श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा नवम स्कंध भाग-3

 श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा 
 नवम स्कंध भाग- 3
श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा Bhagwat Katha story in hindi
गंगा गगेंति यो ब्रुयात योजनानां शतैरपि
मच्यते सर्व पापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति ||
जो सैकड़ों योजन दूर से भी मां गंगा-गंगा का स्मरण करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और भगवान को प्राप्त कर लेता है |बोलिए गंगा मैया की जय परीक्षित- इन्हीं भगीरथ के वंश में आगे चलकर राजा खटवाङ्ग हुए, खटवाङ्ग इतने पराक्रमी थे कि उन्होंने देवताओं के प्रार्थना करने पर देवताओं की ओर से दैत्यों से युद्ध किया था |

युद्ध में विजय प्राप्ति के पश्चात जब उन्हें यह मालूम हुआ कि मेरी आयु मात्र दो घड़ी ही शेष बची है, तो इन्होंने अपना राज्य पाठ छोड़ दिया और दो घड़ी में ही भगवान का भजन कर भगवान को प्राप्त कर लिया| खट्वांङ्ग के पुत्र दीर्घबाहू और दीर्घबाहु के  पुत्र रघु,रघु के अज और अज के पुत्र दशरथ हुए |

महाराज दशरथ की जब कोई संतान नहीं थी तो ऋषि वशिष्ठ की धर्मपत्नी माता अरुंधति ने ऋषि वशिष्ठ से कहा- प्रभु जिस कुल का आप जैसा परम तपस्वी पुरोहित है | वह कुल संतान से हीन है , ऋषि वशिष्ठ ने कहा देवी आपका कथन सत्य है |

लेकिन संतान के लिए महाराज दशरथ के हृदय में लालसा होनी चाहिए इच्छा होनी चाहिए उत्कट अभिलाषा होनी चाहिए  माता अरुंधति ने कहा प्रभु लालसा मैं उत्पन्न करा दूंगी और आप संतान प्रदान करा दीजिए | आज महाराज दशरथ राज दरबार में बैठे हुए थे माता अरुंधति ने अपने नन्हें से कुमार के साथ राज्यसभा में प्रवेश किया |

 दशरथ ने उठकर माता अरुंधति का स्वागत सत्कार किया उन्हें उत्तम आसन में विठाला, जब महाराज सभा के काम में लग जाते थे तो माता अरुंधति अपने कुमार को धीरे से चींटी काटती जिससे वह बालक रोने लगा | महाराज दशरथ का ध्यान भंग हुआ माता अरुंधति ने उस बालक को शांत कराया जब महराज दशरथ पुनः राज्य के कार्य में लग गए तो माता अरुन्धति ने पुनः उस बालक को चींटी काट दी, जिससे वह बालक जोर जोर से रोने लगा |

महराज दशरथ ने कहा माता क्या बात है यह बालक क्यों रो रहा है क्या इसे भूख लगी है | माता अरुधंति ने कहा महाराज इसे भूख नहीं लगी यह कह रहा है मेरे पिता रघुवंश के पुरोहित है , महराज दशरथ की कोई संतान नहीं है, मैं किसकी पुरोहिताई करूंगा, मैं किसका पुरोहित बनूंगा |आज दशरथ ने जब यह सुना-
एक बार भूपति मन माहीं |
भई गलानि मोरे सुत नाहीं ||
अत्यंत ग्लानि हुई कि मेरे संतान नहीं है, गुरुदेव वशिष्ठ के पास आए चरणों में प्रणाम किया और प्रार्थना की गुरुदेव ऐसी कृपा कीजिए कि मेरे यहां भी संतान उत्पन्न हो |

ऋषि ने कहा महाराज धीरज धारण करें  आपकी चौथी अवस्था आ गई है, इसलिए आपके यहां एक नहीं चार पुत्र होंगे | उन्होंने ऋषि श्रृंगी को बुलाया पुत्र कामेष्टि यज्ञ करवाया अग्नि देवता हाथ में चरु का पत्र लेकर प्रकट हो गए |

