Bhagwat kathanak in hindi भागवत कथा अष्टम स्कंध भाग-2

Bhagwat kathanak in hindi 
 भागवत कथा अष्टम स्कंध भाग-2
श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा Bhagwat Katha story in hindi
समुद्र मंथन लक्ष्मी जी का प्रादुर्भाव-
ततश्चाविर भूत् साक्षाच्छी  रमा  भगवत्परा।रञ्जयन्ती दिश:कान्त्या विद्युत् सौदामनी यथा।। ८/८/८
माता लक्ष्मी के प्रकट होते ही दसों दिशाएं प्रकाशित हो गयीं |

देवता दानव ऋषि मुनि मनुष्य सभी ने उन्हें प्राप्त करना चाहा सभी पंक्ति बद्ध हो बैठ गए हाथ में वरमाला ले माता लक्ष्मी अपने अनुरुप वर ढूंढने लगी, सर्वप्रथम उनकी दृष्टि दुर्वासा ऋषि पर पड़ी माता लक्ष्मी ने उन्हें देखा तो कहने लगी--
नूनं  तपो  यस्य  न  मन्युनिर्जयो |
यह तपस्वी तो बहुत है परंतु क्रोधी हैं इसलिए यह मेरे लिए उपयुक्त वर नहीं है | आगे बढ़ी तो देखा देव गुरु बृहस्पति और दैत्य गुरु शुक्राचार्य बैठे हुए थे माता लक्ष्मी ने विचार किया--

ज्ञानं  क्वचित्  तच्च  न  संगवर्जितम्  ।
यह दोनों ज्ञानी तो बहुत है परंतु देवता और दैत्यों की आसक्ति के कारण सदा परेशान रहते हैं इसलिए यह भी मेरे लिए उपयुक्त वर नहीं है आगे बढ़ी तो देखा ब्रह्मा जी और चंद्रमा बैठे हैं उन्हें देख माता लक्ष्मी ने कहा--
कश्चिन्महांस्तस्य   न    कामनिर्जय: |
यह महत्व साली तो बहुत है परंतु काम पर विजय नहीं प्राप्त कर सके इसलिए यह भी मेरे लिए ठीक वर नहीं है और आगे बढ़ी तो देवराज इंद्र बैठे हुए थे माता लक्ष्मी ने कहा--
स   ईश्वर:  किं परतोव्यपाश्रय: |  
ये ऐश्वर्यशाली तो बहुत हैं परंतु इन्हें सदा दूसरों की सहायता लेनी पड़ती है इसलिए यह भी मेरे लिए उपयुक्त वर नहीं है और आगे बढ़ी तो देखा परशुराम भगवान बैठे थे माता लक्ष्मी ने कहा- यह धार्मिक तो बहुत हैं परन्तु प्राणियों के प्रति इनके हृदय में सौहार्द नहीं है |

इसलिए यह भी मेरे लिए उपयुक्त वर नहीं हैं और आगे बढ़ी तो भगवान शंकर बैठे हुए थे माता लक्ष्मी ने उन्हें देखा था कहा इनमें कोई दोस नहीं है परंतु इनका वेष मेरे अनुरूप नहीं है इसलिए इनसे मैं विवाह नहीं कर सकती |

और आगें बडी तो भगवान नारायण पिताम्बर ओड़े और लक्ष्मी की तरफ पीठ किए हुए बैठे हुए थे माता लक्ष्मी देखा तो कहने लगी यह कौन है जिसे मेरी चाह नहीं है | दौड़ी-दौड़ी मुख की तरफ गई भगवान नारायण ने मुख फेर लिया लक्ष्मी जी को भगवान नारायण की एक झलक दिखाई दे गई उन्होंने कहा- होना तो यह चाहिये
तुम हमे देखा करो और हम तुम्हे देखा करें |
परंतु आप इतने सुंदर है कि मैं आपको देखकर मोहित हो गई हूं इसलिए--
तुम हमे देखो न देखो हम तुम्हे देखा करें |
वरमाला उठाई और भगवान नारायण के गले में धारण करा दी |
  बोलिए लक्ष्मी नारायण भगवान की जय
परंतु माता लक्ष्मी ने गुणों की खान भगवान नारायण में भी एक दोष निकाल दिया--
सुमंगल: कश्च   न   काड़्क्षते  हि  माम् |
इनमें समस्त मंगलमय गुण निवास करते हैं परंतु यह मुझे चाहते नहीं हैं, जो धनवान होते हैं उन्हें संसार में सब जगह दोस हि दोस्य दिखाई देता है|इसके पश्चात समुद्र मंथन से वरुणी मदिरा प्रकट हुई जिसे असुरों ने ग्रहण किया | संसार में जो शराब पीते हैं वह असुरों के अनुयाई हैं |

