भागवत कथानक तृतीय स्कंध भाग-3
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स्वायम्भुवस्य च मनोर्वंशः परम सम्मतः |
कथ्यतां भगवन यत्र मैथुनेनैधिरे प्रजा: ||
मुनिवर आप परम आदरणीय श्री स्वयंभू मनु के वंश का वर्णन कीजिए ,जिसमें मैथुन धर्म से प्रजा की सृष्टि हुई थी |मैत्रेय जी कहते हैं विदुर जी जब ब्रह्मा जी ने ऋषि कर्दम को संतान उत्पन्न करने की आज्ञा दी तो वे सरस्वती नदी के तट पर तपस्या करने लगे 10000 वर्षों की तपस्या के पश्चात भगवान श्रीहरि प्रसन्न हो गए उन्होंने दर्शन दिया और ऋषि कर्दम से वरदान मांगने के लिए कहा |
ऋषि कर्दम ने कहा ...
तथा स चाहं परिवोढुकामः
समानशीलां गृहमेधधेनुम् |
उपेयिवान्मूल मशेषमूलं
दुराशयः कामदुघाङ्घ्रिपस्य ||
प्रभु आपके चरण समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं मेरा हृदय काम से कलुसित है | मैं अपने अनुरूप स्वभाव वाले गृहस्थ धर्म में सहायक शीलवती कन्या से विवाह करने की इच्छा से आपके चरणों की शरण में आया हूं , प्रभु आप मेरी इस कामना को पूर्ण कीजिए ऋषि कर्दम के इस कामना को भगवान नारायण ने सुना तो उनकी आंखों से अश्रु बिंदु निकलकर पृथ्वी में गिर गया | जिससे बिंदु सरोवर तीर्थ प्रकट हुआ |
( बोलिए बिंदु सरोवर तीर्थ की जय )
भगवान नारायण ने कहा कर्दम जी मैं आपके हृदय के भाव को जानता था इसीलिए मैंने पहले से ही इसकी व्यवस्था कर दी है स्वयंभू मनु जो इस सप्त द्वीप वाली पृथ्वी के अधिपति हैं उनकी कन्या देवहूति जो रूप और स्वभाव में तुम्हारे ही अनुरूप है |
परसों स्वयंभू मनु अपनी पत्नी शतरूपा और अपनी कन्या देवहूति के साथ आपके आश्रम में आएंगे और उसका विवाह आपके साथ होगा जिससे नव कन्याएं होंगी दशवें पुत्र के रूप में मैं स्वयं अवतीर्ण होउगा |
ऐसा कह भगवान श्रीहरि अंतर्ध्यान हो गए ऋषि कर्दम स्वयंभू मनु की प्रतीक्षा करने लगे भगवान के बताए हुए समय पर स्वयंभू मनु स्वर्ण जडित रथ पर सवार हो अपनी महारानी सतरूपा और देवहूति के साथ ऋषि कर्दम के आश्रम पर पधारे |
ऋषि कर्दम ने उनका स्वागत सत्कार किया स्वयंभू मनु ने ऋषि कर्दम के चरणों में प्रणाम किया और कहा मुनिवर यह प्रियव्रत और उत्तानपाद की छोटी बहन और मेरी पुत्री देवहूति है | जब से इस ने देवर्षि नारद के मुख से आपके शील, विद्या और रूप का वर्णन सुना है तब से आपको ही है पति बनाने का निश्चय कर चुकी है , आप इससे पाणिग्रहण कर इसे पत्नी के रूप में स्वीकार कीजिए |
ऋषि कर्दम ने कहा महाराज मैं आपकी बात को अवश्य पूर्ण करूंगा परंतु मेरी एक शर्त है संतान हो जाने के पश्चात में सन्यास हो जाऊंगा यदि आपको यह शर्त स्वीकार है तो मैं पानी ग्रहण करने के लिए तैयार हूं |
महाराज मनु ने रानी सतरूपा और देवहूति के अनुमति से ब्राम्ह विधि से मुनि कर्दम के साथ देवहुति का विवाह किया और बहुत सा दहेज दे ऋषि कर्दम से आज्ञा ले वहां से लौट आए |
यहां माता पिता के चले जाने पर पति के अभिप्राय को समझ लेने में कुशल देवहूति जैसे मां पार्वती भगवान शंकर की सेवा करती हैं , वैसे ही ऋषि कर्दम की सेवा करने लगी ऋषि कर्दम देवहूति की सेवा से प्रसन्न हो गए उन्होंने कहा.....