महाराज दशरथ ने उस चरु को दो भागों में किया, आधा भाग कौशल्या को दे दिया बचे हुए आधे भाग को दो भाग में किए एक भाग में केकई को दिया दूसरा भाग सुमित्रा को दे दिया | सुमित्रा वाला भाग एक बाज उठा ले गया, माता अंजनी तपस्या कर रही थी वह चरु उस बाज ने माता अंजनी के हथेली पर डाल दिया |

चरु से दिव्य सुगंध आ रही थी, उसे चरु को माता अंजना ने ग्रहण किया जिससे अंजनी नंदन पवन पुत्र हनुमान का जन्म हुआ | जब सुमित्रा का भाग बाज ले गया तो सुमित्रा दुखी हो गई, माता कौशल्या और केकई ने अपने-अपने चरु का आधा आधा भाग प्रदान किया, सुमित्रा ने कहा दीदी  भगवान की कृपा से अगर मेरे दो पुत्र हुए तो , एक संतान आपके पुत्र की सेवा करेगा दूसरा पुत्र आपकी सेवा करेगा |

सुंदर समय आया जब ग्रह,नक्षत्र,तिथि अनुकूल हो गए सुंदर वसंत ऋतु थी चैत्र का महीना था, नवमी तिथि थी | नवमी में जो नौ का अंक है वह पूर्णांक है, ऐसी नवमी तिथि को अभिजीत मुहूर्त में दोपहर ठीक बारह बजे भगवान श्री राम कौशल्या के सामने प्रकट हो गए, चतुर्भुज रूप धारण कर खड़े हो गए |
 बोलिए श्री रामचंद्र भगवान की जय
माता कौशल्या हाथ जोड़कर भगवान की स्तुति करने लगी.. भगवान श्रीराम का अद्भुत स्वरूप है मेघ के समान श्यामल वर्ण है | चारों भुजाओं में उन्होंने शंख चक्र गदा और पद्म धारण कर रखा है | गले में वनमाला शोभायमान हो रही है |

परम पूज्य गोस्वामी श्री तुलसीदास जी कहते हैं- इस चरित्र का जो गान करता है , उन्हें भगवान श्री हरि का पद ( स्थान ) की प्राप्ति होती है | भक्तों ने कहा हमें भगवान का पद नहीं,उनका स्थान नहीं चाहिए |

गोस्वामी जी की लेखनी की विशेषता तो देखिए वे कहते हैं इस चरित्र का जो गान करता है उन्हें भगवान श्री हरि के चरणों की प्राप्ति होती है | ज्ञानियों को मुक्ति की प्राप्ति होती और भक्तों को भक्ति की प्राप्ति होती है |
( रामचरित मानस,बालकाण्ड-192
ब्राह्मण,गाय,देवता और संतों के हित के लिए भगवान श्रीराम ने मनुष्य अवतार धारण किया | माता कौशल्या ने चार भुजा धारी भगवान श्रीराम को देखा तो कहा प्रभु आप बालक बन के आए हैं और बच्चे इतने बड़े नहीं होते , इसलिए छोटे हो जाइए भगवान ने छोटा रूप धारण किया |

माता कौशल्या ने का बच्चों के दो हाथ होते हैं इसलिए आप भी दो हाथ वाले हो जाइए भगवान श्री राम की दो भुजा कम हो गई | माता कौशल्या ने कहा प्रभु बालक जब उत्पन्न होता है तो वह बहुत रोता है इसलिए आप भी रोए, भगवान ने कहा अब मुझे रोना भी पड़ेगा |

कौशल्या माता ने कहा प्रभु जब भक्त आपको रो रो कर पुकारते हैं तो आप भी तो उन्हें रो रो के पुकारो, आज आप भी रोए | भगवान ने रोना प्रारंभ कर दिया सारे अयोध्यावासी एकत्रित हो गए | यहां जब दशरथ ने यह सुना कि कोशल्या, केकई और सुमित्रा के यहां चार पुत्रों का जन्म हुआ |

