shrimad bhagwat katha in hindi श्रीमद् भागवत महापुराण कथानक

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      ( भाग-2 )     


( अथ तृतीयो अध्यायः )

नारद जी बोले मैं !ज्ञान बैराग और भक्ति के कष्ट निवारण हेतु ज्ञान यज्ञ करूंगा , हे मुनि आप उसके लिए स्थान बताएं कुमार बोले गंगा के किनारे आनंद नामक तट है वहीं ज्ञान यज्ञ करें इस प्रकार कह कर सनकादि नारद जी के साथ गंगा तट पर आ गए, इस कथा का भूलोक में ही नहीं बल्कि स्वर्ग तथा ब्रह्म लोक तक हल्ला हो गया और बड़े-बड़े संत भ्रुगू वशिष्ठ च्यवन गौतम मेधातिथि देवल देवराज परशुराम विश्वामित्र साकल मार्कंडेय पिप्पलाद योगेश्वर व्यास पाराशर छायाशुक आदि उपस्थित हो गए | व्यास आसन पर श्री सनकादिक ऋषि विराजमान हुए तथा मुख्य श्रोता के आसन पर नारद जी विराजमान हुए, आगे महात्मा लोग ,

एक ओर देवता बैठे पूजा के बाद श्रीमद्भागवत का महात्म्य सुनाने लगे |

श्लोक- मा• 3.42

जिसने श्रीमद् भागवत कथा को थोड़ा भी नहीं सुना उसने अपना सारा जीवन चांडाल और गधे के समान खो दिया तथा जन्म लेकर अपनी मां को व्यर्थ मे कष्ट दिया , वह पृथ्वी पर भार स्वरूप है | जब भगवान पृथ्वी को छोड़कर गोलोकधाम जा रहे थे दुखी उद्धव के पूछने पर बताया था कि मैं अपने स्वरूप को भागवत में रखकर जा रहा हूं अतः यह भागवत कथा भगवान का वांग्मय स्वरूप है | श्री सूतजी कहते हैं ---

श्लोक- मा• 3.66.67.68

इसी बीच में एक महान आश्चर्य हुआ , हे सोनक उसे तुम सुनो भक्ति महारानी अपने दोनों पुत्रों के सहित-- श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव, गाती हुई सभा में आ गई और सनकादिक से बोली मैं इस कलयुग में नष्ट हो गई थी, आपने मुझे पुष्ट कर दिया अब आप बताएं मैं कहां रहूं ? कुमार बोले तुम भक्तों के हृदय में निवास करो |

इति तृतीयो अध्यायः

( अथ चतुर्थो अध्यायः )

गोकर्ण उपाख्यान--- जो मानव सदा पाप में लीन रहते हैं दुराचार करते हैं क्रोध अग्नि में जलते रहते हैं ! इस भागवत के सुनने से पवित्र हो जाते हैं |

श्लोक- मा• 4.11

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अब आपको एक प्राचीन इतिहास सुनाता हूं, एक आत्मदेव नामक ब्राह्मण एक नगरी में रहा करता था, उसके धुंधली नाम की पत्नी थी ब्राह्मण विद्वान एवं धनी था उसकी पत्नी झगड़ालू एवं दुष्टा थी, ब्राह्मण के कोई संतान न थी अतः दुखी रहता था कयी उपाय करने के बाद भी उसके संतान नहीं हुई तो अंत में दुखी होकर आत्महत्या करने के लिए जंगल में गया वहां वह एक महात्मा से मिला ब्राम्हण उसके चरणों में गिर गया और कहने लगा कि---

मुझे संतान दो नहीं तो आपके चरणों में ही आत्महत्या कर लूंगा

महात्मा ने उसे समझाया कि तुम्हारे भाग्य में संतान नहीं है किंतु उसने एक नहीं सुनी और आत्महत्या के लिए तैयार हो गया तब दया करके महात्मा ने उसे एक फल दिया और कहा इसे अपनी पत्नी को खिला देना तुम्हें संतान हो जाएगी |ब्राह्मण फल को लेकर प्रसन्नता पूर्वक अपने घर को आ गया और वह फल अपनी पत्नी को खाने के लिए दे दिया पत्नी ने वह फल बाद में खा लूंगी कह कर ले लिया और सोचने लगी अहो इस फल के भक्षण से तो मेरे गर्भ रह जाएगा उससे तो मेरा पेट भी बढ़ जाएगा |

उससे मैं ठीक से भोजन भी नहीं कर पाऊंगी

यदि कहीं गांव में आग लग गई तो सब लोग तो भाग जाएंगे मैं भाग भी नहीं पाऊंगी ऐसे कुतर्क कर उस फल को नहीं खाया , इतने में उसकी छोटी बहन आ गई धुंधली ने अपना सारा दुख छोटी बहन को सुनाया और कहा कि बता मैं क्या करूं छोटी बहन बोली इस फल को गाय को खिला दें वह भी बांझ है परीक्षा हो जाएगी और तुम अपने पति को बता देना कि फल मैंने खा लिया और मैं गर्भवती हो गई हूं ,और मुझे सेवा के लिए एक दासी की जरूरत है और मैं आपकी दासी बनकर आ जाऊंगी और आपकी सेवा करूंगी क्योंकि मैं गर्भवती हूं मेरा जो बच्चा होगा उसे आपका बता दूंगी इसके बदले आप मुझे थोड़ा धन दे देना जिससे मेरा भी काम चल जाएगा |
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यह सब बातें धुंधली ने अपने पति को बता दी और फल गाय को खिला दिया ,

समय पाकर बहन को बालक हुआ उसे धुंधली ने मेरे बच्चा हुआ ऐसा कह दिया , धुंधली ने उसका नाम धुंधकारी रख दिया , कुछ समय बाद गाय के भी अद्भुत बालक हुआ जिसके कान गाय के जैसे तथा सारा शरीर मानव का था |आत्म देव ने उनका नाम गोकर्ण रखा----

श्लोक- मा• 4.66

बड़े होकर गोकर्ण महान ज्ञानी हुए तथा धुंधकारी महा दुष्ट हुआ हिंसा, चोरी, व्यभिचाऱ मदिरापान करने वाला जिसे देखकर आत्म देव बड़े दुखी हुए कहने लगे कुपुत्रो दुखदायक इससे तो बिना पुत्र ही ठीक था | पिता को दुखी देखकर गोकर्ण बोले----

श्लोक- मा• 4.79

गौकर्ण जी ने पिता को समझाया इस मांस मज्जा के शरीर के मोह को त्याग पुत्र घर से आसक्ति को छोड़ वन में जाकर भगवान का भजन करें | इतना सुनकर आत्मदेव वन में जाकर भजन करने लगे, गौकर्ण जी तीर्थाटन को चले गए |

इति चतुर्थो अध्यायः

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