नीति श्लोक अर्थ सहित Neeti shlok arth sahit

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नीति संग्रह- मित्र लाभ:
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उद्यमेन हि सिध्यन्ति श्लोक- [1]

उद्यमेन हि सिध्यन्ति श्लोकार्थ- udyamen hi siddhanti shlok sanskrit hindi arth sahit
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥

कोई भी काम कड़ी मेहनत से ही पूरा होता है सिर्फ सोचने भर से नहीं| कभी भी सोते हुए शेर के मुंह में हिरण खुद नहीं आ जाता /

 

विद्यां ददाति विनयं श्लोक-[2]
विद्यां ददाति विनयं श्लोकार्थ- vidya dadati vinayam shlok sanskrit hindi arth sahit

विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥

विद्या यानि ज्ञान हमें विनम्रता प्रादान करता है, विनम्रता से योग्यता आती है और योग्यता से हमें धन प्राप्त होता है जिससे हम धर्म के कार्य करते हैं और हमे सुख सुख मिलता है|


 माता शत्रुः पिता वैरी श्लोक-[3]

माता शत्रुः पिता वैरी श्लोकार्थ- Mata shatru pita vairi shlok sanskrit hindi arth sahit

माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः ।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ॥

जो माता-पिता अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते वे शत्रु के सामान हैं| बुद्धिमानों की सभा में अनपढ़ व्यक्ति कभी सम्मान नहीं पाता, वहां वह हंसों के बीच बगुले के समान होता है|


सुखार्थिनः कुतोविद्या श्लोक-[4]

सुखार्थिनः कुतोविद्या श्लोकार्थ- sukharthinah kuto vidya shlok sanskrit hindi arth sahit
सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम् ।
सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥

सुख चाहने वाले यानि मेहनत से जी चुराने वालों को विद्या कहाँ मिल सकती है और विद्यार्थी को सुख यानि आराम नहीं मिल सकता| सुख की चाहत रखने वाले को विद्या का और विद्या पाने वाले को सुख का त्याग कर देना चाहिए|

विद्या मित्रं प्रवासेषु श्लोक-[5]
विद्या मित्रं प्रवासेषु श्लोकार्थ- vidya mitram pravaseshu shlok sanskrit hindi arth sahit
विद्या मित्रं प्रवासेषु,भार्या मित्रं गृहेषु च |
व्याधितस्यौषधं मित्रं, धर्मो मित्रं मृतस्य च ||

ज्ञान यात्रा में,पत्नी घर में, औषध रोगी का तथा धर्म मृतक का ( सबसे बड़ा ) मित्र होता है |

पुस्तकस्था तु या विद्या श्लोक-[6]

पुस्तकस्था तु या विद्या श्लोकार्थ- pustkastha tu ya vidya shlok sanskrit hindi arth sahit
पुस्तकस्था तु या विद्या,परहस्तगतं च धनम् |
कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम् ||

पुस्तक में रखी विद्या तथा दूसरे के हाथ में गया धन—ये दोनों ही ज़रूरत के समय हमारे किसी भी काम नहीं आया करते |

अलसस्य कुतो विद्या श्लोक-[7]
अलसस्य कुतो विद्या श्लोकार्थ- alasasya kuto vidya shlok sanskrit hindi arth sahit
अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम् |
अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतः सुखम् ||

आलसी को विद्या कहाँ अनपढ़ / मूर्ख को धन कहाँ निर्धन को मित्र कहाँ और अमित्र को सुख कहाँ |

आलस्यं हि मनुष्याणां श्लोक-[8]

आलस्यं हि मनुष्याणां श्लोकार्थ- alasyam hi manushyanam shlok sanskri Hindi arth sahit
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः |
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||

मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |]

 Niti Sangrah all Shloka List 

नीति संग्रह- मित्र लाभ:

अज्ञः सुखमाराध्यः श्लोक- [9]