तो महाराज अति प्रसन्न हो गए ब्राह्मणों ने स्वस्ति वाचन किया जात कर्म संस्कार किया और महराज दशरथ ने अपने सर्वस्व का दान कर दिया और जिसे जो मिला उसने उसे रखा नहीं उसने भी उसका दान कर दिया-उसे लुटा दिया | सारी अयोध्या में मंगल गान होने लगा एक महीने का वह  दिन हो गया |जब चारों कुमार बड़े हुए ऋषि वशिष्ठ ने उनका नामकरण संस्कार कराया |

जो आनंद सिंधु सुख राशी, 
सीकर ते त्रैलोक्य शुपाशी |
सो सुखधाम राम अस नामा | 
अखिल लोक दायक विश्रामा ||
जो आनंद के समुद्र और सुख के राशि हैं, जिनके एक कण में तीनो लोक सुखी होते हैं , जो सुख के भवन और संपूर्ण लोकों को विश्राम देने वाले हैं| उन कौशल्या के पुत्र का नाम राम हुआ |
विश्व भरण पोषण कर जोई |
ताकर नाम भरत अस होई ||
जो जगत का पोषण करने वाले हैं, उन कैकयी के पुत्र का नाम भरत हुआ |
जाके सुमिरन ते रिपु नासा | 
नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||
जिनके स्मरण मात्र से शत्रुओं का नाश हो जाता है ,उन सुमित्रा के छोटे कुमार का नाम शत्रुघ्न हुआ|||
जो शुभ लक्षणों के धाम , भगवान श्री राम के प्यारे और संपूर्ण जगत के आधार हैं | वशिष्ठ जी ने उनका नाम लक्ष्मण रखा | जब यह कुछ और बड़े हुए इनका उपनयन संस्कार हुआ,गुरु वशिष्ठ के यहां विद्या अध्ययन करने के लिए आए..
गुरु गृह गए पढ़न रघुराई |
अल्प काल विद्या सब पाई ||
कम समय में संपूर्ण विद्या प्राप्त हो गई |
प्रात काल उठि के रघुनाथा |
मात पिता गुरु नावहिं माथा ||
भगवान श्रीराम प्रातः काल उठते और अपने माता-पिता गुरुदेव को प्रणाम करते और फिर नगर का काम करते | यहां जब विश्वामित्र के यज्ञ में असुर बारंबार विघ्न डालने लगे तो उन्होंने ध्यान लगाकर देखा और जाना कि प्रभु श्री राम का अवतार पृथ्वी का भार उतारने के लिए हो गया है |

तो वे उन्हें लेने अयोध्या आए महाराज दशरथ ने ऋषि विश्वामित्र का स्वागत सत्कार किया और कहा प्रभु आपका आगमन किस कारण हुआ है, आपको आज्ञा करने में देर लगेगी परंतु मुझे पूर्ण करने में देर नहीं लगेगी | ऋषि विश्वामित्र ने कहा-
अनुज समेत देहु रघुनाथा |
निसिचर वध मैं होब सनाथा ||
मुझे छोटे भाई लक्ष्मण के सहित रघुनाथ को दे दो, दशरथ जी ने कहा गुरुदेव-
सब सुत प्रिय मोहिं प्राण की नाईं |
राम देत नहिं बनत गोसाईं ||
सभी पुत्र प्राणों से प्यारे हैं परंतु श्री राम को देते नहीं बनता , आप कहें तो आपके साथ मैं चलूं | मुनि वशिष्ट ने दशरथ जी को बुलाया |
 तब वशिष्ठ बहु विधि समुझावा |
ऋषि वशिष्ठ ने बताया महाराज इन्हें जाने दीजिए जब यह लौटकर आएंगे तो बहू लेकर आएंगे |माताओं ने जैसे यह सुना बहु लेकर आएंगे तो विश्वामित्र के साथ भेज दिया | जैसे ही श्रीराम ने वन में प्रवेश किया क्रोधित हो ताड़का दौड़ी एक ही बाण में प्रभु श्रीराम ने उसके प्राण हर लिए |

