Sandhya Vandan Mantra Lyrics /संध्या वंदन करने की सही विधि मंत्र सहित
सोमवार, 12 अक्तूबर 2020
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Sandhya Vandan Mantra Lyrics
"अहरहः सन्ध्यामुपासीत"
(पूजाकर्म प्रभाकर )
संध्या वंदन करने की सही विधि मंत्र सहित
सन्ध्या येन न विज्ञाता सन्ध्या येनानुपासिता ।
जीवमानो भवेच्छूद्रो मृतश्च श्वाऽभिजायते ।।
(मरीचिः)
उत्तमा तारकोपेता मध्यमा लुप्ततारका ।
अधमा सूर्यसहिता प्रातः सन्ध्या त्रिधा स्मृता ।।
उत्तमा सूर्यसहिता मध्यमा लुप्तभास्करा |
अधमा तारकोपेता सायं सन्ध्या त्रिधा मता ।।
(आचारमयूखे)
(१) अग्नितीर्थ -- दाहिनी हथेली के मध्य भाग में ।
(२) ब्रह्मतीर्थ -- अंगूठे के मूल भाग में ।
(३) देवतीर्थ -- अंगुलियों के अग्रभाग
(४) कायतीर्थ -- कनिष्ठा के मूल भाग
में ।
(५) पितृतीर्थ-- तर्जनी के मूल भाग में ।
रुद्राक्ष-माहात्म्यम्
रुद्राक्षा यस्य गात्रेषु ललाटे च त्रिपुण्डकम् ।
स चाण्डालोऽपि सम्पूज्यः सर्ववोत्तमो भवेत् ।।
अभक्तो वा विमक्तो वा नीचो नीचतरोऽपि वा ।
रुद्राक्षं धारयेद्यस्तु मुच्यते सर्वपातकैः ।।
सन्ध्या प्रयोग
यथोक्त स्नान करने के पश्चात् श्वेत विना सिला हुआ, जो धोबी का धोया हुआ न हो, उस वस्त्र को पहन कर उपवस्त्र लेकर कुशा आदि विहित आसन पर पूर्व दिशा की ओर अपना मुखकर बैठ जाँय । हाथ में कुश अथवा सुवर्ण तथा चाँदी की अंगूठी धारण कर सन्ध्या करें ।
सर्व-प्रथम यज्ञीय भस्म को वाँयें हाथ में लेकर जल मिलाते हुए अधोलिखित मंत्र से अभिमन्त्रित करें-
ॐ अग्निरिति भस्म । ॐ वायुरिति भस्म । ॐ जलमिति भस्म । ॐ स्थलमिति भस्म । ॐ व्योमेति भस्म । ॐ सर्व हवा इदं भस्म । ॐ मन एतांसि चक्षूपि भस्मानीति ।
भस्म-धारण मन्त्रः --
ॐ त्र्यायुषं जमदग्नेः (ललाट में)
ॐ कश्यपस्य व्यायुषं (कण्ठ में)
ॐ यद्देवेषु व्यायुषम् (दोनों भुजाओं में)
तन्नो अस्तु व्यायुषम् (हृदय में)।
चन्दन-धारण मन्त्रः --
चंदनस्य महत्पुण्यं पवित्रं पापनाशनम् ।
आपदं हरते नित्यं लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा ।।
चन्दन करना पुण्यजनक है । पापनाशक आपत्ति मंजक तथा लक्ष्मी बासकारक तथा पापनकारी होता है ।
आलोक : --
यज्ञीय भस्म, चन्दन, तीर्थमृत्तिका अथवा केवल जल से ही अपने कुलाचार के अनुसार त्रिपुण्ड अथवा ऊर्ध्वपुण्ड तिलक अवश्य कर लें । बिना तिलक का सन्ध्यादि-कर्म निष्फल होता है ।
ललाटे तिलकं कृत्वा सन्ध्याकर्म समाचरेत् ।
अकृत्वा भालतिलकं तस्य कर्म निरर्थकम् ।।
शिखाबन्धनम् : --
ॐ मानस्तोक० इत्यस्य कुत्स ऋषिः । जगतीच्छन्दः । एको रुद्रो देवता। शिखा बन्धने विनियोगः ।
मन्त्रः --
ॐ मानस्तोके तनये मानऽआयुपिमानो गोषु मानोऽअश्वेपुरीरिषः । मानोवीरानुद्रभामिनोवधीहविष्मन्तः सदमित्त्वा हवामहे ।
चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजःसमन्विते ।
तिष्ठ देवि शिखाबन्धे तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे ।।
इस मन्त्र से शिखा बन्धन करें ।
पवित्रचारणम् : --
ॐ पवित्रेस्त्थो वैष्णव्यौसवितुर्वः प्रसवऽउत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्वरश्मिभिः ।
तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्त्कामः पुनेतच्छकेवम् ।।
इस मन्त्र से पवित्री धारण कर लें ।
आचमनम् -
ॐ केशवाय नमः स्वाहा । ॐ माधवाय नमः स्वाहा । ॐ नारायणाय नमः स्वाहा ।
(तीन बार आचमन करें)
ॐ हृपीकेशाय नमः (इस मन्त्र से हाथ धो लें)।
बाह्यगात्रस्पर्शनम् :--
