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संपूर्ण शिव पुराण PDF 89

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संपूर्ण शिव पुराण PDF 89

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   शिव पुराण कथा भाग-89  

संपूर्ण शिव पुराण PDF

वायवीय - संहिता 

( काल की महिमा का वर्णन ) 

कालादुत्पद्यते सर्वं कालादेव विपद्यते। 

न काल निरपेक्षं हि क्वचित्किंचन विद्यते ।। वा-पू-7-1

मुनिगण बोले- काल से ही सब कुछ उत्पन्न होता है और काल से ही सब कुछ नष्ट हो जाता है। काल के बिना कहीं कुछ भी नहीं होता। यह भगवत स्वरूप काल कौन है ? यह किसके अधीन रहने वाला है ? और कौन इसके वश में नहीं है ? वायुदेव बोलते हैं- 

कलाकाष्ठानि मेषादि कलाकलित विग्रहम्। 

काल्मात्मेति समाख्यातं तेजो माहेश्वरं परम्।। वा-पू-7-6

काल, काष्ठा, निमेष आदि इकाइयों से घटित मूर्तस्वरूप धारण करने वाला महेश्वर का परम तेज ही कालात्मा कहा गया है। जिसका उल्लंघन समस्त स्थावर तथा जंगम रूप वाला कोई भी प्राणी नहीं कर सकता। वह ईश्वर का आदेश रूप है और विश्व को अपने वश में रखने वाला ईश्वर का साक्षात बल है । 

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यह काल सदा शिव के अधीन है क्योंकि शिव शक्ति इसमें विद्यमान हैं तभी तो इसका रोकना महा कठिन है कोई भी इसका उल्लंघन नहीं कर सकता। समय-समय पर यह शीत ऊष्ण वायु चलता है , समयानुसार मेघ जल बरसा देते हैं, समय-समय पर ही सूर्य नारायण अपनी तीक्ष्ण किरणो से जगत को तप्त करते हैं और फिर शांत भी कर देते हैं। 

समय अनुसार खेतों में अन्नादिक पैदा हो जाते हैं। इन्हीं कारणों से यह काल भगवान शिव शक्ति द्वारा जगत को जीवन देता हुआ कारण बन रहा है । जो इस काल तत्व को तत्व रूप से समझ जाते हैं वे ही कालात्मा का अतिक्रमण कर काल से परे निर्गुण परमेश्वर का दर्शन कर लेता है। 

न यस्य कालो न च बंधमुक्ती नयः पुमान्न प्रकृतिर्न विश्वम्। 

विचित्र रूपाय शिवाय तस्मै नमः परस्मै परमेश्वराय।। 

जिसका ना काल है, ना बंधन है और ना मुक्ति है, जो ना पुरुष है ना प्रकृति है तथा ना विश्व है, उस विचित्र रूप वाले परात्पर परमेश्वर शिव को नमस्कार है । 

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( तीनों देवों की आयु का वर्णन )

ऋषि बोले- हे वायु देवता अब आप कृपा करके आयु का परिमाण एवं संख्या सुनाइए ? वायु देवता बोले- आयु का पहला मान निमेष कहा जाता है। संख्या रूप काल की शान्त्यतीत कला चरम सीमा है।

 अक्षिपक्ष्म परिक्षेपो निमेषः परिकल्पितः। 

पलक गिरने में जो समय लगता है उसे ही निमेष कहा गया है । उस प्रकार के पन्द्रह निमेषों की एक काष्ठा होती है, तीस काष्ठाओं की एक कला, तीस कलाओं का एक मुहूर्त और तीस मुहूर्त का एक अहोरात्र कहा जाता है। मास तीस दिन रात का तथा दो पक्षों वाला होता है। एक मास बराबर पितरों का एक अहोरात्र होता है । जिसमें रात्रि कृष्ण पक्ष और दिन शुक्ल पक्ष माना जाता है । छः महीना का एक अयन होता है, दो अयनों का एक वर्ष माना गया है। जिसे लौकिक मान से मनुष्यों का एक वर्ष कहा गया है। यही एक वर्ष देवताओं का एक अहोरात्र यानी दिन और रात होता है ऐसा शास्त्र का निश्चय है। दक्षिणायन देवताओं की रात्रि एवं उत्तरायण दिन होता है।

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मनुष्यों की भांति देवताओं के भी तीस अहोरात्रों को उनका एक मास कहा गया है और इस प्रकार के बारह महीनों का देवताओं का भी एक वर्ष होता है। मनुष्यों के तीन सौ साठ वर्षों का देवताओं का एक वर्ष जानना चाहिए। उसी दिव्य वर्ष से युग संख्या होती है। विद्वानों ने जगत में चार युगों की कल्पना की है। सबसे पहले सतयुग इसके बाद त्रेता होता है फिर द्वापर तथा कलयुग होता है। इस प्रकार कुल चार युग हैं । इनमें देवताओं का चार हजार वर्षों का सतयुग होता है, इसके अतिरिक्त चार सौ वर्षों की संध्या तथा इतने ही वर्षों का सन्ध्यांश होता है। अन्य तीन युगों में वर्ष तथा संध्या- संध्यांश में एक एक पाद क्रमशः हजार तथा सौ कम होता जाएगा। 