नाशं इति नशा | जिसके द्वारा कल्याण ना हो केवल नास हि नाश हो उसे नशा कहते हैं | इसके पश्चात जब पुनः मंथन हुआ तो अबकी बार हाथ में अमृत का कलश ले धन्वंतरि भगवान प्रगट हुए--
 बोलिए धन्वंतरी भगवान की जय
असुरों ने धन्वंतरी भगवान के हाथ से उस अमृत के कलश को छीन लिया यह देख देवता निराश हो गए भगवान नारायण की शरण में गए भगवान ने कहा देवताओं दुखी मत हो मैं तुम्हारे काम को अवश्य सिद्ध करूंगा |

यहां दैत्ष जब अमृत को लेकर आपस में झगड़ा कर रहे थे उसी समय भगवान अत्यंत सुंदर स्त्री का रूप धारण कर मोहनी भगवान के रूप में प्रकट हो गए--
 बोलिए मोहनी भगवान की जय
असुरों ने जैसे ही मोहिनी भगवान को देखा तो उनके पास चले आये कहा हमारे मन को मोहित करने वाली तुम कौन हो | मोहनी भगवान ने कहा पहले यह बताओ तुम लोग कौन हो और इस प्रकार आपस में झगड़ा क्यों कर रहे हो |

असुरों ने कहा हम सभी ऋषि कश्यप की संतान हैं अमृत की प्राप्ति के लिए हमने बहुत भारी उद्योग किया है, इसी अमृत के लिये हममे झगड़ा हो रहा है | तुमने निष्पक्ष रूप से यह अमृत हम सभी में बांट दो मोहनी भगवान ने कहा--
विश्वासं  पण्डितो  जातु  कामिनीषु  न  याति हि  ।। ८/९/९
असुरों जो विद्वान होते हैं वह कभी भी स्वेच्छाचारणीं स्त्री पर विश्वास नहीं करते इसलिए तुम्हें भी मुझ पर विश्वास नहीं करना चाहिए| असुरों ने मोहनी भगवान के न्यायोचित और मधुर वाणी को सुना तो मोहित हो गए, अमृत का कलश मोहनी भगवान के हाथों में दे दिया|

मोहिनी भगवान ने कहा असुरों यह अमृत बड़ी पवित्र वस्तु है इसे पीने से पहले स्नान करो व्रत करो दान करो तब इसे पीना देवता और दैत्यों ने स्नान किया | और पंक्तिबद्ध होकर बैठ गए  मोहिनी भगवान नाचते हुए तथा दैत्यों का मन मोहित करते हुए देवताओं को अमृत पिलाने लगे |

स्वरभानु नाम का एक दैत्य भगवान की सब लीला को समझ गया वह देवता का वेश बना सूर्य और चंद्रमा के मध्य बैठ गया, मोहिनी भगवान ने अन्य देवताओं के साथ उसे भी अमृत पिला दिया सूर्य और चंद्रमा ने कहा प्रभु यह देवता नहीं असुर है जैसे ही भगवान ने यह सुना सुदर्शन चक्र का स्मरण किया और स्वरभानु का सिर धड़ से अलग कर दिया |

अमृत का स्पर्श हो जाने के कारण वह मरा नहीं इससे ब्रह्मा जी ने इसे राहु और केतु ग्रह बना दिया | सूर्य और चंद्रमा ने इसका भेद खोला था इसलिए शत्रुता के कारण अमावस्या और पूर्णिमा के दिन यह ग्रहण के रूप में सूर्य और चंद्रमा को ग्रसने पहुंचता है |

दैत्यों ने जब यह देखा कि हमारे साथ छल हुआ है बड़ा भारी देवासुर संग्राम हुआ अमृत पीकर देवता शक्ति संपन्न हो गए थे | उन्होंने असुरों को पराजित कर दिया देवराज इंद्र ने बलि पर वज्र से प्रहार किया जिससे निश्चेष्ट हो बलि पृथ्वी पर गिर गया सभी दैत्य हाहाकार करने लगे |

