Bhagwat Ji
श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा
दसम स्कन्ध,भाग-20
तो वह केदार क्षेत्र में चला गया और वहां घोर तपस्या करने लगा इतने पर जब भोले बाबा प्रसन्न नहीं हुए तो वह तपस्या और बढ़ाता है, इस बार वह अपने भुजाओं को काटकर उन्हें भेट करता है यह देख भोले बाबा प्रसन्न हो गए और वह माता पार्वती के साथ प्रकट हो गए |भोले बाबा ने कहा दानव राज हम तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न है कहो क्या वरदान मांगते हो |
( भस्मासुर को शंकर जी द्वारा वरदान देना )
बृकासुर ने कहा प्रभु अगर आप कुछ वरदान देना ही चाहते हो तो मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि मैं जिस किसी के ऊपर भी हाथ रख दूं तो वह भस्म हो जाए | भोले बाबा ने कुछ नहीं सोचा और उसे वरदान दे दिया तथास्तु |बकासुर ने जैसे ही वरदान पाया तो उसकी दृष्टि माता पार्वती पर पड़ी उन्हें प्राप्त करने के उद्देश्य से भोले बाबा के पीछे पड़ गया भोले बाबा आगे-आगे बकासुर पीछे-पीछे , भोले बाबा ने भगवान नारायण का ध्यान किया स्मरण करते ही भगवान नारायण ने अपना रूप बदलकर एक ब्रह्मचारी के रूप में वहां प्रकट हो गए और बृकासुर के मार्ग में आ गए |
उन्होंने कहा बृकासुर इतनी जल्दी में कहां भाग रहे हो ? बृकासुर ने कहा अरे वह जो आगे आगे भोले बाबा भाग रहे हैं तो मैं उन्हीं को भस्म करने के उद्देश्य से भाग रहा हूं |
ब्रह्मचारी भगवान नारायण ने जैसे ही सुना तो मुस्कुराते हुए कहते हैं अरे देत्यराज तुम इतने बड़े विद्वान हो और किसकी बात में फंस गए हो , अरे वह तो भांग खाता है भांग के नशे में डूबा रहता है, कुछ भी कह देता है तुम उसकी बात पर विश्वास करते हो ? देत्यराज ने कहा यह तो सत्य बात है भैया, भगवान नारायण ने कहा वह तो किसी को भी वरदान देकर भाग जाता है क्योंकि उसके वरदान का कोई फल ही नहीं है. अगर तुम्हें मेरे ऊपर विश्वास नहीं है तो तुम खुद ही अपना हाथ अपने सर पर रख कर देख लो बकासुर ने कहा अरे हम इतने मूर्ख नहीं है !
( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )
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बोलिए नारायण भगवान की जय
सुकदेव जी कहते हैं परीक्षित एक बार सरस्वती नदी के तट पर अनेकों ऋषि मुनि एकत्रित हुए और वे विचार करने लगे कि त्रिदेवों में सर्वश्रेष्ठ देवता कौन हैं, ब्रम्हा जी हैं, विष्णु जी हैं, या भोले बाबा यह देखने के लिए उन्होंने सर्वज्ञान भ्रुगू जी को ब्रह्मा जी के पास परीक्षण के लिए भेजा--
भ्रगु जी आए ब्रह्मलोक भ्रगु जी हमेशा ब्रह्मा जी को पहले प्रणाम करते थे परंतु इस बार गए तो प्रणाम तो किया नहीं और उल्टा उन्हें घूरने लगे तिरछी नजर करके देखने लगे, ब्रह्मा जी को क्रोध आ गया ! हमेशा आता है तो प्रणाम करता है और आज मेरे सामने ही खड़ा है और वह भी घूर रहा है।
भ्रगुजी वहां से डरकर भोले बाबा के पास आ गए सोचा कि यह तो भोले बाबा है इन्हें तो जरूर परेशान करना पड़ेगा भ्रगुजी पहले आते थे तो भोले बाबा उन्हें हृदय से लगा लेते थे भोले बाबा आज फिर हृदय से लगाने के लिए खड़े हो गए, परंतु आज भ्रगुजी ने अशब्द कह दिया अरे शंकर तू कहां अशुद्ध है और मैं कहां शुद्ध ब्राह्मण अरे तू तो श्मशान में रहता है भस्म लगाता है नर मुंडो की माला पहनता है जा जा दूर हट ! अरे महाराज भोले बाबा की तो आंख क्रोध मे लाल हो गई बड़ा क्रोध आ गया भोले बाबा ने त्रिशूल उठाया इतने में भृगु जी वहां से रफूचक्कर हो गए।
Bhagwat Ji
भगवान नारायण ने कहा अरे प्रभु जी आपके सुकोमल चरणारविंद में कहीं चोट तो नहीं आई अरे आप कह देते तो मैं आपके स्वागत में द्वार पर आ जाता हमें आप छमा कर दीजिए | भगवान नारायण की सरलता के कारण सभी ऋषि-मुनियों ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ देवता माना |
श्री सुकदेव जी कहते हैं परीक्षित यदुवंश का इतना विस्तार हो गया था--
तिस्त्रः कोट्यः सहस्त्राणामष्टाशीतिशतानि च |
आसन् यदुकुलाचार्यः कुमाराणामिति श्रुतम् |
कि यदुवंश के बालकों को शिक्षा प्रदान करने के लिए तीन करोड़ अठ्ठासि लाख अचार्य थे, भगवान श्री कृष्ण ने पृथ्वी पर इतने बड़े भार को देखा तो उसके विनाश का विचार करने लगे |भगवान ने ऐसी माया चलाई कि उस समय पिंडारक क्षेत्र में विश्वामित्र असित कण्व दुर्वासा आदि अनेकों ऋषि निवास कर रहे थे |
एक दिन यदुवंश के उद्दंड कुमारों ने साम्ब को साड़ी पहनाई और स्त्री बना दिया और पेट में बहुत से कपड़े बांध दिया कि लगना चाहिए कि यह गर्भवती है और उस स्त्री को ऋषि के पास ले आए और वह भी सबसे क्रोधी ऋषि दुर्वासा, कुमारों ने कहा मुनिवर कृपया आप यह बता दीजिए कि इस स्त्री के उदर में जो गर्भ है तो यह बता दीजिए कि पुत्री होगी या पुत्र होगा ? दुर्वासा ऋषि ने कहा ठीक है अभी बताते हैं उन्होंने जैसे ही ध्यान लगाया तो सब समझ गए कि यह उद्दंड कुमार है ! उन्हें क्रोध आ गया उन्होंने कहा---
जनयिष्यति वो मन्दा मुसलं कुलनाशनम् |
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( दशम स्कंध संपूर्ण )
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