अज्ञः सुखमाराध्यः श्लोकार्थ - agya sukham aradhya shlok sanskrit hindi arth sahit
अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः ।
ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि नरं न रञ्जयति ॥ -3 

एक मुर्ख व्यक्ति को समझाना आसान है, एक बुद्धिमान व्यक्ति को समझाना उससे भी आसान है, लेकिन एक अधूरे ज्ञान से भरे व्यक्ति को भगवान ब्रम्हा भी नहीं समझा सकते, क्यूंकि अधूरा ज्ञान मनुष्य को घमंडी और तर्क के प्रति अँधा बना देता है।  

जाड्यं धियो हरति श्लोक-[10]
जाड्यं धियो हरति श्लोकार्थ- jadyam dhiyo harati shlok sanskrit hindi arth sahit
जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं,
मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति |
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं,
सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ||
अच्छे मित्रों का साथ बुद्धि की जड़ता को हर लेता है,वाणी में सत्य का संचार करता है, मान और उन्नति को बढ़ाता है और पाप से मुक्त करता है | चित्त को प्रसन्न करता है और ( हमारी )कीर्ति को सभी दिशाओं में फैलाता है |(आप ही ) कहें कि सत्संगतिः मनुष्यों का कौन सा भला नहीं करती |
विद्यां ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति,धनात् धर्मं ततः सुखम्॥

विद्या यानि ज्ञान हमें विनम्रता प्रादान करता है, विनम्रता से योग्यता आती है और योग्यता से हमें धन प्राप्त होता है जिससे हम धर्म के कार्य करते हैं और हमे सुख सुख मिलता है|

Vidya Dadati Vinayam, Vinaya Dadati Paatrataam।
Paatratva Dhanamaapnoti, Dhanaat Dharmam Tatah Sukham॥

vidya dadati vinayam विद्यां ददाति विनयं

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ये सातं बातें मनुष्यको उन्नत करनेवाली हैं-

उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं क्रियाविधिज्ञं व्यसनेष्वसक्तम् । 
शूरं कृतज्ञं दृढसौहदं च सिद्धिः स्वयं याति निवासहेतोः | । 

उत्साही, अदीर्घसूत्री, क्रियाकी विधिको जाननेवाले, व्यसनोंसे दूर रहनेवाले, शूर, कृतज्ञ तथा स्थिर मित्रतावाले मनुष्यको सिद्धि स्वयं अपने निवासके लिये ढूँढ़ लेती है।' इन सात बातोंका विस्तार इस प्रकार है-

(१) विद्यार्थीमें यह उत्साह होना चाहिये कि मैं विद्याको पढ़ सकता हूँ, क्योंकि उत्साही आदमीके लिये कठिन काम भी सुगम हो जाता है और अनुत्साही आदमीके लिये सुगम काम भी कठिन हो जाता है।

(२) हरेक कामको बड़ी तत्परता और सावधानीके साथ करना चाहिये। थोड़े समयमें होनेवाले काममें अधिक समय नहीं लगाना चाहिये। जो थोड़े समयमें होनेवाले काममें अधिक समय लगा देता है, उसका पतन हो जाता हैं'दीर्घसूत्री विनश्यति' ।

(३) कार्य करनेकी विधिको ठीक तरहसे जानना चाहिये। कौन-सा कार्य किस विधिसे करना चाहिये, इसको जानना चाहिये। शौच-स्नान, खाना-पीना, उठना-बैठना, पाठपूजा आदि कार्योंकी विधिको ठीक तरहसे जानना चाहिये और वैसा ही करना चाहिये ।

(४) व्यसनोंमें आसक्त नहीं होना चाहिये। जूआ खेलना, मदिरापान, मांसभक्षण, वेश्यागमन, शिकार (हत्या) करना, चोरी करना और परस्त्रीगमन – ये सात व्यसन तो घोरातिघोर नरकोंमें ले जानेवाले हैं * । 

