F श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में book online - bhagwat kathanak
श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में book online

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श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में book online

श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में book online

 श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में book online

[ अथ चतुर्थोऽध्यायः ]

कंस के हाथ से छूट योग माया का आकाश में जाकर भविष्य वाणी करना-श्रीशुकदेवजी बोले राजन् जेल के कपाट ताले बन्द हो गए पहरे दार जग गए बालक के रोने की आवाज आई पहरे दार दौड़ पडे कंस को सूचना की लडखडाता कंस आया देवकी बोली भैया यह अंतिम एक बालिका है इसे छोड़ दो कंस पहले तो घबराया यह काल की जगह कालिका कहाँ से आ गई फिर देवकी के हाथ से छीन पत्थर पर पछाड ने लगा तो वह हाथ में से छूटकर आकाश में उड़ गई और बोली अरे कंस तू मुझे क्या मारेगा तुझे मार ने वाला वृज में पैदा हो गया है। कंस घबराया तत्काल आपत कालीन मंत्री मंडल की बैठक बुलाई कंस को निश्चिन्त करते हुए मंत्री मडल ने निर्णय लिया कि वज के कल प्रात: होते ही छ: माह तक के बालकों को समाप्त कर दिया जावे।

इतिचतुर्थोऽध्यायः

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[ अथ पंचमोऽध्यायः ]

गौकल मे भगवान का जन्म महोत्सव-श्रीशुकदेवजी बोले परीक्षित् वसदेवजी जब बालक को सुला बालिका को लेकर चले गए तब भी यशोदा को पता नही चला कि उसके बालक हुआ है या बलिका प्रात: नन्दजी की बड़ी बहिन सनन्दाजी ने देखाकि यशोदा के पास एक सुन्दर बालक सो रहा है उन्होंने कहा अरी यशोदा देख तेरे एक बालक हुआ है और तुझे खबर भी नहीं क्षण भर में यह बात हवा की तरह सारे बृज में फैल गई नन्द बाबा ने ब्राह्मणों को बुला कर स्वस्ति वाचन करवाया और उन्हें खूब दान दिया बृजवासी दौड़ पड़े नाचते गाते नन्द के द्वार बधाई लेकर पहुंचने लगे नन्द के यहां बडा उत्सव हुआ।

बधाई

बजत बधाइ धुनि छाइ तिहुं लोकन मे

आनन्द नगर के बजत सुर तालकी सुत को जन्म सुनि मुनि देवन आनन्द भयो

दुन्दुभि बाजे पुष्प बरसत रसाल की फुले सब गोपी गोप आज आनन्द उमंग

गेपिन नवेली सुधि भूली आज काल की बृज मे बृजचन्द भयो

यशोदा फरचंद भयो नन्द के आनन्द भयो जय कन्हैया लाल की

बधाई

अनोखो जायो ललना मैं वेदन मे सुन आई

मथुरा में याने जन्म लियो है गोकुल में झूले पलना

लेवसुदेव चले गोकुल को याके चरण पखारे जमना

काहे को याको बन्यो पालनो काहे के लागे फुदना

अगर चन्दन को बन्यो पालनो रेशम के लागे

फुदना दधि माखन को कीच मच्यो है दास भागवत शरणा

इति पंचमोऽध्यायः

 

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[ अथ षष्ठोऽध्यायः ]