दीन जानकर उसे अपना पद प्रदान किया | ऋषि विश्वामित्र भगवान श्रीराम को वह विद्या प्रदान की जिससे भूख प्यास नहीं लगती, प्रातः काल जब ऋषि विश्वामित्र यज्ञ करने लगे भगवान श्री राम और लक्ष्मण हाथ में धनुष बाण लेकर यज्ञ की रक्षा करने लगे |

तभी मारीच और सुबाहु असुरों की सेना ले यज्ञ में विघ्न करने आए ,भगवान श्रीराम ने सुबाहु का वध कर दिया और मारीच को ऐसा बांण मारा कि वह सौ योजन दूर समुद्र के तट पर जाकर गिरा | जितनी देर में भगवान श्री राम ने डेढ राक्षस को मारे इतनी देर में अनुज-
 अनुज निशाचर कटुक संघारा |
लक्ष्मण जी ने संपूर्ण सेना का सघांर कर दिया, जब यज्ञ निर्विघ्न संपन्न हो गया तो ऋषि विश्वामित्र भगवान श्री राम और लक्ष्मण को लेकर आगे चले |

श्री राम ने कहा गुरुदेव यज्ञ तो पूर्ण हो गया अब हम कहां जा रहे हैं | विश्वामित्र ने कहा  अभी एक और यज्ञ बाकी है जिसे तुम्हें पूर्ण करना है , मार्ग में श्रीराम ने एक आश्रम देखा जिसमें पशु पक्षी जीव जंतु कोई नहीं थे ऐसे सुनसान आश्रम और एक शिला को देखकर रामजी ने पूछा गुरुदेव यह क्या है ,ऋषि विश्वामित्र ने कहा यह गौतम ऋषि की स्त्री अहिल्या है जो श्राप के कारण पत्थर की शिला बन गई है|यह तुम्हारी चरण धूलि को चाहती है जैसे ही श्रीराम के चरण रज का स्पर्श हुआ, अहिल्या प्रगट हो गई |

उसके बाद भगवान श्रीराम ने पतित पावनी गंगा में स्नान किया ऋषि विश्वामित्र ने गंगा के महिमा का वर्णन किया और जनकपुर में प्रवेश किया जैसे ही महाराज जनक ने सुना ऋषि विश्वामित्र आए हैं , उनका स्वागत सत्कार किया | श्री राम और लक्ष्मण जी को राजा जनक ने देखा तो पूछा यह दोनों कौन हैं,ऋषि विश्वामित्र ने कहा राजन तुम्हें क्या लगता है- जनक जी ने कहा-
ब्रम्ह जो निगम नेति कहि गावा |

उभय भेष धरि के सोइ आवा ||


मुझे तो ऐसा लगता है कि वेद जिसका नेति नेति कर गान करते हैं, वही ब्रह्म मंगल रूप धारण कर आ गया हो | मेरा मन स्वभाव से वैराग्य रूप है परंतु इन्हें देखकर मुग्ध हो रहा है, जैसे चंद्रमा को देखकर चकोर होता है |

इनहिं बिलोकत अति अनुरागा |
बरबस ब्रह्म सुखहिं मन त्यागा ||
इनको देखते ही मेरा मन जबरजस्ती ब्रह्म सुख का त्याग कर दिया है , मुनि विश्वामित्र ने कहा यह रघुकुल की मणि महाराज दशरथ के पुत्र हैं | उन्होंने मेरे यज्ञ को सफल करने के लिए इन्हें भेजा है | महाराज जनक ने कहा मुनिवर आपका यज्ञ पूर्ण हो गया जब तो अब हमारे यज्ञ को भी सफल कीजिए |

महाराज जनक ने भगवान श्री राम लक्ष्मण और ऋषि विश्वामित्र को जानकी के निवास स्थान सुंदर सदन में ठहराया | प्रातः काल जब श्रीराम पुष्प वाटिका में पुष्प लेने आए एक सखी ने जैसे ही उन्हें देखा तो दौड़ी दौड़ी आई सिया जी से कहा वाटिका में श्याम और गौर कुमार आए हैं, वह इतने सुंदर है कि मैं उसका वर्णन नहीं कर सकती क्योंकि जिस ने देखा है वह बोल नहीं सकती ,जो बोल सकती है उसे देखने की शक्ति नहीं है |

