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शिव पुराण PDF Free Download 87

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   शिव पुराण कथा भाग-87  

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पञ्च वर्ष सहस्त्राणि बाहुप्रहरणो विभुः।
तावप्यति बलोन्मत्तौ महामायाविमोहितौ।। दु-1-94

श्री हरि ने उठकर उन दोनों से पांच हजार वर्षों तक केवल बाहु युद्ध किया वे दोनों भी अत्यंत बल के कारण उन्मत्त हो रहे थे, इधर महामाया ने भी उन्हें मोंह में डाल रखा था इसीलिए वह भगवान विष्णु से कहने लगे- हम तुम्हारी वीरता से प्रशन्न हैं! संतुष्ट हैं तुम हम लोगों से कोई वर मांगो ? श्री भगवान बोले-
भवेता मद्य मे तुष्टौ मम वध्या वुभावपि।
यदि तुम दोनों मुझ पर प्रसन्न हो तो अब मेरे हाथ से मारे जाओ । यह सुनकर दैत्य बोले- जिस पृथ्वी पर जल दिखाई ना दे उसी स्थान पर तुम हमको मार सकोगे तब-
तथेत्युक्त्वा भगवता शङ्खचक्रगदाभृता।
कृत्वा चक्रेण वै च्छिन्ने जघने शिरसी तयोः।।
तथास्तु कहकर शंख चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान ने उन दोनों के मस्तक अपनी जंघा पर रखकर चक्र से काट डाले। मेधा ऋषि बोले- हे राजन इस प्रकार मैंने आपसे कालिका की उत्पत्ति कह दी अब महालक्ष्मी की उत्पत्ति का वृतांत सुनिए।

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( महालक्ष्मी अवतार कथा )
ऋषि बोले- दैत्यों के कुल में रम्भासुर नाम का एक श्रेष्ठ दैत्य हुआ था महिषासुर नाम का उसका पुत्र हुआ । वह युद्ध में सभी देवताओं को जीतकर इंद्र के सिंहासन पर बैठकर स्वर्ग का राज्य करने लगा। तब दुखी होकर देवता ब्रह्मा जी के साथ विष्णु भगवान तथा शंकर जी के पास पहुंचे । देवताओं के सभी वृत्तांत सुनकर विष्णु तथा शंकर जी को क्रोध उत्पन्न हुआ ,तब उन दोनों के मुख से तथा देवताओं के शरीर से एक तेज उत्पन्न हुआ। वही सबका तेज मिलकर एक स्त्री का रूप धारण करके प्रकट हो गया।
अतुलं तत्र तत्तेजः सर्वदेव शरीरजम्।
एकस्थं तदभून्नारी व्याप्त लोकत्रयं त्विषा।। दु-2-13
तब उसे देखकर प्रसन्न होते हुए देवताओं ने अनेकों आयुध तथा आभूषण दिए, जिन्हें धारण करके उस देवी ने महान अट्टहास करके गर्जना कि, उस गर्जना से पृथ्वी व आकाश भर गया। तब देव शत्रु दैत्य ने उस शब्द को सुनकर अपने-अपने हथियार उठा लिए, महिषासुर भी सभी दैत्यों को साथ लेकर संग्राम करने वहां आ गया और महामाया को देखा। महामाया के प्रभाव से वहां आए हुए करोड़ों दैत्यों के सभी शस्त्र बेकार हो तब उन मातेश्वरी ने शुल शक्ति द्वारा अनेकों चक्षु रात्रि दैत्यों का विनाश कर दिया। दैत्यों के मारे जाने पर देवी के स्वास से उत्पन्न होने वाले देवताओं को महिषासुर मारने लगा।