श्रीशुकदेवजी वर्णन करते हैं कि पहले दिन उत्सव मनाकर दूसरे दिन प्रात: नन्द तो कंस का कर देने तथा उसे पुत्र जन्म की खुश खबर देने मथुरा चले गए और पीछे से कंस की भेजी पूतना गोकुल पहुंची उसने एक सुन्दर गोपी रूप धारण कर नन्द भवन में प्रवेश किया और सीधे वहाँ पहुंची जहाँ लाला सो रहा था उसने झट लाला को गोद में उठाया और अपना जहर भरा स्तन उसके मुँह मे दे दिया भगवान ने स्तन को जोर से पकड़ लिया दूध के साथ उसके प्राण भी पी गए वह अपने असली रूप में आ गई और बाहर गलियारे में धडाम से जाकर गिर गई ओर समाप्त हो गई इसी बीच नन्द बाबा कंस को कर देकर वसुदेव जी के पास पहुंचे व समाचार जाने वसुदेव जी बोले शीघ्र जावो बृज मे उत्पात हो रहे हैं नन्द बाबा शीघ्र गोकुल पहुचे और देखाकि मीलों लम्बा चौड़ा पूतना का शरीर गलियारे में पड़ा है और लाला उसके वक्षस्थल पर खेल रहा है यशोदा ने दौड़कर लाला को गोद में उठा लिया और गो पुच्छ से झाडा लगाया पूतना के शरीर के टुकड़े-टुकडे कर उसे दूर ले जाकर जला दिया उसमें से सुगंध निकली भगवान ने उसका स्तन पान जो कर लिया था।

इति षष्ठोऽध्यायः


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[ अथ सप्तमोऽध्यायः ]

शकट भंजन और तृणावर्त उद्धार-श्रीशुकदेवजी बोले एक समय भगवान का नक्षत्रोत्सव मनाया जा रहा था भगवान का पलना एक छकडे के नीचे बांध रखा था नन्द यशोदा अतिथी सेवा में व्यस्त थे छकडे में एक शकटा सुर नाम का दैत्य छकड़े का रूप बनाकर बैठ गया वह भगवान को मारना चाहता था भगवान ने एक लात मार कर छकडा उलट दिया और शकटासुर समाप्त हो गया भगवान का पलना एक तरफ पड़ा है यशोदा ने लाला को उठा लिया सब सोचने लगे यह छकडा कैसे उलट गया और यह लिस कौन है यशोदा ने लाला को सुला दिया तभी तृणावर्त राक्षस बबंडर का रूप धारण कर लाला को उड़ाकर ले गया भगवान ने आकाश में ही उसे दबाकर समाप्त कर दिया उसका शरीर कई योजन लंबा चौडा धरती पर गिरा उसकी छाती पर लाला खेल रहा है सब ने आश्चर्य किया अरे देखो यह राक्षस हमारे लाला को उडाकर ले गया था। नारायण ने ही इसकी रक्षा की है यशोदा ने दौड़कर लाला को उठा लिया।

इतिसप्तमोऽध्यायः


[ अथ अष्टमोऽध्यायः ]

नामकरण संस्कार और बाललीला-श्रीशुकदेवजी वर्णन करते हैं एक समय वसुदेवजी के कुल पुरोहित गर्गाचार्यजी गोकुल में आए नन्द जी ने उनका स्वागत किया ओर कहा प्रभो भले पधारे अब आप कृपाकर दोनों लालाओं का नाम करण कर दें गर्गाचार्य बोले बहुत अच्छा और गो शाला में जाकर नाम करण करने लगे।


अयंहि रोहिणि पुत्रो रमयन सुहृदो गुणे

रामइति बलाधिक्या बलं विदुः

यदूनामपृथग्भावात् संकर्षण मुशनपुत

गर्गजी बोले यह जो रोहिणिजी का पुत्र है इसका नाम राम है बल में अधिक होने से इसे बलराम कहेगें।


दूसरा जो सांवला-सांवला है इसका नाम कृष्ण होगा कभी इसने वसुदेवजी के यहां जन्म लिया था अत: इसे वासुदेव भी कहेगे नाम करण संस्कार कराकर गर्गाचार्यजी को विदा किया। गर्गाचार्यजी को विदा करते ही भगवान के दर्शन करने के लिए शिवजी ने यशोदा के द्वार पर अलख जगाया यशोदाजी भिक्षा लेकर निकली मोती भरा थाल शिवजी बोले--