इनके सिवाय चाय, काफी, अफीम, बीड़ी-सिगरेट आदि पीना और ताश-चौपड़, खेल-तमाशा, सिनेमा देखना, वृथा बकवाद, वृथा चिन्तन आदि जो भी पारमार्थिक उन्नतिमें और न्याय-युक्त धन आदि कमानेमें बाधक हैं, वे सब-के-सब व्यसन हैं। विद्यार्थीको किसी भी व्यसनके वशीभूत नहीं होना चाहिये।

(५) हरेक काम करनेमें शूरवीरता होनी चाहिये । अपनेमें कभी कायरता नहीं लानी चाहिये ।

(६) जिससे उपकार पाया है, उसका मनमें सदा एहसान मानना चाहिये, उसका आदर-सत्कार करना चाहिये, कभी कृतघ्न नहीं बनना चाहिये।

(७) जिसके साथ मित्रता करे, उसको हर हालत में निभाये ।

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विद्यार्थीक पाँच लक्षण बताये गये हैं

काकचेष्टा बकध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च । 
स्वल्पाहारी ब्रह्मचारी विद्यार्थिपञ्चलक्षणम् ।। 

(१) काकचेष्टा-जैसे, कौआ हरेक चेष्टामें सावधान रहता है। वह इतना सावधान रहता है कि उसको जल्दी कोई पकड़ नहीं सकता। ऐसे ही विद्यार्थीको विद्याध्ययनके विषयमें हर समय सावधान रहना चाहिये। विद्याध्ययनके बिना एक क्षण भी निरर्थक नहीं जाना चाहिये।

(२) बकध्यान-जैसे, बगुला पानीमें धीरेसे पैर रखकर चलता है, पर उसका ध्यान मछलीकी तरफ ही रहता है। ऐसे ही विद्यार्थीको खाना-पीना आदि सब क्रियाएँ करते हुए भी अपना ध्यान, दृष्टि विद्याध्ययनकी तरफ ही रखनी चाहिये ।

(३) श्वाननिद्रा-जैसे, कुत्ता निश्चिन्त होकर नहीं सोता। वह थोड़ी-सी नींद लेकर फिर जग जाता है । ऐसे ही विद्यार्थीको आरामकी दृष्टिसे निश्चिन्त होकर नहीं सोना चाहिये, प्रत्युत केवल स्वास्थ्यकी दृष्टिसे थोड़ा सोना चाहिये।

(४) स्वल्पाहारी - विद्यार्थीको उतना ही आहार करना चाहिये, जिससे आलस्य न आये, पेट याद न आये; क्योंकि पेट दो कारणोंसे याद आता है- अधिक खानेपर और बहुत कम खानेपर ।

(५) ब्रह्मचारी - विद्यार्थीको ब्रह्मचर्यका करना चाहिये।

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विद्यार्थीको सुखकी आसक्तिका सर्वथा त्याग कर देना चाहिये-

सुखार्थी चेत् त्यजेद्विद्यां विद्यार्थी च त्यजेत् सुखम् । 
सुखार्थिनः कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिनः सुखम् ॥
(चाणक्यनीति१० । ३)

'यदि सुखकी इच्छा हो तो विद्याको छोड़ दे और यदि विद्याकी इच्छा हो तो सुखको छोड़ दे; क्योंकि सुख चाहने वालेको विद्या कहाँ और विद्या चाहनेवालेको सुख कहाँ ?' विद्याध्ययन करना भी तप है और तपमें सुखका भोग नहीं होता।

 

नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके संस्कृत के बेहतरीन और चर्चित श्लोकों की लिस्ट [सूची] देखें-
नीति श्लोक व शुभाषतानि के सुन्दर श्लोकों का संग्रह- हिंदी अर्थ सहित। }

नीति संग्रह- मित्र लाभ:
  • विद्या ददाति विनयं Vidya Dadati Vinayam ka arth 




 

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