ॐ विष्णवे नमः । ॐ मधुसूदनाय नमः । ॐ त्रिविक्रमाय नमः । ॐ वामनाय नमः । ॐ श्रीधराय नमः । ॐ हृषीकेशाय नमः । ॐ पद्मनाभाय नमः । ॐ दामोदराय नमः । ॐ संकर्पणाय नमः । ॐ वासुदेवाय नमः । ॐ प्रद्युम्राय नमः । ॐ अनिरुद्धाय नमः । ॐ पुरुषोत्तमाय नमः ॐ अधोक्षजाय नमः । ॐ नरसिंहाय नमः । ॐ अच्युताय नमः । ॐ जनार्दनाय नमः । ॐ उपेन्द्राय नमः । ॐ हरये नमः । ॐ श्री कृष्णाय नमः ।
(उपर्युक्त मन्त्रों द्वारा दाहिने हाथ के अंगूठे से शिर से पैर तक के सभी अंगों का स्पर्श करें ।)
हृदि पवित्रकारणार्थ न्यास --
ॐ वाक् वाक् (अञ्जलियों से मुख का स्पर्श)
ॐ प्राणः प्राणः (तर्जनी और अंगूठे से नाक का स्पर्श)
ॐ चक्षुश्चक्षुः (अनामिका और अंगूठे से दोनों आँख)
ॐ श्रोत्रं श्रोत्रम् (मध्यमा और अंगूठे से दोनों कान)
ॐ नाभिः नाभिः (अंगुष्ठ एवं कनिष्ठका से नाभि)
ॐ हृदयम् (दक्षिण करतल से हृदय)
ॐ कण्ठः (दाहिने हाथ की अंगुलियों के अग्र भाग से कण्ठ)
ॐ मुखम् (दाहिने हाथ के अगले भाग से मुख).
ॐ शिरः (अंगुलियों से शिर)
ॐ शिखाम् (अंगुलियों से चोटी का स्पर्श)
ॐ वाहुभ्यां यशोबलम् (दाहिने हाथ से दोनों भुजाओं का स्पर्श) इसके बाद दोनों हाथों से शिर से पैर तक स्पर्श करें।
Sandhya Vandan Mantra Lyrics
पवित्रीकरणम् -
हाथ में जल लेकर :- अपवित्रः पवित्रो वेत्यस्य वामदेव ऋपिः । विष्णुदेवता । गायत्री छन्दः हृदयपवित्रकरणे विनियोगः ।
मन्त्रः -
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स वाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।
आसनोपवेशनम् :
ॐ पृथ्वीति मन्त्रस्य मेरुपृष्ठ ऋपि । कुर्मो देवता । सुतलं छन्दः । आसनोपवेशने विनियोगः ।
मन्त्रः
ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मा देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥
(इस मंत्र से आसन पर जल छिड़कें ।).
भूतशुद्धिः
अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमिसंस्थिता ।
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ।।
बार्ये पैर एवं बायें हाथ से तीन बार पृथ्वी पर ठोंककर भूतोपसारण करें । पुनः नेत्रों को जल से प्रोक्षण करें।
श्री भैरवनमस्कारः
ॐ तीक्ष्णदेष्ट्र महाकाय कल्पान्तदहनोपम ।
भैरवाय नमस्तुभ्यमनुज्ञा दातुमर्हसि ॥
संकल्पः
दाहिने हाथ में जल लेकर :
ॐ तत्सदद्येतस्य ब्रह्मणोऽलि द्वितीयपरा श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविशातितमे युगे कलियुगे कलि-प्रथमचरणे अनन्तकोटि ब्रह्माण्डाभ्यन्तरे अस्मिन् ब्रह्माण्डेजम्बूद्वीपे भारतखण्डे आर्यावर्तेक-देशान्तर्गत
पुण्तक्षेत्रे अमुकदेशे अमुकसंवत्सरे अमुकऋतो अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रोत्पन्नोऽमुकशहिं ममोपात्तदुरितक्षयपूर्वकब्रह्मवर्चस्कामार्थं श्रीपरमेश्वरप्रीतये प्रातः सन्ध्योपासनं करिष्ये ।
ऐसा संकल्प कर हाथ का जल पृथ्वी पर छोड़ दें।
मार्जनम् :
वाये हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से मार्जन करें ।
ॐ भूः पुनातु (शिर पर)
ॐ जनः पुनातु (नाभि)
ॐ भुवः पुनातु (दोनों नेत्र)
ॐ तपः पुनातु (दोनों पैर)
ॐ स्वः पुनातु (कण्ठ)
ॐ सत्यं पुनातु (शिर पर)
ॐ महः पुनातु (हृदय)
ॐ खं व्रह्म पुनातु (सर्वांग)
पुनराचमनम् -
ॐ अघमर्पणमुक्तस्याघमर्पणऋपिरनुष्टुप छन्दी भाववृत्ता देवता अश्चमध्यावामृथे विनियोगः ।
ॐ ऋतञ्च सत्यञ्चाभीदात्तपसोऽध्यजायत । ततो गत्र्यजायत ततः समुद्रो वर्णावः । समुद्रादर्णवादधिसंवत्सरो अजायत । अहा रात्राणि विदधद्विश्वस्य मिपतो वशी । सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् । दिवञ्च पृथिजीञ्चान्तरिक्षमथो स्वः ।
