Bhagwat Katha in hindi भागवत कथानक चतुर्थ स्कन्ध , भाग- 1

 भागवत कथानक चतुर्थ स्कंध ,भाग- 1
श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा Bhagwat Katha story in hindi
चतुर्थ स्कंध को विसर्ग कहते हैं ||
ब्रम्हणो गुणवैषम्याद विसर्गः पौरुषः स्मृतः |
ब्रह्मा जी से लेकर चराचर जगत की जो स्थूल सृष्टि है , यही विसर्ग है | चतुर्थ स्कंध के इकतीस अध्यायों में चार पुरुषार्थों का वर्णन किया गया है , दक्षप्रजापति के चरित्र के माध्यम से धर्म पुरुषार्थ का , ध्रुव चरित्र के रूप में अर्थ पुरुषार्थ का , कामपुरुषार्थ के रूप में पृथु चरित्र का और मोक्ष पुरुषार्थ के रूप में पुरंजन उपाख्यान का वर्णन किया गया है |
मनोस्तु शतरूपायां तिस्त्रः कन्याश्च जज्ञिरे |
आकुतिर्देवहूतिश्च प्रसूतिरिति विश्रुताः ||
श्री मैत्रेय जी कहते हैं , विदुर जी स्वायंभुव मनु और महारानी शतरूपा की आकृति देवहुति और प्रसूति नामक तीन कन्याएं हुई , आकूति का विवाह रुचि नाम के प्रजापति से हुआ जिनसे यज्ञ नारायण का जन्म हुआ |
 बोलिए यज्ञ नारायण भगवान की जय

इनका विवाह दक्षिणा देवी से हुआ यज्ञ पूर्ण तभी होता है जब यज्ञ में ब्राह्मणों को भरपूर दक्षिणा दी जाए |
यज्ञ भगवान से - तोष , प्रतोष , संतोष , भद्र , शांति और  इडस्पति आदि बारह पुत्र हुए |

विदुर जी ब्रह्माजी के मानस पुत्र - अत्रि का विवाह अनुसूया से हुआ , जब ब्रह्मा जी ने इन्हें संतान उत्पन्न करने की आज्ञा दी तो ये ऋक्ष नामक कुल पर्वत पर तपस्या करने लगे उनकी तपस्या से प्रसन्न हो ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों प्रगट हो गए | तो अत्रि मुनि ने तीनों को देखा तो कहने लगे--
एको मयेह भगवान विबुधप्रधान ,
              श्चित्तीकृतः प्रजननाय कथं न यूयम् ||
मैंने संतान प्राप्ति की इच्छा से एक परमेश्वर का ध्यान किया था , तो आप तीनों में वे कौन हैं |  भगवान नारायण ने कहा - मुनि अत्री तुमने जिस ईश्वर का ध्यान किया है वह हम तीनों हैं मैं पालन करता हूं , ब्रह्मा जी रचना करते हैं और शिवजी संघार करते हैं |

हम तीनों के अंश से तुम्हें एक एक पुत्र की प्राप्ति होगी , अत्रि मुनि को ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा की प्राप्ति हुई , विष्णु के अंश से योगवेत्ता दत्तात्रेय की और भगवान शंकर के अंश से दुर्वासा ऋषि की प्राप्ति हुई |

मनु की तीसरी पुत्री प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति से हुआ जिससे शोलह कन्याएं हुई जिनमें से तेरह का विवाह धर्म से एक का अग्नि से एक का पितरों से और सबसे छोटी सती का विवाह भगवान शंकर से हुआ | धर्म की पत्नी मूर्ति देवी से नर नारायण भगवान का जन्म हुआ |
बोलिए नर नारायण भगवान की जय

 सभी के कुल की वृद्धि हुई परंतु भगवान शंकर की पत्नी सती से किसी भी संतान की प्राप्ति नहीं हुई , क्योंकि उनके पिता दक्ष प्रजापति  ने भगवान शंकर का अपमान कर दिया था जिसके कारण युवावस्था में ही सती ने अपनी देह का त्याग कर दिया था |

