कर्म पात्र पूजन- karma patra pujan
कर्मपात्र के नीचे चावल तथा उसके जल में गन्ध अक्षत पुष्प डालकर वरुण और गंगादि नदियों का आवाहन करें ।
ॐ इमम्मे वरुणश्रुधि हवमद्या च मृडय। त्वामवस्युराचके॥
ॐ गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन्सन्निधिं कुरु ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गङ्गादिसरिद्भ्यो नमः । आवाहयामि ॥
त्रिकुश या दूर्वा के बने पवित्रक से उस जल का आलोडन करें ।
ॐ वरो वरेण्यो वरदो वराहो धरणीधरः । आयातु कर्मपात्रेऽस्मिन् सर्वदिक्षु भयापहम् ।
त्रिकुश या दूर्वा के बने पवित्रक से उस जल का आलोडन करें ।
ॐ वरो वरेण्यो वरदो वराहो धरणीधरः । आयातु कर्मपात्रेऽस्मिन् सर्वदिक्षु भयापहम् ।
ॐ कर्मपात्रं सुसम्पन्नम् ।।
इसी कर्मपात्र के जल से कुशपवित्रक के द्वारा ॐ अपवित्रः पवित्रो वा इस मन्त्र से पूजा की सभी सामग्री तथा स्थान का प्रोक्षण कर इसी जल को सङ्कल्पादि सभी पूजाकार्यों में लें ।
इसी कर्मपात्र के जल से कुशपवित्रक के द्वारा ॐ अपवित्रः पवित्रो वा इस मन्त्र से पूजा की सभी सामग्री तथा स्थान का प्रोक्षण कर इसी जल को सङ्कल्पादि सभी पूजाकार्यों में लें ।