(तीन बार आचमन करें ।)
अत करन्यासः -
ॐ भूः अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ भुवः तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ स्वः मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यम् अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ भर्गो देवस्य धीमहि कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ धियो यो नः प्रचोदयात् करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
न्यासप्रारूपः
अथषडंगन्यासः --
ॐ भूः हृदयाम नमः । ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं कवचाय हुम् । ॐ भुवः शिरसे स्वाहा । ॐ भर्गो देवस्य धीमहि नेत्रत्रयाय बौपट । ॐ स्वः शिखायै वषट् । ॐ धियो यो नः प्रचोदयात् अस्त्राय फट् ।
अथ प्रणवन्यासः --
ॐ 'अ' कारं नाभौ ।
ॐ 'उ' कारं हृदये ।
ॐ 'म' कारं मूर्धनि ।
(अपनी रक्षा के लिए दाहिने हाथ में जल लेकर बाएँ हाथ से ढकने के वाद प्रणव सहित तीन बार गायत्री मंत्र उच्चारण करके हाथ के जल से अपने शरीर के चारों आर घुमाकर मण्डल करें अर्थात् चारों ओर छाई दे ।)
Sandhya Vandan Mantra Lyrics
सन्ध्याध्यानमावाहनञ्च :---
प्रातः सन्ध्यायाम -- (पूर्वाभिमुखः)
ॐ गायत्री त्र्यक्षरां बालां कमण्डलम् ।
रक्तवस्त्रां चतुर्वक्त्रां हंसवाहनसंस्थिताम् ।
ऋग्वेदकृतोत्संगा रक्तमाल्यानुलेपनाम् ।
वृह्माणी ब्रह्मदैवत्यां बालोकनिवासिनीम् ।
आवाहयाम्यहं देवीमायान्ती सूर्यमण्डलात् ।
आगच्छ रदेवि त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि ।
गायत्रिच्छन्दसां मातर्ब्रह्मयोने नमोऽस्तुते ।
मध्यानसन्ध्यायाम् - (उदङ्मुखः)
ॐ सावित्री युवती शुक्ला शक्लवस्त्रां त्रिलोचनाम् ।
त्रिशूलिनी वृषारूढां श्वेतमाल्यानुलेपनाम् ।
यजुर्वेदकृतोत्संगा जटामुकुटमण्डिताम् ।
रुद्राणी रुद्रदैवत्यां रुद्रलोकनिवासिनीम् ।
आवाहयाम्यहं देवीमायान्तीं सूर्मण्डलात् ।
आगच्छ वरदे देवि त्र्यक्षरे रुद्रवादिनि ।
सावित्रिच्छन्दसां माता रुद्रयोने नमोऽस्त ते ।
सायं सन्ध्यायाम् -- (पश्चिमाभिमुखः)
ॐ वृद्धां सरस्वती कृष्णां पीतवस्त्रां चतुर्भुजाम् ।
शंखचक्रगदाशार्गहस्तां गरुण वाहिनीम् ।
सामवेदकृतोत्संगा वनमालाविभूषिताम् ।
वैष्णवी विष्णुदैवत्यां विष्णुलोकनिवासिनीम् ।
आवाहयाम्यहं देवीमायान्तीं सूर्यमण्डलात् ।
आगच्छ वरदे देवि त्र्यक्षरे विष्णुवादिनि ।
सरस्वतिच्छन्दसां मातर्विष्णुयोने नमोऽस्तुते।
Sandhya Vandan Mantra Lyrics
प्राणायामः --
(विनियोगः)
ॐ कारस्य ब्रह्मा ऋषिर्गायत्रीछन्दोऽग्निर्देवता शुक्लो वर्णः सर्वकर्मारम्भे विनियोगः ।
(जल छोड़ें ।)
ॐ सप्तव्याहृतीनां विश्वामित्र-जमदग्नि-भरद्वाज-गौतमाऽत्रि-वशिष्ठकश्यपा ऋषयो गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहतीपंक्तित्रिष्टुब्जगत्यश्छन्दास्यग्निवाय्वादित्यवृहस्पतिवरुणेन्द्रविश्वेदेवादेवता अनादिष्ट प्रायश्चिते प्राणायाम विनियोगः ।।
ॐ गायत्र्या विश्वामित्र ऋषिर्गायित्री छन्दः सविता देवता अग्निर्मुखमुपनयने प्राणायाम विनियोगः ।
ॐ शिरसः प्रजापति ऋपिर्यजुश्छन्दो ब्रह्माऽग्निवायुसूर्या देवता यजुः प्राणायामे विनियोगः ।
(विनियोग छोड़ने के बाद पद्मासन पर स्थित होकर एवं दोनों आँखों को बन्दकर मौन हो तीन प्राणायाम करें।)
प्राणायामप्रारूपः
पूरक-प्राणायामः--