विदुर जी पूछते हैं , मुनिवार भगवान शंकर तो शीलवानो में श्रेष्ठ हैं और दक्ष प्रजापति अपनी पुत्रियों से बड़ा स्नेह करते थे फिर उन्होंने किस कारण से भगवान शंकर से द्वेष किया |
विदुर जी के इस प्रकार प्रश्न पूछने पर मैत्रेय मुनि कहते हैं ,
पुरा विश्वसृजां सत्रे समेताः परमर्षयः |
तथा मरगणाः सर्वे सानुगा मुनयोग्नयः ||
विदुर जी जब ब्रह्मा जी ने दक्ष प्रजापति को प्रजापतियों का अध्यक्ष बना दिया तो उसका अभिमान बढ़ गया |
परम पूज्य गोस्वामी श्री तुलसीदास जी कहते हैं--
नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं |
प्रभुता पाई जाहि मद नाहीं ||
इस संसार में ऐसा कोई उत्पन्न ही नहीं हुआ जो ऐश्वर्य को पाकर मतवाला ना हुआ हो , एक बार प्रजापतियों का सत्र हुआ जिसमें बड़े-बड़े देवता ऋषि मुनि सभी एकत्रित हुए अंत में सभा के अध्यक्ष उस दक्ष प्रजापति ने सभा में प्रवेश किया तो उसे देखकर सभी देवता खड़े हो गए ब्रह्मा जी और भगवान शंकर बैठे रहे।

भगवान शंकर ध्यान में मग्न थे जिसके कारण वह खड़े ना हो सके दक्ष प्रजापति ने जब ब्रह्मा जी को बैठा हुआ देखा तो सोचा यह पिताजी है कोई बात नहीं परंतु जब बैठे हुए भगवान शंकर पर दृष्टि गई तो क्रोधित हो गया कहने लगा सुनो देवताओं और ऋषियों मैं शिष्टाचार की बात कर रहा हूं |

यह जो शिव है लोकपालों की कीर्ति को धूमिल कर रहा है इसे समाज का कोई ज्ञान नहीं मैंने अपने पिता ब्रह्मा जी के कहने पर इस मर्कट लोचन को अपनी मृगलोचनी कन्या ब्याह दी यह मेरे पुत्र के समान है परंतु यह मुझे देखकर मेरे सम्मान में खड़ा नहीं हुआ |

यह प्रेतों के निवास स्थान श्मशान में रहता है और भूत प्रेतों के साथ पागलों के समान नंग धड़ंग भटकता रहता है चिता की भस्म लगाता है और नर मुंडो की माला पहनता है इसका नाम तो शिव है परंतु यह पूरा का पूरा अशिव है , अमंगल रूप है प्रजापति के इस प्रकार बुरा भला कहने पर भी भगवान शंकर जब शांत बैठे रहे तो उसका क्रोध और बढ़ गया उसने भगवान शंकर को श्राप दे दिया आज से इसे इंद्र उपेंद्र आदि देवताओं के साथ यज्ञ में भाग नहीं मिलेगा |

प्रजापति के इस प्रकार श्राप देने पर नंदीश्वर को क्रोध आ गया उसने कहा दक्ष तू बहुत देर से बकरों के समान मैं मैं कर रहा है मैं तुझे श्राप देता हूं शीघ्र ही तेरा सिर बकरे का हो जाएगा और तेरा अनुमोदन करने वाले यह जो ब्राम्हण है यह सभी अपनी आजीविका के लिए विद्या तपस्या और व्रत को धारण करेंगे और सर्व भक्षी हो जाएंगे , नंदीश्वर जब निरपराध ब्राह्मणों को श्राप दे दिया तो भृगु जी को भी क्रोध आ गया।

 उन्होंने भी शिव गणों को श्राप दे दिया आज से जितने भी भगवान शंकर के अनुयाई हैं वह शौचाचार से रहित हो जांए जटा , भष्म , अस्थि आदि को धारण करें और मदिरा आदि नशीले पदार्थों का सेवन करें |

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