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bhagwat katha sikhe

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 सुमुखश्चैकदन्तश्च- लिरिक्स संस्कृत मंगल श्लोक / sumukhascha ekadanta asya lyrics sanskrit main

सुमुखश्चैकदन्तश्च- लिरिक्स संस्कृत मंगल श्लोक / sumukhascha ekadanta asya lyrics sanskrit main

 सुमुखश्चैकदन्तश्च लिरिक्स 

sumukhascha-ekadanta-asya-lyrics

संस्कृत मंगल श्लोक 

सुमुखश्चैकदन्तश्च     कपिलो    गजकर्णकः  ।        

लम्बोदरश्च   विकटो  विघ्ननाशो   विनायकः          ।। 3।।


धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो    भालचन्द्रो      गजाननः          ।

द्वादशैतानि   नामानि   यः    पठेच्छृणुयादपि          ।। 4।।


विद्यारम्भे   विवाहे   च   प्रवेशे   निर्गमे तथा         ।

सङ्ग्रामे  सङ्कटे  चैव  विघ्नस्तस्य  न जायते          ।। 5।।


शुक्लाम्बरधरं     देवं   शशिवर्णं   चतुर्भुजम्           ।

प्रसन्नवदनं     ध्यायेत्      सर्वविघ्नोपशान्तये           ।। 6।।


अभीप्सितार्थ-सिद्धयर्थं   पूजितो  यः सुराऽसुरैः         ।

सर्वविघ्नहरस्तस्मै      गणाधिपतये      नमः            ।। 7।।


सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये   शिवे    सर्वार्थसाधिके !         ।

शरण्ये त्रयम्बके   गौरि   नारायणि ! नमोऽस्तु ते      ।। 8।।


सर्वदा   सर्वकार्येषु   नास्ति   तेषाममङ्गलम्          ।

येषां    हृदिस्थो   भगवान्   मङ्गलायतनो  हरिः    ।। 9।।


तदेव  लग्नं   सुदिनं  तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव      ।

विद्यावलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेऽङ्घ्रियुगं स्मरामि।। 10।।


लाभस्तेषां    जयस्तेषां    कुतस्तेषां     पराजयः      ।

येषामिन्दीवरश्यामो        हृदयस्थो     जनार्दनः     ।। 11।।


यत्र   योगेश्वरः   कृष्णो   यत्र   पार्थो  धनुर्धरः      ।

तत्र     श्रीर्विजयो      भूतिध्र्रुवा  नीतिर्मतिर्मम  ।।12।।


अनन्याश्चिन्तयन्तो    मां    ये    जनाः पर्युपासते      ।

तेषां     नित्याभियुक्तानां    योगक्षेमं   वहाम्यहम्    ।। 13।।


स्मृतेः   सकलकल्याणं    भाजनं    यत्र  जायते       ।

पुरुषं   तमजं   नित्यं   ब्रजामि    शरणं  हरिम्      ।। 14।।


सर्वेष्वारम्भकार्येषु              त्रयस्त्रिभुवनेश्वराः     ।

देवा    दिशन्तु    नः   सिद्धिं  ब्रह्मेशानजनार्दनाः      ।। 15।।

विश्वेशं माधवं  ढुण्ढिं  दण्डपाणिं  च भैरवम्        ।


वन्दे काशीं गुहां  गङ्गां भवानीं मणिकर्णिकाम्      ।। 1।।


वक्रतुण्ड !    महाकाय !    कोटिसूर्यसमप्रभ !         ।

निर्विघ्नं   कुरु   मे  देव !  सर्वकार्येषु  सर्वदा          ।। 2।।

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