बलि के मृत शरीर को उठाकर गुरु शुक्राचार्य जी के पास आए, गुरु शुक्राचार्य ने अपनी मृत संजीवनी विद्या से बलि को पुनः जीवित कर दिया|
मोहिनी को देखकर भगवान शंकर का मोहित होना--
यहां भगवान शंकर ने जब यह सुना कि भगवान नारायण ने असुरों को मोहित करने के लिए मोहिनी रूप धारण किया था तो वह नंदी पर बैठ भगवान नारायण के पास आए प्रभु आपने आज तक जितने भी अवतारों को धारण किया उन सभी को मैंने दर्शन किया अब आप मुझे अपने मोहनी स्वरूप का भी दर्शन कराएं भगवान शिव इसप्रकार बोल ही रहे थे कि भगवान नारायण अंतर्ध्यान हो गए |

चारो तरफ सुन्दर वन मे पक्षी गण कलरव करने लगे, भंवरे गुंजार करने लगे सायं काल का दिव्य वातावरण था मंद मंद वायु बह रही थी उसी समय भगवान शंकर ने एक सुंदर सी स्त्री को गेंद खेलते हुए देखा |

स्त्री का  इतना सुन्दर स्वरूप था कि उसे देखते हि भगवान शंकर मोहित हो गए दौड़े उसकी तरफ उनकी वर्षों की तपस्या खंडित हो गई | जिस जगह पर उनके तेज का प्रभाव हुआ वहां सोने और चांदी की खदाने उत्पन्न हो गई |गो स्वामी तुलसीदास जी कहते हैं-
शिव विरिन्चि कह मोहहीं को बाकुरो आन |
अस जिय जान भजहिं मुनि मायापति भगवान||
( रामचरित मानस )
भगवान नारायण ने जब यह देखा कि शंकर जी मोहित हो गए तो उन्होंने अपने उस मोहनीरूप को छुपा लिया भगवान शंकर पहले की भांति भगवान नारायण को अपने समीप बैठा हुआ देखा तो,उनकी माया  को प्रणाम किया और उनसे आज्ञा ले कैलाश लौट आए |

परीक्षित- आठवें मनु सावर्णि होंगे, नवमें दक्षसावर्णि, दशवें ब्रम्ह सावर्णि, ग्यारहवें धर्म सावर्णि, बारहवें रूद्र सावर्णि, तेरहवें देव सावर्णि और चौदहवें मनु इंद्र सावर्णि |

राजा- परीक्षित श्री शुकदेव जी से पूछते हैं गुरुदेव मृत संजीवनी विद्या से पुनर्जीवित हो दैत्य राजबलि ने क्या किया |

श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित गुरु शुक्राचार्य ने मृत संजीवनी विद्या से बली को जीवित कर दिया तो बलि तन मन धन से गुरुदेव शुक्राचार्य की सेवा करने लगा उनकी सेवा से प्रसन्न हो गुरुदेव शुक्राचार्य विश्वजित यज्ञ करवाया उस यज्ञ से सोने से मढा़ हुआ दिव्य रथ निकला ,दिव्य घोड़े, अक्षय तरकस और धनुष प्रकट हुआ |

प्रहलाद ने बलि को कभी ना कुम्हलाने वाली पुष्प की माला प्रदान की , दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने शंख प्रदान किया |
ब्राम्हणों ने स्वस्ति वाचन किया दैत्य राजबली ने ब्राह्मणों को प्रणाम किया , गुरुदेव शुक्राचार्य को प्रणाम किया और इन्द्र की अमरावती पर चढ़ाई कर दी |

और अपना दिव्य शंख बजाया उस शंख की ध्वनि को सुन देवताओं का ह्रदय कांप गया उन्होंने  दैत्तराज बली के तेज को देखा तो वहां से भाग गए और जहां तहां छिप गए | दैत्य गुरु शुक्राचार्य बली से सौ अश्वमेघ यज्ञ कराया जिससे बलि की ख्याति दसों दिशाओं में फैल गई देवमाता अदिति ने अपने दुखी पुत्रों को देखा तो महर्षि कश्यप से प्रार्थना की प्रभु ऐसी कृपा कीजिए कि देवताओं को उनका राज्य पुन: मिल जाए महर्षि कश्यप ने अदिति को पयोव्रत की विधि बतायी |
फाल्गुनस्यामले  पक्षे   द्वादशाहं  पयोव्रत: । 
अर्चयेदर विन्दाक्षं  भक्त्या     परमयान्वित: ।। ८/१६/२५