परसों स्वयंभू मनु अपनी पत्नी शतरूपा और अपनी कन्या देवहूति के साथ आपके आश्रम में आएंगे और उसका विवाह आपके साथ होगा जिससे नव कन्याएं होंगी दशवें पुत्र के रूप में मैं स्वयं अवतीर्ण होउगा |
ऐसा कह भगवान श्रीहरि अंतर्ध्यान हो गए ऋषि कर्दम स्वयंभू मनु की प्रतीक्षा करने लगे भगवान के बताए हुए समय पर स्वयंभू मनु स्वर्ण जडित रथ पर सवार हो अपनी महारानी सतरूपा और देवहूति के साथ ऋषि कर्दम के आश्रम पर पधारे |
ऋषि कर्दम ने उनका स्वागत सत्कार किया स्वयंभू मनु ने ऋषि कर्दम के चरणों में प्रणाम किया और कहा मुनिवर यह प्रियव्रत और उत्तानपाद की छोटी बहन और मेरी पुत्री देवहूति है | जब से इस ने देवर्षि नारद के मुख से आपके शील, विद्या और रूप का वर्णन सुना है तब से आपको ही है पति बनाने का निश्चय कर चुकी है , आप इससे पाणिग्रहण कर इसे पत्नी के रूप में स्वीकार कीजिए |
ऋषि कर्दम ने कहा महाराज मैं आपकी बात को अवश्य पूर्ण करूंगा परंतु मेरी एक शर्त है संतान हो जाने के पश्चात में सन्यास हो जाऊंगा यदि आपको यह शर्त स्वीकार है तो मैं पानी ग्रहण करने के लिए तैयार हूं |
महाराज मनु ने रानी सतरूपा और देवहूति के अनुमति से ब्राम्ह विधि से मुनि कर्दम के साथ देवहुति का विवाह किया और बहुत सा दहेज दे ऋषि कर्दम से आज्ञा ले वहां से लौट आए |
यहां माता पिता के चले जाने पर पति के अभिप्राय को समझ लेने में कुशल देवहूति जैसे मां पार्वती भगवान शंकर की सेवा करती हैं , वैसे ही ऋषि कर्दम की सेवा करने लगी ऋषि कर्दम देवहूति की सेवा से प्रसन्न हो गए उन्होंने कहा.....
तुष्टोहमद्य तव मानवि मानदायाः
शुश्रूषया परमया परया च भक्त्या |
यो देहिनामयमतीव सुह्रत्स्वदेहो
नावेक्षितः समुचितः क्षपितु ं मदर्थे ||
हे मनु नंदिनी देवहूति प्राणियों को अपना शरीर अत्यंत प्यारा होता है | परंतु तुमने अपने शरीर की परवाह है ना करके मेरी जो सेवा की है उससे में प्रसन्न हो गया तुम्हारी जो इच्छा हो वह मुझ से मांग लो देवहूति ने कहा प्रभु विवाह के समय आपने जो प्रतिज्ञा की थी उसे पूर्ण करो |
देवहूति के इस प्रकार कहने पर ऋषि कर्दम ने योग में स्थित होकर एक दिव्य विमान की रचना की जो विमान समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला था इच्छा अनुसार सर्वत्र आने जाने वाला था इतने दिव्य विमान को देवहूति ने देखा और फिर अपनी ओर देखा तो अप्रशन्न हो गई |
ऋषि कर्दम देवहूति के अभिप्राय को समझ गए उन्होंने कहा देवी इस बिंदु सरोवर में स्नान करो और फिर जाओ जैसे बिंदु सरोवर में डुबकी लगाई 1000 दासियां प्रगट हो गई उन्होंने देवहूति को स्नान कराया उनका श्रृंगार किया और ऋषि कर्दम के पास ले आई |
