नीति शिक्षा- नीति के 10 सुंदर श्लोक/विद्यार्थियों के लिए शिक्षा Neeti shlok
उद्यमेन हि सिध्यन्ति श्लोक- [1]
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥
कोई भी काम कड़ी मेहनत से ही पूरा होता है सिर्फ सोचने भर से नहीं| कभी भी सोते हुए शेर के मुंह में हिरण खुद नहीं आ जाता /
विद्यां ददाति विनयं श्लोक-[2]
विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥
माता शत्रुः पिता वैरी श्लोक-[3]
माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः ।न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ॥
जो माता-पिता अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते वे शत्रु के सामान हैं| बुद्धिमानों की सभा में अनपढ़ व्यक्ति कभी सम्मान नहीं पाता, वहां वह हंसों के बीच बगुले के समान होता है|
सुखार्थिनः कुतोविद्या श्लोक-[4]
सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम् ।सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥
विद्या मित्रं प्रवासेषु,भार्या मित्रं गृहेषु च |व्याधितस्यौषधं मित्रं, धर्मो मित्रं मृतस्य च ||
ज्ञान यात्रा में,पत्नी घर में, औषध रोगी का तथा धर्म मृतक का ( सबसे बड़ा ) मित्र होता है |
पुस्तकस्था तु या विद्या श्लोक-[6]
पुस्तकस्था तु या विद्या,परहस्तगतं च धनम् |कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम् ||
पुस्तक में रखी विद्या तथा दूसरे के हाथ में गया धन—ये दोनों ही ज़रूरत के समय हमारे किसी भी काम नहीं आया करते |
अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम् |अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतः सुखम् ||
आलसी को विद्या कहाँ अनपढ़ / मूर्ख को धन कहाँ निर्धन को मित्र कहाँ और अमित्र को सुख कहाँ |
आलस्यं हि मनुष्याणां श्लोक-[8]
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः |नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||
मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |]
अज्ञः सुखमाराध्यः श्लोक- [9]
जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं,मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति |चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं,सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ||
अच्छे मित्रों का साथ बुद्धि की जड़ता को हर लेता है,वाणी में सत्य का संचार करता है, मान और उन्नति को बढ़ाता है और पाप से मुक्त करता है | चित्त को प्रसन्न करता है और ( हमारी )कीर्ति को सभी दिशाओं में फैलाता है |(आप ही ) कहें कि सत्संगतिः मनुष्यों का कौन सा भला नहीं करती |
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