इसमें दाहिने हाथ के अंगूठे से दाहिनी नाक को बन्दकर बायीं नासिका से श्वास को भीतर खींचें और वायु को खींचते समय नील-कमल के समान श्यामवर्ण चतुर्भुज भगवान् विष्णु को नाभि में ध्यान करें । इसे पूरक प्राणायाम कहते हैं।
कुम्भक-प्राणायामः--
इसमें नाक के वायें छिद्र को भी वन्दकर भीतर में खींचे हुए वायु को भीतर में धारण कर कमल आसन पर विराजमान लालवर्ण वाले चतुर्भुज ब्रह्माजी का ध्यान अपने हृदय में करें । इसे कुम्भक प्राणायाम कहते हैं ।
रेचक-प्राणायामः--
इसमें धारण किये हुए वायु को दाहिनी नासिका के छिद्र से धीरे धीरे वाहर छोड़ें और अपने ललाट में श्वेतवर्ण त्रिनेत्र शिवजी का ध्यान करें। । इसे रेचक प्राणायाम कहते हैं।
"प्राणायाम-मन्त्रः" --
ॐ भः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम । ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम।
इस मन्त्र को प्रत्येक प्राणायाम में तीन-तीन वार एक साथ जपें अथवा प्रत्येक प्राणायाम् में एक-एक वार जप करें ।
आचमन-विनियोगः --
(अम्वुप्राशनम्)
ॐ सूर्यश्चमति नारायणऋपिः प्रकृतिश्छन्दः सूर्या देवता अपामुस्पर्शन विनियोगः ।
ॐ सूर्यश्च मा मन्युश्चमन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्ताम् ।
यद्राच्या पापमकार्प मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भ्यामुदरेण शिश्ना रात्रिस्तदवलुम्पतु ।
यत्किञ्चिदुरितं मयि । इदमहमापोऽमृतयोनौ सुर्य ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा ।
इस मन्त्र को बोलकर तीन बार आचमन करें ।
मार्जन-विनियोगः--
ॐ आपोहिष्टेति तिसृणां सिन्धु द्वीप ऋषिः । गायत्रीच्छन्दः । आपो देवताः । मार्जने विनियोगः ।
ॐ आपोहिष्ठामयोभुवः । (मस्तके)
ॐ उशतीरिवमातरः । (मस्तके)
ॐ स्तानऽऊर्जेदधातन । (भूमौ)
ॐ तस्माऽअरंगमामवः । (मस्तके)
ॐ महेरणायचक्षसे । (हृदये)
ॐ यस्यवःयायजिन्वथ । (हृदये)
ॐ योवः शिवतमोरसः । (भूमौ)
ॐ आपो नियथाचनः । (भूमौ)
ॐ तम्यभाजयतेहनः । (हृदये)
पुनः मार्जनम्:--
ॐ द्रुपदादिवेति कोकिलो राजपुत्र ऋपिरनुष्टुप्छन्दः आपो देवता मार्जने विनियोगः ।
ॐ द्रुपदादिव मुमुचानः स्विन्नः स्नातो मलादिय ।
पूतं पवित्रेणेवाज्यमापः शुन्धन्तु मैनसः ।।
इस मन्त्र से तीन बार मस्तक पर जल छोड़ें ।
अघमर्षणम्:--.
ॐ अघमर्पणसूक्तस्य माधुच्छन्दसोऽघमर्पण ऋपिरनुष्टुप्छन्दो भाववतो देवता अश्वमेधावभृते विनियोगः ।
दाहिने हाथ में जल लेकर नासिका के समीप करके नीचे लिखे मंत्र को तीन वार या एक बार बोलें और ध्यान करें कि यह जल श्वास के साथ नाक के बाएँ छिद्र से भीतर जाकर अन्तःकरण को शुद्ध कर पापपुरुष को दाहिने छिद्र से बाहर निकाल रहा है । पश्चात् उस जल को बिन देखे बायीं ओर फेंक दें ।
Sandhya Vandan Mantra Lyrics
मन्त्रः --
ऋतञ्च सत्यञ्चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत ।
ततो रात्र्यजायॐ त ततः समुद्रोऽर्णवः ।
समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत ।
अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी ।
सूर्याचन्द्रमसो धाता यथा पूर्वमकल्पयत् ।
दिवञ्च पृथिवीञ्चान्तरिक्षमथो स्वः ।
आचमनमः--
- ॐ अन्तश्चरसीति तिरश्चीन ऋषिरनुष्टुपुछन्दः आपो देवता आपामुपस्पर्शने विनियोगः ।
मन्त्रः --
ॐ अन्तश्चरसि भूतेषु गुहायां विश्वतोमुखः ।
त्वं यज्ञस्त्वं वषटकार आपो ज्योती रसोऽमृतम् ।।
सूर्याय अर्ध्यप्रदानमः--
ॐ प्रणवस्य परब्रह्म ऋषिः । परमात्मा देवता । दैवी गायत्री छन्दः । ॐ भूर्भुवः स्वरिति महाव्याहृतीनां परमेष्ठी प्रजापतिर्ऋषिः अनिवायुसूर्याः देवताः । गायत्र्युष्णुगनुष्टुप्छन्दांसि । ॐ तत्सवितुरित्यस्य विश्वामित्र ऋषिः । सविता देवता । गायत्रीछन्दः अर्घदाने विनियोगः ।।