माता जानकी पुष्प वाटिका में श्री राम को देखने आती है| गोस्वामी श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि--  सीता जी इतनी सुंदर है कि सुंदरता को भी सुंदर करने वाली माता जानकी ने जब श्रीराम को देखा मुग्ध हो गई |जानकी जी मां गिरिजा की पूजन के लिए जाती हैं, हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करती है-

जय जय गिरिवर राज किशोरी |
जय महेश मुख चंद्र चकोरी ||
जय गज बदन षडानन माता |
जगत जननी दामनि द्युति गाता | |
मोर मनोरथ जानहुं नीके |
बसहुं सदा उर पुर सबहीं के ||

हे गिरिराज ( हिमालय ) की किशोरी हैं, भगवान शंकर के मुख रूपी चंद्रमा की चकोरी हैं, हे गणपकि और कार्तिकेय की माता आपकी जय हो जय हो | आप मेरा मनोरथ भली-भांति प्रकार से जानती हो, आप सबके हृदय में निवास करती हैं, माता जानकी ने जब इस प्रकार स्तुति की माता पार्वती की गले की माला खिसक गई वह प्रकट हो गयी और आशीर्वाद दिया-
सुनु सिय सत्य असीस हमारी |
पूजहिं मन कामना तुम्हारी ||
हे सीता जी हमारा सत्य आशीर्वाद है, तुम्हारी कामना अवश्य पूर्ण होगी | यहां जब भगवान श्री राम और लक्ष्मण ने ऋषि विश्वामित्र को प्रणाम किया तो उन्होंने भी आशीर्वाद प्रदान  दिया-तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हो, धनुष यज्ञ में देश-विदेश से अनेकों राजा आए महाराज जनक ने ऋषि विश्वामित्र जी को श्रेष्ठ आसन में विठाला | बंदी जनों ने महाराज जनक की प्रतिज्ञा सुनाइ-
नृप भुजबल विधु शिव धनु राहु |
गरुअ कठोर विदित सब काहू ||
राजाओं यह धनुष राहु के समान है और आप की भुजाओं का बल चंद्रमा के समान है, बड़े-बड़े रावण बाणासुर आदि आए परंतु इस धनुष को हिला भी नहीं पाए |

इस धनुष को जो भी आज तोड़ेगा उसके साथ जानकी का विवाह होगा |अनेकों राजा आए परंतु उस धनुष को हिला भी नहीं पाए, यह देख महाराज जनक दुखी हो गए कहने लगे मैं समझ गया अब यह पृथ्वी वीरों से खाली हो गई है |
तजहुं आस निज निज गृह जाहू |
लिखा न विधि वैदेहि विबाहू ||
आप लोग आशा का त्याग करो अपने अपने घर जाओ ब्रह्मा जी ने सीता का विवाह लिखा ही नहीं है | जब जनक जी ने इस प्रकार कहा तो लक्ष्मण जी को क्रोध आ गया सभा के मध्य खड़े हो गए कहने लगे-- रे जनक, रघुवंशियों में जहां भी कोई हो,ऐसा वचन बोलने की सामर्थ किसी में नहींहै-

जो तुम्हारि अनुसासन पावौं |
कदुंक इव ब्रम्हाड उठावौ ||
कांचे घट जिमि डारौं फोरी |
सकउं मेरु मूलक जिमि तोरी ||
हे प्रभो श्री राम यदि आप आज्ञा दो तो, ब्रह्मांड को गेद के समान उठा कच्चे घडे के समान इसे फोड डालूं, सुमेरु को मूली के समान तोड़ दूं, तो यह पुराना धनुष कौन सी चीज है |