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वह पराक्रमी दैत्य अपने खुरों द्वारा पृथ्वी को तथा सीगों द्वारा पर्वतों को उखाड़ कर फेंकने लगा। महादैत्य को अपनी ओर आते देख चंडिका ने उसको मारने के लिए महान क्रोध किया। उन्होंने पाश फेंक कर उस महान असुर को बांध लिया। उस महासंग्राम में बंध जाने पर उसने भैंसे का रूप त्याग दिया और तत्काल सिंह के रूप में प्रकट हो गया। तब जगदंबा ज्यों ही उसका मस्तक काटने के लिए उद्यत हुई, त्यों ही वह खडगधारी पुरुष के रूप में दिखाई देने लगा। तब देवी ने बांणो की वर्षा कर उसको बींध डाला। इतने में ही वह महान गजराज के रूप में हो गया और अपनी विशाल सूंड से देवी के सिंह को खींचने लगा, तब देवी ने तलवार से उसकी सूंड काट डाली। तब वह पुनः महिष- भैंसे के रूप में आ गया और जोर-जोर से गर्जने लगा। तब क्रोध में भरी हुई जगन्माता चंडिका बारंबार उत्तम मधु का पान करने लगी और लाल आंखें करके हंसते हुए बोली-
गर्ज गर्ज क्षणं मूढ़ मधु यावत्पिबाम्यहम्।
मया त्वयि हतेऽत्रैव गर्जिष्यन्त्याशु देवता।।
वो मूढ़ मैं जब तक मधु पीती हूं, तब तक तू क्षण भर के लिए खूब गर्ज ले, मेरे हांथ से यहीं तेरी मृत्यु हो जाने पर अब शीघ्र ही देवता भी गर्जना करेंगे। यह कहकर महामाया ने उछलकर उसे अपने पैरों से कुचल डाला और उसकी ग्रीवा में अपना त्रिशूल बींध दिया जिससे वह पृथ्वी पर सदा के लिए सो गया। हाहाकार करते हुए सभी देवतागण इधर-उधर भाग गए।
ततो हाहा कृतं सर्वं दैत्यसैन्यं ननाशतत्।
प्रहर्षं च परं जग्मुः सकला देवतागणाः।।
तुष्टु वुस्तां सुरादेवीं सह दिव्यैर्महर्षिभिः।
जगुर्गन्धर्व पतयो ननृतुश्चाप्सरोगणाः।।
दु-़3-43, 44
इंद्रादिर देवताओं ने महर्षियों के साथ देवी की स्तुति की, गंधर्व गाने लगे ,अप्सराएं नाचने लग लगी।
बोलिए महालक्ष्मी मैया की जय

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( धूम्र लोचन, चंड-मुंड आदि असुरों का वध )
मेधा ऋषि बोले- शुंभ निशुंभ नाम के दो दैत्य परम पराक्रमी हुए जिनमें तेज से चराचर त्रिलोकी कांप उठी। दोनों से दुखी होकर सभी देवता हिमाचल पर जगत की जननी श्री पार्वती जी के पास पहुंचे उन्हें प्रणाम कर उनकी स्तुति करने लगे-
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताःस्मताम्।।
रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्र्यै नमो नमः।
ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नमः।।
दु-5-9, 10
देवी को नमस्कार है ,महादेवी शिवा को सर्वदा नमस्कार है ,प्रकृति एवं भद्रा को प्रणाम है, सुख स्वरूपा देवी को सतत प्रणाम है।
या साम्प्रतं चोद्धतदैत्यतापितै रस्माभिरीशा च सुरैर्नमस्यते।
या च स्मृता तत्क्षण मेव हन्ति नः सर्वापदो भक्ति विनम्र मूर्तिभिः।।
उद्दंण्ड दैत्यों से सताये हुए हम सभी देवता जिन परमेश्वरी को इस समय नमस्कार करते हैं, तथा जो भक्ति से विनम्र पुरुषों द्वारा स्मरण किए जाने पर तत्काल ही संपूर्ण विपत्तियों का नाश कर देती हैं। वे जगदंबा हमारा संकट दूर करें।

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इस प्रकार जब देवता स्तुति कर रहे थे, उस समय पार्वती देवी गंगा जी के जल में स्नान करने के लिए वहां आई । भगवती ने देवताओं से पूंछा आप लोग यहां किसकी स्तुति कर रहे हैं ? तब उन्हीं के शरीर से प्रकट हुई शिवा देवी बोलीं- शुम्भ दैत्य से तिरस्कृत और युद्ध में निशुंभ से पराजित हो यहां एकत्रित हुए ये समस्त देवता यह मेरी ही स्तुति कर रहे हैं। 

शरीर कोशाद्यत्तस्याः पार्वत्याः निः सृताम्बिका। 

कौशिकीति समस्तेषु ततो लोकेषु गीयते।। 

पार्वती के शरीर कोष से अंबिका प्रादुर्भाव हुआ था इसीलिए वह समस्त लोकों में कौशिकी कही जाती हैं। 

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