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bhagwat katha sikhe

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श्रीराम देशिक प्रशिक्षण केंद्र एक धार्मिक शिक्षा संस्थान है जो भागवत कथा, रामायण कथा, शिव महापुराण कथा, देवी भागवत कथा, कर्मकांड, और मंत्रों सहित विभिन्न पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
श्रीमद् भागवत कथा प्रवचन pdf

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 श्रीमद् भागवत कथा प्रवचन pdf

अथ द्वादश स्कन्धः प्रारम्भ

[ अथ प्रथमोऽध्यायः ]

कलियुग के राजाओं का वर्णन-श्रीशुकदेवजी वर्णन करते है कि जरासंध के पिता बृहद्रथ के वंश में अन्तिम राजा होगा परन्जय उसके मंत्री होगें शुनक वह राजा को मार अपने पुत्र प्रद्योत को राजा बनायेगा उसके वंश मे पांच राजा होगें। 


शिशुनाग वंश में दस राजा होगें मौर्य वंश के राजा भी राज्य करेगें कण्व वंशी राजा भी होगें दस गर्दभी आभीर कन्क आदि राजा होगें इसके बाद आठ यवन चौदह तुर्कराज्य करेगें दस गुरण्ड ग्यारह मौन तीन सौ वर्ष राज्य करेगें वर्तमान मे मौनो का राज्य चल रहा है।

इति प्रथमोऽध्याय:


[ अथ द्वितीयोऽध्यायः ]

कलियुग के धर्म-कलियुग में जिसके पास धन होगा वही कुलीन धर्मात्मा समझा जावेगा जिसके हाथ में शक्ति होगी वही सब कुछ कर सकेगा वर्णाश्रम धर्म नष्ट हो जावेगा चालाक ही पण्डित होगा साधु पाखण्डी होंगे बाल रखनाही सौन्दर्य मानेगें रोग ग्रस्त लोग होगें कलियुग के अन्त में भगवान कल्कि अवतार लेगें और दुष्टों का संहार करेगें।

इति द्वितीयोऽध्यायः

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[ अथ तृतीयोऽध्यायः ]

राज्ययुग धर्म और कलियुगके दोषों से बचने का उपाय- नाम संकीर्तन-श्रीशुकदेवजी बोले राजा लोग अपने को पृथ्वी पति कहते है और पृथ्वी को जीतने का प्रयास करते है किन्तु इस पृथ्वी पर अनेक बीर राजा इसी में समा गए जैसे पृथु पुरुरवा ययाति शर्याति नहुष दैत्यो में हिरणाक्ष्य आदि का आज नामो निशान नही है अब कलियुग आ गया है उसमें अनेक दोष है यदि उनसे बचना है तो भगवान का नाम संकीर्तन ही एक मात्र उपाय है।

कलियुगकेवलनाम अधारा

सुमिरिसुमिरिनरउतरहिपारा

यत्फलं नास्ति तपसा न योगेन समाधिनाम्

तत्फलं लभ्यते सम्यक कलौ केशव कीर्तनात्

इति तृतीयोऽध्यायः

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[ अथ चतुर्थोऽध्यायः ]

चार प्रकार के प्रलय-श्रीशुकदेवजी बोले राजन् प्रलय चार प्रकार की होती है नित्य प्रलय नैमित्यिक प्रलय ब्राह्मी प्रलय प्राकृतिक प्रलय यानी महाप्रलय आज का बीता हुआ समय दुबारा नही आएगा समय जा रहा है यहि नित्य प्रलय है संसारकी हर वस्तु पहाड़ समुद्र तिलतिल क्षीण हो रहे है यह नैमित्यिक प्रलय है ब्रह्माके एक दिन को एक कल्प कहते है वह पूरा होते ही ब्रह्मा की रात्री में प्रलय होती है जिसे ब्राह्मी प्रलय कहते है।जब ब्रह्मा के भी सौवर्ष पूर्ण हो जाते है ब्रह्मा सहित प्रकृति परमात्मा में लीन हो जाती है यही महाप्रलय है।

इति चतुर्थोऽध्यायः


[ अथ पंचमोऽध्यायः ]

शुकदेवजी का अन्तिम उपदेश-शुकदेवजी बोले परीक्षित् इस श्रीमद् भागवत महापुराण में बार-बार और सर्वत्र विश्वात्मा श्रीहरि का ही संकीर्तन हुआ है अब तुम पशुओं की सी अविवेकमूलक धारणा छोड़ दो कि मैं मरुंगा तुम पहले भी थे अब भी हो आगे भी रहोगे शरीर बदलता रहता है तुम शरीर नही आत्मा हो |

इति पंचमोऽध्यायः


[ अथ षष्ठोऽध्यायः ]