देवी फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में मात्र दुग्ध पान कर बारह दिनों तक यह व्रत किया जाता है |अमावश्या को किसी पवित्र तीर्थ में स्नान करें षोडशोपचार से द्वादशाक्षर मंत्र के द्वारा भगवान श्रीहरि की पूजा करें | सामा की खीर बनायें उसी का भोग लगाएं उसी से हवन करें प्रतिदिन कम से कम दो ब्राह्मणों को भोजन कराएं |

ब्रह्मचर्य का पालन करें ,पृथ्वी में सयन करें ,तीनों समय स्नान करें ,झूठ ना बोले ,जब वृत पूर्ण हो जाए तो तेरहवें दिन भगवान का अभिषेक करें, हवन करायें कम से कम बारह ब्राह्मणों को भोजन कराएं |

देवी इस व्रत के करने से भगवान श्री हरि तुम पर प्रसन्न हो जाएंगे और तुम्हारी अभिलाषा को अवश्य पूर्ण करेंगे | महर्षि कश्यप के इस प्रकार उपदेश देने पर फाल्गुन मास से अनुष्ठान प्रारंभ किया विधिपूर्वक वृत पूर्ण होने पर भगवान नारायण प्रकट हो गए |

माता अदिति ने भगवान नारायण के चरणों में प्रणाम किया, भगवान ने कहा माता मैं आपकी अभिलाषा को जानता हूं आप चाहती हैं कि आप के पुत्रों को उनका राज्य पुनः मिल जाए तो माता असुरों को इस समय युद्ध के द्वारा जीता नहीं जा सकता इसलिए मैं तुम्हारे पुत्र के रूप में अवतार लूंगा और तुम्हारे पुत्रों की रक्षा करूंगा |

ऐसा कह भगवान अंतर्ध्यान हो गए | भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को अभिजित मुहूर्त में माता अदिति के गर्भ से वामन भगवान ने अवतार लिया---
बोलिए वामन भगवान की जय

उनके अवतार के समय शंख दुंदुभी और ढोल नगाड़े बजने लगे उनका वामन अंगुल का छोटा सा रूप था |महर्षि कश्यप ने उनका जात कर्म संस्कार किया ,समय आने पर उपनयन संस्कार किया उस समय गायत्री की अधिष्ठात्री सविता देवता ने गायत्री मंत्र प्रदान किया |

बृहष्पति ने यज्ञोपवीत, कश्यप ने मेखला, पृथ्वी ने कृष्ण मृगचर्म , चंद्रमा ने पलाश का दंड ,माता अदिति ने कोपीन ,ब्रह्मा जी ने कमन्डलु, यक्षराज कुबेर ने भिक्षा का पात्र और जगत जननी माता उमा ने भिक्षा प्रदान की | वामन भगवान वहां से नर्मदा के उत्तर में भृगुकच्छ नामक देश जो इस समय भरूचि- गुजरात के नाम से जाना जाता है |

वहां गये जहां दैत्त्य राजबली का यज्ञ हो रहा था | वहां पहुंचे जैसे ही ऋत्युजों ने और दैत्यराज बलि ने वामन भगवान को देखा, अपने आसन से खड़े हो गए बलि ने वामन भगवान का स्वागत किया, उनका पूजन किया, और हाथ जोड़कर कहा--
स्वागतं ते  नमस्तुभ्यं ब्रह्मन्किं करवाम  ते  । 
ब्रह्मर्षिणां तप: साक्षान्मन्ये  त्वाऽऽर्य वपुर्धरम्।। ८/१८/२९
प्रभो आपको देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ब्रम्हर्षियों की तपस्या मूर्तिमान होकर मेरे सामने आ गई हो, मैं आपको नमस्कार करता हूं | आपका स्वागत है, आपके कारण हमारे पितर आज तृप्त हो गए | हमारा कुल पवित्र हो गया, और मेरा यज्ञ सफल हो गया |

प्रभो आपको यदि गाय चाहिए तो मैं गाय देता हूं ,सोना चाहिए तो मैं सोना देता हूं, घर चाहिए तो मैं घर देता हूं ,राज्य चाहिए तो राज्ष देता हूं, यदि आपकी विवाह करने की इच्छा हो तो छोटी सी ब्राह्मण की कन्या से विवाह करा देता हूं |

वामन भगवान ने कहा विवाह के बाद संतान भी होगी, बलि ने कहा हा , भगवान भोले संतान को कष्ट भी होगा तो रोना भी पड़ेगा ,बलि ने कहा रोना भी पड़ेगा तो वामन भगवान ने कहा हमें विवाह नहीं करना |