द्वार यशोदा के ठाडे भोले बाबा

दिखलादे मेया मोहे मुरली वाला भिक्षा लेके जावो बाबा लाल डर जायेगा

भेष तुम्हारा लख लाल घबरायेगा भेष तुम्हारो लागे सबसे निराला-दिखलादे

भिक्षा नही लूगां मैया दर्शन का प्यासा आया हूं दूर से मै लेकर के आशा

अंधेरे मे कहीं नही दिखता उजारा-दिखलादे

 

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शिवजी ने यशोदा से बहुत प्रार्थना की किंतु उन्हेंलाला के दर्शन नहीं कराये निराश हो शिवजी एक पेड के नीचे जाकर बैठ गए और परमात्मा का ध्यान करने लगे प्रभो क्या निराश लौटावोगें दर्शन नहीं दोगे इतने में भगवान जोर जोर से रोने लगे यशोदा कभी दूध पिलाती कभी खिलौना देती पर भगवान रोने से बन्द नही हुए तो यशोदा कहने लगी लाला पै कोई जादू टोना कर दियो है।

 

एक सखी बोली मैया अभी अभी जो बाबा आए थे मुझे तो यह उन्ही का चमत्कार लगता है यशोदा बोली सखी जल्दी जावो उस बाबा को लेकर आवो एक सखी दौड़कर गइ पास ही बैठे बाबा को लेकर आ गई।

 

भगवान ने शिवजी को दर्शन दिए और रोना बन्द कर दिया शिवजी के मन में इच्छा हुई कि दर्शन तो हो गए अब चरण स्पर्श और हो जाता तो अच्छा होता ज्योंहि शिवजी मुडे भगवान फिर रोने लगे यशोदा बोली बाबा लाला फिर रोने लगा मैया ऐसा कर इस लाला के चरण को मेरे सिर पर घुमादे फिर लाला कभी नहीं रोयेगा यशोदा ने भगवान के चरण को शिवजी के मस्तक पर रख दिया शिवजी धन्य हो गए। 


जब राम कृष्ण कुछ बड़े हो गए ओर घुटरन चलने लगे शोभित कर नवनीत लिए। घुटरन चलत रेणु तन मण्डित मुख दधिलेप किए। चारु कपोल लोल लोचन छवि मृगमद तिलक दिए। लट लटकन मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहि पिए कठुला कण्ठ बज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए धन्य सूर एको पल या सुख का शत कल्प जिए अब तो भगवान थोड़े और बड़े हो गए खड़े होकर ठुमक-ठुमक कर चलने लगे माता ने उनके पैरों में पैंजनी पहनादी और सखियां उन्हें नचाने लगी

 

बाजी बाजी ललाकी पैंजनियां

छूमूछम छननन छुमछुम छननन यशोदा लाल को चलना सिखावत

अगुंली पकड कर दो जनिया पीत झगुलिया तन पहिरावत

टोपी लगावत लटकनियां नन्द बाबा सों बाबा कहत है

तीन लोक के वे धनिया शिव ब्रह्मा जाको पार न पावे

ताहि नचावत ग्वालनियां

एक दिन भगवान रोने लगे यशोदा उन्हें गोद में लेकर मनाने लगी किसी भी तरह नही माने तो माता ने उन्हें चन्द्रमा दिखाकर बोली देख आकाश में कितना सुन्दर खिलौना है तू उसके साथ खेल तो भगवान ने तो जिद कर ली मुझे चन्द्र खिलोना लाकर दो।

इति अष्टमोऽध्यायः

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[ अथ नवमोऽध्यायः ]

श्रीकृष्ण का उखल से बांधा जाना-श्रीशुकदेवजी वर्णन करते है एकदिन यशोदाजी भगवान को गोद में लेकर स्तनपान करा रही थी कि भगवान बोले मैया अपको दूध प्यारो है या मैं मैयाबोली लाला तेरे उपर तो लाखों-लाखों गायों का दूध न्योछावर है इतने मे चूल्हे पर दूध उफनता नजर आया तो यशोदा ने झटसे लाला को नीचे उतार दूध संवार ने चली गई भगवान ने सोचा अभी-अभी तो मैया लाखों गायों का दूध मेरे पर न्योछावर कर रही थी और अभी मुझे नीचे डालकर दूध सवारने चली गई।