परीक्षित की परम गति जन्मेजय का सर्पसत्र-सूतजी बोले ऋषियो! श्रीशुकदेवजी का अन्तिम उपदेश सुन परीक्षित ने शुकदेवजी की पूजा की और उन्हे विदा किया और आप स्वयं एक आसन पर बैठ आत्मा को परमात्मा में लीन कर दिया शरीर बैठा था तक्षक ने आकर शरीर को डस लिया विषज्वाला से शरीर जलकर भस्म हो गया जब इसका पता जन्मेजय को लगा कि मेरे पिता को तक्षक ने डस लिया उसने एक सर्प यज्ञ किया जिसमें आकर सर्प भस्म होने लगे किन्तु तक्षक नही आया वह इन्द्र की शरण में था जब इन्द्र सहित उसका आह्वाहन किया तो इन्द्र सहित तक्षक गिरने लगा तो ब्रह्माजी ने आकर यज्ञ बन्द करवा दिया।

इति षष्ठोऽध्यायः


[ अथ सप्तमोऽध्यायः ]

अथर्व वेद की शाखाएं पुराणों के लक्षण-सूतजी बोले व्यासजी ने वेट के चार भाग कर उन्हे अपने शिष्योको देदिए शिष्यों ने भी उनके कड भाग कर अपने शिष्यों को दे दिया अनेक भाग उनके हो गए। अब आपको पुराणों के लक्षण बताते है सर्ग विसर्ग वृत्ति रक्षा मनवन्तर वंशानुचरित संस्था-प्रलय हेतु-उति अपाश्रय प्रकृति से उनके तीन गुण महत्त्व तीन प्रकार के अहंकार ये सर्ग कहलाते है जीवों की उत्पत्ति विसर्ग है अचर पदार्थ वृत्ति है।

इति सप्तमोऽध्यायः

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[ अथ अष्टमोऽध्यायः ]

मारकण्डेयजी की तपस्या और वर प्राप्ति-सूतजी बोले सोनकजी! मृकण्ड ऋषि के पुत्र मारकण्डेय बृह्मचर्य व्रत लेकर तपस्या करने लगे इससे इन्द्र ने घबरा कर कामदेव के सहित अप्सराओं को भेजा किन्तु वे सब परास्त हो गए अन्त मे भगवान नारायण प्रकट हो गए मारकण्डेयजी ने भगवान की स्तुति की।

इति अष्टमोऽध्यायः


[ अथ नवमोऽध्यायः ]

 

मारकण्डेयजी का माया दर्शन-सूतजी बोले जब मारकण्डेयजी ने भगवान की स्तुति की तो भगवान ने मार्कण्डेयजी से वर मांगने को कहा मार्कण्डेय बोले प्रभो मैने आपके दर्शन कर लिए अब आपकी माया के दर्शन ओर करना चाहता हूँ भगवान एवमस्तु कह कर चले गए। एक दिन मारकण्डेयजी अपने आश्रम मे बैठे थे तभी मूसलाधार वर्षा होने लगी कुछ ही देर मे चारों ओर जल ही जल हो गया मारकण्डेयजी के अलावा कोई नही था मारकण्डेयजी जल में तैरते हए घूमने लगे कुछ देर बाद उन्हे एक बड़ का पेड दिखाई दिया औरउसके एक पत्ते पर एक छोटा सा बालक अपने पैर के अगूंठों को दोनो हाथों से पकड कर मुह मे चूस रहाथा मार कण्डेय सोचने लगे कैसी आश्चर्य की बात है कि इस प्रलय काल में भी यह बालक कैसे बच गया। इतने में बालक ने मुँह खोल कर सांस खेंचा मारकण्डेय उसके मुँह से उदर में पहुँच गए और वहाँ समस्त श्रृष्टि को देखा श्वास के वापिस आते ही वे पुन: समुद्र में आ गए वे समझ गए यह बालक कोई साधारण नही है स्वयं भगवान ही है मारकण्डेयजी ने उनका आलिंगन करना चाहा तभी भगवान अन्तर ध्यान हो गए वह जल भी समाप्त हो गया और मारकण्डेयजी अपने आश्रम में बैठे थे।

 

इति नवमोऽध्यायः

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[ अथ दशमोऽध्यायः ]

 

मारकण्डेयजी को भगवान शंकर का वरदान-सूतजी बोले सोनकजी! भगवान की माया के दर्शन कर लेने के बाद ऋषि भगवान का ध्यान करने लगे तो शिव पार्वती आए मारकण्डेयजी को ध्यानस्थ देख उनके ध्यान मे प्रवेश कर गए जब उनका ध्यान खुला तो सामने शिवजी खड़े है मारकण्डेयजी ने उनकी स्तुति की शिवजी भगवान के चरणों में तुम्हारी भक्ति हो ऐसा वरदान देकर चले गए।