मन्त्रः
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि । धियोयोनः प्रचो दयात् ।
ॐ ब्रह्मस्वरूपिणे श्रीसूर्यनारायणाय इदमय॑ दत्तं न मम ।।
(उक्त मंत्र द्वारा तीन बार पूर्वाभिमुख हो अर्घ दें ।)
प्रायश्चित्तसंकल्पः --
सुर्योदयात्प्राम्विहितस्य प्रातः सन्ध्याकर्मण: सूर्यार्घदानस्य चाकरणजनितप्रत्यवायपरिहारार्थ श्रीसूर्यनारायणदेवताप्रीत्यर्थम् “आकृष्णेन" इति मन्त्रेण सूर्याय चतुर्थार्घप्रदानं करिष्ये ।
मन्त्रः -
- ॐ आकृष्णेनरजसाव्वर्त्तमानो निवेशयन्नमृतम्मर्त्यञ्च ।
हिरण्ययेनसवितारथेना-देवोयातिभुवनानि पश्यन् ।
ॐ ब्रह्मस्वरूपिणे श्रीसूर्यनारायणाय इदमयं दत्तं न मम ।।
(उक्त मंत्र द्वारा एक बार अर्घ दें ।)
अथसूर्योपस्थानम्:--
प्रातःकाल दाहिना पैर अथवा एणी को उठाकर दोनों हाथों को सीथा रखते हुए एवं मध्याह्न में दोनों हाथों को ऊपर करके तथा संध्याकाल में बैठ कर दोनों हाथों को कमल के समान जोड़कर उपस्थान करें ।
विनियोग:--
ॐ उद्वयमित्यस्य हिरण्यस्तूप ऋषिरनुष्टुप् छन्दः सूर्यो देवता, ॐ उदुत्यमित्यस्य प्रस्कण्व-ऋषिर्गायत्री छन्दः सूर्यो देवता, ॐ चित्रमित्यस्य कौत्स ऋषिस्त्रिष्टुप् छन्दः सूर्यो देवता ॐ तञ्चक्षुरित्यस्य दध्यङ् अथर्वणऋषिरक्षरातीतपुर उष्णिक्-छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः ।
(जल छोड़ें)
मन्त्रः --
ॐ उद्वयन्तमसस्परिस्वः पश्यन्त उत्तरम् । देवन्देवत्रा सूर्यमगन्मज्योतिरुत्तमम् ।
ॐ उदुत्यजातवेदसं देवं वहन्ति केतवः । दृशे विश्वाय सूर्यम् ।।२
ॐ चित्रन्देवानामुदगादनीकञ्चक्षुमित्रस्य वरुणस्याम्ने । आप्राद्यावापृथिवीऽअन्तरिक्ष १७ सूर्यऽआत्माजगतस्तस्त्युपश्च ।
ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्कमुच्चरत् । पश्येम शरदः शतजीवेमशरदः शत १७ श्रृणुयामशरद; शतम्प्रघ्रवामशरदः शान्तमदीनाः स्यामशरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् ।।
गायत्रीमन्त्रजपः संकल्पः--
अद्येत्यादि० शुभपुण्यतिथौ सार्वष्पाप्पाक्षाय्यार्य श्रीसवितृसूर्यनारायणस्वरूपिण्या वेदमातुर्गायत्रीदेव्याः प्रीत्यर्थ सव्याहृतिचतु विशतिवर्णात्मकस्य श्रीगायत्रीमन्त्रस्य अमुकसङ्ख्याकं जपमहं करिष्यो ।
पुनः संकल्पः --
__ तथा च गायत्रीप्रीतये गायत्र्यावाहनं गायत्र्युपस्थान (मवायच्या ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्राबृषीणां साप विमोचनं गायत्र्यास्त्रोपहरण) सव्याहृतिगायत्रीमन्त्रस्य च यथाशक्तिन्यासान् गायत्रीध्यानं गायत्री प्रार्थना मुद्राप्रदर्शनञ्चैकतन्त्रेणाहं करिष्ये ।
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गायत्र्यावाहनमः--
गायत्री त्र्यक्षरां वाला साक्षसूत्रकमण्डलुम् ।
रक्तवस्त्रां चतुर्हस्तां हंसवाहनसंस्थिताम् ॥.
ऋग्वेदस्य कृतोत्संग सर्वदेवनमस्कृताम् ।
ब्राह्मणी ब्रह्मदैवत्यां ब्रह्मलोकनिवासिनीम् ॥
आवाहयाम्यहं देवीमायान्ती सूर्यमण्डलात् ।
आगच्छ वरदे देवि त्र्यक्षरे बृह्मवादिनि ॥
गायत्री छन्दसां मातर्ब्रह्मयोनि नमोऽस्तुते ॥
विनियोगः--
ॐ तेजोसीत्यस्य परमेष्ठी प्रजापतिपिः । आज्य देवता ॥ जागती छन्दः । यजुर्गायत्र्यावाहने विनियोगः ।
मन्त्रः --
ॐ तेजोऽसि शुक्रमस्यमृतमसि धामनामासि प्रियन्देवानामनाधृष्टन्देवयजनमसि ।।
गायत्र्युपस्थापनम्:--
अस्य.तरीयपदस्य विमलऋषिः । परमात्मा देवता । गायत्री छन्दः । गायत्र्यपस्थाने विनियोगः ।
