भागवत कथा,अष्टम स्कंध भाग-3

आठ स्थान पर बोला गया झूठ पर कोई पाप नहीं लगता---- पहला स्त्रियों को प्रसन्न करने के लिए, दूसरा हास्य परिहास में ,तीसरा विवाह में कन्या आदि की प्रशंसा करते हुए ,चौथा अपनी आजीविका की रक्षा के लिए, पांचवा अपने प्राण संकट में उपस्थित होने पर ,छठवां गाय की रक्षा के लिये, सातवां ब्राह्मण की रक्षा के लिए और आठवां किसी को मृत्यु से बचाने के लिए बोला गया झूठ से किसी प्रकार का पाप नहीं होता |
राजा बलि ने कहा गुरुदेव आपका कथन सत्य है परंतु---
राजा बलि ने कहा गुरुदेव आपका कथन सत्य है परंतु---
न ह्यसत्यात् परोऽधर्म इति होवाच भूरियम् ।
सर्वं सोढुमलं मन्ये ऋतेऽलीकपरं नरम् ।। ८/२०/४
असत्य से बडा कोई अधर्म नहीं पृथ्वी सब कुछ सह सकती है परंतु झूठे व्यक्ति का भार उनसे नहीं सहा जाता |
सत्य धर्म सम धर्म नहीं,नहीं असत्य सम पाप ||
सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं है और असत्य से बड़ा कोई पाप नहीं |
नहिं असत्य सम पातक पुंजा |
गुरुदेव में नर्क में जाने से धर्म के नाश होने से और राज्य के नष्ट होने से भी उतना नहीं डरता जितना ब्राह्मण से प्रतिज्ञा करके उसे पूरा न करने से डरता हूं और गुरुदेव जिन भगवान नारायण की यज्ञों के द्वारा आप आराधना करते हैं |जो जगत के पालन करने वाले हैं यदि वे ही मेरे द्वार पर मांगने आए हैं तो मैं अपनी प्रतिज्ञा से पीछे कैसे हट सकता हूं | गुरुदेव गुरु तो वह है जो शिष्य का हाथ पकड़कर गोविंद के हाथ में दे दे, गुरु वह नहीं है जो कहे-
आए हुए गोविंद को भगाओ और |
मेरी फोटो लॉकेट पर लगाओ ||
ऐसे गुरु तो कलयुग में होंगे बलि ने जब इस प्रकार कहा शुक्राचार्य जी को क्रोध आ गया उन्होंने श्राप दे दिया---
दृढं पण्डित मान्यज्ञ:स्तब्धोऽस्यस्मदुपेक्षया ।
मच्छासनातिगो यस्त्वमचिराद् भ्रश्यसे श्रिय: ।। ८/२०/१५
बलि तू अपने आप को बड़ा पंडित मान रहा है मेरी आज्ञा कि तुमने उपेक्षा की है इसलिए मैं तुझे श्राप देता हूं शीघ्र ही तू अपने ऐश्वर्य से हाथ धो बैठेगा |गुरुदेव के इस प्रकार श्राप देने पर बलि अपनी प्रतिज्ञा से नहीं डिगे वे अपनी पत्नी से स्वर्ण के पात्र में जल मंगवाया वामन भगवान के पाद प्रक्षालन किया और हाथ में संकल्प के लिये जल लेने लगे उसी समय सूक्ष्म रूप धारण करके शुक्राचार्य जी जल पात्र की टोटी में घुस गए |
वामन भगवान समझ गए उन्होंने एक कुशा उठाई और जल पात्र की टोटी में डाली जिससे शुक्राचार्य जी की एक आंख फूट गई |
कुशाग्र भिन्नक्ष्नुते तोषो पात्राद् बहिगतो मुनि: ।
सम्प्रापात रंड्गक्ष्तु वैकलव्यं सद्योदानस्य वारणावत।।
( वृहन्नारदीय पुराण )
जो दूसरों को दान देने से रोकता है उसकी यही गति होती है | बलि ने हाथ में जल लिया और तीन पग भूमि का संकल्प किया ,जैसे ही संकल्प पूर्ण हुआ वामन भगवान का शरीर बढ़ने लगा एक पग में उन्होंने नीचे के सातों लोकों को नाप लिया, दूसरे पैर में उन्होंने ऊपर के सात लोकों को नाप लिया |
जब वामन भगवान का चरण सत्यलोक में पहुंचा तो ब्रह्माजी ने पाद प्रक्षालन किया और उस जल को अपने कमंडल में रख लिया कालांतर में वही गंगा के रूप में परिणित हुई | जब भगवान त्रिलोकी को नाप रहे थे उस समय रिक्षराज जांबवान ने मन के वेग से उनकी तीन परिक्रमा कर डाली और भेरी बजा कर विजय की घोषणा कर दी |
वामन भगवान ने बलि से कहा मैंने दो पग में ही त्रिलोकी को नाप लिया, अब तीसरा पग पूरा करो यदि तुम अपनी प्रतिज्ञा को पूर्ण नहीं कर पाओगे तो तुम्हें नर्क में जाना पड़ेगा | बलि ने कहा प्रभु आपने संपत्ति को तो अपना लिया अब इस दास को भी अपना लीजिए----