 

आज मैया को सबक सिखाना है वैसे भी माखन चोरी लीला तो करनी ही है क्यों नहीं घर से ही शुरु किया जावें भगवान ने एक पत्थर उठाया और बड़ी मथानी जो दही से भरी थी को तोड़ दिया पूरे आँगन में दही का कीच मच गया माखन की कमोरी लेकर बाहर आ गए।

 

स्वयं माखन खाने लगे और ग्वालों को बांटने लगे इतने में मैया ने आकर देखा कि पूरे आँगन में दही फैल रहा है और माखन की कमोरी भी नही है बाहर आकर देखा कन्हैया सबको माखन खिला रहा है मैया को देखते ही भगवान मारे डर के कमोरी छोड़कर भग गए पीछे-पीछे यशोदा पकड़ ने को भग रही है थोडी दूर जाकर भगवान को पकड़ लिया अब तुझे उखल से बांधूगी और बांधने लगी किंतु रस्सी दो अंगुल छोटी पड़ गई कई घरों से रस्सी मगाई लेकिन पूरी नहीं हुई अन्त में माता को परेशान देख भगवान बंध गए मैया ने भगवान को उखल से बांध दिया ओर अपने घर धंधे में लग गई बलरामजी आए और बोले करोड़ों बज्रों को तोड़ने वाले इस छोटीसी रस्सी को नही तोड़ सकते इसे तोड़कर मुक्त हो जावो भगवान बोले दादा यह प्रेम की डोरी है इसे मैं नहीं तोड़ सकता।

इति  नवमोऽध्यायः

 

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भागवत कथा हिंदी में

दशम स्कंध का कथा

[ अथ दशमोध्यायः ]

यमलार्जुन उद्धार

श्रीशुकदेवजी बोले-परीक्षित् धीरे-धीरे भगवान उखल खेचते हुए बाहर वहां आ गए जहां यमलार्जुन के दो वृक्ष खड़े थे

दोनों वृक्षों के बीच में उखल को फंसाकर एक झटके में उन्हें उखाड़ दिया उनमें से दो दिव्य पुरुष निकले उन्होंने

भगवान को प्रणाम किया और उनकी परिक्रमा कर वे अपने लोक को चले गए।

माता ने दौड़कर भगवान को उठा लिया खोल कर ह्रदय से लगालिया लोग कहने लगे अरे देखो लाला बचगया

इस पर भगवान की बडी कृपा है। भगवान की अद्भुत लीलाएं देख वृज गोपियां धन्य हो रही हैं वे भगवान से प्रार्थना

करती है कभी हमारा माखन भी खाइये सखी के आह्वाहन पर भगवान उसके घर गए चारों ओर देखते हुए चोर की तरह उसके घर में घुस गए सखी बीच कमरे में माखन रख एक कोने मे छुप गई। भगवान माखन खाने लगे आनन्द से सखी दर्शन कर रही है और धन्य धन्य कह रही है सखी के मन मे एक विचार आया भगवान के दर्शन तो हो गए वे अभी चले जावेगें क्यों न उनका स्पर्श भी करलूं भगवान को।पकड लिया कहने लगी लाला अबतो तुम्हे यशोदाजी। केपास लेचलूगी और भगवान का स्पर्श सुख लेती हुई।। 


यशोदा के द्वार पर पहुँच गई और आवाज लगाई मैया देख आज तेरे लाला को माखन चुराते हुए पकड़ कर लाइ हूं मैया बोली अरी मेरो लाला तो सोय रयो हे ओर लाला को आवाज लगाई आंखें मसलते हुए भगवान आए गूजरी देख दंग रह गइ पल्ला हटाके देखा उसने अपने पति को पकड़ रखा है लज्जित होकर सखी आ गई। 