ॐ गायत्र्यस्येकपदी द्विपदी त्रिपदी चतुष्पद्यसि नहि पद्यसे नमस्ते तुरीयाय दर्शिताय पदाय परोरजसेऽसावदो माप्रापत ।।
ब्रह्मशापविमोचनम्:--
ॐ अस्य श्रीगायत्रीशापविमोचनमन्त्रस्य ब्रह्माऋपि: भुक्तिमुक्तिप्रदा ॐ ब्रह्मशापविमोचनी गायत्री शक्तिर्देवता गायत्रीछन्दः ब्रह्मशापविमोचने विनियोगः ।
मन्त्र :--
ॐ गायत्री ब्रह्मेत्युपासित यद्रूपं ब्रह्मविदो विदुः । तां पश्यतन्ति धीराः समनसा वाचामग्रतः ।
ॐ वेदान्तनाथाय विद्महे । हिरण्यगर्भाय धीमहि तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ।
ॐ देवि ! गायत्रि ! त्वं ब्रह्मशापाद्विमुक्ता भव ।।
वसिष्ठशापविमोचनम् --
ॐ अस्य श्री वसिष्ठशापविमोचनमन्त्रस्य निग्रहानुग्रहकर्ता वसिष्ठ ऋषिः वसिष्ठानुगृहीता गायत्री शक्तिर्देवता विश्वोद्भवा गायत्रीछन्दः वसिष्ठशाप विमोचने विनियोगः ।।
मन्त्रः --
ॐ सोऽहकर्ममयं ज्योतिरात्मज्योतिरहं शिवः ।
आत्मज्योतिरह शुकः सर्वज्योतिरसोऽस्म्यहम् ।।
(योनि मुद्रा दिखाकर तीन बार गायत्री मन्त्र का जप करें । तथा निम्न वाक्य का उच्चारण करे ।)
ॐ देवि ! गायत्रि ! त्वं वसिष्ठशापाद्विमुक्ता भव ,
विश्वामित्रशापविमोचनमः--
ॐ अस्य श्रीविश्वामित्रशपविमोचनमन्त्रस्य नूतनसृष्टिकर्ता विश्वामित्र ऋपिः विश्वामित्रानुगृहीता गायत्री शक्तिर्देवता वाग्देहा गायत्रीछन्दः विश्वामित्रशापविमोचने विनियोगः ।
मन्त्रः --
ॐ गायत्री भजाम्यग्निमुखी विश्वगर्भा यदुद्भवाः देवाश्चक्रिरे विश्वसृष्टिं तां कल्याणीमिष्टकरीं प्रपद्ये । यन्भुखान्निःसृतोऽखिलवेदगर्भः । ॐ देवि ! गायत्रि ! त्वं विश्वामित्रशापाद्विमुक्ता भव ।
प्रार्थनाः--
ॐ अहो देवि ! महादेवि ! सन्ध्ये ! विद्ये ! सरस्वति !
अजरे ! अमरे ! चैव ब्रह्मयोनिर्नमोऽस्तुते ।।
मुक्ताविद्रुमहेमनीलघवलच्छायैर्मुखैस्त्रीक्षणै
र्युक्तामिन्दुनिवद्धरत्नमुकुटां तत्त्वात्मवर्णात्मिकाम् ।
गायत्री वरदाभयाकुशकशा: शुभ्रं कपालं गुणं
शंख चक्रमथारविन्दयुगलं हस्तैर्वहन्तीं भजे ।।
गायत्रीजपः --
ॐ प्रणवस्य परब्रह्म ऋषिः । परमात्मा देवता । गायत्री छन्दः व्याहृतीनां प्रजापतिर्ऋषिः । अग्निवायुसूर्या देवताः । गायत्री छन्दः । ॐ तत्सवितुरित्यस्य विश्वामित्र ऋषिः । सविता देवता । गायत्री छन्दः सर्वपापक्षयार्थे गायत्री मन्त्रजपे विनियोगः ।
ॐ कारव्याहृतिसहितगायत्रीमन्त्रन्यासः --
ॐ कारस्य ब्रह्मा ऋषिः । अग्निर्देवता । गायत्रीछन्द; । प्रथमस्वरो बीजम् । पञ्चम स्वरः शक्तिः । शिवं कीलकम् । विद्युद्वर्णम् । न्यासे विनियोगः ।
अङ्गुष्टादिन्यासाः --
ॐ गोविन्दाय नमः अङ्गुष्ठाग्रे । ॐ महीधराय नमः तर्जन्यग्रे । ॐ हृषीकेशाय नमः मध्यामायाम् । ॐ त्रिविक्रमाय नमः अनामिकायाम् । ॐ विष्णवे नमः कनिष्ठकायाम् । ॐ माधवाय नमः करमध्ये । ॐ हरये नमः करपृष्ठे । ॐ जनार्दनाय नम; मणिबन्धे ।
गायत्रीषडङ्गन्यासा: --
ॐ भूः अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ वुवः तर्जनीभ्यां नमः । ॐ स्वः मध्यमाभ्यां नमः । ॐ तत्सवितुर्वरेण्यम् अनामिकाभ्यां नमः । ॐ भर्गो देवस्य धीमहि कनष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ धियो यो नः प्रचोदयात् करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
ॐभुः हृदयाय नमः । ॐ भुवः शिरसे स्वाहा । ॐ स्वः शिखायै वषट् । ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं कवचाय हुम् । ॐ भर्गो देवस्य धीमहि नेत्रत्रयाय वौपट् । ॐ धियो यो नः प्रचोदयात् अस्त्राय फट् ।
प्रणवन्यासाः --
ॐ अकारं नाभौ । ॐ उकारं हृदये । ॐ मकारं मूर्धनि ।।
व्याहृतिन्यासाः --