जब वामन भगवान का चरण सत्यलोक में पहुंचा तो ब्रह्माजी ने पाद प्रक्षालन किया और उस जल को अपने कमंडल में रख लिया कालांतर में वही गंगा के रूप में परिणित हुई | जब भगवान त्रिलोकी को नाप रहे थे उस समय रिक्षराज जांबवान ने मन के वेग से उनकी तीन परिक्रमा कर डाली और भेरी बजा कर विजय की घोषणा कर दी |
वामन भगवान ने बलि से कहा मैंने दो पग में ही त्रिलोकी को नाप लिया, अब तीसरा पग पूरा करो यदि तुम अपनी प्रतिज्ञा को पूर्ण नहीं कर पाओगे तो तुम्हें नर्क में जाना पड़ेगा | बलि ने कहा प्रभु आपने संपत्ति को तो अपना लिया अब इस दास को भी अपना लीजिए----
पदं तृतीयं कुरू शीष्णिं मे निजम् ||
यह तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजिए | वामन भगवान बलि के इस प्रकार के भाव से रीझ गए कहा बलि मैं तुम्हें सुतल लोक का राज्य देता हूं |अगले सावर्णि मन्वंतर में तुम इंद्र होगे | बलि ने कहा प्रभु जिसे एक बार आप अपना लेते हैं फिर उसे छोड़ते नहीं इसलिए मैं आपसे दूर नहीं रह सकता | वामन भगवान ने कहा बलि सुतल लोक में मैं तुम्हारा द्वारपाल बनकर तुम्हारी रक्षा करूंगा |
( मत्स्य अवतार )
राजा परीक्षित पूछतें हैं गुरुदेव मैंने सुना है भगवान ने मत्स्य अवतार धारण किया था इस अवतार का क्या प्रयोजन था | श्री सुकदेव जी कहते हैं परीक्षित जब नैमित्तिक प्रलय होने वाला था उस समय राजा सत्यव्रत कृतुमाला नदी के तट पर तपस्या कर रहे थे |एक दिन वह सूर्य को अर्घ दे रहे थे उस समय उनकी अंजलि में एक छोटी सी मछली आ गई वे जैसे उस मछली को जल में छोड़ने लगे मछली बोल उठी महाराज इस जलाशय में बड़े-बड़े जीव जंतु हैं मुझे खा जाएंगे आप मेरी रक्षा कीजिए |
मछली ने जब इस प्रकार कहा राजा सत्यव्रत कमंडल के जल में रखकर अपने आश्रम मे ले गए | कुछ ही क्षणों में वह मछली इतनी बड़ी हो गई कि जल कम पड़ गया कमंडलु का राजा सत्यव्रत ने उसे मटके में रखा जलाशय में रखा परंतु मछली इतनी बड़ी हो जाती कि जल कम पड़ जाता |
राजा सत्यव्रत उसे समुद्र के जल में डालने लगे वह मछली पुनः बोल उठी महाराज समुद्र में बड़े-बड़े मछ हैं वह मुझे निकल जाएंगे इसलिए आप मुझे इसमें मत छोड़ो |
राजा सत्यव्रत ने कहा प्रभु अपनी माया से मोहित करने वाले आप कौन हैं मैंने आज तक ऐसा कोई जलचर जीव नहीं देखा जिसने इतना जल्दी इतना बड़ा रूप धारण कर लिया हो | मैं आपको प्रणाम करता हूं | इसी समय भगवान नारायण प्रगट हो गये कहा राजन आज से सातवें दिन समुद्र पृथ्वी को डुबो देगा उस समय तुम्हारे सामने एक नौका आएगी उस नौका में तुम समस्त धान्य औषधियों को साथ लेकर सप्त ऋषियों के साथ बैठ जाना जब तक ब्रह्मा जी की रात्रि रहेगी तब तक प्रलय काल के जल में मैं तुम्हें खींचता रहूंगा |
ऐसा कह भगवान श्रीहरि अंतर्ध्यान हो गए | ठीक सातमें दिन समुद्र अपनी मर्यादा का उल्लंघन कर पृथ्वी को डुबोने लगा मूसलाधार बारिश होने लगी उसी समय राजा सत्यव्रत के पास एक नौका आई राजा सत्यव्रत समस्त धान्य औषधियों को लेकर सप्तर्षियों के साथ है उस नौका में बैठ गये इसी समय मत्स्य भगवान प्रकट हो गये |
बोलिए मत्स्य भगवान की जय |
राजा सत्यव्रत ने मत्स्य भगवान से जो प्रश्न पूछे वह मत्स्य पुराण के रूप में प्रचलित है | जब तक प्रलय कालीन जल रहा तब तक भगवान नौका को खींचते रहे |
बेलिये भक्तवत्सल भगवान की जय
( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )
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