बलि ने कहा कुछ और मांग लीजिए वामन भगवान बली की प्रशंसा करते हुए कहते हैं- राजन तुम्हारा कथन तुम्हारे कुल परम्परा क् अनुकूल धर्म से युक्त है और तुम्हारे यश को बढ़ाने वाला है, तुम्हारे कुल में ऐसा कोई उत्पन्न हि नहीं हुआ जो देने की प्रतिज्ञा करके फिर उससे मुकर गया हो |

तुम्हारे पिता विरोचन बडे ब्राम्हण भक्त थे एक बार देवता ब्राह्मण का वेश धारण कर उनके पास आए और उनसे उनकी आयु का दान मांगा विरोचन जानते थे ब्राह्मण वेश में देवता हैं |

फिर भी उन्होंने उन्हें अपनी आयु का दान कर दिया | फिर महाराज बलि ने कहा प्रभु आप बातें तो बहुत अच्छी करते करते हैं बताइए आप कौन हैं-- कस्त्वं ब्रम्हन वामन भगवान ने कहा अपूर्वः  मुझे पता ही नहीं मैं कौन हूं | बलि ने कहा- क्व च तव वस्तिः  आप कहां निवास करते हैं |

भगवान ने कहा-- अखिलं ब्रम्ह सृष्टिः संपूर्ण ब्रह्मांड में | बलि ने कहा- कस्ते त्रातः आप के रक्षक कौन है | वामन भगवान ने कहा- अनाथः  मैं अनाथ हूं | बलि ने कहा- क्व च तव पितरौ  तुम्हारे माता पिता कौन हैं | भगवान ने कहा- नैव तास्तम् स्मरामि मुझे स्मरण नहीं | बलि ने कहा-

किं ते अभीष्टं ददामि  आपको मैं क्या दूं | भगवान ने कहा- त्रिपदपरिमितः भूमिः  मुझे अपने चरण कमलों से तीन पग भूमि चाहिए | बलि ने कहा- अल्पमेतद  यह तो बहुत कम है | भगवान वामन ने कहा--
त्रयीलोक्यं भाव गर्भ  बलिमिति। 
निगदस्वामनो  नस्य    पायाद्   ।। 
मेरे लिए यह त्रिलोकी के समान है , बलि ने कहा प्रभु फिर से विचार कर लीजिए क्योंकि-
एक बार करि याचना बलि राजा के द्वार |
फिर कोई द्विज याचक नहीं करे और की आस||
एक बार जो मुझसे मांग लेता है फिर उसे किसी और से मांगना नहीं पड़ता | वामन भगवान ने कहा---
असन्तुष्टा द्विजा नष्टा सन्तुष्टाश्च महीभुज:। 
सा लज्जा गणिका नष्टा निर्लज्जाश्चकुलाड्गना:।।

असन्तोषी ब्राह्मण का नाश हो जाता है और बलि धन का उतना ही संग्रह करना चाहिए कि जितने आवश्यक्ता हो इसलिए तुम मुझे मात्र तीन पग भूमि दे दो | जब भगवान वामन बार-बार तीन पग भूमि कि याचना कर रहे थे , तो शुक्राचार्य को संदेह हो गया | इसी समय वेद पाठ करने वाले ब्राह्मणों के मुख से मंत्र निकला--

इदं  विष्णु विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् |
ये विष्णू हैं तीन पग मे समूची पृथ्वी को नाप लेंगे | जैसे ही शुक्राचार ने यह मंत्र सुना, ध्यान लगाकर देखा समझ गए यह विष्णु वामन के वेश में है | दैत्य राजबली से कहा-
राजन इसमें कपट है बोले शुक्राचार्य |
विष्णु वेष वामन धरो करन हेतु सुरकार्य ||
बलि यह जो तेरे सामने खड़े हैं यह देवता का काम सिद्ध करने के लिए वामन रूप में विष्णु ही आये हैं |यह तो दो पग मे त्रिलोकी को नाप लेंगे जब तुम अपने वचन को नहीं पूर्ण कर पाओगे तो यह तुम्हें नरक में डाल देंगे |
यदि तू सोचता है मैं प्रतिज्ञा कर चुका हूं इससे पीछे कैसे हटूं तो शास्त्र में आठ स्थान बताये गये हैं जहां झूठ बोलने से पाप नहीं लगता--
स्त्रीषु  नर्मविवाहे च वृत्तयर्थे प्राणसंकटे  । 
गोब्राह्मणार्थे  हिंसायां नानृतं स्याज्जुगुप्सितम्  ।। ८/१९/४३

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