 

इति दशमोऽध्यायः

[ अथ एकादशोऽध्यायः ]

 

भगवान के अंग उपांग और आयुधों का रहस्य-सूतजी बोले सोनकजी! भगवान कौस्तुभमणि के रूप में समस्त जीवों को अपने वक्षस्थल में धारण करते है समस्त श्रृष्टि का तेज सुदर्शन के रूप में तथा समस्त ज्ञानतत्व शंख के रूप में धारण करते हैं अन्य अस्त्र शस्त्रादि सभी तत्व रूप हैं।

 

इति एकादशोऽध्यायः

[ अथ द्वादशोऽध्यायः ]

 

भागवत की संक्षिप्त विषय सूचिः-सूतजी बोले सोनकजी! इस भागवत के प्रथम स्कन्ध में भक्ति ज्ञान और वैराग्य का वर्णन हुआ है व्यास नारद संवाद से भागवत जी की रचना हुई है। द्वितीय स्कन्ध में योग धारणा ब्रह्मा नारद संवाद है। तीसरे स्कन्ध में उद्धव विदुर संवाद तथा विदुर मैत्रेय संवाद श्रृष्टि की रचना का वर्णन है और कर्दम जी के विवाह की कथा है। 


चोथे स्कन्ध में ध्रुव चरित्र पृथु चरित्र है। पांचवें स्कन्ध मे प्रियब्रत ऋषभ देव भरत चरित्र है। द्वीप वर्ष भूगोल खगोल का वर्णन है छठे स्कन्ध मे प्रचेताओं का दक्ष का बृत्रासुर का वर्णन है। सातवें स्कन्ध में हिरण्यकशिप प्रहलादजी का चरित्र है। आठवें स्कन्ध में गजग्राह उद्धार समुद्र मंथन बलि की कथा है नवम स्कन्ध में राज्य वंशो का वर्णन है। 


सूर्य वंशी चन्द्रवंशी इक्ष्वाकु निमि आदि राजाओं का वर्णन है रामजी के चरित्रों का वर्णन है राजा ययाति से यदुवंश का वर्णन है। दशम स्कन्ध में भगवान कृष्ण का प्राकट्य उनकी बाललीला शकटासुर तुणावर्त बकासुर वत्सासुर अधासुर का वध कंस का वध अनेक लीलाएं हैं। एकादश स्कनध में वसुदेव नारद संवाद भगवान उद्धव संवाद दत्तात्रेय जी के चौबीस गुरु आदि संवाद है द्वादश स्कन्ध में कलियुग के राजाओं का वर्णन है।

 

इति द्वादशोऽध्यायः

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[ अथ त्रयोदशोऽध्यायः ]

 

विभिन्न पुराणों की श्लोक संख्या-ब्रह्म पुराण मे दस हजार श्लोक पद्म पुराण में पचपन हजार विष्णु पुराण में तेइस हजार शिवपुराण में चौबीस हजार श्रीमदभागवत में अठारह हजार नारद पुराण में पच्चीस हजार मार्कण्डेय पुराण में नौ हजार अग्नि पुराण में पन्द्रह हजार चार सौ भविष्य पुराण की चौदह हजार पांच सौ ब्रह्म वैवर्त पुराण की अठारह हजार लिंग पुराण में ग्यारह हजार वराह पुराण में चौबीस हजार स्कन्ध पुराण में इक्यासी हजार एक सौ वामन पुराण मे दस हजार कुर्मपुराण सत्रह हजार मत्स्य पुराण में चौदह हजार गरुड़ पुराण में उन्नीस हजार ब्रह्माण्ड पुराण में बारह हजार कुल पुराणों में मिलकर चार लाख श्लोक है।

नाम संकीर्तनं तस्य सर्वपाप प्रणाशनम्।

प्रणामो दुःख शमनस्तं नमामि हरिं परम्।।

जिस भगवान के नाम का संकीर्तन सारे पापों को सर्वथा नष्ट कर देता है जिन भगवान के चरणों में आत्म समर्पण उनके चरणों में प्रणति सर्वदा के लिए सब प्रकार के दुःखो को शान्त कर देती है उन्ही परमात्मा स्वरूप श्रीहरि को मैं नमस्कार करता हूँ 

इति त्रयोदशोऽध्यायः

इति द्वादश स्कन्ध: समाप्त

 

त्वदीय वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये।

तेन त्वदन्ध्रि कमले रति मे यच्छ शाश्वतीम।।

 

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

संपूर्णोऽयंग्रन्थः

bhagwat kathanak


भागवत सप्ताहिक कथा / भाग -1

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