवं दयालु मनुष्य हैं वह बड़े सुख के साथ भयानक यम मार्ग में जाते हैं। जो मनुष्य श्रेष्ठ ब्राह्मणों को चरण पादुका दान करते हैं वह उत्तम घोड़े पर बैठकर सुख पूर्वक यमपुरी को जाते हैं। सोने एवं रत्न का दान करने से मनुष्य घोर कष्ट को पार करता हुआ सुख से यमलोक जाता है। सभी दोनों में अन्न दान श्रेष्ठ कहा गया है क्योंकि यह तत्काल प्रसन्न करने वाला, हृदय को प्रिय लगने वाला एवं बल तथा बुद्धि को बढ़ाने वाला है। जल दान की भी बड़ी भारी महिमा कही गई है। मनुष्य द्वारा किए गए नाना प्रकार के पापों के निवृत्ति के लिए भिन्न-भिन्न प्रायश्चित कह गए हैं उन सभी प्रायश्चितों से तो बढ़कर भगवान शंकर का नाम स्मरण ध्यान सबसे उत्तम प्रायश्चित है।
( भूमंडल का विस्तार ) इस भूमंडल में सात द्वीप है जम्बू, प्लक्षु, शाल्मली, कुश, क्रोंच, शाक, पुष्कर यह सात महाद्वीप हैं। जिल द्वीप में हम रहते हैं वह जम्बू द्वीप है। सातों द्वीप की तरह सात समुद्र हैं।

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( भारत भूमि )
जम्मू द्वीप में भारत वर्ष पुण्य भूमि है इसमें भगवान के प्रिय साधु महात्मा भक्त निवास करते हैं। यहां पर गंगा गोदावरी नर्मदा सरस्वती आदि अनेकों पुण्य पवित्र नदियां हैं तथा महेंद्र मलय विन्ध्य चित्रकूट गोवर्धन आदि कई पुण्य पर्वत हैं जिनके दर्शन मात्र से जीव के ताप-पाप संताप निवृत हो जाते हैं ।
स्वर्गापवर्गास्पद मार्गभूते धन्यास्तु ते भारत भूमिभागे।
गायन्ति देवाः किल गीतकानि भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरास्ते।। उ- 18-19
स्वर्ग एवं मोक्ष के साधन भूत इस भारतवर्ष का गुणगान देवता लोग भी करते हैं ,अहा यह भारत भूमि धन्य है जहां देवता लोग भी पुरुष बनकर जन्म ग्रहण करते हैं।
जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमें रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।
वृक्षों में चंदन बड़ा नागों में जैसे शेष ।
नदियों में गंगा बड़ी देशों में भारत देश।।
बोलिए भारत भूमि की जय

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( व्यास जी का जन्म )
मुनि बोले- हे महाबुद्धे सूत जी आप व्यास जी की उत्पत्ति के विषय में कहिए और अपनी परम कृपा से हम लोग को कृतार्थ करिए। व्यास जी की माता सत्यवती कही गई हैं और उन देवी का विवाह राजा शांतनु से हुआ था तो महायोगी व्यास उनके गर्भ में पाराशर से किस प्रकार उत्पन्न हुए ? इस विषय में हम लोगों को महान संदेह है आप उसे दूर कीजिए। सूत जी बोले- हे मुनियों किसी समय तीर्थ यात्रा पर जाते हुए योगी पाराशर अकस्मात यमुना के सुंदर तट पर पहुंचे। तब उन धर्मात्मा ने भोजन करते हुए निषाद राज से कहा तुम मुझे शीघ्र ही नाव से यमुना के उस पर ले चलो।
तब निषाद ने अपनी मत्स्यगंधा नामक कन्या से कहा हे पुत्री तुम शीघ्र ही नाव से इन्हें पर ले जाओ।
तापसोऽयं महाभागे दृश्यन्ती गर्भसम्भवः।
तुतीर्षुरस्ति धर्माब्धिश्चतुराम्नायपारगः।। उ- 44-7
हे महाभागे! दृश्यन्ती के गर्भ से उत्पन्न हुए यह तपस्वी चारों वेदों के पारगामी विद्वान एवं धर्म के समुद्र हैं, ये इस समय यमुना पार करना चाहते हैं। पिता के इतना कहने पर मत्स्यगंधा सूर्य के समान कांति वाले उन महामुनि को नाव में बिठाकर पार ले जाने लगी। जो कभी अप्सराओं के रूप को देखकर भी मोहित नहीं हुए वे महायोगी पराशर मुनि काल के प्रभाव से उस मत्स्यगंधा के प्रति आसक्त हो उठे। उन मुनि ने उस मनोहर दास कन्या को ग्रहण करने की इच्छा से अपने दाहिने हाथ से उसके दाहिने हाथ का स्पर्श किया। तब उस कन्या ने कहा आप ऐसा कर्म क्यों कर रहे हैं ? हे ब्रह्मन आप वशिष्ठ के उत्तम कुल में उत्पन्न हुए हैं और मैं निषाद कन्या हूं, हम दोनों का संग कैसे संभव है ?