ॐ भू. पादयोः । ॐ भुवः जान्चोः । ॐ स्वः ऊर्वोः । ॐ महः जठरे । ॐ जनः कण्ठे । ॐ तपः मुखे । ॐ सत्यम् शिरसि ।
अक्षरान्यासाः -
ॐ तकारं पादाङ्गुष्ठयोः । ॐ सकारं गुल्फयोः । ॐ विकारं जययोः । ॐ तुकारं जान्वोः । ॐ वकारम् ऊोः । ॐ रेकारं गुदे । ॐ णिकारं लिंगे। ॐ यकारं कट्याम् । ॐ भकारं नाभौ । ॐ गोकारम् उदरे । ॐ देकार स्तनयोः । ॐ वकारं हृदये । ॐ स्वकारं कण्ठे । ॐ धीकारं मुखे । ॐ मकारं तालुदेशे । ॐ हिकारं नासिकाग्रे । ॐ धिकारं नेत्रयोः । ॐ योकारं ध्रुवोर्मध्ये । ॐ योकारं ललाटे । ॐ नः कारं पूर्वमुखे । ॐ प्रकारं दक्षिणमुखे । ॐ चोकारं पश्चिममुखे । ॐ दकारं उत्तरमुखे । ॐ याका मूर्ध्नि । ॐ त्कारं व्यापकमुद्रया सर्वतो न्यसेत् ।
शिरोन्यासाः --
ॐ आपो गुह्ये । ॐ ज्योतिश्चक्षुषि । ॐ रमो वक्त्रे । ॐ अमृतं जानुनि । ॐ ब्रह्म हृदये । ॐ भूः पादयोः । ॐ भुवः नाभौ । ॐ स्वः ललाटे । ॐ कारं मूर्ध्नि ।
Sandhya Vandan Mantra Lyrics
गायत्रीमन्त्रजपादौ चतुर्विंशतिमुद्राप्रदर्शनम्-
सुमुखं सम्पुटं चैव विततं विस्तृतं तथा ।।
द्विमुखं त्रिमुखं चैव चतुःपञ्चमुखं तथा ।।
पण्मुखमधोमुखञ्चैव व्यापकाञ्जलिकं तथा ।
शकटं यमपाशञ्च-ग्रथितञ्चोन्मुखोन्मुखम् ।।
प्रलम्बं मुष्टिकश्चैव मत्स्यः कूर्मो वराहकः ।
सिंहाक्रान्तं महाक्रान्तं मुद्गरं पल्लवं तथा ।
एता मुद्रा न जानाति गायत्री निष्फलाभवेत् ।।
(१) सुमुखम् -- दोनों हाथों की अंगुलियों को मोड़कर परस्पर मिलायें ।
(२) सम्पुटम् -- दोनों हाथों को फैलाकर मिलायें ।
(३) विततम् -- दोनों हाथों की हथेलियाँ परस्पर सामने करें ।
(४) विस्तृतम् -- दोनों हाथों की अंगुलियाँ खोलकर कुछ अधिक अलग करें ।
(५) द्विमुखम् - दोनों हाथों की कनिष्ठा से कनिष्ठा तथा
अनामिका से अनामिका को दिमादम मिलायें।
(६) त्रिमुखम् -- दोनों मध्यमाओं को भी मिलायें ।
(७) चतुर्मुखम् -- दोनों तर्जनी को लाकर मिलायें ।
(८) पञ्चमुखम् -- दोनों अंगूठों को भी मिलावें ।
(९) पप्ठमुखम् -- उसी प्रकार रखते हुए हाथों की कनिष्ठाओं को खोलें।
(१०) अधोमुखम् -- उलटे हाथों की अंगुलियों को मोड़ें तथा मिलाकर नीचे की ओर करें ।
(११) व्यापकाञ्जलि -- उसी प्रकार मिले हुए हाथों को शरीर की ओर घुमाकर सीधा करें।
(१२) शकटम् -- दोनों हाथों को उलटा करके अंगूठे को मिलाकर तर्जनियों को सीधा रखते हुए मुट्ठी बाँधे ।
(१३) यमपाशम् -- तर्जनी से तर्जनी को बाँधकर दोनों मुट्ठियों को वाँधे ।
(१४) ग्रन्थितम -- दोनों हाथों की अंगुलियों को परस्पर गूंथे ।
(१५) उन्मुखोन्मुखम् -- हाथों की पाँचों अंगुलियों को मिलाकर प्रथम बायें पर दाहिना फिर दाहिने पर बांया हाथ रखें।
.(१६) प्रलम्बन् -- अंगुलियों को कुछ मोड़कर दोनों हाथों को उलटा कर नीचे की ओर करें ।
(१७) मुष्टिकम् -- दोनों अंगूठों को ऊपर करके दोनों मुट्ठियाँ बाँधकर मिलावें ।
(१८) मत्स्यः -- दाहिने हाथ की पीठ पर बाँया हाथ उलटा रखकर दोनों अंगूठों को हिलावें ।
(१९) कूर्मः -- सीधे बांये हाथ की मध्यमा अनामिका तथा कनिष्ठा को मोड़कर उलटे दाहिने हाथे की मध्यमा अनामिका को उन तीनो अंगलियों के नीचे रख कर तर्जनी पर दाहिनी कनिष्ठा और बांये अंगठे पर दाहिनी तर्जनी को रखें।
(२०) वराहकम् -- दाहिनी तर्जनी को बांये अंगूठे से मिलाकर दोनों हाथों की अंगुलियों को परस्पर बांधे ।
(२१) सिंहाक्रान्तम् -- दोनों हाथों को कानों के पास में करें ।
(२२) महाक्रान्तम्-- दोनों हाथों की अंगुलियों को कानों के समीप में करें
(२३) मुद्गरम् -- मुट्ठी बाँदकर दाहिनी केहुनी को वांयी हथेली पर । रखें।