प्रभु मैं अभिमान के कारण नहीं आपकी महिमा के कारण कह रहा हूं | लक्ष्मण जी ने जब इस प्रकार कहा तो पृथ्वी डगमगाने लगी, दिग्गज डोल उठे, सारे राजा डर गए, सीता जी प्रसन्न हो गई और महाराज जनक सकुचा गए |

ऋषि विश्वामित्र जी ने भगवान श्री राम को धनुष भंग करने की आज्ञा दे दी, भगवान श्री राम धीरे-धीरे धनुष की ओर जा रहे थे | माता जानकी ने अत्यंत सुकोमल श्री राम को जाते हुए देखा तो गणपति जी की स्तुति करने लगी, भगवान श्री राम ने सीता जी का इस व्याकुलता को देखा तो विचार करने लगे-

का बरषा जब कृषी सुखाने |
समय चूकि पुनि का पछिताने ||
खेती सूख जाने पर वर्षा से क्या लाभ और समय बीत जाने पर फिर पछताने से क्या लाभ | मन ही मन गुरुदेव को प्रणाम किए और एक ही क्षण में धनुष को उठाकर तोड़ दिया | त्रिभुवन में धनुष के टूटने का स्वर गूंज गया , सभी जय-जयकार करने लगे माता जानकी ने प्रभु श्रीराम के गले में वरमाला डाल दी |
बोलिए सियावर रामचंद्र की जय
धनुष टूटने का स्वर जब भगवान परशुराम ने सुना वहां आ गए सभी राजा भयभीत हो गए जब ऋषि परशुराम को भगवान श्री राम की महिमा का ज्ञान हुआ तो उन्हें प्रणाम कर पुनः महेंद्र पर्वत पर लौट आए |

महाराज जनक ने अयोध्या निमंत्रण भेजा महाराज दशरथ बरात लेकर जनकपुर में आए जनकपुर में बड़ा भारी स्वागत सत्कार हुआ | कुशध्वज की बड़ी पुत्री मांडवी का विवाह भारत के साथ, जानकी की छोटी बहन उर्मिला का विवाह लक्ष्मण के साथ और श्रुत्कीर्ति का विवाह शत्रुघ्न के साथ हुआ |

अनेकों दिनों तक बरात जनकपुर में रुकी फिर अयोध्या लौट आए | एक दिन महाराज दशरथ दर्पण देख रहे थे उन्होंने देखा-
श्रवण समीप भये शित केसा |
मनहुं जरठपनु अस उपदेशा ||
अपने कान के समीप सफेद बालों को देखा समझ गए बुढ़ापा आ गया ऋषि वशिष्ठ के पास गए भगवान श्री राम के राज्याभिषेक की तैयारी करने लगे | यह बात जब कैकेई को मालूम हुई उन्होंने महाराज दशरथ से दो वरदान मांगे- भरत का राज्याभिषेक और श्री राम को चौदह वर्ष का वनवास , पिता की प्रतिज्ञा को सत्य करने के लिए भगवान श्रीराम ने वन की यात्रा की |

चित्रकूट में निवास किया भगवान श्री राम के वन जाते ही महाराज दशरथ के प्राण भी उनके साथ चले गए भरत ने पिता की अंत्येष्टि क्रिया की भगवान श्री राम को मनाने के लिए चित्रकूट आए और उनकी पादुका लेकर अयोध्या में स्थापित की और स्वयं नंदीग्राम में रहने लगे |

भगवान श्रीराम ने बारह वर्षों तक चित्रकूट में निवास किया और फिर आगे की यात्रा की, एक स्थान पर उन्होंने ऋषिषों की अस्थियों का पहाड़ देखा तो प्रतिज्ञा कर ली मैं पृथ्वी को राक्षसों से विहीन कर दूंगा | पंचवटी में निवास किया सुर्पखना के नाक कान काट दिए |

जब रावण सीता को हर ले गया तो सुग्रीव से मित्रता की समुद्र में पुल बांधा और लंका में पहुंच समस्त राक्षसों का संहार कर, अयोध्या में आकर राम राज्य की स्थापना की |

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