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पाराशर बोले- हे प्रिया मैं जो इस समय मुग्ध हुआ हूं उसमें निश्चय ही कुछ कारण समझो। अप्सराओं के रूप को देखकर भी मेरा मन कभी मोहित नहीं हुआ किंतु मछली के समान गंध वाली तुम्हें देखकर मैं मोंह के वसीभूत हो गया हूं। ललाट में लिखी हुई ब्रह्म लिपि अन्यथा होने वाली नहीं है। हे वरारोहे तुम्हारा पुत्र पुराण का कर्ता, वेद शाखाओं का विभाग करने वाला और तीनों लोकों में प्रसिद्ध होगा। ऐसा कहकर मनोहर अंगों वाली उस मत्स्यगंधा का संग कर योग प्रवीण पाराशर जी यमुना में स्नान कर शीघ्र चले गए।

उसके बाद उसे कन्या ने शीघ्र ही गर्भधारण किया और यमुना के द्वीप में सूर्य के समान प्रभाव वाले तथा कामदेव के समान सुंदर पुत्र को उत्पन्न किया। वह बालक अपने हाथ में कमंडल धारण किए हुए पीत वर्ण की जटाओं से सुशोभित और महान तेजो राशि वाला था। उत्पन्न होते ही उस तेजस्वी ने अपनी माता से कहा हे माता तुम अपने यथेष्ट स्थान को जाओ अब मैं भी जाता हूं । जब कभी भी तुम्हारा कोई अभीष्ट कार्य हो तब तुम्हारे द्वारा स्मरण किए जाने पर मैं तुम्हारी इच्छा की पूर्ति के लिए उपस्थित हो जाऊंगा । ऐसा कह कर उस महातपस्वी ने अपने माता के चरणों में प्रणाम किया और तप करने के लिए पाप नाशक तीर्थ में चला गया। यह व्यास जी भगवान विष्णु के अंशावतार हैं।
बोलिए व्यास भगवान की जय

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द्वीपेजातो यतो बालस्तेन द्वैपायनोऽभवत्।
वेद शाखा विभजनाद्वेदव्यासः प्रकीर्तितः।। उ- 44-44

द्वीप में उत्पन्न होने के कारण उस बालक का नाम द्वैपायन हुआ और वेद शाखों का विभाग करने के कारण वह वेदव्यास कहे गये। यह वेद व्यास जी अनेक देशों में कई तीर्थों में भ्रमण करते हुए वाराणसी पुरी में जा पहुंचे जहां कृपा निधान साक्षात विश्वेश्वर तथा माहेश्वरी अन्नपूर्णा अपने भक्तों को अमृतत्व प्रदान करने के लिए विराजमान हैं। वहां पर उन्होंने-
स्थापयामास पुण्यात्मा लिंग व्यासेश्वराभिधम्।
व्यासेश्वर नामक लिंग को स्थापित किया जिसके दर्शन से मनुष्य संपूर्ण विद्याओं में बृहस्पति के समान निपुण हो जाता है। भक्ति पूर्वक विश्वेश्वर आदि लिंगो का पूजन करके वह बार-बार विचार करने लगे की कौन सा लिंग शीघ्र सिद्धि प्रदान करने वाला है? जिसकी आराधना कर मैं संपूर्ण विद्याओं को प्राप्त करूं तथा जिसकी अनुग्रह से मुझे पुराण रचना की शक्ति प्राप्त हो। तब विचार कर उन्होंने मध्यमेश्वर शिवलिंग की आराधना करने लगे। व्यास जी कभी पत्ते का भक्षण कर रह जाते कभी फल एवं शाकाहार करते कभी वायु पीते कभी जल पीते एवं कभी निराहार ही रह जाते थे। इस प्रकार तीनों समय मध्यमेश्वर का पूजन करने लगे।

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उसी समय भक्तवत्सल भगवान मध्यमेश्वर शिवलिंग से प्रकट हो गए उनके वामांग में उमा सुशोभित हो रही थी। बड़ ही अनुपम स्वरूप था उनका दर्शन कर व्यास जी स्तुति करने लगे। तब भगवान शंकर उनसे वर मांगने को कहा तो व्यास जी बोले प्रभु आप तो अंतर्यामी हैं आपसे क्या बात छुपी है। बाल स्वरूप शिव बोले आपकी सभी अभिलाषाएं पूर्ण होगीं-
कण्ठे स्थित्वा तव ब्रह्मन्नन्तर्याम्य हमीश्वरः।
सेतिहासपुराणानि सम्यङ्निर्मापयाम्यहम्।। उ- 44-113
हे ब्रह्मण मैं अंतर्यामी ईश्वर स्वयं आपके कंठ में स्थित हो इतिहास पुराणों का निर्माण आपसे कराऊंगा। आपने यह जो अभिलाष्टक स्तोत्र कहा है, शिव स्थान में निरंतर एक वर्ष तक तीनों कालों में इसका पाठ करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होगीं। ऐसा कहकर बालक रूपधारी महादेव उसी शिवलिंग में अदृश्य हो गए। व्यास जी भगवान शिव की कृपा से अठारह पुराण की रचना की।

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