आज दूसरी सखी ने विचार कियो आजमै भी भगवान को बुलाउ ओर दर्शन करूं भगवान ने देखाकि आज दूसरी सखी बुला रही है वे बेखटके उसके यहाँ भी पहुंच गए इसने माखन अंधेरे में रखा था भगवान ने अपने मणिमय कंगनों के प्रकाश से उसे ढूंढ लिया ओर खाने लगे पहली सखी के अनुसार इसने भी भगवान को पकड़ लिया और कहने लगी लाला आज तुझे बांध कर सब सखियों को दिखाउगी भगवान को एक खंभे से बांध दिया और सखियन । को बुलाने चली गई सब सखियों को लेकर आई देखाकि लाला की जगह उसकी सास बंधी हुई है।

इति दशमोऽध्यायः

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[ अथ एकादशोऽध्यायः ]

गोकुल से वृन्दावन जाना और वत्सासुर बकासुर का उद्धार-श्रीशुकदेवजी बोले-परीक्षित्! एक दिन नन्दादि बड़े गोपों ने विचार किया इस महाबन में तो रोज कोई न कोई उत्पात हो रहा है हम सब वृन्दावन में निवास करें और सब लोग अपने-अपने छकडों में सामान भरकर वृन्दावन के लिए प्रस्थान किया ओर वृन्दावन में जाकर निवास करने लगे वहां कृष्ण बलराम बछडे चराने लगे एक दिन वन में बछडे चराते समय एक दैत्य बछडे का रूप बना कर बछडों में आ घुसा भगवान उसे पहिचान गए और उसके पैर पकड़ उसे पछाड कर समाप्त कर दिया बछडों को पानी पिलाकर कुछ आगे बढे कि एक जीव पहाड जैसा शरीर वाला बैठा है सब ग्वालवाल उसे देख डर गए वह झट भगवान को निगल गया ग्वालबाल हाहाकार करने लगे इतने में भगवान उसके पेट में उसे जलाने लगे तब तो उसने भगवान को उगल दिया भगवान ने उसकी चोंच के निचले भाग पर पैर रख कर उपर के भाग को पकड़े कर चीर डाला यह बकासुर पूतना का भाई बगुले का रूप बना कर आया था सब ग्वालबाल हर्षित हो गए।

इति एकादशोऽध्यायः

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[ अथ द्वादशोऽध्यायः ]

अघासुर का उद्धार-श्रीशुकदेवजी बोले परीक्षित पूतना और बकासुर के छोटे भाई अघासुर को जब यह बात मालुम हुई कि मेरे बड़े भाई बहिन को कृष्ण बलराम ने मार दिया तो वह क्रोधित होकर बदला लेने चला और वन में जहां कृष्ण बलराम बछडे चरा रहे थे वहां आया और अजगर का रूप धारण कर उनके सामने बैठ गया विशाल काय होने से उसे कोई पहिचाना नही उस अजगर ने एक लम्बी सांस खेंची ओर बछडों सहित सब ग्वाल बाल उसके पेट में चले गए किंतु उसने मुँह बन्द नहीं किया वह भगवान को पकड़ने की प्रतिक्षा कर रहा था देवता हाहा कार करने लगे तब भगवान स्वयं ही उसके मुँह में चले गए अजगर ने मुँह बन्द कर लिया भगवान ने पेट में अपना शरीर इतना बढाया कि अजगर का पेट फट गया सब ग्वालबाल पेट से सुरक्षित निकल आए भगवान की यह पांचवें वर्षकी लीला छठे वर्ष में ग्वालबालों ने जाकर अपने घर सुनाई इस पर परीक्षित ने प्रश्न किया यह बात एक वर्ष बाद जाकर क्यों सुनाई।

इति द्वादशोऽध्यायः

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[ अथत्रयोदशोऽध्यायः ]

 