युग                                                  वर्ष                                    संध्या- संध्या

1- सतयुग                 -                 4000 वर्ष                -                  400 वर्ष

2- त्रेतायुग                -                 3000 वर्ष                -                  300 वर्ष

3- द्वापरयुग              -                 2000 वर्ष                -                  200 वर्ष

4- कलयुग                -                 1000 वर्ष                -                  100 वर्ष

इस तरह संध्या एवं संध्याश सहित चारों युग बारह हजार वर्ष होते हैं। एक हजार चतुर्युगी एक कल्प कहा जाता है। मनुष्यों के वर्ष में कलयुग की आयु- चार लाख बत्तीस हजार वर्ष है । द्वापर कि इससे दोगुना आठ लाख चौंसठ हजार वर्ष , त्रेता की तीन गुना बारह लाख छियान्नवे हजार वर्ष और सतयुग की कलयुग की चार गुना सत्रह लाख अठ्ठाइस हजार वर्ष । 

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देवताओं की चतुर्युगी बारह हजार वर्ष की होती है और मनुष्यों की चतुर्युगी तिरालिस लाख बीस हजार वर्ष का होता है । इकहत्तर चतुर्युगी का एक मन्वंतर होता है। एक कल्प में चौदह मनुओं का आवर्तन होता है। इस क्रम से प्रजाओं सहित सैकड़ो हजारों कल्प और मन्वंतर बीत चुके हैं जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता। 

कल्पो नाम दिवा प्रोक्तो ब्रह्मणोऽव्यक्त जन्मनः। 

कल्पानां वै सहस्त्रं च ब्राह्मं वर्षमिहोच्यते।। वा-पू-8-19

एक कल्प के बराबर अव्यक्त जन्मा ब्रह्मा जी का एक दिन कहा गया है तथा यहां पर हजार कल्पों का ब्रह्मा का एक वर्ष कहा जाता है। ऐसे आठ हजार वर्षों का ब्रह्मा का एक युग होता है और ब्रह्मा जी के हजार युगों का एक सवन होता है और नौ हजार सवनों का ब्रह्मा जी का कलमान कहा गया है। ब्रह्मा के पूरी आयु में पांच लाख चालीस हजार इंद्र व्यतीत हो जाते हैं। 

ब्रह्मा की पूरी आयु विष्णु जी का एक दिन और विष्णु जी की आयु बराबर रुद्र का एक दिन। रुद्र की आयु बराबर ईश्वर का एक दिन और ईश्वर सत नामक शिव के एक दिन पर्यंत रहते हैं। 

साक्षाच्छिवस्य तत्संख्यस्तथा सोऽपि सदाशिवः। 

चत्वारिंशत्सहस्त्राणि पञ्चलक्षाणि चायुषि।। 

यही साक्षात शिव के लिए काल की संख्या है, उन्हें सदाशिव भी कहा जाता है । उनकी पूर्ण आयु में पूर्वोत्त क्रम से पांच लाख चालीस हजार रूद्र हो जाते हैं। उन सदाशिव द्वारा ही वह कालात्मा  प्रवर्तित होता है । यह औपचारिक व्यवहार तो लोकोहित की कामना से किया जाता है। वस्तुतः परमेश्वर की ना कोई रात है ना दिन है। 

बोलिए सदाशिव भगवान की जय 

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( वर्णाश्रम धर्म ) 

महादेव जी कहते हैं- देवी अब मैं अधिकारी विद्वान एवं श्रेष्ठ ब्राह्मण भक्तों के लिए संक्षेप में वर्ण धर्म का वर्णन करता हूं । स्नान, अग्निहोत्र, विधिवत शिवलिंग पूजन, ईश्वर प्रेम, दया, सत्य भाषण, संतोष, आस्तिकता, किसी भी जीव की हिंसा न करना, श्रद्धा ए सभी वर्णों के लिए सामान्य धर्म हैं। 

ब्राह्मणों के लिए विशेष धर्म ये है- 

क्षमा शान्तिश्च सन्तोषः सत्यमस्तेयमेव च। 

क्षमा, शांति ,संतोष, सत्य, अस्तेय ( चोरी ना करना ) ब्रह्मचर्य, शिव ज्ञान, वैराग्य, भस्म सेवन और सब प्रकार की आसक्तियों से निवृत्ति इन दस धर्म को ब्राह्मणों का विशेष धर्म कहा गया है। 

अब योगियों ( यतियों ) के लक्षण बताए जाते हैं- दिन में भिक्षान्न  भोजन उनका विशेष धर्म है यह वानप्रस्थ आश्रम के लिए भी सामान है । 

क्षत्रियों का धर्म- सब वर्णों की रक्षा करना, सेना का संरक्षण करना, पृथ्वी की रक्षा करना। 

वैश्यों का धर्म- गो रक्षा करना, वाणिज्य और कृषि ये वैश्य के धर्म बताए गए हैं। 

सेवा शूद्र का धर्म कहा गया है। 

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( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

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