(२४) पल्लवम् -- दाहिने हाथ की अंगुलियों को मुख के समीप हिलावें ।
गायत्री मंत्रः--
ॐ भूर्भुवः स्वः । तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि । धियो योनः प्रचोदयात् ।
षडङ्गन्यासाः --
ॐ भू: हृदयाय नमः । ॐ भुवः शिरसे स्वाहाः । ॐ स्वः शिखायै वपट् । ॐ तत्सवितुर्वरेण्यम् कवचाय हुम् । ॐ भग्र्गादेवश्य धीमहि नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ धियोयोनः प्रचोदयात् अस्त्राय फट् ।
जपान्ते मुद्राप्रदर्शनम्
सरभिः -- दोनों हाथों की अंगुलियाँ गूथकर बायें हाथ की तर्जनी से दाहिने हाथ की मध्यमा, मध्यमा से तर्जनी, अनामिका से कनिष्ठा और कनिष्ठा से अनामिका को मिलायें ।
ज्ञानम्:-- दाहिने हाथ की तर्जनी से अंगूठा मिलाकर हृदय में तथा उसी प्रकार वायां हाथ वांये घुटने पर सीधा रखें ।
वैराग्यम्:-- दोनों तर्जनियों से अंगूठे को मिलाकर घुटने पर सीधा रखें । योनिः-- दोनों माध्यमाओं के नीचे से बायीं तर्जनी के ऊपर दाहिनी
अनामिका और दाहिनी तर्जनी पर बायीं अनामिका रख दोनों तर्जनियों से. वाँधकर दोनों मध्यमाओं को ऊपर रखें।।
शंखः-- वायें अंगूठे की दाहिनी मुट्ठी में वाँध कर दाहिने अंगूठे से बांयीं अंगुलियों को मिलायें ।
पंकजम् -- दोनों हाथों के अंगूठों तथा अंगुलियों को मिलाकर ऊपर की ओर करें ।
लिङ्गम् -- दाहिने अंगूठे को सीधा रखते हुए दोनों हाथों की अंगुलियों को गूंथ कर वायें अंगूठे से दाहिने अंगूठे को मोड़कर सीधा रखें ।
निर्वाणम् - उलटे वायें हाथ पर दाहिने हाथ को सीधा रखकर अंगुलियों को परस्पर गूंथ दोनों हाथ अपनी ओर घुमाकर दोनों तर्जनियों को सीधे कान के समीप करें ।
Sandhya Vandan Mantra Lyrics
गायत्र्यास्तर्पणम्-
(केवल प्रातः काल करें)
ॐ गायत्र्या विश्वामित्रऋषिः सवितादेवता गायत्री छन्दः गायत्री-तर्पणे विनियोगः । ॐ भूः ऋग्वेद पुरुपं तर्पयामि । ॐ भुवः यजुर्वेदपुरुपं तर्पयामि । ॐ स्वः सामवेदपुरुपं तर्पयामि । ॐ महः अथर्ववेदपुरुष तर्पयामि । ॐ जनः इतिहासपुरुपं तर्पयामि । ॐ पुराणपुरुपं तर्पयामि । ॐ तपः सर्वागमपुरुषे तर्पयामि । ॐ सत्यं सत्यलोकपुरुपं तर्पयामि । ॐ भूः भूलॊकपुरुपं तर्पयामि । ॐ भुवः भुवर्लोक पुरुष तर्पयामि । ॐ स्वः स्वर्लोकपुरुपं तर्पयामि । ॐ भुः एकपदां गायत्री तर्पयामि । ॐ भुवः द्विपदां गायत्री तर्पयामि । ॐ स्वः त्रिपदां गायत्रीं तर्पयामि । ॐ भूर्भुवः स्वः चतुष्पदां गायत्री तर्पयामि । ॐ उपसीं तर्पयामि । ॐ गायत्री तर्पयामि । ॐ सावित्री तर्पयामि । ॐ सरस्वती तर्पयामि । ॐ वेदमातरं तर्पयामि । ॐ पृथिवी तर्पयामि । ॐ अजा तर्पयामि । ॐ कौशिकी तर्पयामि । ॐ साङ्कृति तर्पयामि । ॐ सर्वजितं तर्पयामि ।
ॐ तत्सद्ब्रह्मार्पणमस्तु ।
प्रदक्षिणा-मन्त्रः --
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।
तानि तानि प्रणश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ।
गायत्र्या विसर्जनमः--
उत्तरे शिखरे इत्यस्य कश्यप ऋषिः । सन्ध्या देवता । अनुष्टुपछन्दः
क गायत्री विसर्जने विनियोगः ।।
उत्तरे शिखरे जाता भूम्यां पर्वतमस्तके ।
ब्राह्मणेभ्योऽभ्यनुज्ञाता गच्छ देवि यथासुखम् ।।
विसर्जिता वेदमातर्द्विजानां पापनाशिनि ।
सर्वकामप्रदे नित्ये गच्छ देवि नमोऽस्तु ते ।।
यदक्षरपदभ्रष्टं मात्राहीनश्च यद्भवेत् ।
तत्सर्वं क्षम्यता देवि काश्यपप्रियवादिनि ।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।
Sandhya Vandan Mantra Lyrics
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