ब्रह्माजी का मोह और उसका नाश-श्रीशुकदेवजी वर्णन करते हैं कि परीक्षित आपने यह बहत ही सुन्दर प्रश्न किया है कि अधासुर की मृत्यु की बात एक वर्ष बाद क्यों कही जिस समय अधासुर मारागया उसकेबाद भगवान ने ग्वाल बालों से कहा।अब हमें भोजन कर लेना चाहिए ओर सब बछडों को घास मे छोड भोजन करने बैठ गए भोजन करते समय बछडे चरते हुए दूर निकल गए भगवान बोले आप सब भोजन करते रहें मैं अभी बछडों को लेकर आता हूँ।


भगवान एक हाथ में रोटी का कोर लेकर खाते जा रहे है और दौड लगाते जा रहे हैं जिसे देख ब्रह्माजी मोहित हो गए और बछडों को लेकर ब्रह्म लोक चले गए।भगवान समझ गए वापस लौट आए उधर ग्वालबालों को लेकर भी ब्रह्म लोक को चले गए भगवान ने जितने बछड़े ओर ग्वाल बाल थे वे स्वयं बन गए और घर आ गए आज गायें बड़ी प्रसन्न थी भगवान स्वयं बछडा बन उनका दूध पी रहे थे गोपियां भी प्रसन्न थी बालकों के रूप में स्वयं भगवान उनकी गोद में थे इस लीला को बलरामजी जान गए उधर ब्रह्माजी ने जब देखा कि वहां भी ग्वालबाल बछडे है वे चकित हो गए और आकर भगवान के चरणों में गिर गए और हाथ जोड़ भगवान की स्तुति करने लगे।

 

इति त्रयोदशोऽध्यायः

[ अथ चतुर्दशोऽध्यायः ]

 

ब्रह्माजी द्वारा भगवान की स्तुति--

नोमीड्य तेअभ्रवपुषे तडितम्बराय

गुन्जा वतन्स परिपिच्छल सन्मुखाय

वन्यस्रजे कवलवेत्र विषाणवेणु

लक्ष्मश्रिये मृदुपदे पशुपांगजाय

 

ब्रह्माजी बोले प्रभो! एक मात्र आप ही स्तुति करने योग्य है। मैं आपके चरणों मे नमस्कार करता हूँ। आपका यह शरीर वर्षा कालीन मेघ के समान श्यामल है जिसमें बिजली के समान झिलमिल करता हुआ पीताम्बर शोभा पाता है आपने घुघची की माला पहन रखी है कानों में मकराकृति कुण्डल सिर पर मोर पंखों का मुकुट है इन सबकी कान्ति से आपके मुख पर अनोखी छटा छिटक रही है। वक्षस्थल पर लटकती हुइ बन माला और नन्ही सी हथेली पर दही भात का कोर बगल में वेत और सिंगी तथा कमर की फेंट में आपकी पहचान बताने वाली बांसुरी शोभा पा रही है। 


आपके कमल से सुकोमल परम सुकुमार चरण और यह गोपाल बालक का सुमधुर वेष मैं कुछ नही जानता बस मैं तो इन्ही चरणों पर न्योछावर हूँ। ब्रह्माजी ने इस प्रकार भगवान की स्तुति की तथा उनकी परिक्रमा कर ग्वालबालों को जहां से उठाया था वहीं जमुना किनारे बैठा दिए और बछडों को भगवान के आगे कर दिए और अपने लोक को चले गए भगवान बछडो को लेकर वहां आए जहां ग्वाल बाल जमुना किनारे बैठे थे भगवान को बछडे लाते हुए देख ग्वालबाल बोले कन्हैया तुम्हारे बिना हमने एक ग्रास भी नहीं खाया तुम्हारी प्रतिक्षा में बैठे है एक वर्ष ब्रह्म लोक में बिताने वाले ग्वाल यह सब भूल गए उन्हें लगा कि अभी हमने अघासुर को मारा है यह बात घर जाकर एक वर्ष बाद सुनाई।

इति चतुर्दशोऽध्यायः

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भागवत सप्ताहिक कथा / भाग -1

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