ऋषि कर्दम देवहूति के साथ उस विमान में चढ गए औरवैश्रम्भक , सुरसन, नन्दन ,पुष्प भद्र ,मानसरोवर और चैत्ररथ आदि अनेकों देव उद्यानों में अनेकों वर्षों तक भ्रमण करते रहे इसी समय उनकी नौ कन्यायें हुयीं | कन्याओं के जन्म के पश्चात जब ऋषि कर्दम वन की ओर जाने लगे तो देवहूति ने कहा प्रभु यद्यपि आपने अपनी प्रतिज्ञा को पूर्ण कर दिया है लेकिन आप के ना रहने पर इन कन्याओं के लिए वर कौन खोजेगा और मेरे दुख का नाश करने वाला कौन होगा |
देवहूति ने जब इस प्रकार कहा ऋषि कर्दम को भगवान का वचन स्मरण हो आया उन्होंने कहा देवहूति दुखी मत हो तुम्हारे गर्भ से कपिल भगवान अवतीर्ण होगें और वे ही तुम्हारे दुख का नाश करेंगे | समय आने पर कर्दम ऋषि के तेज से देवहूति के गर्भ से कपिल भगवान का प्रादुर्भाव हुआ |
देवहूति के इस प्रकार कहने पर ऋषि कर्दम ने योग में स्थित होकर एक दिव्य विमान की रचना की जो विमान समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला था इच्छा अनुसार सर्वत्र आने जाने वाला था इतने दिव्य विमान को देवहूति ने देखा और फिर अपनी ओर देखा तो अप्रशन्न हो गई |
ऋषि कर्दम देवहूति के अभिप्राय को समझ गए उन्होंने कहा देवी इस बिंदु सरोवर में स्नान करो और फिर जाओ जैसे बिंदु सरोवर में डुबकी लगाई 1000 दासियां प्रगट हो गई उन्होंने देवहूति को स्नान कराया उनका श्रृंगार किया और ऋषि कर्दम के पास ले आई |
ऋषि कर्दम देवहूति के साथ उस विमान में चढ गए औरवैश्रम्भक , सुरसन, नन्दन ,पुष्प भद्र ,मानसरोवर और चैत्ररथ आदि अनेकों देव उद्यानों में अनेकों वर्षों तक भ्रमण करते रहे इसी समय उनकी नौ कन्यायें हुयीं | कन्याओं के जन्म के पश्चात जब ऋषि कर्दम वन की ओर जाने लगे तो देवहूति ने कहा प्रभु यद्यपि आपने अपनी प्रतिज्ञा को पूर्ण कर दिया है लेकिन आप के ना रहने पर इन कन्याओं के लिए वर कौन खोजेगा और मेरे दुख का नाश करने वाला कौन होगा |
देवहूति ने जब इस प्रकार कहा ऋषि कर्दम को भगवान का वचन स्मरण हो आया उन्होंने कहा देवहूति दुखी मत हो तुम्हारे गर्भ से कपिल भगवान अवतीर्ण होगें और वे ही तुम्हारे दुख का नाश करेंगे | समय आने पर कर्दम ऋषि के तेज से देवहूति के गर्भ से कपिल भगवान का प्रादुर्भाव हुआ |
( बोलिए कपिल भगवान की जय )
यहां ब्रह्मा जी अपने नौ पुत्रों के साथ ऋषि कर्दम के आश्रम में पधारे और कर्दम ऋषि की नौ कन्याओं से अपने नौ पुत्रों का विवाह कर दिया | मरीचि का विवाह कला से , अत्रि का विवाह अनुसूया से , अंगिरा का श्रद्धा से , पुलस्त्य का हविर्भू से , पुलः का गति से , कृतु का क्रिया से , भृगु का ख्याति से , वशिष्ठ का अरुंधति से और अथर्वा का विवाह शांति से हुआ |
एक दिन ऋषि कर्दम एकांत में कपिल भगवान के पास आए उनके चरणों में प्रणाम किया और उनसे आज्ञा ले सन्यास धर्म को स्वीकार कर भगवान का भजन कर भगवान को प्राप्त कर लिया |
एक दिन ऋषि कर्दम एकांत में कपिल भगवान के पास आए उनके चरणों में प्रणाम किया और उनसे आज्ञा ले सन्यास धर्म को स्वीकार कर भगवान का भजन कर भगवान को प्राप्त कर लिया |